बुधवार, 7 जनवरी 2015

हंसी को तो मत बांधिए..

इस पोस्ट की शुरूआत बहुत ही खूबसूरत गीत से करते हैं.......मैंने कहा फूलों से.......दोस्तो, अपनी तो सुबह सुबह की इबादत का यही ढंग है कि हम इसी तरह के गीत सुन कर मन को खुश कर लिया करते हैं.......आप भी ट्राई करिएगा, मशवरा इतना खराब भी नहीं है..



मैं जब भी पार्क में बहुत से लोगों को इक्ट्ठा हो कर लाफ्टर-थेरेपी करते देखता हूं तो मुझे बड़ा अजीब सा लगता है...यार, यह कैसे हो सकता है..जबरदस्ती हंसना। हंसी तो वह है जो हमारी आत्मा की हंसी होती है, जब हमारा दिल हंसता है.. मुझे याद है कभी एक बार मैंने भी एक ग्रुप में यह काम करना चाहा था, लेकिन पता नहीं दो चार मिनट में बिल्कुल अजीब सा लग रहा था.....हल्कापन महसूस होने की जगह, तनाव महसूस होने लगा था....शायद मैं उस समय जबरदस्ती वाली हंसी लाने की कोशिश कर रहा था......वैसे मुझे लाफ्टर-थेरेपी का कोई अनुभव नहीं है, एक अनाड़ी जैसे विचार रख दिए हैं, कृपया इसे अन्यथा न लें। क्या पता जो बुज़ुर्ग वहां उस समय चंद मिनट हंस-खेल जाते हैं, वे इन्हीं चंद मिनटों की मधुर यादों की वजह से दिन भर की कड़वाहट भी मुस्कुराते हुए निगल पाते हों।

मैं जिस सत्संग में जाता हूं वहां हर बार यह अवश्य याद दिलाते हैं कि भाईयो, बहनो, यह चेहरे पर क्यों बारह बजे हुए हैं, मुस्कुराते आईए और मुस्कुराते जाइए। सुन कर सब के चेहरों पर रौनक आ जाती है। अच्छी बात!!

परसों सोमवार शाम की बात है....मैं अपनी वाइफ के साथ एक मॉल में गया हुआ था....घूमते घूमते वहां पर व्हाट्स-एप पर एक मैसेज आया.....मुझे लगा कि इस के बारे में अपने कॉलेज के दिनों के दोस्त से बात करने के लिए फोन करना ही होगा.....लुधियाना फोन मिलाया.....वह बड़ा बिज़ी बंदा है.......लेकिन उस दिन उस ने तुरंत फोन उठा लिया.....आधा मिनट दबी आवाज़ में बात करने पर कहने लगा..हां, हां, बोल, मैं क्लीनिक से बाहर आ गया हूं।

दोस्तो, बोलना क्या था, शायद १०-१५ मिनट बात हम लोगों ने की होगी........बातें तो बहुत कम, हम दोनों ठहाके ज़्यादा लगाते रहे.....मैं बात करूं तो उस के ठहाके की वजहों से बात पूरी न कर पाऊं और जब वह बात शुरू करता तो उस की बात मेरे ठहाकों में गुम हो जाती......वैसे तो जब दो पंजाबी नार्मल बात भी करते हैं तो कहने वाले कह देते हैं जैसे ये लड़ रहे हों, चलिए, यह पंजाबियों का अपना स्टाईल है...मेरी पत्नी शोरूम से बाहर आईं ...मुझे याद दिलाने की आप की आवाज़ बहुत गूंज रही है.......जब मैंने अपने दोस्त को यह बात बताई तो उस के हंसी के फुव्वारे और ज़ोर से फूट पड़े।

दोस्तो, सच सच बताईए, आज के दौर में कितने लोग ऐसे होते होंगे जिन से आप इतना दिल खोल कर खुल कर इतना हंसी मजाक में बात कर सकते हैं, आप अपनी गिनती करिए, मैंने तो कर ली.......मैं भी केवल तीन-चार दोस्तों से ही इस तरह से बात कर पाता हूं, वरना मैं फोन पर बिल्कुल ही ब्रीफ़ सी बात करने के लिए जाना जाता हूं.....लेिकन इन जब तीन चार लोगों में से कोई फोन पर होता है तो यही समझ नहीं आता कि बातें कहां से शुरू करें और कहां इन्हें विराम दें, आप इन चंद दोस्तों पर अपने से भी ज़्यादा भरोसा करते हैं।

हां, तो परसों ही रात में जब फिर व्हाट्सएप ग्रुप पर हमारे मेसेज आने-जाने लगे तो मैंने पूरी इमानदारी से बिल्कुल स्पॉनटेनिटी से यह बात शेयर की .........बेदी, तेरे से बात कर के मुझे बहुत ही अच्छा लगा, मुझे तो दोस्त ऐसा लगा कि मैंने जैसे आधा घंटा प्राणायाम् कर लिया हो या मैं पंद्रह बीस मिनट जॉगिंग कर ले लौटा हूं......सारे शरीर में इतनी शक्ति-स्फूर्ति का संचार हो गया।

मैं इस बात को बिल्कुल बढ़ा चढा कर नहीं लिख रहा। और ना ही मुझे ऐसा करने का कोई कारण ही दिखता है।

मुझे एक बात और बहुत कचोटती है, छोटी छोटी बच्चियों को यह कह कर कंडीशन किया जाना कि लड़कियां इतना खुल कर नहीं हंसती......मैं समझता हूं कि किसी पर भी इस तरह की बंदिशें लगाना भी सरासर हिमाकत है....जीवन में और है क्या, इस में भी अगर कोई कोड़-ऑफ-कंडक्ट लागू हो गया तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा।

मुझे एक फिल्मी गीत इसलिए पसंद है.......क्योंकि कुछ लाइने इस तरह से हैं......कुछ लोगों के हंसने और गाने पर टिप्पणी करते हुए ..महान् गीतकार आनंद बक्शी कहते हैं.....

ये हंसते हैं लेकिन दिल में..
ये गाते हैं लेकिन महफिल में।।
हम में इन में है फर्क बड़ा, 
हम जीते हैं, ये पलते हैं।।

लीजिए, आप भी इस का लुत्फ़ उठाईए..



मैंने कहीं पढ़ा था और आपने तो देखा भी होगा कि हंसता-मुस्कुराता चेहरा कोई भी ऐसा नहीं होता जो बदसूरत हो।
मैं आज कर अपनी व्यस्तता के कारण टीवी बहुत कम देख पाता हूं.. न के बराबर ... यह जो लॉफ्टर चैनल पर कुछ प्रोग्राम आते हैं......क्या नाम है उस अमृतसर के लड़के का..कपिल शर्मा, और वह हर समय खिलखिलाने वाली भारती.......आज का सभ्य समाज कईं बार कहता दिखता है.....यह सब फूहड़पन है। अरे भाई, है तो हुआ करे, कम से कम इस तरह के प्रोग्रामों की वजह से परिवार के लोग बैठ कर कुछ ठहाके तो एक साथ लगा लेते हैं, वरना आज के दौर में एक साथ बैठने की फुर्सत ही किसे है!!

लेकिन कपिल को मेरा एक मशवरा है.......यह मशवरा मेरा वह मित्र डा बेदी भी अकसर हमारे ग्रुप में देता रहता है िक हमें किसी पे हंसने की बजाए,  सब के साथ मिल कर हंसना चाहिए......मैं तो कहूंगा कि बेस्ट है हम अपने आप पर ही हंसना सीख जाएं, बीसियों कारण तो कम से कम मिल ही जाएंगे। कभी कभी जब कपिल जब अपनी हद लांघता दिखता है.......किसी का मज़ाक उड़ाते दिखता है, तो बुरा लगता है....शायद इसी वजह से मेरी रूचि उस के कार्यक्रम से उठ गई। अपनी अपनी संवेदनाओं की बात है, और कुछ खास नहीं!!

कल मेरे पास एक मां अपने १०-१२ साल के बेटे को लेकर आई.....उस का एक दांत अपनी नार्मल सी जगह से थोड़ा ऊपर नीचे आ गया, जाहिर सी बात है मां ज़्यादा परेशान थी, बेटा बिल्कुल मस्त था. मैंने जब उस की हंसी में इस दांत की भूमिका देखने के लिए उसे हंसने के लिए कहा ......तो झट से उस की मां बोली....इस की यह भी एक समस्या है, यह हंसता बहुत खुल कर है। और इसी वजह से यह दांत भी फिर दिखाई देने लगता है.......मैंने उस बच्चे की तरफ देखा, वह मेरी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे कि वह खुल कर हंस कर भी कोई अपराध कर लेता हो, जाहिर है वह हंसी के सही ढंग के बारे में मेरे किसी तुगलकी नुस्खे का इंतज़ार करता दिखा।

मैंने उसे और उस की मां को सब से पहले तो यही बताया कि हंसी को मत बाँध के रखो, जितना खुल के हंसना चाहते हो हंस लिया करें.....ऐसी उन्मुक्त हंसी बहुत कम दिखने लगी है आज कल........रही बात दांत का थोड़ा टेढ़ा वेढ़ा अपनी जगह से इधर उधर होने की बात, वह ठीक कर देंगे लेकिन तब तक अपनी खुली हंसी को दबाने की गलती मत कर देना।

जैसा मैंने उस बच्चे को भी आशीर्वाद दिया......चलिए हम सब के लिए सुबह सुबह यही प्रार्थना करें कि ईश्वर, अल्ला, वाहेगुरू, गॉड ...अपने सभी बच्चों को ऐसे हालात मुहैया कराएं कि सब के चेहरों पर मुस्कान बिखरी रहे......आमीन।

सच में दोस्तो, हंसना-मुस्कुराने भी एक कुदरत का करिश्मा ही है, कितने सारी मांसपेशियों को इस के िलए काम करना पड़ता है, आप सेहतमंद हैं, शरीर से भी और मन से भी, आप की रूह राजी है.......तब कहीं जाकर हंसी फूटती है। आप का क्या ख्याल है?......वैसे यह मेरा ही ख्याल नहीं है, अमिताभ बच्चन भी कुछ इसी तरह का फलसफा ब्यां कर रहे हैं......ज़िंदगी हंसने गाने के लिए हैं पल दो पल.......इस को इतनी बार सुन चुका हूं कि यह याद ही हो चुका है, काश! यह पूरी तरह से लाइफ में भी उतर जाए!!