मंगलवार, 29 जून 2021

खराब अंग्रेज़ी की अच्छाईयां

अंग्रेज़ी की ही एक कहावत है कि जब पैसा बोलता है तो उस की व्याकरण की अशुद्धियों की तरफ़ कोई नहीं देखता.. बिल्कुल बात सही है ...हम लोग सब यह देखते ही हैं..

इस बात के साथ जो बात मैं अकसर जोड़ देता हूं वह यह है कि जब कोई भी इंसान दिल से बात करता है ...तब भी हम उस की व्याकरण की तरफ़ बिल्कुल ध्यान नहीं देते....हम यह गुस्ताख़ी समझते हैं, है कि नहीं। लेकिन जो कोई हम पर अपनी इंगलिश-विंगलिश झाड़ कर हम पर रूआब डालने की कोशिश करता है ...उस की अंग्रेज़ी की तो पूरी तलाशी होनी ही चाहिए...शायद यह ज़रूरी भी है..

हां, तो खराब अँग्रेज़ी के फायदों की बात कर रहे हैं....पता नहीं, कहीं भी किसी की भी खराब अंग्रेज़ी पढ़ कर बंदे पर तरस सा आने लगता है ...यार, बंदा कोशिश तो पूरी कर रहा है...चलो, उस की इबारत बार बार पढ़ कर उस का मतलब ढूंढते हैं और पता लगाते हैं कि वह आखिर चाह क्या रहा है..। बस इसी रहमोकरम के चक्कर में उस का काम हो जाता है....क्या है न हैं तो हम देसी लोग इमोशनल फूल ही हैं...हमें बेवकूफ़ बनाना कोई मुश्किल काम भी नहीं है...

खराब अंग्रेज़ी की बात करता हूं तो सब से पहले मुझे एक बंगाली बाबू की याद आ जाती है जो एक बार रेल में यात्रा कर रहा था...गाड़ी एक जगह रूकी...उसे हाजत हो रही थी, वह हल्का होने के लिए इधर उधर चला गया...इतने में ट्रेन ने सीटी बजा दी ...बेचारा पानी का लोटा और अपनी धोती संभालता चलती हुई ट्रेन को पकड़ने के लिए भागता रहा ...लेकिन उस बंदे ने अंग्रेजी में एक चिट्ठी लिख मारी जैसे तैसे रेल के किसी बड़े अफ़सर को ....बस जी होना क्या था, उस का क्या, सारे हिंदोस्तान का काम हो गया उस बंदे की टूटी फूटी इंगलिश से ... ये जो आज हम जैसे भी खाना-पीना ठूंस कर चढ़ जाते हैं गाड़ी में कि कोई बात नहीं ...हाजत हो भी गई तो अपनी रेल ज़िंदाबाद.... हिंदोस्तान की रेलों में टायलेट की व्यवस्था उस एक चिट्ठी की वजह ही से हो पाई। 

हमारे एक अजीज़ हैं सक्सेना जी.. बाबू लोगों के अंग्रेज़ी प्रेम के बड़े किस्से सुनाते हैं...लेकिन बाबू लोग ही नहीं, अफसरों की अंग्रेज़ी भी कईं बार बहुत बढ़िया नहीं होती ..लेकिन करें तो क्या करें, हमें तो वही झाड़नी है, उसे से ही हम अपना दबदबा बना पाएंगे ....शायद यही मानसिकता होती होगी...एक दिन बताने लगे कि डाक्टर साब, यह जो दफ्तरों में बाबूओं का अंग्रेज़ी प्रेम है न, इस के चलते बहुतेरों के बच्चे पल रहे हैं...। बात हमारी समझ में आई नहीं। 

हमें समझाते हुए सक्सेना जी ने कहा कि जिस देश में अधिकतर लोग अपनी राष्ट्र-भाषा में तो अपने आप को व्यक्त कर न पाएं ढंग से, उन से यह उम्मीद लगा लेना कि वे अंग्रेज़ी में एक बढ़िया सा टाइट ड्राफ्ट तैयार कर पाएंगे ....यह सरासर नाइंसाफी है कि नहीं, डा. साब। आगे कहने लगे कि अंग्रेज़ी भाषा हो या कोई भी भाषा हो उस में परफैक्शन हासिल करने का कोई क्विक-फिक्स तरीका नहीं होता कि एक हफ्ते में कुछ भी सीख लिया जाए....नहीं, यह भी एक साधना होती है....लेकिन अधिकतर नौकरीपेशा लोगों को इस साधना का वक्त कभी मिला ही नहीं ...लेकिन हां, इंगलिश में एक बढ़िया सा ड्राफ्ट लिखने का बहुत शौक रखते हैं....इसलिए उस में कुछ न कुछ और बहुत कुछ ऐसे ही लिखा आगे निकल जाता है ....। मैंने उन्हें बीच में ही टोक दिया कि ऐसे कैसे आगे चला जाता है....पूरी हायआर्की है चैक करने के लिए...। सक्सेना साब ने हमें कहा कि बस हम जो कह रहे हैं उसे सुन लीजिए....बाबू का लिखा बि्लुकल वैसे का वैसे आगे चला जाता है ....

और एक बात गौर करिेएगा....सक्सेना जी ने बात जारी रखी, जब तक तो किसी की खराब अंग्रेज़ी से किसी का भला हो रहा है...कोई फायदा हो रहा है ...तो जिस का फायद हो रहा है, उस की बला से किस का भाषा ज्ञान कैसा है, उस से क्या मतलब.......लेकिन ओफ.....दिक्कत जब होती है जब कुछ एक बाबू लोगों की खराब इंगलिश की वजह से किसी का थोड़ा नुकसान हो जाए या किसी की नौकरी पर बन आए....ओह, हो...फिर देखिए किस तरह से बाबू के लिखे का पोस्टमार्टम होता है ....बात कोर्ट-कचहरी तक पहुंचती है .....और वकीलों को तो आप जानते ही हो, वे तो कितनी सफ़ाई से बाल की खाल भी खींच लेेते हैं....इसलिए बहुत बार, हमारा यकीं कर लीजिए. बहुत से केस अदालत में बाबू लोगों की खराब इंगलिश की वजह से पिट जाते हैं .......और मुलाजिम काम पर वापिस लौट आता है और उस के बाल-बच्चों, वृद्ध मां-बाप का भरण-पोषण चलता रहता है और बाबू लोग इस तरह से उन सब  की अपार दुआएं पाते रहते हैं ....

अब बात हमारी भी समझ में आ गई... कि खराब अंग्रेज़ी होना भी इतनी ख़राब बात नहीं है, भला तो वह भी किसी न किसी का, किसी न किसी रूप में कर ही रही है...

( आज पूरे डेढ़ महीने बाद कुछ लिखा है....अपने साथी ब्लॉगरों को रोज़ सुबह पढ़ता हूं....सोचा जिस एक बात को १५ साल से सीख ही रहा हूं ...उसे कैसे इतनी आसानी से छोड़ दूं....मै जब भी कुछ दिनों के लिए लिखना बंद करता हूं तो हमारा कोई स्टॉफ ही मुझे इतनी मासूमियत से कह देता है कि हम आप का लिखा पढ़ते हैं....अच्छा लगता है...बस, मुझे मेरा इनाम मिल जाता है.....और हम फिर से शुरू हो जाते हैं...यह एक दम सच है..)

यह गीत परसों विविध भारती के प्रोग्राम बाइस्कोप की बातें में जो स्टोरी सुनाते हैं....उस दिन जिस फि्लम की स्टोरी सुनी ...उस का नाम था ...आँसू बन गए फूल ...यह गीत बहुत मुद्दत के बाद सुना तो इस गीत के रेडियो पर बार बार बजने वाले दिन याद आ गए .... 😀😁


1 टिप्पणी:

  1. अंग्रेजी का हमने न जाने क्यों इतनी तरजीह दी है। कॉरपोरेट्स में भी ऑफिसियल ईमेल अंग्रेजी में भेजने की रिवायत है। ऐसे में कई बार जिन सहकर्मियों की अंग्रेजी ठीक नहीं होती थी तो वो लिखवाने आ जाते थे लेकिन अपनी मातृभाषा में मेल नहीं लिखते थे। बाबू लोगों के अंग्रेजी प्रेम के किस्से मजेदार थे। ऐसे ही लिखा कीजिये। अगले लेख का इंतजार रहेगा।

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