दवाईयों को लेकर मरीज़ों की समस्याएं यहां सच में बड़ी जटिल है। इस के बहुत से कारण हैं, एक कारण डाक्टर लोगों की बुरी लिखावट (handwriting) भी है...दो दिन पहले मैंने जब अखबार में पीएमटी रिजल्ट में मेरिट हासिल करने वाले एक छात्र की लिखावट देखी तो मुझे बहुत निराशा हुई...कारण यही था कि अब इस तरह की लिखावट की वजह से मरीज़ परेशान भी हुआ करेंगे...ठीक है, डाक्टर तुम बहुत अच्छे बन सकते हो, लेकिन अगर लिखावट पर भी थोड़ा ध्यान दिया होता तो...
मैं जानता हूं बुरी लिखावट के पीछे कुछ दूसरी तकलीफ़ें भी हो सकती हैं. ..तारे ज़मीं पर फिल्म ने अच्छे से हमें बता दिया था। आप को भी तो याद होगा उस के माध्यम से पढ़ाया गया पाठ!
लेकिन मुझे शिकायत यही है कि लिखावट के ऊपर इतना ध्यान दिया नहीं जाता...इसी वजह से लिखावट की सुंदरता दिन प्रतिदिन गिरती ही जा रही है। बच्चे लिखना पसंद ही नहीं करते, सब कुछ ऑनलाइन...सब कुछ स्क्रीन पर ही लिख-पढ़ लिया जाता है अधिकतर। बस, अगर बचपन में हैंडराइटिंग की तरफ़ ध्यान न दिया जाए तो फिर बाद में शायद ही आप इसे सुधार पाते हैं।
मैं यह पोस्ट अपनी प्रशंसा करने के लिए नहीं लिख रहा हूं.....न ही अब इस की मुझे कोई ज़रूरत महसूस होती है, लेिकन फिर भी अपने अनुभव बांटने तो होते ही हैं। मेरे बहुत से मरीज़ मेरी हैंडराइटिंग की तारीफ़ कर के देते हैं...बहुत से...मैं बस यही कहना चाहता हूं यह अपने आप ही नहीं हो गया, हमें पता है हम लोगों ने आठवीं-दसवीं कक्षा तक इस के लिए कितनी तपस्या की है......इतना लिखा है जिस की शायद आज के युवा कल्पना भी नहीं कर सकते।
मेरा कहने का यही आशय है कि हमें बच्चों की हैंडराइटिंग की तरफ़ भी शुरू से ही ध्यान देना चाहिए....यह भी हमारी शख्शियत का एक हिस्सा है बेशक...खुशखत लिखने से हम दूसरों के चेहरों पर भी मुस्कुराहट ले आते हैं, वरना सिरदर्दी।
डाक्टरों का लिखा कैमिस्ट तो पढ़ ही लेता है....और बहुत बार बुरी लिखावट की वजह से गल्तियां भी हो जाती हैं....ऐसा भी हमने बहुत बार सुना है।
आप देखिए ...एक तो हैंडराइटिंग खराब, ऊपर से डाक्टर अकसर लिखता है इंगलिश में, दवाई की स्ट्रिप्स पर भी नाम अधिकतर इंगलिश में ही गढ़े होते हैं...नियम कुछ भी हों...दबंग कंपनियां परवाह करती नहीं, सरकारी फार्मासिस्टों को भीड़-भड्क्के की वजह से शायद इतना टाइम नहीं कि विभिन्न दवाईयों के बारे में बता सकें...दावे जो भी होते हों, डाक्टर के पास वापिस जाने की अधिकतर मरीज़ हिम्मत नहीं जुटा पाते कि दवाई कैसे खाएं, बाहर से खरीदी जाने वाली दवाई और डाक्टर की लिखी दवाई का मरीज़ मिलान नहीं कर सकते क्योंकि इंगलिश आती नहीं.....ये तो चंद मिसालें हैं, मरीज़ की परेशानियों की लिस्ट बहुत लंबी है, बस आप कल्पना कर सकते हैं!
इस लिस्ट में मरीज़ या अभिभावकों की अनपढ़ता या कम पढ़ा लिखा होना भी जोड़ दीजिएगा।
अच्छा एक बात और भी है, डाक्टरों को सरकारी निर्देश भी आते हैं कि आप जैनरिक दवाईयों के नाम ही लिखा करिए...लेकिन जब सरकारी डाक्टर ही इन निर्देशों की परवाह नहीं करते तो निजी चिकित्सालयों को कोई क्या कहे!
मुझे ऐसा लगने लगा है कि अगर किसी चिकित्सक को अपनी हैंडराइटिंग के बारे में अहसास है कि वह इतनी खराब है कि कोई उसे पढ़ नहीं सकता, तो कम से कम उसे मरीज़ की सुविधा के लिए बड़े अक्षरों में तो लिख ही देना चाहिए...in capital letters.
मेरी ओपीडी में दूसरी ओपीडी के कईं बार मरीज़ आकर मरीज़ पर सारी दवाईयां पलट कर पूछते हैं कि ये कैसे खानी हैं!...इतनी सारी दवाईयां, रंग बिरंगी, तरह तरह की पैकिंग...मुझे हमेशा यही बात अचंभित करती है कि ये लोग कैसे इस बात का ध्यान रख पाते होंगे कि कौन सी दवा कितनी बार, खाने से पहले या बाद में या दूध-पानी के साथ कैसे लेनी है.....बहुत ही मुश्किल काम है। हर बार दवाईयों का ब्रेैंड बदला होता है, इसलिए पैकिंग भी बदली होती है, मरीज़ों की तकलीफ़ें जैसे पहले से कम हों !
आज सुबह सुबह पता नहीं इस तरह का ज्ञान झाड़ने का कहां से ध्यान आ गया....परेशानियां तो मैंने गिना दीं...लेकिन ईमानदारी से कहूं तो इस समस्याओं का समाधान मुझे भी कहीं आस पास दिख नहीं रहा। यही दुआ करते हैं कि लोग इतने सेहतमंद हो जाएं कि दवाईयां उन की पीछा ही छोड़ दें.......आमीन।।
मैं तो फ्री ज्ञान बांटता रहता हूं....यहां तक की गूगल ने एड्सेंस भी अभी तक एप्रूव नहीं किया......कारण वे जानें, लेकिन यहां कोई चीज़ फ्री बिकती नहीं.....हमारे यहां टाटा स्काई लगा हुआ है...एक चैनल है ..एक्टिव जावेद अख्तर ...उस पर वह रहीम कबीर के दोहों की व्याख्या करते हैं...अच्छा लगता है.....लेकिन दुःखद बात यह है कि जैसे ही दो तीन मिनट के बाद आप को कुछ समझ आने लगता है कि KLPD हो जाता है....झटके से जावेद अख्तर की आवाज़ और तस्वीर बंद हो जाती है ...और स्क्रीन पर मैसेज आ जाता है कि अगर तन्ने यह ज्ञान चाहिए तो निकाल रोज़ के पांच रूपये....मुझे बहुत दुःख होता है इस तरह की बातों से.......कबीर, रहीम ...और जिन भी संतों, पीरों, पैगंबरों की बातें आप साझी कर रहे हैं, अगर उन्हें पता चला कि आज उन के बोलों का भी व्यापार हो रहा है तो यकीनन वे भी फफक फफक कर रो पड़ें........मुझे नहीं पता कि जावेद इस कार्यक्रम में आने का कुछ पैसा लेता होगा कि नहीं, लेकिन मुझे ऐसे लगता है कि इस तरह के कार्यक्रम उन्हें बिल्कुल फ्री करने चाहिएं....और अगर वे टाटास्काई से इस के लिए कुछ नहीं लेते ...और सब्सक्राईबर्ज़ को रोज़ाना पांच रूपये भेंट करने को कहा जा रहा है तो उन्हें ऐसे प्रोग्रामों से नाता तोड़ लेना चाहिए.....किसी बात की कमी थोड़े ही ना है उन्हें। बिना वजह.....!!
लेिकन कोई बात नहीं, अगर आप को कबीर, रहीम जैसे संतों, पीर, पैगंबरों के नाम पर दैनिक पांच रूपये खर्च करने में आपत्ति है तो मेरे पास ज्ञान हासिल का एक और जुगाड़ भी है......ले आइए एक रेडियो, ट्रांजिस्टर ....इस में दिन भर विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और देश के प्रधानमंत्री की दिल की बातें सुनिए....बिल्कुल फोकट में!
मैं रेडियो सुनने का आदि हूं.....और इसलिए गारंटी लेता हूं कि दिन भर आप के हर खुशी, गमी, रूमािनयत, रूहानियत मूड के लिए यहां कुछ न कुछ बजता रहता है......और वह भी अथाह ज्ञान का भंडार लिए....और साथ साथ आपको गुदगुदाये भी..... परसों की बात है सुबह एफ एम रेनबो पर एक गीत बज रहा था.....मुझे ऐसे लगा मैंने उसे पहले नहीं सुना .....सुन कर बहुत अच्छा लगा......क्या थे बोल?...जीने वाले झूम के मस्ताना हो के जी..
आज यू-टयूब का यह तो फायदा है कि कुछ भी ढूंढा जा सकता है......मैं भी उस गीत तक अभी पहुंच ही गया......तो मेरी तरह आज के दिन की शुरूआत इस भजन जैसे गीत से कर लें?........मैं तो इन गीतों के बोल सुन कर अचंभित होता हूं .....बार बार कवि की कल्पना की उड़ान की दाद देता हूं......कैसे उन के चंद बोल रेडियो पर बजते हैं तो सैंकड़ों-हज़ारों लोगों में जीने की उमंग भर देते हैं..........जो कोई मल्टीविटामिन की गोली, या महंगे से महंगा टॉनिक भी नहीं कर सकता........आप के लिए यह गीत यहीं एम्बेड कर रहा हूं, सुनिएगा..