सोमवार, 17 दिसंबर 2007

बेटी बचाओ..................

साथियों, कुछ महीने पहले की बात है कि मैंने किसी जगह एक कैलेंडर टंगा हुया देखा जिस पर नीचे लिखी पंक्तियां लिखीं हुईं थीं जो मेरे मन को छू गईं, उन्हें मैं आप के सांझा करना चाहता हूं......

बोये जाते हैं बेटे,
और उग जाती हैं बेटियां,
खाद-पानी बेटों में,
और लहलहाती हैं बेटियां,
एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे,
और चढ़ जाती हैं बेटियां,
रूलाते हैं बेटे
और रोती हैं बेटियां,
कई तरह गिरते हैं बेटे,
संभाल लेती हैं बेटियां,
सुख के स्वप्न दिखाते बेटे,
जीवन का यथार्थ बेटियां,
जीवन तो बेटों का है-
और मारी जाती हैं बेटियां
.............बेटी बचाओ
(Save the girl Child)

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