दोस्तो, आधी बात तो आप ऊपर लिखे शीर्षक से ही समझ चुके हैं---जी हां, उन लोगों की बात जो बच्चों के नाम तो हिंदी की डिक्शनरी देख-देख कर रखते हैं, और हां, कईं बार तो नाम भी ऐसे कि उन्हें हिंदी अंदाज़ में ही कहने से आनंद मिलता है। लेकन जैसे ही वह बच्चा होश संभालता है उसे उस की राष्ट्र-भाषा से तो अलग करने की कोशिश की जाती है...लेकिन अफसोस तो इस बात का है, मेरे दोस्तो, कि उसे उस की मातृ-भाषा से भी तोड़ने की कोशिश की जाती है। जिन बच्चों को उस की माटी की खुशबू से ही अलग कर दिया जाए----दोस्तो, वह आग चल कर गुलाब बन भी गया, तो खुशबू कहां से लाएगा। बिल्कुल कागजी, बनावटी फूल की तरह ही बन कर रहेगा। दोस्तो, हम लोगों ने इंगलिश तो सारी उम्र सीखनी है, उस भाषा में कईं काम करने होते हैं, लेकिन घर -- मां-बाप, भाई-बहन बच्चे जब अपनी ही भाषा में बात करते हैं तो पता है न कितना मज़ा आता है, कितना खुलापन झलकता है। क्यों कि किसी भी व्याकरण का ध्यान रखने की जरूरत ही नहीं होती। मैंने भी ऐसे बहुत से मध्यमवर्गीय मां-बाप को देखा है जो इस बात का बेहद गर्व महसूस करते हैं कि हमारे पिंचू के स्कूल में तो जैसे ही हिंदी बोलो, दस रूपये का फाइन ठुक जाता है, इसलिए तो हम सब घर में भी इंगलिश बोलना चाहते हैं, लेकिन इस के दादा-दादी का क्या करें---वे गांव के हैं न, बस वही प्राब्लम है। जीहां, सब से बड़ी प्राबल्म हो आप ही हो, आप भी गांव के ही हो, लेकिन बड़े शहर ने थोड़ी एक्टिंग करनी सिखा दी है। बस, इस से ज्यादा असलियत कुछ और नहीं।...
तो क्या, बच्चों को इंगलिश से दूर रखें। दोस्तो, ऐसा मैंने कब कहा है ??-- इंगलिश तो एक इंटरनैशनल भाषा है, उस पर पकड़ एकदम सरिये जैसी मजबूत होनी चाहिए। हम उसे काम-काज में इस्तेमाल करें....टैक्नीकल विषयों से संबंधित जानकारी के प्रसार प्रचार में इस्तेमाल करे.......बिना वजह अपने से कम पढ़े लिखे बंदे को या कम भाग्यवान बंदे के ऊपर अपनी अंग्रजी की धाक जमा कर आखिर हम क्या सिद्ध कर लेंगे ? कुछ नहीं। और जहां तक छोटे बच्चों की बात है, उन्हें हम अपने देश की ,अपने प्रदेश की , अपने गांव की, अपनी चौपाल की मीठी बोली रूपी मिट्रटी में पनपने का मौका तो दें..........इस पौधे को पल्लवित-पुष्पित होने की सही खुराक तो वहीं से मिलनी है। एक बार अगर इस पौधे की बस जड़ें मजबूत होने दीजिए--फिर देखिए, आप को यह एक सच्चा अंतराष्ट्रीय मानस बन कर दिखायेगा-----जात-पात, धर्म,नस्ल के भेदों से कोसों दूर-----फिर चाहे आप उस से दुनिया की कोई भी भाषा बुलवा लीजिएगा।
आपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हैं ।
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