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गुरुवार, 16 जनवरी 2014

गुर्दे की पथरी या बड़ा पत्थर

जब हम लोग शरीर के किसी अंग में पथरी की बात करते हैं तो हमारा ध्यान में बिल्कुल छोटे छोटे से कंकड़ ही तो आते हैं, है कि नहीं?.... चाहे वह पित्ताशय (गॉल-ब्लैडर) हो या फिर गुर्दा, हम लोग अकसर पथरी के नाम पर इन में कंकड़ों की ही कल्पना करते हैं। कभी कभी अखबार में खबर दिख जाती है जब पथरी थोड़ी बड़ी होती है..। पित्ताशय में तो अकसर चावल जैसी बीसियों पथरियां पाई जाती हैं।

लेकिन अगर पथरी की जगह किसी के गुर्दे में ७०० ग्राम का पत्थर निकाला जाए तो बात हैरान करने वाली लगती है।
लेकिन ऐसा ही हुआ है दिल्ली के एक अस्पताल में। आज ही दा हिंदु में यह खबर पढ़ने को मिली।

 गुर्दे से निकला 700 ग्राम का पत्थर 
४५ वर्षीय इस पुरूष के गुर्दे से पांच पथरीयां निकाली गईं --जिन का कुल वजन ८०० ग्राम थी...इन में से एक तो ७०० ग्राम का पत्थर था जिस का डॉयामीटर ही ९ सैंटीमीटर था।

सुखद बात यह पढ़ी कि इस बड़े से पत्थर और इतनी पथरियों के कारण उस का बायां गुर्दा बहुत बड़ा होने के बावजूद भी सुचारू रूप से काम कर रहा था।

और एक बात... इतना बड़ा पत्थर किडनी से निकाला जाना एक विश्व-रिकार्ड है, इसलिए अस्पताल इसे गिनीज़ बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज़ करवाने जा रहा है। पुराना रिकार्ड गुर्दे से ६२०ग्राम का पत्थर निकालने का है।

आप को भी यह खबर देख कर वह कहावत याद आ जायेगी.....  Heaviest renal stone removed from a patient at Delhi hospital.

सोमवार, 25 जुलाई 2011

जाको राखे साईंयां मार सके न कोई ....

अखबार में छपी कुछ कुछ खबरें ऐसी होती हैं जिन पर नज़र ऐसी टिक जाती हैं कि वहां से उठने का नाम ही नहीं लेतीं.... आज भी एक ऐसी खबर ही दिख गई। सात साल के बच्चे की बाएं हाथ की बाजू लिफ्ट में आने से कोहनी (टखना) तक कट जाती है, वह छठी मंजिल पर इस कटी हुई बाजू को उठा कर अपनी दादी के पास जाता है और सारा किस्सा सुनाता है।

तब तक अड़ोसी-पड़ोसियों का भी लांता लग जाता है और एक पड़ोसी उस कटी हुई बाजू को कूड़ेदान में फैंक देता है ...लेकिन बच्चा झट से उसे वहां से उठा लेता है। उसे पास ही के एक अस्पताल में लेकर जाया जाता है जहां बच्चा डाक्टर से उस बाजू को जोड़ने की बात कहता है। लो जी, बच्चे की बात में कैसा जादू, यह कैसे पूरी न हो .......उस बाजू को माइक्रो-सर्जरी के द्वारा चिकित्सकों ने वापिस जोड़ दिया।

हिम्मत देनी पड़ेगी इस सात साल के बच्चे की जिस ने इतनी हिम्मत दिखाई जो हम जैसे बड़ों को भी सबक सिखा दे ...हम कैसे छोटी मोटी तकलीफ़ में ही अपना धैर्य खोने से लगते हैं कि हाय, मर गये,लुट गये, तबाह हो गये, अब क्या होगा...............क्या होगा, जो होगा, अच्छा ही होगा, होनी को भी कोई रोक पाया है क्या!

अब इस बच्चे की हिम्मत की दाद दें तो उस चार साल को भूलने की हिमाकत कैसे कर दें जो चार घंटे तक एक नदी की लहरों से झूझता रहा ... उस माई के लाल ने हिम्मत नहीं हारी ... आखिर उसे बचा ही लिया गया। हिम्मते मरदां, मददे खुदा .....कोई शक ?


बच्चों को हर साल वीरता पुरस्कार मिलते हैं, क्या हम यह आशा कर सकते हैं कि ऐसा ज़ज़्बा रखने वाले बच्चों का नाम भी उस सूची में इस बार शामिल होगा, हम तो दुआ ही कर सकते हैं!

जब इन हादसों का ध्यान आता है तो इंदोर के निकट पातालपानी वाला वह दिल दहला देने वाला हादसा याद आ जाता है ...कुछ दिन पहले एक ही परिवार के पांच सदस्य किस तरह से एक झरने में कुछ ही लम्हों में सब के देखते ही देखते बह गये .... बस उन के किनारे तक पहुंचने में चंद लम्हों की ही दूरी थी... काश!!!!!
Source : Child carries severed hand to doctor