लंबे अरसे से हसरत थी कि बोरिवली के नेशनल पार्क हो कर आया जाए...20-25 साल पहले एक दो बार गए तो थे लेकिन उसे जाना नहीं कहते...उसे बस नाम के लिए जाना कहा जा सकता है कि दूसरों को कह सकें कि हम ने भी वह पार्क देखा हुआ है ..
हां तो बरसों पहले जब गए थे वहां तो पार्क के गेट ही से जो बस मिलती थी पार्क के अंदर कन्हेली गुफाओं तक जाने के लिए..बस उस में बैठे ..वहां गुफाओं तक पहुंच गए...उन गुफाओं को घंटा आधा घंटा निहारा...तब तक अंधेरा होने को हुआ..सब लोगों के साथ ही बाहर निकलना पड़ा ...हो गया जी बोरिवली नेशनल पार्क वाला चेप्टर भी खत्म।
लेकिन बरसों से मैं इस पार्क के बारे में पढ़ता रहा हूं ...अच्छा, एक बात का कल मुझे ख्याल आ रहा था कि जब हम बच्चे खेलते हैं तो कोई खेल खेल में हमारा गला दाबने लगता तो हम क्या करते ?- हम उस लौंडे पर बहुत ज़्यादा गुस्सा हो जाते, बहुत कोसते उसे ..क्योंकि उस खेल खेल में ही सही लेकिन हमारा दम तो घुटने का हो गया...मैं समझ रहा हूं कि यही बात बोरिवली नेशनल पार्क की है ...बेशक यह मुंबई वासियों के फेफड़े है...इसलिए जब कोई भी इस के अंदर बाहर कोई भी पंगा लेना चाहता तो मुंबई वासियों ने उस की अच्छी खबर ली है...क्योंकि उन्हें गवारा नहीें कि कोई उन के फेफड़े को लालची निगाहों से देखने की ज़ुर्रत भी करे...
मैंने बहुत से बोटैनिकल गार्डन देखे हैं...लखनऊ का मशहूर वनस्पति उद्यान, वाशिंगटन का बोटैनिकल गार्डन भी देखा ...लेकिन कल बोरिवली नेशनल पार्क में कुछ वक्त बिताने के बाद मैं कह सकता हूं कि मैेंने ऐसा पार्क आज तक नहीं देखा...लिखने को तो इस पर मै एक किताब लिख दूं ..लेेकिन अभी उस की इच्छा है नहीं...
जहां भी जाता हूं उस के बारे में लिख देता हूं ..क्यों भला? ... कोई मकसद नहीं बिल्कुल, अगर कुछ होता तो मैं वह भी लिख देता बिना किसी संकोच के ..बस, एक मकसद यही होता है कि जिस जगह को, जिस चीज़ को देख कर मैं इतना लुत्फअंदोज़ हुआ, और भी लोगों तक यह बात पहुंचे ताकि वे भी वहां जाकर उस जगह का आनंद ले सकें....
मेरे कुछ पुराने ब्लॉगर दोस्त ट्रेवल ब्लॉग लिखते हैं ..देश के कोने कोने में दुर्गम जगहों पर जाते हैं...और सब कुछ बढ़िया लिख देते हैं...लेकिन मैं अकसर हमारे पास की जगहों के बारे में ही लिखता हूं जहां ट्रेन या किसी पब्लिक टांसपोर्ट की मदद से पहुंचा जा सके...मैं उन सब स्थानीय जगहों के बारे में लिखना चाहता हूं जहां पहुंचने के लिए किसी को तरसना न पडे, बस, अपने जूते पहने और निकल गए...शाम तक वापिस लौट आने के लिए...मैं आज सोच रहा था कि अगर मेरे पास भी कोई ऐसा लेख-आलेख पहुंच जाता तो शायद मेरी भी इस पार्क से दोस्ती पहले ही हो गई होती...
इस पार्क के बारे में लिखने को तो बहुत कुछ है ..लेकिन आज नहीं हो पाएगा...कुछ बातें लिखूंगा..बाकी की बाद में कभी लिखूंगा...वैसे भी इसे आप जा कर देखिए..वहां कईं घंटे रुकिए, टहलिए ..जितना भी हो पाए...न हो पाए, तो कुदरत की गोद में सुस्ता ही लीजिेए..बहुत हो गई भागम-भाग.......चैन से पंक्षियों की चहचहाहट का आनंद लीजिए...बहुत ही कुछ है वहां पर सब के लिए ...छोटे छोटे बच्चों से लेकर बड़े से बड़े बुज़र्गों तक ..सब के लिए...
एक बुज़ुर्ग को तो फेफड़ों में इतनी शिद्दत से सांस भरते देखा कि मैं ही डर गया...मुझे एक बार लगा कि रामदेव का इस से मुकाबला करवा दें तो शायद यह जीत जाए...मैं उन के इस जौहर की वीडियो बनाने लगा तो मुझे यही लगा कि बेटा, इन के चक्कर में तूने अपनी बैटरी और मेमोरी दोनों खत्म कर लेनी है ...चल, अब तू आगे चल...ये तो कोई योगी ही जान पड़ते हैं....पार्क का पूरा फायदा उठाए बिना रुकेंगे नहीं- न रूकेंगे, न थकेंगे...😎
बहुत से लोग अंदर साईकिल चला रहे थे ... उस के बारे में ज़रूर लिखूंगा विस्तार से ...लेकिन एक बात याद रह गई कि सुनसान सड़कोंं पर युवक एक युवती को साईकिल सिखाने के लिए श्रमदान भी करता दिखा ....जैसे हम युवकों को अकसर बाहर स्कूटर सिखाने की ड्यूटी निभाते देख लेते हैं यदा-कदा..। और हां एक दंपति को देखा ..मेरे जैसे भारी भरकम..लेकिन उस बंदे ने उस खातून को साईकिल के अगले डंडे पर बिठाने का जोखिम उठा रखा था...। उस युगल को देख कर भी एक खामखां किस्म का विचार तो आया कि उन्हें आवाज़ दे कर इतना तो कह दिया जाए... सही रास्ता पकड़े हो, मंज़िल की ऐसी की तैसी, वह भी मिल जाएगी ..हौले..हौले!!
इस पार्क के बारे में और भी लिखूंगा...पहुंचना कैसे है? --कोई झंझट नहीं है वहां पहुंचने में..बोरीवली लोकल के स्टेशन के पूर्व में आ जाइए...आप मेरी तरह से किसी से पूछेंगे कि पार्क कहां है ..तो वह उस सड़क की तरफ़ इशारा कर देगा जो आप को पैदल पांच मिनट में हाइवे पर ले जाएगी.....बस, सामने ही है नेशनल पार्क .....जब भी फुर्सत हो, हो कर आइए, फुर्सत नहीं भी है तो भी हो कर आइए....वरना एक दिन की छुट्टी लीजिए..हां, ख्याल रखिए, यह सोमवार बंद रहता है ..सुबह आठ बजे खुलता है, शाम को 5.30 बजे बंद...और हां, वहां पर जा कर अंदर साईकिल किराए पर भी मिलते हैं....कार, स्कूटर पर जा रहे हैं तो जाइए...पार्किंग की कोई दिक्कत नहीं है, सब कुछ है वहां.......बस, आप की वहां जाने की तमन्ना होनी चाहिए...और घूम कर आएं तो सब के साथ अपनी खुशियां शेयर करने में संकोच या कंजूसी न करिए..खुशियां बांटने से और बढ़ जाती हैं.. है कि नहीं ?
को
डॉ. साहब, मैंने भी कयीं बार सोचा, पर जा नहीं पाया. अब जरूर जाऊँगा. आपने मेरे सोए हुए अरमान जगा दिये. तड़का लगा ही दिया. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंWaah....hum bhi jaayenge wahab zaroor
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