रविवार, 2 जून 2024

ओरल कैंसर में यह ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस का ज़िक्र क्यों !

10 साल पहले मैंने एक ब्लॉग लिखा था ....ओरल सैक्स (मुख मैथुन) कईं तरह के कैंसर के लिए है रिस्क फैक्टर ...इसे आज ढूंढ रहा था क्योंकि मुझे यही लगा कि इस के ऊपर निरंतर बात होती रहनी चाहिए....

बात इसलिए होती रहनी चाहिए कि जन मानस तक ये बातें तभी पहुंच पाएंगी जब लोग इस के बारे में लिखेंगे ....लिखना तो क्या, लोग इस तरह के विषय के बारे में बात ही नहीं करते ....जैसे पहले महिलाएं मासिक धर्म से जुड़े मुद्दे के बारे में बात करना पाप समझतीं थीं....हर महीने शारीरिक और मानसिक परेशानी स जूझना ...किसी से इस के बारे में बात न करना, और बच्चियों को भी ऐसे ही कुदरत की इस व्यवस्था से जूझने के लिए तैयार करना ..न कभी महिला रोग चिकित्सक से तो क्या, महिला चिकित्सक से ही बात न करना .....अब वक्त बदला है, इतना तो नहीं बदला....फिर भी कुछ तो मीडिया का, हिंदी फिल्मों (पैडमैन जैसे फिल्में, टॉयलट एक प्रेम कथा) का असर हुआ ही है .....कुछ जगहों पर ही सिर्फ सिंबॉलिक ही सही सैनेटरी नेपकिन के कियोस्क लगे हैं, उन के सुरक्षित डिस्पोज़ल की मशीनें भी लगी हैं....एक बदलाव आया तो है .....और उम्मीद है यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा....

बदलाव के ही संकेत हैं कि भारत में महिलाओं में गर्भाशय़ के मुख के कैंसर में ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस (एच.पी.व्ही) के संक्रमण की भूमिका को समझते हुए अब भारत सरकार ने बच्चियों को इस संक्रमण से बचाने के लिए उन के एच.पी.व्ही टीकाकरण की स्कीम शुरु की है ...कुछ सरकारी अस्पतालों में तो यह पहले ही से शुरू है ....लेकिन भारत सरकार का अपने बजट में इस तरह की घोषणा करना भी इस बात का संकेत है कि यह कितना गंभीर मुद्दा है ....अब फिर महिला चिकित्सकों की अहम् भूमिका रहेगी कि कैसे परिवार को, बच्चियों की मां को इस टीकाकरण के लिए तैयार किया जा सके ....ताकि भविष्य में वह गर्भाशय के मुख के कैंसर से बच सके....क्योंकि जितना मुझे याद है...मैंने कहीं पढ़ा था कि गर्भाशय के मुख के जितने भी कैंसर होते हैं, उन में से 70 फीसदी केसों में ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस को ही दोषी पाया जाता है ....उसी की वजह से यह कैंसर होता देखा गया है....

कुछ दिन पहले की बात है एक संगोष्ठी में हम लोग एक प्रसिद्ध हैड एवं नैक कैंसर सर्जन को सुन रहे थे ....जब वह मुंह के कैंसर की बात आई .....गले के कैंसर की बात कर रहे थे उन्होंने अपने मरीज़ों में ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस (एच.पी. व्ही) के होने की पुष्टि की। जब प्रश्नकाल आया तो एक बड़ी वरिष्ठ एवं अनुभवी महिला रोग विशेषज्ञ ने उन से एक प्रश्न किया कि आप ने यह बात तो कही लेकिन आप हमें यह बताएं कि बच्चियों एवं किशोरियों के एच.पी.व्ही टीकाकरण की सिफारिश करते वक्त क्या किसी प्लेटफार्म पर आपने छोटे लड़कों और किशोरों के भी एच.पी.व्ही वैक्सीनेशन की भी सिफारिश होते सुनी...। उस कैंसर सर्जन ने कहा नहीं, ऐसा तो नहीं है। 

तब उस वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ ने खुलासा किया कि महिलाएं अपनी बच्चियों के एच.पी.व्ही वैक्सीनेश के लिए तो राज़ी हो भी जाती हैं लेकिन जब उन्हें कहा जाए कि अपने लड़कों को भी यह वैक्सीनेशन करवाने पर विचार करें तो बात उन की समझ में नहीं आती ...उन्हें लगता है कि लड़का है, उस को यह टीका आखिर क्यों लगवाएं....मुझे उस महिला रोग विशेषज्ञ की बात सुन कर यही लग रहा है कि यह मुद्दा भी आने वाले समय में गर्माएगा ....और चाहिए भी ...हम लोग किसी वीरान टापू पर तो नहीं रह रहे ...हम भी एक वैश्विक गांव (Global Village) में ही तो रह रहे हैं....और इस गांव में बहुत कुछ हो रहा है ....इस खबर पर एक नज़र डालिए...जिस के अनुसार  अमेरिका में ही 65 लाख पुरूष मुंह ओर शिश्न (पेनिस) पर एच.पी.व्ही संक्रमण से संक्रमित हैं....यह 2017 की प्रामाणिक जानकारी एक अत्यंत विश्वसनीय मैडीकल जर्नल में छपी है ...

Concordance of Penile and Oral Human Papillomavirus Infections Among Men in the United States

इस मुद्दे के बारे में बातचीत होना चाहिए ताकि लोग इस को समझें .....दो दिन पहले एक दूसरे कैंसर सर्जन (वह भी हैड-नेक के प्रसिद्ध सर्जन हैं)  सुनने का मौका मिला जिस में उन्होंने भी साफ कहा कि मुंह ओर गले के कैंसर के मामलों में एचपीव्ही संक्रमण की भी बहुत भूमिका है ....उन्होंने सभा में उपस्थित लोगों को यह भी बताया कि यह मुंह और गले में यह वॉयरस जो सामान्यतः मुंह और गले में निवास नहीं करती, आई कहां से ....उन्होंने भी बताया कि इस के वहां आने का कारण है ... ओरल सैक्स (मुख मैथुन) ....

मामला बड़ा संजीदा है .....मैं कोई नीति निर्धारक नहीं हूं कि मैंने यह तय करना है कि छोटे लड़कों और किशोरों का भी एचपीव्ही टीकाकरण होना चाहिए ...न ही मैं एक्सपर्ट हूं इस मामले में किसी भी तरह से ....लेकिन मेडीकल विषयों का लेखक होने के नाते मेरा यह फ़र्ज़ है कि चिकित्सा संबंधी वैज्ञानिक जानकारी को जनमानस तक सटीक, सीधे सादे शब्दों में पहुंचाया जाए... एक तरह से बीज बोना कहते हैं इसे ....एक बात अगर किसी के पल्ले पड़ गई तो बाकी सारी जानकारी तो वह गूगल से भी ले लेगा....बीज बोना भी एक महत्वपूर्ण नेक काम है जैसा उस सभा में उस वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ ने किया ....

मैं जब अपना 10 साल पुराना लेख आज पढ रहा था तो मैंने देखा कि उस में जो मेडलाइन-प्लस का वेबलिंक मैंने दिया था ..वह खुल ही नहीं रहा ...मैं तुरंत गूगल किया तो एक और खबर दिख गई जिस का लिंक मैंने ऊपर लगाया है .... शक्तिशाली मार्कीट शक्तियां धड़ल्ले से नाना प्रकार के फ्लेवर्ड कंड़ोम बेचने में व्यस्त हैं....उन्हें अपना काम करना है, हमें अपना .....

PS.... 10-15 years or older posts i never edit. Whatever i felt at that point of time, i wrote. So, I have not done any changes in old post(s) anywhere, even bizarre spacing is kept as it is .....just looking at those old, raw posts is quite nostalgic though! 😎

शनिवार, 1 जून 2024

लंबे अरसे के बाद कल जॉगर्स पार्क में ....


बहुत लंबे अरसे के बाद कल सुबह बांद्रा के जॉगर्स पार्क में जाने का मौका मिला....जाने को तो जा ही सकते हैं, लेकिन आलस,और तरह तरह के बहानों का क्या इंतजाम करें, कभी मौसम के मिज़ाज ठीक नहीं हैं तो कभी अपने...कभी धूप ज्यादा हो गई है तो कभी कुछ...

अंड्राडे सर के बारे में आप भी पढ़िए इस लिंक पर जा कर - आप को सलाम करते हैं सर हम भी ....





लेकिन सुबह जा कर किसी भी पार्क में अच्छा तो लगता ही है ...कल सुबह भी उठ तो गया साढे चार बजे ....पर जाने का मन नहीं था, खैर, किसी तरह मन को राज़ी कर ही लिया और साढ़ें पांच बजे के करीब चला गया....




वहां जाते ही पता चला कि इस पार्क का तो 34 वां हैपी-बर्थडे था दो दिन पहले ....अचानक वह दौर याद आ गया जब इसे तैयार हुए दो तीन साल ही हुए थे और हम लोग लोकल-ट्रेन में बांद्रा तक और वहां से बस या आटोरिक्शा में यहां शाम के वक्त आते थे ....उन दिनों यही कोई पांच रूपये की टिकट लगती थी अंदर जाने के लिए...




जॉगर्ज़ पार्क बड़ा व्ही.आई.पी पार्क लगता था ..लगता क्या था, है भी तो ...बहुत सुंदर पार्क है ...अब इस का प्रबंध बीएमसी के पास है ....और कुछ वर्षों से टिकट भी नहीं लेनी पड़ती। इस का वक्त भी बढ़ा दिया गया है ...सुबह पांच बजे खुलता है और दोपहर एक बजे बंद होता है ..फिर बाद दोपहर तीन बजे खुल जाता है और रात दस बजे तक लोग इसमें टहलते दिखते हैं...। अगर ध्यान हो आपको तो इसी पार्क के नाम वाली एक हिंदी फिल्म भी बनी थी ....अच्छी थी फिल्म. (इस गीत में भी आप तब के जॉगर्स पार्क के दीदार कर सकते हैं....😎)

फ़ुर्सत के पलों में भी लेखक शेल्फी लेने के चक्कर में 


इस का रख-रखाव बहुत अच्छे से किया जाता है ...टहलने का, जॉगिंग करने का ट्रैक बहुत बढ़िया है ....और हर तरफ हरियाली देख कर मन खुश हो जाता है ...सभी उम्र के लोगों के लिए यहां कुछ न कुछ है...ओपन-जिम भी है बहुत बढ़िया, एक तालाब है जिसमें बतखें मज़े से तैरती दिखती हैं.....बच्चे इस के पास मंडराते रहते हैं....समंदर के किनारे स्थित इस पार्क में बैठने की भी बहुत अच्छी व्यवस्था है और पार्क के अंदर कोई भी खाने-पीने की चीज़ भी नहीं ले जा सकता, यह  बढ़िया उपाय है किसी भी सार्वजनिक जगह को साफ-स्वच्छ बनाए रखने के लिए..



यहां टहलते हुए विभिन्न रंगों की बोगनविलिया की झाडि़यां देख कर अच्छा लगता है ...सुबह सुबह कुदरत भी अपने राज़ खोलने को आतुर होती है जैसे ...मैं इस तरह के फलों को अकसर पेड़ों के नीचे गिेरे हुए देखता तो था ..लेकिन आज पता चला कि उस के अंदर क्या होता है क्योंकि यह आज टूटा हुआ दिखा ।...आकाश में आंख-मिचौनी करते बादलों का रूप देखते ही बनता है ....खास कर के तब जब लोग गर्मी-उमस से त्राहि त्राहि कर रहे हों....सुना है वर्ली सी लिंक से वर्सोवा तक जाने वाली कोस्टल रोड यहीं कहीं आस पास हो कर ही निकलेगी.....मुझे इस से ज़्यादा कुछ मालूम भी नहीं .....


पार्क के इस कार्नर से बांद्रा वर्ली सी-लिंक दिख रहा है ....


बाहर निकलते हुए देखा एक महिला बिल्ली मौसियों को बड़े प्यार-दुलार से खाना खिला रही थी, देख कर मन खुश हो गया.....गेट के पास एक वयोवृद्ध सज्जन को व्हील-चेयर पर उन का सहायक पार्क के अंदर घुमाने ले जा रहा था ....और कुछ दिन पहले एक 40 की उम्र के करीब आयु का बेटा अपने पिता को हाथ पकड़ कर पार्क के अंदर ले कर जा रहा था ....और हां, एक सज्जन को उन का नाती घुमाने लाया था ... सही बात है ...घर से निकल कर कुदरत की गोद में थोड़ा वक्त बिताना है  ...सब को अपनी अपनी बैटरी चार्ज करनी होती है सुबह सुबह ....

मुंबई में कुछ जगहों पर स्ट्रीट आर्ट मुझे बहुत मुतासिर करता है ....घर के पास लक्की अली के सुबह के तारे के बारे मे पता चला तो उसे यू-ट्यूब पर ढूंढ लिया....

जब किसी भी परेशानी की वजह से हम लोग पैदल टहल नहीं पाते ...तो ईश्वर का यह अनमोल वरदान समझ में आता है ....काश, हर पल हम शुकराने में रह पाएं.....लेकिन हम हैं कि यूं ही .....🙏

पसंद अपनी अपनी है ....मुझे सुबह के तारे तो कुछ भी समझ में नहीं आया क्योंकि मुझे तो सिर्फ़ अपने स्कूल-कॉलेज के ज़माने वाले नगमे ही समझ में आते हैं- बिल्कुल अच्छे से ....


यह सब लिखने का मकसद ....केवल इतना ही कि दूसरों को भी और खुद को भी सुबह उठने के लिए प्रेरित किया जा सके ....वैसे प्रेरित-व्रेरित होना या हवाना😂 बातें ही हैं, ऐसा लगता है मुझे ....जब मैं खुद ही आज अभी साढ़ें सात बजे उठा हूं और लैपटाप लेकर बैठ गया हूं ....चलिए, इस गीत को सुनिए....और दोस्तो, आप भी आइए,कभी इस तरफ़, बांद्रा स्टेशन से आटो में दस-पँद्रह मिनट लगते हैं....एक बार आईए, बार बार आने को मन मचलेगा...😎







यह कौन सा झाड़ है ....मुझे नहीं पता...अगर आप को मालूम है तो लिखिए कमेंट बॉक्स में ....