ऐसा नहीं है कि सभी बुज़ुर्गों का ऐसा हाल है ..लेकिन अधिकतर के बारे में यह बात कही जा सकती है।
मैं तो जितना जितना अपने प्रोफैशन में घिस रहा हूं, मुझे यही लगने लगा है कि बहुत बार तो किसी बुज़ुर्ग की सभी बातें अच्छे से सुनना ही उन का इलाज होता है...क्योंकि वे भी जानते हैं कि सभी अंग बदले नहीं जा सकते, सभी अंग अब जवान आदमी की तरह काम नहीं कर सकते, वे सब कुछ अच्छे से समझते हैं...लेकिन उन्हें बस डाक्टर से एक आश्वासन चाहिए होता है कि सब कुछ ठीक ठाक है।
मैं अपनी ओपीडी में जितना भी व्यस्त रहूं लेकिन मैं किसी भी बुज़ुर्ग की बात कभी नहीं काटता, मैंने कभी किसी को नहीं कहा कि अच्छा, अब आप चलिए...मुझे यही लगता है कि ये जितनी बातें करते हैं, कर लेने दें इन्हें...इन की घर पर अकसर कोई सुनता नहीं, बाहर कोई विशेष सर्कल अधिकतर लोगों का होता नहीं, ऐसे में अपने दिल का गुब्बार कहां जाकर ये लोग बाहर निकालें।
मसला सारा पांच सात दस मिनट का होता है...बस इतनी सी बातें होती हैं, वे अपने दिल को खोल कर हल्का महसूस करते हैं, उन के चेहरे से झलकता है।
जब ढंग से की दो बातें ही इलाज होता है.. (इस लेख को पढ़ने के लिए क्लिक करिए)
आज से तीस साल पहले जब हम लोगों ने नईं नईं डाक्टरी सीखी तो क्या देखते हैं कि हमारे कुछ साथी बुज़ुर्गों से उतने सम्मान से पेश नहीं आते थे जितना किसी चिकित्सक से अपेक्षित होता है...कईं बार यह भी देखा कि जैसे ही किसी बुज़ुर्ग ने अपनी एक ही बात दो तीन बार कही तो हमारे साथ पढ़ने वाली कन्याएं अकसर कह दिया करती थीं कि ....ये तो साईकिक लगता है...(इंगलिश में शायद इतना बुरा नहीं लगता ..लेकिन हिंदी में इस का मतलब बहुत खराब है...यह थोड़ा सटका हुआ लगता या लगती है). ..
लेिकन इतने बरस घिसते घिसते सारा कुछ समझ में आने लगता है ...जब वह कोई छोटा सा घाव भी हमें दिखाने आता है तो उस के दिमाग में भयंकर से भयंकर बीमारी का नाम घूम रहा होता है, हम जैसे ही नज़र मार के उसे आश्वासन देते हैं कि कुछ नहीं है, चिंता न करिए, दो चार दिन में एक दम ठीक हो जाएगा......यह सुनते ही उस के चेहरे पर चमक लौट आती है। सच कह रहा हूं दोस्तो रोज़ चेहरों पर दो मिनट में ही चमक आते देखता हूं।
जैसे जैसे हम अपने काम में घिसते चले जाते हैं यह बात हमारे मन में अच्छे से घर कर जाती है कि मरीज़ की परिस्थिति बदलने के लिए हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है, उस की सारी की सारी परिस्थितियां हमारी पहुंच से बहुत दूर हैं...हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते लेकिन एक बहुत अहम् बात तो फिर भी है कि हम उस से अच्छे से बात तो कर सकते हैं.... यह भी उस की सेहत के लिए इलाज जितना ही ज़रूरी है..क्योंकि मरीज़ किसी किसी डाक्टर के पास जा कर बोलते हैं कि उस से तो बात कर के ही आधा दुःख छू-मंतर हो जाता है, कुछ तो जादू होगा ऐसी रूहों में....कुछ तो करिश्मा होगा....कुछ तो शफा होगा उन नेक आत्माओं में।
इसी बात से संबंधित यह पोस्ट भी देखिएगा..... मरीज से ढंग से बात करने की बात (क्लिक करिए)
मेरा भुलक्कड़पन देखिए....लिख मैं बुज़ुर्गों पर रहा हूं लेकिन पता नहीं कहां से कहां निकल गया....हां, एक बुज़ुर्ग की बात करता हूं ...दोस्तो, एक ७०-७५ साल का बुज़ुर्ग मुझे कहीं मिला.
अपनी सेहत की बात कर के वह दो चार मिनट के लिए अपनी व्यक्तिगत बातें करने लगा कि किस तरह से घर के सभी लोग उसे कहते हैं कि मकान को बांट दो, पैसा भी बांट दो.....मुझे कहने लगा कि मेरे पास पैसा इतना है कि अगर सोना खाया जा सकता तो मैं सोना ही खाता... मकान ८० लाख का है, लेकिन सोच रहा हूं बेच दूंगा लेकिन किसी को एक टका नहीं दूंगा... कह रहा था कि मेरा कोई ध्यान ही नहीं करता...सब को मेरे पैसे की पड़ी है। मेरे खाने-पीने का कोई टाइम नहीं है...बताने लगा कि वह तीन चार महीने के लिए हरिद्वार में स्थित एक आश्रम में रहने चला गया था...सात दिन बाद इन लोगों का फोन आया, पहले तो मैंने उठाया नहीं, फिर उस के बाद कभी कभी इन का फोन आता तो बात कर लिया करता।
हरिद्वार वाले आश्रम की बात याद कर के बहुत खुश था...हर महीने का चार हज़ार रूपया लेते हैं...सब कुछ सुविधाएं...चालीस लोगों के लिए मैस की सुविधा...सुबह साढ़े छः बजे चाय, फिर आप नाश्ता स्वयं अपना करिए, दोपहर में साग-सब्जी, दाल, चावल ...और उस ने ज़ोर देकर कहा कि गाढ़ी दाल......और फिर रात में भी बढ़िया खाना..लेकिन मेन्यू बदल कर........सब चीज़ की सुविधा है... मैंने इतना कहा कि वहां जिन लोगों के साथ इतना समय रहे उन से बात करते हैं ?...बताने लगा कि हां, उन के नंबर हैं, कल ही बात हो रही थी मुरादाबाद........कहने लगा कि वहां पर ८०-८५ और ९० साल तक के बुज़ुर्ग रहते हैं....मस्ती से रहते हैं, अगर कोई बुज़ुर्ग बाहर के देश से आता है तो अपनी मरजी से चार हज़ार की बजाए ११ हज़ार रूपये एक महीने के दे देता है.....वहां पर एक डाक्टर भी रोज़ आता है... बात का सार यह कि वह खुश था वहां.......अब भी कह रहा था कि वहां कुछ महीने के लिए चला जाऊंगा।
मुझे आज इस बुज़ुर्ग की याद इसलिए आ गई कि आज की अखबार में पढ़ा है कि सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दर्ज हुई जिस में कहा गया है कि हर शहर में एक वृद्ध आश्रम खोला जाना चाहिए.......ठीक है, वृद्ध आश्रम खुल जाएंगे या खुले भी हुए हैं, लेकिन फिर भी वहां ये लोग खुशी से नहीं, मजबूरी में ही रहते हैं.....हर कोई अपने घर ही में रहना चाहता है।
सरकारें क्या करें, कर रही है सरकार अपना काम...कितनी कितनी स्कीम बनाती हैं. पीछे एक स्कीम बनी थी रिवर्स-मॉटगेज की ...कि कोई बुज़ुर्ग अपने जीते जी अपने घर को बैंक के पास गिरवी रख दे और उसे उस के जीते जी ब्याज मिलता रहे ....मुझे पूरी स्कीम का तो पता नहीं लेकिन था कुछ ऐसा ही.......मैं गणित में थोड़ा कमजोर ही हूं। फिर वह भी एक स्कीम आई जिस में कानून था कि बुज़ुर्गों के ऊपर अत्याचार होने पर फलां फलां धारा लागू हो जाएगी।
कौन सा बुज़ुर्ग अपने बच्चों के साथ पंगा लेना चाहता हैं ...उस समय में किस के पास इतनी ताकत होती है, और वैसे भी ये लोग कहां बच्चों पर केस दर्ज करवाने जाते हैं.......सब कुछ चुपचाप सहते रहते हैं, खामोशी की चादर ओढ़ कर चुपचाप अकेले में आंसू पीते रहते हैं......लेकिन बुज़ुर्गों का शोषण जितना हमें सामने दिखता है, उस से कहीं बहुत ज़्यादा व्यापक स्तर पर होता है.........लेकिन बाहर उजागर नहीं होता.......और कभी हो भी नहीं सकता.........There are so many subtle ways to exploit and torture the senior citizens..........इन का हर तरह का शोषण किया जाता है ...आर्थिक शोषण भी जितना हो सके.....समय पर खाना न देना, ढंग से बात तो करना तो दूर बात ही न करना, उन की हर बात या ज़रूरत तो नज़रअंदाज़ करना......यह सब घोर शोषण का ही हिस्सा है........लेकिन वे सब चुपचाप सहते रहते हैं..
और ऊपर से मैडीकल विज्ञान की बड़ी भूतियापंथी यह कि वह इन के बुझे हुए मन के रोगों को भी उन के शरीरों में तलाशता ही नहीं फिरता, अंग्रेज़ी दवाईयों से उन्हें दुरूस्त करने का दावा भी ठोंकने से नहीं हिचकता।
सच में क्या हम लोग चांद पर जाने के लिए तैयार हो चुके हैं?........मुझे तो कभी नहीं लगा, पहले ज़मीन पर तो हम सब मानस बन कर रहना सीख लें। क्या ख्याल है?
एक लेख यह भी ठीक ठाक लगता है... सफल डाक्टर का फंडा (क्लिक करिए)
मैं तो जितना जितना अपने प्रोफैशन में घिस रहा हूं, मुझे यही लगने लगा है कि बहुत बार तो किसी बुज़ुर्ग की सभी बातें अच्छे से सुनना ही उन का इलाज होता है...क्योंकि वे भी जानते हैं कि सभी अंग बदले नहीं जा सकते, सभी अंग अब जवान आदमी की तरह काम नहीं कर सकते, वे सब कुछ अच्छे से समझते हैं...लेकिन उन्हें बस डाक्टर से एक आश्वासन चाहिए होता है कि सब कुछ ठीक ठाक है।
मैं अपनी ओपीडी में जितना भी व्यस्त रहूं लेकिन मैं किसी भी बुज़ुर्ग की बात कभी नहीं काटता, मैंने कभी किसी को नहीं कहा कि अच्छा, अब आप चलिए...मुझे यही लगता है कि ये जितनी बातें करते हैं, कर लेने दें इन्हें...इन की घर पर अकसर कोई सुनता नहीं, बाहर कोई विशेष सर्कल अधिकतर लोगों का होता नहीं, ऐसे में अपने दिल का गुब्बार कहां जाकर ये लोग बाहर निकालें।
मसला सारा पांच सात दस मिनट का होता है...बस इतनी सी बातें होती हैं, वे अपने दिल को खोल कर हल्का महसूस करते हैं, उन के चेहरे से झलकता है।
जब ढंग से की दो बातें ही इलाज होता है.. (इस लेख को पढ़ने के लिए क्लिक करिए)
आज से तीस साल पहले जब हम लोगों ने नईं नईं डाक्टरी सीखी तो क्या देखते हैं कि हमारे कुछ साथी बुज़ुर्गों से उतने सम्मान से पेश नहीं आते थे जितना किसी चिकित्सक से अपेक्षित होता है...कईं बार यह भी देखा कि जैसे ही किसी बुज़ुर्ग ने अपनी एक ही बात दो तीन बार कही तो हमारे साथ पढ़ने वाली कन्याएं अकसर कह दिया करती थीं कि ....ये तो साईकिक लगता है...(इंगलिश में शायद इतना बुरा नहीं लगता ..लेकिन हिंदी में इस का मतलब बहुत खराब है...यह थोड़ा सटका हुआ लगता या लगती है). ..
लेिकन इतने बरस घिसते घिसते सारा कुछ समझ में आने लगता है ...जब वह कोई छोटा सा घाव भी हमें दिखाने आता है तो उस के दिमाग में भयंकर से भयंकर बीमारी का नाम घूम रहा होता है, हम जैसे ही नज़र मार के उसे आश्वासन देते हैं कि कुछ नहीं है, चिंता न करिए, दो चार दिन में एक दम ठीक हो जाएगा......यह सुनते ही उस के चेहरे पर चमक लौट आती है। सच कह रहा हूं दोस्तो रोज़ चेहरों पर दो मिनट में ही चमक आते देखता हूं।
जैसे जैसे हम अपने काम में घिसते चले जाते हैं यह बात हमारे मन में अच्छे से घर कर जाती है कि मरीज़ की परिस्थिति बदलने के लिए हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है, उस की सारी की सारी परिस्थितियां हमारी पहुंच से बहुत दूर हैं...हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते लेकिन एक बहुत अहम् बात तो फिर भी है कि हम उस से अच्छे से बात तो कर सकते हैं.... यह भी उस की सेहत के लिए इलाज जितना ही ज़रूरी है..क्योंकि मरीज़ किसी किसी डाक्टर के पास जा कर बोलते हैं कि उस से तो बात कर के ही आधा दुःख छू-मंतर हो जाता है, कुछ तो जादू होगा ऐसी रूहों में....कुछ तो करिश्मा होगा....कुछ तो शफा होगा उन नेक आत्माओं में।
इसी बात से संबंधित यह पोस्ट भी देखिएगा..... मरीज से ढंग से बात करने की बात (क्लिक करिए)
मेरा भुलक्कड़पन देखिए....लिख मैं बुज़ुर्गों पर रहा हूं लेकिन पता नहीं कहां से कहां निकल गया....हां, एक बुज़ुर्ग की बात करता हूं ...दोस्तो, एक ७०-७५ साल का बुज़ुर्ग मुझे कहीं मिला.
अपनी सेहत की बात कर के वह दो चार मिनट के लिए अपनी व्यक्तिगत बातें करने लगा कि किस तरह से घर के सभी लोग उसे कहते हैं कि मकान को बांट दो, पैसा भी बांट दो.....मुझे कहने लगा कि मेरे पास पैसा इतना है कि अगर सोना खाया जा सकता तो मैं सोना ही खाता... मकान ८० लाख का है, लेकिन सोच रहा हूं बेच दूंगा लेकिन किसी को एक टका नहीं दूंगा... कह रहा था कि मेरा कोई ध्यान ही नहीं करता...सब को मेरे पैसे की पड़ी है। मेरे खाने-पीने का कोई टाइम नहीं है...बताने लगा कि वह तीन चार महीने के लिए हरिद्वार में स्थित एक आश्रम में रहने चला गया था...सात दिन बाद इन लोगों का फोन आया, पहले तो मैंने उठाया नहीं, फिर उस के बाद कभी कभी इन का फोन आता तो बात कर लिया करता।
हरिद्वार वाले आश्रम की बात याद कर के बहुत खुश था...हर महीने का चार हज़ार रूपया लेते हैं...सब कुछ सुविधाएं...चालीस लोगों के लिए मैस की सुविधा...सुबह साढ़े छः बजे चाय, फिर आप नाश्ता स्वयं अपना करिए, दोपहर में साग-सब्जी, दाल, चावल ...और उस ने ज़ोर देकर कहा कि गाढ़ी दाल......और फिर रात में भी बढ़िया खाना..लेकिन मेन्यू बदल कर........सब चीज़ की सुविधा है... मैंने इतना कहा कि वहां जिन लोगों के साथ इतना समय रहे उन से बात करते हैं ?...बताने लगा कि हां, उन के नंबर हैं, कल ही बात हो रही थी मुरादाबाद........कहने लगा कि वहां पर ८०-८५ और ९० साल तक के बुज़ुर्ग रहते हैं....मस्ती से रहते हैं, अगर कोई बुज़ुर्ग बाहर के देश से आता है तो अपनी मरजी से चार हज़ार की बजाए ११ हज़ार रूपये एक महीने के दे देता है.....वहां पर एक डाक्टर भी रोज़ आता है... बात का सार यह कि वह खुश था वहां.......अब भी कह रहा था कि वहां कुछ महीने के लिए चला जाऊंगा।
मुझे आज इस बुज़ुर्ग की याद इसलिए आ गई कि आज की अखबार में पढ़ा है कि सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दर्ज हुई जिस में कहा गया है कि हर शहर में एक वृद्ध आश्रम खोला जाना चाहिए.......ठीक है, वृद्ध आश्रम खुल जाएंगे या खुले भी हुए हैं, लेकिन फिर भी वहां ये लोग खुशी से नहीं, मजबूरी में ही रहते हैं.....हर कोई अपने घर ही में रहना चाहता है।
सरकारें क्या करें, कर रही है सरकार अपना काम...कितनी कितनी स्कीम बनाती हैं. पीछे एक स्कीम बनी थी रिवर्स-मॉटगेज की ...कि कोई बुज़ुर्ग अपने जीते जी अपने घर को बैंक के पास गिरवी रख दे और उसे उस के जीते जी ब्याज मिलता रहे ....मुझे पूरी स्कीम का तो पता नहीं लेकिन था कुछ ऐसा ही.......मैं गणित में थोड़ा कमजोर ही हूं। फिर वह भी एक स्कीम आई जिस में कानून था कि बुज़ुर्गों के ऊपर अत्याचार होने पर फलां फलां धारा लागू हो जाएगी।
कौन सा बुज़ुर्ग अपने बच्चों के साथ पंगा लेना चाहता हैं ...उस समय में किस के पास इतनी ताकत होती है, और वैसे भी ये लोग कहां बच्चों पर केस दर्ज करवाने जाते हैं.......सब कुछ चुपचाप सहते रहते हैं, खामोशी की चादर ओढ़ कर चुपचाप अकेले में आंसू पीते रहते हैं......लेकिन बुज़ुर्गों का शोषण जितना हमें सामने दिखता है, उस से कहीं बहुत ज़्यादा व्यापक स्तर पर होता है.........लेकिन बाहर उजागर नहीं होता.......और कभी हो भी नहीं सकता.........There are so many subtle ways to exploit and torture the senior citizens..........इन का हर तरह का शोषण किया जाता है ...आर्थिक शोषण भी जितना हो सके.....समय पर खाना न देना, ढंग से बात तो करना तो दूर बात ही न करना, उन की हर बात या ज़रूरत तो नज़रअंदाज़ करना......यह सब घोर शोषण का ही हिस्सा है........लेकिन वे सब चुपचाप सहते रहते हैं..
और ऊपर से मैडीकल विज्ञान की बड़ी भूतियापंथी यह कि वह इन के बुझे हुए मन के रोगों को भी उन के शरीरों में तलाशता ही नहीं फिरता, अंग्रेज़ी दवाईयों से उन्हें दुरूस्त करने का दावा भी ठोंकने से नहीं हिचकता।
सच में क्या हम लोग चांद पर जाने के लिए तैयार हो चुके हैं?........मुझे तो कभी नहीं लगा, पहले ज़मीन पर तो हम सब मानस बन कर रहना सीख लें। क्या ख्याल है?
एक लेख यह भी ठीक ठाक लगता है... सफल डाक्टर का फंडा (क्लिक करिए)