पता नहीं मुझे उन लोगों से बड़ी शिकायत है जो साइकिल -रिक्शा चलाने वालों से मोल-तोल करते रहते हैं। आपत्ति मेरे को केवल इतनी है कि शापिंग मालों पर , बड़े बड़े मल्टीप्लैक्स ,ब्रांडेड लक्ज़री आइटम पर तो हम लोग सैंकड़ों का सिर मुंडवा आते हैं लेकिन जब इस फटी कमीज़ पहने बंदे की बारी आती है तो सारी नैगोशिएशन एबिलिटी हम वहीं आजमाना चाहते हैं। शायद हम जिस महंगे होटल में खाना खाने उस रिक्शे पर बैठ कर जा रहे होते हैं, वहां हमें सैंकड़ों का चूना लगेगा- वह हम खुशी खुशी सह लेते है् चाहे घर आकर सारी रात एसिडिटी से परेशान रहें। अगर हम सोचें कि 2-4-5 पांच रूपये में क्या फर्क पड़ेगा, शायद यह बंदा आज इन से कुछ फल ही खरीद ले, तो कितना अच्छा हो। दूसरा, कई बार पुल वगैरह आने पर या थोड़ी ऊंची जगह आने पर भी हम लोग नीचे उतरने में हिचकचाते हैं....ऐसा क्यों,भई। वो भी तो इंसान है,ऐसा व्यवहार करना भी उस का शोषण करना ही तो है। रास्ते में आप उस बंदे से थोड़ा बतिया कर के तो देखें..........कईं काम की बातें हम उस से भी सीख सकते हैं। बस,ऐसे ही यह विचार काफी समय से परेशान कर रहा था सो सांझा कर लिया। क्या आप मेरी बात से सहमत हैं.......................
कहीं से चुराया हुया एक शेयर आप के लिए .........
लहरों को शांत देख कर ये मत समझना
कि समुन्द्र में रवानी नहीं है,
जब भी उठेंगे तूफान बन कर उठेंगे,
अभी उठने की ठानी नहीं है।
कहीं से चुराया हुया एक शेयर आप के लिए .........
लहरों को शांत देख कर ये मत समझना
कि समुन्द्र में रवानी नहीं है,
जब भी उठेंगे तूफान बन कर उठेंगे,
अभी उठने की ठानी नहीं है।
आपकी बातों से मैं पूरी तरह सहमत हूं.. मैं कहीं भी मोलभाव कर लूं पर ऐसे लोगों से कभी नहीं करता हूं जो साधन संपन्न नहीं हैं..
जवाब देंहटाएं