आज सुबह सुबह यह प्री-मैरिज काउंसिलिंग वाली न्यूज़-रिपोर्ट पढ़ कर तो कुछ ऐसी ही फीलिंग हुई कि खोदा पहाड़-निकला चूहा। मैं तो बस संक्षेप में इतना ही कहना चाह रहा हूं कि जितनी परमिसिवनैस हम लोग आज अपने समाज में भी देख रहे हैं.....ऐसे वातावरण में तो यह अपने आप में एक सुलगता मुद्दा है ही !!....आज आप स्कूली बच्चों को यौन-शिक्षा देने की बात करें तो झट से कईं फ्रंट बन जायेंगे। ऐसे में अब हमें शादी के कुछ दिन पहले ही यह प्री-मैरिज काउंसिलिंग करने की बातें याद आने लगी हैं। क्या इतने क्विक-फिक्स सल्यूशन चल पायेंगे.....आप को क्या लगता है...........वो मैं आप की बात से पूर्णतयः सहमत हूं ...Something is better than nothing !!
वैसे मैं तो अपने यहां के युवक-युवतियों को तभी परिपक्व मानूंगा जब वे शादी से पहले एक दूसरे से मैडीकल-रिपोर्टज़ ( विशेषकर एचआईव्ही स्टेटस) की मांग करेंगे। हम लोग बाज़ार में दो सौ रूपये का सामान लेने जाते हैं तो इतनी नुक्ता-चीनी करते हैं और जब हमारे बेटी-बेटों को ब्याहने की बारी आती है तो हम इन के स्वास्थ्य के बारे में कुछ भी बात करने में इतना झिझकते हैं मानो कि ......!! मुझे पता है कि आज की तारीख में तो इस तरह की बात उठाना भी उपहास का कारण बनने के बराबर है...........लेकिन मार्क मॉय वर्ड्स ....देर-सवेर यह झिझक हमें खुद ही दूर करनी होगी !!.....बाकी फिर कभी !!