डयूटी से आने पर आज दो तीन घंटे सोया रहा ...सिर दर्द से परेशान था...रात साढ़े आठ नौ बजे उठा तो ख्याल आया कि एक दवाई खरीदनी है ..नानावटी अस्पताल का नुस्खा था...पाली हिल के एरिया में तीन-चार दुकानें छान लीं...नहीं मिली दवाई .. दिन-रात चलने वाली वेलनैस कैमिस्ट की एक दुकान है ...उन के यहां भी न मिली ..कहने लगे कल शाम को मिलेगी...लेकिन इतना वक्त किस के पास होता है आजकल कि चक्कर मारते फिरो एक दवाई के लिए...
मैंने वेलनैस वाले कैमिस्ट से ही पूछा कि यह मिलेगी कहां ...कहने लगा कि किसी अस्पताल की फार्मेसी से ही मिल पाएगी...मैंने पूछा होली-फैमिली से मिलेगी? - उसने कहा कि हां, वहां ज़रूर मिल जाएगी। मैं होली-फैमिली की तरफ़ चल दिया...रास्ते में मुझे यही ख्याल आ रहा था कि दवाई तो यह बहुत सस्ती होगी, इसलिए ही नहीं मिल रही। वरना, महंगे टॉनिक, सप्लीमैंट जैसी दवाईयां तो आज कल छोटे से छोटे कैमिस्ट ऱखने लगे हैं...
होली फैमिली वाले सिक्योरिटी गार्ड ने अंदर जाने से पहले नुस्खा चैक किया...मैंने फार्मेसी के काउंटर पर बैठी महिला को पर्चा दिया तो उसे देखते ही वह अपनी साथी फार्मासिस्ट से बुदबुदाई...नानावटी अस्पताल की प्रिस्क्रिप्शन है। खैर, वह दो मिनट तक कंप्यूटर में तांका-झांका करने के बाद कहने लगी कि हम तो अपने अस्पताल के डाक्टर की प्रिस्क्रिप्शन पर ही दवाई देते हैं। खैर, बंबई में किसी से भी बहस फिज़ूल है ..यह ज्ञान बहुत ज़रूरी है। उसने कहा कि अस्पताल के बाहर जो कैमिस्ट है, उस से पता कर लीजिेए।
बाहर आते वक्त मैंने उस सिक्योरिटी गार्ड से पूछा कि तुमने मेरा पर्चा चैक तो किया लेकिन उसमें देखा क्या...अगर मुझे यहां से दवाई नहीं मिलनी थी, तो मुझे यहीं से लौटा देते, क्योंकि ये तो बाहर के नुस्खे पर दवाई देते ही नहीं। सिक्योरिटी वाला कहता है कि अगर हम अंदर नहीं जाने देते तो लोग हम से उलझते हैं, हम क्या करें...और उसने बताया कि ऐसा नहीं है कि बाहर के नुस्खे पर दवाई नहीं मिलती, किसी को मिल जाती है, किसी को नहीं देते ....मैंने वहीं पर उस बात पर मिट्टी डाली और उस महिला के द्वारा बताए गये कैमिस्ट के पास चला गया लेकिन वहां भी नहीं मिली...कहने लगा कि इस की खपत कम है, इसलिए रखते नहीं। हां, उसने यह कहा कि लीलावती अस्पताल से पता कर लीजिए, वहां ज़रूर मिल जाएगी।
मैं लीलावती अस्पताल पहुंच गया...वहां पर भी उसने कंप्यूटर में देख कर यही बताया कि यह दवाई इस स्ट्रैंथ की नहीं है, इस से ज़्यादा की है ...आप इधर ही लैफ्ट में चले जाइए...नोबल कैमिस्ट है, वहां से पता कर लीजिए। मुझे तो आते वक्त कोई न कोई नोबल, न कोई क्रयूएल कैमिस्ट दिखा...लेकिन लगभग एक डेढ़ किलोमीटर के बाद हिल रोड पर मेहबूब स्टूडियो के सामने एक दवाई की दुकान पर नज़र गई तो नोबल लिखा था...उस के अंदर जा कर पूछा तो वहां से दवाई मिल गई ...कुल चालीस रूपये की दवाई थी ....और एक-डेढ़ घंटे की स्कीम हो गई।
मुझे यही लगता है ..पता नहीं अब ठीक लगता है या नहीं, कि ऐसी सस्ती दवाईयां रख कर वे लोग अपनी इंवेंट्री क्यो बढ़ाने लगें...इन में कमाई ही क्या है...अभी मैं दवाई ले रहा था कि एक जेंटलमेन आया कि खांसी की दवाई लेनी है। मुझे अपना बचपन याद आ गया कि हम लोग या हमारे मां-बाप भी तो ऐसे ही अमृतसर इस्लामाबाद चौक पर सरदार कैमिस्ट के पास जा कर खड़े हो जाते थे कि हमें यह तकलीफ है, वह एक दो सवाल पूछता और हमें दो-तीन खुराक दे देता ...यही कोई १५-२० रुपये में (४५-५० साल पुरानी बातें ...) ...मेरे माता पिता की नज़रों में वह अमृतसर का सब से सयाना कैमिस्ट था ...जब भी मेरा गला खराब होता, थूक निगलने में भी दिक्कत होने लगती तो मेरे पापा दफ्तर से लौटते वक्त वहां से दो-चार टैरामाइसिन की खुराकें ले आते ...और हम एक-दो कैप्सूल और पापा से हल्की सी डांट खाने के बाद टनाटन हो जाते ...और पापा की डांट यही होती कि यार, खट्टे चूरन मत खाया कर, उसमें टाटरी पड़ी होती है, तू समझता क्यों नहीं ...
आज इस ४० रूपये की दवाई खरीदने के चक्कर में मुझे जब इतनी भाग-दौड़ करनी पड़ी तो मुझे यही ख्याल आ रहा था कि एक तो यह हालत है और दूसरी तरफ़ सरकारी अस्पतालों में दवाईयों के अंबार लगे हुए हैं...फिर भी !!!!!😷चुप रह यार, चुप भी रहना सीख ले...वरना किसी दिन बुरा फंसोगे तुम ....खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं...
दवाइयाँ आजकल ठीक करने के लिए कम खाली करने के लिए ज्यादा दी जाने लगी हैं। सरकारी अस्पताल की हालत ऐसी होती है कि अगर जाओ तो समझो पूरा दिन उधर जाएगा और फिर भी डॉक्टर ने सही तरह से देखा न देखा यह अलग मसला है। इसलिए आदमी प्राइवेट को तरजीह देता है और ब्रांडेड महंगी महंगी दवाई खरीदता है। आपकी भी सही दौड़ हो गयी। वैसे छोटे कस्बों में आज भी केमिस्ट के पास ही जाते हैं। मैं खुद कई बार जाता हूँ छोटी मोटी तकलीफ के लिए जब होम टाउन रहता हूँ।
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