प्रवीण चोपड़ा
सी.टी स्कैन की रिपोर्ट वाला लिफाफा लेकर मां को स्कूटर की पिछली सीट पर बैठा कर महेश जब पीजीआई में डाक्टर के पास जा रहा था तो उसी यही लग रहा था कि जैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला मिलने वाला है …बेशक, बडे़ डाक्टरों के फैसले किसी तरह से सुप्रीम कोर्ट से कम भी तो नहीं होते….शायद उन से भी बड़े …
उस बड़े डाक्टर ने सीटी स्कैन रिपोर्ट देखी…मां के पेट को तो वह दो दिन पहले ही टटोल चुका था…डाक्टर के कहने पर महेश ने मां को बाहर बैंच पर बिठा दिया…अंदर आया तो डाक्टर ने कहा कि दरअसल इन का केस बहुत होपलैस है, अग्नाशय का यह कैंसर काफ़ी फैल चुका है, इसलिए इन के पास वक्त बहुत थोड़ा है, आप समझ रहे होंगे, आप्रेशन हो नहीं सकता…
महेश ने सुन रखा था कि कुछ कीमोथेरेपी या रेडियोथेरिपी भी होती है…उसने झिझकते-२ डाक्टर से इन के बारे में जब पूछा तो उसने इतना ही कहा … वह यह सब न झेल पाएंगी। एक तरह का जवाब ही था….
महेश का दिल एक दम बैठ सा गया…बाहर मां बैठी हुई है, ऊपर से बार बार बहन का फोन आ रहा था मां का हाल पूछने के लिए ….किस को क्या बतलाए….
अभी हारे हुए जुआरी की तरह वह सीटी स्कैन की फिल्में और रिपोर्ट वापिस लिफाफे में डाल ही रहा था कि उस बड़े डाक्टर ने अपने जूनियर डाक्टरों को कहा ….देख लो, जो भी जांच वांच करना चाहते हो तो कर लो….कोलनोस्कोपी करवा लो, अल्ट्रासॉनिक गाईडिड बॉयोप्सी भी कर लो किसी दिन …..वेरी गुड केस…
महेश अचानक चौंका कि देखते ही देखते होपलैस केस कैसे वेरी गुड केस बन गया …….पर उसे मां से झूठ बोलने का एक रास्ता मिल गया….बीबी, डाक्टर कहता है सब अच्छा है, कुछ खास नहीं, थोड़ी सूजन है….कुछ टेस्ट करेंगे फिर दवाईयां देंगे, सब ठीक हो जाएगा।
कोलनोस्कोपी हुई तो मां ने समझा कि सारी आंतड़ियों की सफाई हुई है और अल्ट्रासाउंड गाईडेड बॉयोप्सी को समझा कि किसी दवाई का टीका लगा रहे हैं….लेकिन इलाज विलाज तो कुछ था नहीं ….असहाय दर्द को काबू करने के लिए वही मारफीन के पैच छाती के ऊपरी हिस्से में लगने लगे …कुछ ही दिनों में वह सारा दिन बेसुध ही पड़ी रहती ….न खाने का होश न किसी और बात का ….
एक दिन महेश बंबई के एक कैंसर अस्पताल के बहुत बड़े डाक्टर के पास जब मारफीन के पैच लेने गया तो उसने नुस्खा लिखने से पहले पूछा कि कैसे हैं वह अब……महेश ने बताया कि बस, सोती रहती हैं ….सुस्त सी पड़ी रहती हैं……
उस बहुत बडे़ डाक्टर ने जो कि शायद विभागाध्यक्ष था, पर्चा लिखने के बाद महेश से कहा ……देखना, माता कहीं सोती सोती हमेशा के लिए ही न सो जाए….
महेश अवाक रह गया….इस तरह के मरीज़ों के रिश्तेदार भी तो पहले ही से थोड़े मरे होते हैं, ऊपर से इस तरह की बात और वह भी इतने बडे़, अनुभवी डाक्टर के मुंह से ….
महेश खुद यूनिवर्सिटी में कम्यूनिकेशन का छात्र है, मां तो दिनों ही में यह गई, वो गई …जैसे उड़ गई हो कहीं… लेकिन उन दोनों के अल्फ़ाज़ …’वेरी गुड केस’ और ‘सोते सोते सदा के लिए न सो जाए कहीं’ …..उस को बरसों बाद भी तंग करते हैं…
आप एलोपैथी के डाक्टर हैं फिर भी आधुनिक चिकित्सा के इस मायाजाल का यथार्थ वर्णन कर इसकी पोल खोलने का नेक काम किया। साधुवाद। 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत पहले मेरे स्व. पिता डा. विश्वनाथ मिश्र ने ऐसे ही मायाजाल की खाल उधेड़ते हुए है एक लेख "धर्मयुग" में लिखा था।
कहानी छोटी है पर आम इंसान की असहायता को दर्शाती है।
डा. वीरेंद्र मिश्र