नकली दांतों की बात करता हूं तो बचपन के वे दिन याद आ जाते हैं अकसर ...जब हम लोग ननिहाल में गये होते ...नाना जी खाना खाने के बाद हैंडपंप के पास पहुंचते और बच्चों में से किसी को एक इशारा ही मिल जाता कि अब नाना जी कुल्ला करेंगे ...हैंडपंप को गेड़ना है दो मिनट के लिए हमें...मुझे अभी भी याद है अच्छे से कि किस तरह से वह हर खाने के बाद कुल्ला करने से पहले नकली दांतों का पूरा सैट मुंह से निकाल कर उसे भी हैंडपंप के पानी से जल्दी से धोते और खटाक से मुंह के अंदर बिठा लेते और हमारा कौतूहल भांप कर मुस्कुराते हुए कोई उर्दू की किताब पढ़ने में मशगूल हो जाते .. वे एक उर्दू अखबार के संपादक भी थे ...
समय का चक्का आगे चला ...नकली दांतों के बारे में पढ़ने, समझने, तैयार करने और उन्हें मरीज़ के मुंह में फिट करने का प्रोफैशन मिल गया ...इस दौरान तमाम तजुर्बात हुए ..हर तरह के .... कुछ दिन पहले नकली दांतों के पांच सैट वाला एक शख्स मिला तो सोचा कि चलिए, इस पर ही कुछ कहते हैं।
जब हम लोग डैंटिस्ट्री करते हैं तो पढ़ते हुए भी हमें मरीज़ों के नकली दांतों के सैट -शायद दस मरीज़ों के -- तैयार करने होते हैं...अब, इतनी प्रैक्टिस तो उस समय होती नहीं है ...ऐसे ही जल्दबाजी में कोटा पूरा करने के चक्कर में लगे रहते थे ... सरकारी कॉलेज था, फिर को मरीज़ों को नकली दांत लगवाने के लिए शायद १००-२०० रूपये जमा तो करने ही पड़ते थे ...अस्सी के दशक में भाई यह रकम भी काफी होती थी ..
किसी को दांत फिट नहीं हुए, किसी को चुभ रहे हैं, किसी का मुंह अजीब सा हो गया है ...ये सब आम समस्याएं होती हैं नये दांतों के साथ ... एक किस्सा जो मुझे ताउम्र याद रहेगा कि हमारी एक सीनियर थी...उसने एक बुज़ुर्ग महिला का डेंचर तैयार किया ...उसे फिट नहीं आ रहा था ...बार बार आ रही थी, वैसे भी नकली दांतों का सैट लगवाने के लिए मरीज़ को पांच छः बार तो आना ही होता था, वह हमारी सीनियर जब भी उसे दूर से देखती तो उस के पसीने छूटने लगते ...उस दिन भी जैसे ही बेबे आई ...उसने कहा कि यह दांत किसी काम के नहीं हैं....लेकिन सीनियर ने अपनी दलील दी कि हो जाएंगे रवां होते होते ... इतने में बेबे ने ज़ोर से उन दांतों को वहीं कमरे में पटका और ज़ोर से कहा ...लै रख ऐन्ना नूं वी, मेरे तो किसे कम दे नहीं, मैं समझांगी १०० रूपये दी सवा तेरे सिर च पा दित्ती..." (यह ले रख ले इन दांतों को, मेरे लिए तो किसी काम के हैं नहीं, मैं तो यही समझूंगी कि मैंने तेरे सिर पर १०० रूपये की राख डाल दी.).....और बुदबुदाते हुए वह बेबे चली गईँ....
इतने सालों में हर तरह के मरीज़ के साथ पाला पड़ा और पड़ भी रहा है ...कुछ एक दम ज़िंदगी से संतुष्ट ...कुछ ऐसे जो सब कुछ होते हुए भी हर समय शिकायत की मोड में दिखे .. कुछ बिना दांतों के भी या दो चार दांतों के साथ भी एकदम खुशी से लबरेज दिखे ...जब उन्हें दांत लगवाने के लिए कहा भी गया तो उन का जवाब यही था कि क्या करने हैं, अपना काम चल रहा है, कोई दिक्कत नहीं है ...दांत नहीं हैं तो क्या है, चने तक भी मैं इन इन चंद दांतों और टूटी फूटी दांत की जड़ों से चबा लेता हूं...कुछ कहते हैं कि अब क्या करना है, कितने दिन बचे हैं ज़िदगी में ...ऐसे ही गुजर-बसर हो जायेगी, चल रहा है अपना काम...उस दिन एक बुज़ुर्ग महिला मेरे पास अकेले आई थी जिसने कहा कि बेटा कहता है अब नकली दांतों पर इतना खर्च करोगी, तुम रहने ही कितने दिन वाली हो....उस की बात सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ।
ऐसे ऐसे मरीज़ दिखे जिन के नकली दांत देखने में ही लगता था कि यार, इन में को बहुत गड़बड़ है, इन्हें बनाते समय किसी से कुछ चूक हो गई है, लेकिन नहीं, वे मज़े में दिखे, सब कुछ खा पी रहे थे उन दांतों से ... (उन्हें कभी उन दांतों की कमियां गिनाने की हिमाकत कभी नहीं की मैंने)...और कुछ ऐसे नकली दांतों वाले जिन के दांत एकदम परफैक्ट हैं, लेकिन उन्हें उन से बीसियों शिकायते हैं ... इस के पीछे दांतों की कुछ कमी तो हो सकती है लेकिन बुज़ुर्ग लोगों की कुछ अन्य समस्याएं भी होती हैं...जैसे एक उम्र के बाद मुंह में लार का बनना कम हो जाना ...आदि आदि ... लेकिन कुछ यह सब हैरतअंगेज़ तरीके से स्वीकार कर लेते हैं .. और कुछ (बहुत कम) शिकायत ही करते रहते हैं .. जब हम लोग पढ़ते थे तो ऐसे मरीज़ों को साईकिक कह देते थे जब डाक्टर हम लोग आपस में बात करते थे ...व्यक्तिगत तौर पर मुझे किसी के लिए यह शब्द कहने में गुरेज़ ही रहा है ...दांतों से कोई संतुष्ट नहीं है , बार बार आ रहा है तो हम उसे कह दें कि वह तो पगला गया है....नहीं, नहीं, ऐसा नहीं होता, कुछ तो दुश्वारियां उस की भी होंगी!!
अपने आस पास भी देखा .. नानी पहनती थीं डेंचर, मेरे पापा भी पहनते थे ...लेकिन याद नहीं कभी इन्होंने ने कोई शिकायत की हो, इन दांतों के बारे में ... मेरे कहने का आशय यही है कि अगर कोई खुश है अपने नकली दांतों से या नाखुश है तो इस के पीछे बहुत से अन्य कारण होते हैं.... which are beyond the scope of this light article! But, yes, there are many such reasons like his/her mental make-up, their personal life, self-esteem, social life ... ये सब बातें तय करती हैं कि कोई अपने नकली दांतों से ही क्या, ज़िंदगी से भी खुश है या वक्त को धक्का ही दिया जा रहा है बस!!
यह तो कोई मैडीकल पोस्ट नहीं लग रही है, किस्सागोई जैसा मामला लग रहा है ...हां, तो बहुत से किस्से ऐसे भी नज़रों में आए कि रात को बिल्ली, चूहा नकली दांत खाट के पास पडे़ हुए ले कर चला गया, नहाते समय दांत नीचे गिरे और सैट टूट गया, किसी ने चलती बस में थोड़ा मुंह बाहर निकाल कर खांसा तो डेंचर गायब.....ये सब किस्से अपने मरीज़ों को भी सुनाने पड़ते हैं उन्हें आगाह करने के लिए....
पंजाबी में एक कहावत है ...जब पैसा ज़्यादा होता है तो लड़ने लगता है ...लड़ने लगता है का मतलब कि उसे यहां-वहां-कहां भी खर्च करने की खुजली होने लगती है ... किसी ने नकली दांतों का सैट लगवाया हुआ है ..खुश है...लेकिन किसी रिश्तेदार ने जबड़े में फिक्स दांतों का सैट डेढ़-दो लाख रूपये खर्च कर लगवा लिया है ...इसलिए अब उसे भी वैसा ही पक्का काम करना है ....अपनी तरफ़ से तो समझा देते हैं ऐसे लोगों को भी ....शायद समझ भी जाते होंगे!
कुछ दिन पहले एक बुज़ुर्ग से मुलाकात हुई ... पिछले दस सालों से नकली दांतों का सैट पहन रहे हैं... दस साल पहले जो सैट लगवाया था वह जब थोडा़ घिस सा गया तो नया सैट बनवा लिया ... चंद साल पहले ... वैसे बता रहे थे कि उन नकली दांतों से शिकायत कुछ भी नहीं है अभी तक ...बस, फिर लखनऊ के किसी दूसरे इलाक में जा कर नया सैट बनवा लिया ... इतने में किसी ने कहा कि मेडीकल कालेज से बनवा लो ... उस के बारे में कहते हैं कि उन्होंने बहुत दौड़ाया लेकिन वह सैट किसी काम का नहीं है, एक दिन भी नहीं पहना ... इतने सालों से वह सैट न. २ ही पहन रहे थे कि उन्हें लगा कि नया सैट ही बनवा लिया जाए ... तो उन्होंने एक सैट और बनवा लिया ... और फिर उसमें कुछ प्राबल्म सी लगी (बताता हूं अभी उस के बारे में भी, थोड़ा सब्र रखिए जनाब) तो उसी डाक्टर से एक और सैट लगवा लिया ... लेकिन उस से भी मज़ा नहीं आया....मज़ा उन्हें नहीं आया कि किसी और को नहीं आया, अभी सुनाएंगे आप को पूरा किस्सा ...
इतना तो आप समझ ही गये होंगे कि इन बुज़ुर्ग साहब के पास कुल मिला कर नकली दांतों के पांच सैट हैं...जिन में तीन तो वे मुझे दिखाने लाये थे .. अभी पिछले कुछ महीनों में इन तीन सैटों पर बाईस हज़ार के करीब खर्च कर चुके हैं,...रिटायर सरकारी मुलाजिम हैं, उम्र ७५ के करीब. लेकिन नकली दांतों से अभी भी खुश नहीं हैं..
मुझे इन की बातचीत से लगा कि इन्हें इन सब नकली दांतों के सैट से कोई विशेष शिकायत नहीं है शायद.... लेकिन इन के बच्चों को है...शिकायत यह है कि एस सैट तो ऐसा बन गया है कि मुंह में लगाते पता ही नहीं चलता कि लगाया भी हुआ है या नहीं, और दूसरा सैट ऐसा है कि वह लगाते ही इन का ऊपर वाला होंठ थोड़ा सा ऊपर उठ जाता है, नकली दांत थोड़े बाहर की तरफ़ हैं... इन के बच्चे ऐसा मानते हैं .... मैंने पांच मिनट लगा कर यह सैट की वजह से होंठ ऊपर उठने वाली समस्या तो सुलटा दी .... खुश हो गये, लेकिन मुझे पता है कि वह समस्या अधिकतर मानसिक/काल्पनिक ही थी ...
उस दिन मैं एक ऐसे शख्स से पहली बार मिला था जिस के पास नकली दांतों के पांच सैट थे .. लेकिन वह फिर भी नाखुश था ... उस से बात करते वक्त मैं यही सोच रहा था कि खुशी भी कितनी सब्जैक्टिव है, हर बंदे के अपने अपने मयार हैं खुशी को मापने-नापने के ...मुझे उस दिन वह भी याद आ रहा था कि हम लोगों ने वह भी मंज़र देखे हैं जब लोग फुटपाथ पर नकली दांतों के सैट रख कर बेचा करते थे .. जो जिसके नाप का हो, डाल कर देखे और ले जाए ...(इस का मैं चश्मदीद गवाह हूं) ...बेशक, यह एक गलत ही नहीं बेहद खतरनाक प्रैक्टिस रही है ... दांत एक दूसरे के फिट नहीं आ सकते .. और इन में रेडीमेड वाला कोई कंसेप्ट नहीं हो सकता ...और मैंने तो कईं बार देखा है लोग चश्मे भी ऐसे ही पुराने खरीद कर चढ़ा लेते हैं...जी हां, नज़र के चश्मे ...यह तो अभी भी होता देखा है मैंने कईं बार ...
यह भी एक अलग तरह की खाई है ...किसी के पास नकली दांतों के पांच पांच सैट और फिर भी पैसा लड़ रहा है ...मन मचल रहा है कि कुछ इस से भी उम्दा हो तो वही करवा लें और दूसरी तरफ़ ऐसे लोग जो एक सैट के लिए तरसते हुए इस दुनिया से रूख्सत हो जाते हैं ...और कुछ को बच्चे यह कह कर टाल देते हैं कि अब तुम्हारी बची ही कितनी है, और कितना जिओगे!!
चलिए, बहुत हो गई किस्सागोई, अब अपनी पसंद का एक गीत लगा रहा हूं, शायद यह आप की भी पसंद हो ...just check this out!
समय का चक्का आगे चला ...नकली दांतों के बारे में पढ़ने, समझने, तैयार करने और उन्हें मरीज़ के मुंह में फिट करने का प्रोफैशन मिल गया ...इस दौरान तमाम तजुर्बात हुए ..हर तरह के .... कुछ दिन पहले नकली दांतों के पांच सैट वाला एक शख्स मिला तो सोचा कि चलिए, इस पर ही कुछ कहते हैं।
जब हम लोग डैंटिस्ट्री करते हैं तो पढ़ते हुए भी हमें मरीज़ों के नकली दांतों के सैट -शायद दस मरीज़ों के -- तैयार करने होते हैं...अब, इतनी प्रैक्टिस तो उस समय होती नहीं है ...ऐसे ही जल्दबाजी में कोटा पूरा करने के चक्कर में लगे रहते थे ... सरकारी कॉलेज था, फिर को मरीज़ों को नकली दांत लगवाने के लिए शायद १००-२०० रूपये जमा तो करने ही पड़ते थे ...अस्सी के दशक में भाई यह रकम भी काफी होती थी ..
किसी को दांत फिट नहीं हुए, किसी को चुभ रहे हैं, किसी का मुंह अजीब सा हो गया है ...ये सब आम समस्याएं होती हैं नये दांतों के साथ ... एक किस्सा जो मुझे ताउम्र याद रहेगा कि हमारी एक सीनियर थी...उसने एक बुज़ुर्ग महिला का डेंचर तैयार किया ...उसे फिट नहीं आ रहा था ...बार बार आ रही थी, वैसे भी नकली दांतों का सैट लगवाने के लिए मरीज़ को पांच छः बार तो आना ही होता था, वह हमारी सीनियर जब भी उसे दूर से देखती तो उस के पसीने छूटने लगते ...उस दिन भी जैसे ही बेबे आई ...उसने कहा कि यह दांत किसी काम के नहीं हैं....लेकिन सीनियर ने अपनी दलील दी कि हो जाएंगे रवां होते होते ... इतने में बेबे ने ज़ोर से उन दांतों को वहीं कमरे में पटका और ज़ोर से कहा ...लै रख ऐन्ना नूं वी, मेरे तो किसे कम दे नहीं, मैं समझांगी १०० रूपये दी सवा तेरे सिर च पा दित्ती..." (यह ले रख ले इन दांतों को, मेरे लिए तो किसी काम के हैं नहीं, मैं तो यही समझूंगी कि मैंने तेरे सिर पर १०० रूपये की राख डाल दी.).....और बुदबुदाते हुए वह बेबे चली गईँ....
इतने सालों में हर तरह के मरीज़ के साथ पाला पड़ा और पड़ भी रहा है ...कुछ एक दम ज़िंदगी से संतुष्ट ...कुछ ऐसे जो सब कुछ होते हुए भी हर समय शिकायत की मोड में दिखे .. कुछ बिना दांतों के भी या दो चार दांतों के साथ भी एकदम खुशी से लबरेज दिखे ...जब उन्हें दांत लगवाने के लिए कहा भी गया तो उन का जवाब यही था कि क्या करने हैं, अपना काम चल रहा है, कोई दिक्कत नहीं है ...दांत नहीं हैं तो क्या है, चने तक भी मैं इन इन चंद दांतों और टूटी फूटी दांत की जड़ों से चबा लेता हूं...कुछ कहते हैं कि अब क्या करना है, कितने दिन बचे हैं ज़िदगी में ...ऐसे ही गुजर-बसर हो जायेगी, चल रहा है अपना काम...उस दिन एक बुज़ुर्ग महिला मेरे पास अकेले आई थी जिसने कहा कि बेटा कहता है अब नकली दांतों पर इतना खर्च करोगी, तुम रहने ही कितने दिन वाली हो....उस की बात सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ।
ऐसे ऐसे मरीज़ दिखे जिन के नकली दांत देखने में ही लगता था कि यार, इन में को बहुत गड़बड़ है, इन्हें बनाते समय किसी से कुछ चूक हो गई है, लेकिन नहीं, वे मज़े में दिखे, सब कुछ खा पी रहे थे उन दांतों से ... (उन्हें कभी उन दांतों की कमियां गिनाने की हिमाकत कभी नहीं की मैंने)...और कुछ ऐसे नकली दांतों वाले जिन के दांत एकदम परफैक्ट हैं, लेकिन उन्हें उन से बीसियों शिकायते हैं ... इस के पीछे दांतों की कुछ कमी तो हो सकती है लेकिन बुज़ुर्ग लोगों की कुछ अन्य समस्याएं भी होती हैं...जैसे एक उम्र के बाद मुंह में लार का बनना कम हो जाना ...आदि आदि ... लेकिन कुछ यह सब हैरतअंगेज़ तरीके से स्वीकार कर लेते हैं .. और कुछ (बहुत कम) शिकायत ही करते रहते हैं .. जब हम लोग पढ़ते थे तो ऐसे मरीज़ों को साईकिक कह देते थे जब डाक्टर हम लोग आपस में बात करते थे ...व्यक्तिगत तौर पर मुझे किसी के लिए यह शब्द कहने में गुरेज़ ही रहा है ...दांतों से कोई संतुष्ट नहीं है , बार बार आ रहा है तो हम उसे कह दें कि वह तो पगला गया है....नहीं, नहीं, ऐसा नहीं होता, कुछ तो दुश्वारियां उस की भी होंगी!!
अपने आस पास भी देखा .. नानी पहनती थीं डेंचर, मेरे पापा भी पहनते थे ...लेकिन याद नहीं कभी इन्होंने ने कोई शिकायत की हो, इन दांतों के बारे में ... मेरे कहने का आशय यही है कि अगर कोई खुश है अपने नकली दांतों से या नाखुश है तो इस के पीछे बहुत से अन्य कारण होते हैं.... which are beyond the scope of this light article! But, yes, there are many such reasons like his/her mental make-up, their personal life, self-esteem, social life ... ये सब बातें तय करती हैं कि कोई अपने नकली दांतों से ही क्या, ज़िंदगी से भी खुश है या वक्त को धक्का ही दिया जा रहा है बस!!
यह तो कोई मैडीकल पोस्ट नहीं लग रही है, किस्सागोई जैसा मामला लग रहा है ...हां, तो बहुत से किस्से ऐसे भी नज़रों में आए कि रात को बिल्ली, चूहा नकली दांत खाट के पास पडे़ हुए ले कर चला गया, नहाते समय दांत नीचे गिरे और सैट टूट गया, किसी ने चलती बस में थोड़ा मुंह बाहर निकाल कर खांसा तो डेंचर गायब.....ये सब किस्से अपने मरीज़ों को भी सुनाने पड़ते हैं उन्हें आगाह करने के लिए....
पंजाबी में एक कहावत है ...जब पैसा ज़्यादा होता है तो लड़ने लगता है ...लड़ने लगता है का मतलब कि उसे यहां-वहां-कहां भी खर्च करने की खुजली होने लगती है ... किसी ने नकली दांतों का सैट लगवाया हुआ है ..खुश है...लेकिन किसी रिश्तेदार ने जबड़े में फिक्स दांतों का सैट डेढ़-दो लाख रूपये खर्च कर लगवा लिया है ...इसलिए अब उसे भी वैसा ही पक्का काम करना है ....अपनी तरफ़ से तो समझा देते हैं ऐसे लोगों को भी ....शायद समझ भी जाते होंगे!
कुछ दिन पहले एक बुज़ुर्ग से मुलाकात हुई ... पिछले दस सालों से नकली दांतों का सैट पहन रहे हैं... दस साल पहले जो सैट लगवाया था वह जब थोडा़ घिस सा गया तो नया सैट बनवा लिया ... चंद साल पहले ... वैसे बता रहे थे कि उन नकली दांतों से शिकायत कुछ भी नहीं है अभी तक ...बस, फिर लखनऊ के किसी दूसरे इलाक में जा कर नया सैट बनवा लिया ... इतने में किसी ने कहा कि मेडीकल कालेज से बनवा लो ... उस के बारे में कहते हैं कि उन्होंने बहुत दौड़ाया लेकिन वह सैट किसी काम का नहीं है, एक दिन भी नहीं पहना ... इतने सालों से वह सैट न. २ ही पहन रहे थे कि उन्हें लगा कि नया सैट ही बनवा लिया जाए ... तो उन्होंने एक सैट और बनवा लिया ... और फिर उसमें कुछ प्राबल्म सी लगी (बताता हूं अभी उस के बारे में भी, थोड़ा सब्र रखिए जनाब) तो उसी डाक्टर से एक और सैट लगवा लिया ... लेकिन उस से भी मज़ा नहीं आया....मज़ा उन्हें नहीं आया कि किसी और को नहीं आया, अभी सुनाएंगे आप को पूरा किस्सा ...
इन में से एक सैट इन के मुंह में था, और दो जेब में |
इतना तो आप समझ ही गये होंगे कि इन बुज़ुर्ग साहब के पास कुल मिला कर नकली दांतों के पांच सैट हैं...जिन में तीन तो वे मुझे दिखाने लाये थे .. अभी पिछले कुछ महीनों में इन तीन सैटों पर बाईस हज़ार के करीब खर्च कर चुके हैं,...रिटायर सरकारी मुलाजिम हैं, उम्र ७५ के करीब. लेकिन नकली दांतों से अभी भी खुश नहीं हैं..
मुझे इन की बातचीत से लगा कि इन्हें इन सब नकली दांतों के सैट से कोई विशेष शिकायत नहीं है शायद.... लेकिन इन के बच्चों को है...शिकायत यह है कि एस सैट तो ऐसा बन गया है कि मुंह में लगाते पता ही नहीं चलता कि लगाया भी हुआ है या नहीं, और दूसरा सैट ऐसा है कि वह लगाते ही इन का ऊपर वाला होंठ थोड़ा सा ऊपर उठ जाता है, नकली दांत थोड़े बाहर की तरफ़ हैं... इन के बच्चे ऐसा मानते हैं .... मैंने पांच मिनट लगा कर यह सैट की वजह से होंठ ऊपर उठने वाली समस्या तो सुलटा दी .... खुश हो गये, लेकिन मुझे पता है कि वह समस्या अधिकतर मानसिक/काल्पनिक ही थी ...
उस दिन मैं एक ऐसे शख्स से पहली बार मिला था जिस के पास नकली दांतों के पांच सैट थे .. लेकिन वह फिर भी नाखुश था ... उस से बात करते वक्त मैं यही सोच रहा था कि खुशी भी कितनी सब्जैक्टिव है, हर बंदे के अपने अपने मयार हैं खुशी को मापने-नापने के ...मुझे उस दिन वह भी याद आ रहा था कि हम लोगों ने वह भी मंज़र देखे हैं जब लोग फुटपाथ पर नकली दांतों के सैट रख कर बेचा करते थे .. जो जिसके नाप का हो, डाल कर देखे और ले जाए ...(इस का मैं चश्मदीद गवाह हूं) ...बेशक, यह एक गलत ही नहीं बेहद खतरनाक प्रैक्टिस रही है ... दांत एक दूसरे के फिट नहीं आ सकते .. और इन में रेडीमेड वाला कोई कंसेप्ट नहीं हो सकता ...और मैंने तो कईं बार देखा है लोग चश्मे भी ऐसे ही पुराने खरीद कर चढ़ा लेते हैं...जी हां, नज़र के चश्मे ...यह तो अभी भी होता देखा है मैंने कईं बार ...
यह भी एक अलग तरह की खाई है ...किसी के पास नकली दांतों के पांच पांच सैट और फिर भी पैसा लड़ रहा है ...मन मचल रहा है कि कुछ इस से भी उम्दा हो तो वही करवा लें और दूसरी तरफ़ ऐसे लोग जो एक सैट के लिए तरसते हुए इस दुनिया से रूख्सत हो जाते हैं ...और कुछ को बच्चे यह कह कर टाल देते हैं कि अब तुम्हारी बची ही कितनी है, और कितना जिओगे!!
चलिए, बहुत हो गई किस्सागोई, अब अपनी पसंद का एक गीत लगा रहा हूं, शायद यह आप की भी पसंद हो ...just check this out!