शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

अखबार के पन्नों पर नीम-हकीमों के रोज़ाना सजते बाजार....

हिंदी के कई अखबार सुबह-सुबह देखो तो ऐसा लगता है कि पेज-3 जर्नलिज़्म और बलात्कार, चोरी चकारी और डकैती की खबरों के इलावा सारी अखबार तो नीम हकीमों के खानदानी नुस्खों के इश्तिहारों से ही भरी पड़ी होती है। कभी आप यह भी सोचें कि ऐसे इश्तिहार अंग्रेज़ी अखबारों से गाय के सींघ की तरह क्यों गायब होते हैं ? कुछ हिंदी के अखबारों तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओं के अखबारों को देख कर तो निसंदेह ऐसा लगता है कि मानो ये सारे नीम हकीम झोला-छाप डाक्टर और करिश्माई दवाई के विक्रेताओं ने अखबार के पन्नों पर ही आम बंदों को उल्लू बनाने के लिए बड़े करीने से एक बाज़ार सा ही सजा रखा है।
कोई कहता है कि कद इतने इंच बढ़ा दूंगा, तो दूसरा सभी प्रकार के वास्तविक एवं काल्पनिक गुप्त रोगों के शर्तिया इलाज का चिट्ठा छपवा कर मछली के फंसने का इंतजार कर रहा है। कोई नौजवानों को इस ताकत की कमी के कारण आत्महत्या से बचाने का दावा करता है। कुछ विज्ञापन तो बेहद कामुक चित्र छाप कर ही समझ लेते हैं कि उन्होंने किला फतह कर लिया। कोई विज्ञापन स्मरण शक्ति बढ़ाने का है तो कोई वक्ष-स्थल को उन्नत करवाने की भ्रामक जानकारी दे रहा होता है....निसंदेह बेचारे आम बंदे का तो सिर ही घूम जाए। लेकिन एक बात पर ध्यान दीजिए कि ये विज्ञापन अपने शिकारों को फंसाने के लिए बड़ी मीठी भाषा का प्रयोग करते हैं।
कुछ अखबारें तो इन्हीं विज्ञापनों के द्वारा खूब चांदी कूट रही हैं। आम पाठक की परवाह है किसे आखिर......जी हां, उस के लिए वे कभी कभी एक छोटा सा नोटिस छपवा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं कि किसी भी विज्ञापन के दांवों को जांचना स्वयं पाठक की जिम्मेदारी है। अब आम बंदे की त्रासदी देखिए कि वह तो एक ही काम करता है न--- या तो वह सुबह से शाम तक बीसियों लाइनों में खड़ा हो ले या वह इन दावों को जांचने का दुःसाहस कर ले। यह तो हम सब बुद्धिजीवियों का ही कर्त्तव्य बनता है कि हम उस आम जन तक सच्चाई दोगुनी आवाज़ से पहुंचाएं।
अच्छा जाते जाते एक बात का ध्यान आ गया--- अश्लील विज्ञापनों का बात हो रही थी...अब बच्चों पर होने वाले इन के बुरे असर की तो बात कर कर के हम लोग थक से ही गये हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि लालच में अंधे हो चुके ये विज्ञापन देने वालों ने अब बड़े-बुजुर्गों को भी इस गोरख-धंधे में शामिल कर लिया है--- जी हां, 10-15 दिन से हिंदी के एक पेपर में एक ऐसे ही विज्ञापन में कम से कम अस्सी साल के वृद्ध एवं वृद्धा को प्रेमालाप करते देख परेशान हूं। अगर आप भी उसे देख लें, तो आप भी परेशान हुए बिना नहीं रह पाय़ेंगे।...
जाते जाते एक विचार........................
When you are good to others, you are BEST to yourself..

1 टिप्पणी:

  1. "ना बाप बडा...ना भैय्या....सबसे बडा रुपिय्या"...

    "सब पैसे की माया है....लूट सके तो लूट"...

    "पब्लिक तो पागल बनने के लिए तैयार ही बैठी है बस ...घूमती है दुनिया घुमाने वाला चाहिए "..

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