आंखों का चैक अप इतने महीने बाद, दांतों का इतने महीने बाद, प्रोस्टेट का इतने अरसे बाद, कोलैस्ट्रोल एवं लिपिड प्रोफाईल इतने समय के बाद, ईसीजी कितने अरसे बाद, महिलाओं में स्त्री-रोग विशेषज्ञ द्वारा फलां फलां नियमित चैक-अप, मैमोग्राफी कब और पैप-स्मियर कब, रक्त की पूरी जांच, यूरिन की पूरी जांच, कुछ ब्लड-मार्कर्स् की तफतीश, छाती का एक्स-रे, पेट का अल्ट्रासाउंड ( ultrasound examination of Abdomen), 50 वर्ष के बाद गुदा-मार्ग का नियमित परीक्षण, थायरायड चैक-अप एवं स्कैन, ओसटियोपोरोसिस के लिये स्क्रीनिंग ............................मेरी तरह आप भी बोर हो गये ना पड़ते पड़ते ....लेकिन यह लिस्ट अभी अभी बिलकुल आधी अधूरी है ....बिलकुल पूरी नहीं है – जो इस समय में ध्यान में आया लिख दिया –बहुत से चैक-अप के बारे में तो मैं इस समय अवश्य भूल रहा हूं।
इस लंबी चौड़ी लेकिन अभी आधी अधूरी लिस्ट को यहां डालने का मेरा उद्देश्य केवल यही है कि इस बात को रेखांकित किया जा सके कि अपने आप ये सब टैस्ट अलग अलग जगह जा कर करवाने वाला काम अच्छा खासा सिरदर्दी वाला हो गया। पहले एक एक स्पैशलिस्ट से अपवायंटमैंट लें, फिर भी पता नहीं कितने दिन लग जायेंगे ये सब जांच करवाने में और चूंकि अब तो इस तरह की जांच कुछ उम्र के बाद नियमित तौर पर ही करवाने की सलाह दी जा रही है तो ऐसे में तो मामला और भी सिरदर्दी वाला ही लगता है।
अपने आप ही विभिन्न स्पैशलिस्टों के पास जाकर समय ज़्यादा लगेगा, खर्च भी शायद ज़्यादा ही बैठेगा, और शायद आप पूरे सिस्टेमैटिक तरीके से सभी प्रकार की जांच करवा पाएं भी या ना –इस की कोई गारंटी नहीं--- शायद, आप किसी विशेष जांच को बिना करवाये ही छोड़ दें जो कि आप की उम्र एवं शारीरिक स्थिति के लिये बहुत अहम् हो----तो ये सब प्राबल्मज़ तो हैं ही अपने आप इस फील्ड में कूदने के।
तो अब प्रश्न उठता है कि ऐसे में क्या करें ?—सब कुछ उस नीली छतड़ी वाले छोड़ कर बेफिक्री की रजाई ओड़ कर लंबी तान लें। नहीं, यह भी आज की तारीख में संभव नहीं है- मैडीकल डायग्नोसिस में इतनी ज़्यादा तरक्की हो चुकी है---सारे विश्व के लिये यही मंगल-कामना है कि जब तक भी जिंदगी हो, सब लोग उसे भरपूर जियें------इसलिये ये रूटीन चैक-अप तो ज़रूरी हैं ही , वो बात अलग है कि सुप्रीम शक्ति तो यह सब कुछ कंट्रोल कर ही रही है।
मैंने नोटिस किया है कि कुछ अच्छे, बड़े , प्राईवेट हास्पीटलों में हैल्थ-चैकअप प्लान होते हैं-----पूरा एक पैकेज होता है उम्र के हिसाब से, ये चैकअप करवाने वाला पुरूष है या स्त्री, चैक-अप करवाने की जीवन-शैली कैसी है, उस की सेहत कैसी है ----मेरे विचार में एक ही छत के नीचे वे सारे स्पैशलिस्टों से जांच करवा देते हैं, सभी टैस्ट करवा देते हैं, और सभी तरह की जांच करवा देते हैं और जिस किसी एरिया में उन्हें कुछ गड़बड़ी महसूस होती है उस अंग की अथवा एरिया की पूरी डिटेल में जांच की जाती है। इस तरह की जांच तो नियमित अपने उम्र और सेहत के अनुसार करवाते ही रहना चाहिये।
इसे तो एक तरह से पीरियोडिक ओवर-हालिंग ही समझ लेना चाहिये- हम अपने स्कूटर और कार को इतने इतने किलोमीटर चलाने के बाद ले कर जाते हैं ना मैकेनिक इस्लाम भाई के पास ---- जा कर पहले उस से अपवायंटमैंट लेते हैं----तो जब अपनी सेहत की बात आये तो किसी तरह का समझौता क्यों ?
जिस तरह के वातावरण में हम लोग सांस ले रहे हैं, जैसा पानी पी रहे हैं , जिस तरह का खाना खा रहे हैं, सब कुछ कीटनाशकों एवं रासायनों से लैस---------इसलिये नियमित जांच के इलावा कोई रास्ता है ही नहीं। और बेहतर तो यही है कि किसी अच्छे हास्पीटल के हैल्थ-चैक अप पैकेज़ के अंतर्गत ही यह सब कुछ करवा के फारिग हो जाया जाये। नहीं, नहीं .....इस सिलसिले में कुछ महंगा नहीं है .......आप की सेहत अनमोल है.......हमारे तो गुरू-पीर-पैगंबर ही कह रहे हैं---------पहला सुख निरोगी काया !!!
और जहां तक सरकारी हास्पीटलों का सवाल है, मैं सोचता हूं कि इन में भी इस तरह के पैकेज शुरू किये जाने चाहिये ताकि जनता-जनार्दन की भी बचाव की तरफ़ प्रवृत्ति पैदा हो ---और वैसे भी बात वही मन को लगती है जो कि लाखों-करोड़ों लोग अपनी लाइफ में उतार सकें क्योंकि एक आउँस बचाव एक पाउंड इलाज से कईं गुणा ज़्यादा बेहतर है ----An ounce of prevention is better than a pound of treatment.
इस लंबी चौड़ी लेकिन अभी आधी अधूरी लिस्ट को यहां डालने का मेरा उद्देश्य केवल यही है कि इस बात को रेखांकित किया जा सके कि अपने आप ये सब टैस्ट अलग अलग जगह जा कर करवाने वाला काम अच्छा खासा सिरदर्दी वाला हो गया। पहले एक एक स्पैशलिस्ट से अपवायंटमैंट लें, फिर भी पता नहीं कितने दिन लग जायेंगे ये सब जांच करवाने में और चूंकि अब तो इस तरह की जांच कुछ उम्र के बाद नियमित तौर पर ही करवाने की सलाह दी जा रही है तो ऐसे में तो मामला और भी सिरदर्दी वाला ही लगता है।
अपने आप ही विभिन्न स्पैशलिस्टों के पास जाकर समय ज़्यादा लगेगा, खर्च भी शायद ज़्यादा ही बैठेगा, और शायद आप पूरे सिस्टेमैटिक तरीके से सभी प्रकार की जांच करवा पाएं भी या ना –इस की कोई गारंटी नहीं--- शायद, आप किसी विशेष जांच को बिना करवाये ही छोड़ दें जो कि आप की उम्र एवं शारीरिक स्थिति के लिये बहुत अहम् हो----तो ये सब प्राबल्मज़ तो हैं ही अपने आप इस फील्ड में कूदने के।
तो अब प्रश्न उठता है कि ऐसे में क्या करें ?—सब कुछ उस नीली छतड़ी वाले छोड़ कर बेफिक्री की रजाई ओड़ कर लंबी तान लें। नहीं, यह भी आज की तारीख में संभव नहीं है- मैडीकल डायग्नोसिस में इतनी ज़्यादा तरक्की हो चुकी है---सारे विश्व के लिये यही मंगल-कामना है कि जब तक भी जिंदगी हो, सब लोग उसे भरपूर जियें------इसलिये ये रूटीन चैक-अप तो ज़रूरी हैं ही , वो बात अलग है कि सुप्रीम शक्ति तो यह सब कुछ कंट्रोल कर ही रही है।
मैंने नोटिस किया है कि कुछ अच्छे, बड़े , प्राईवेट हास्पीटलों में हैल्थ-चैकअप प्लान होते हैं-----पूरा एक पैकेज होता है उम्र के हिसाब से, ये चैकअप करवाने वाला पुरूष है या स्त्री, चैक-अप करवाने की जीवन-शैली कैसी है, उस की सेहत कैसी है ----मेरे विचार में एक ही छत के नीचे वे सारे स्पैशलिस्टों से जांच करवा देते हैं, सभी टैस्ट करवा देते हैं, और सभी तरह की जांच करवा देते हैं और जिस किसी एरिया में उन्हें कुछ गड़बड़ी महसूस होती है उस अंग की अथवा एरिया की पूरी डिटेल में जांच की जाती है। इस तरह की जांच तो नियमित अपने उम्र और सेहत के अनुसार करवाते ही रहना चाहिये।
इसे तो एक तरह से पीरियोडिक ओवर-हालिंग ही समझ लेना चाहिये- हम अपने स्कूटर और कार को इतने इतने किलोमीटर चलाने के बाद ले कर जाते हैं ना मैकेनिक इस्लाम भाई के पास ---- जा कर पहले उस से अपवायंटमैंट लेते हैं----तो जब अपनी सेहत की बात आये तो किसी तरह का समझौता क्यों ?
जिस तरह के वातावरण में हम लोग सांस ले रहे हैं, जैसा पानी पी रहे हैं , जिस तरह का खाना खा रहे हैं, सब कुछ कीटनाशकों एवं रासायनों से लैस---------इसलिये नियमित जांच के इलावा कोई रास्ता है ही नहीं। और बेहतर तो यही है कि किसी अच्छे हास्पीटल के हैल्थ-चैक अप पैकेज़ के अंतर्गत ही यह सब कुछ करवा के फारिग हो जाया जाये। नहीं, नहीं .....इस सिलसिले में कुछ महंगा नहीं है .......आप की सेहत अनमोल है.......हमारे तो गुरू-पीर-पैगंबर ही कह रहे हैं---------पहला सुख निरोगी काया !!!
और जहां तक सरकारी हास्पीटलों का सवाल है, मैं सोचता हूं कि इन में भी इस तरह के पैकेज शुरू किये जाने चाहिये ताकि जनता-जनार्दन की भी बचाव की तरफ़ प्रवृत्ति पैदा हो ---और वैसे भी बात वही मन को लगती है जो कि लाखों-करोड़ों लोग अपनी लाइफ में उतार सकें क्योंकि एक आउँस बचाव एक पाउंड इलाज से कईं गुणा ज़्यादा बेहतर है ----An ounce of prevention is better than a pound of treatment.