पीछे कुछ तरह तरह के पशुओं की रेडियोफ्रिक्वैंसी टैगिंग की बातें हो रही थीं...अभी पंजाब का एक नेता भी कुछ ऐसा ही कह रहा था ....मैंने कुछ ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि इस तरह की कुछ खबरों में तो ज़्यादा राजनीति होती है ...
लेकिन आज जैसे ही अखबार उठाया तो पहले ही पन्ने पर एक खबर दिख गई ....शिमला में हाई-कोर्टों के आदेश पर अब वहां के पेड़ों की RFIT Radio-frequency Identification Tagging .. होगी ... सरकारी जगहों पर लगे पेड़ों की टैगिंग का खर्च सरकार को उठाने को कहा गया है और प्राईव्हेट जगहों पर इस खर्च का वहन इस जगह के मालिक द्वारा किया जायेगा..
जब मैंने खबर पूरी पढ़ी तो मुझे इतनी हैरानी हुई कि किस तरह से लालची-शातिर लोग पेड़ों की जड़ों में पहले तो तेजाब डाल कर उन्हें सुखा देते हैं..फिर पेड़ जब सूख जाता है ..तो अपने आप गिर जाता है या फिर कानून को तोड़-मरोड़ कर उसे वहां से निकलवा दिया जाता है ....और यह सब सिर्फ़ लकड़ी हासिल करने के लिए ही नहीं हो रहा, इस में भू-माफिया का पूरा हाथ है ....ताकि पेड़ों को हटाकर वहां पर कंकरीट के जंगलों का निर्माण किया जा सके...
मुझे इस देश के तीसरे और चौथे खंभे ...न्यायपालिका एवं पत्रकारिता पर भी बहुत भरोसा है... पत्रकारिता देश में अपना सामाजिक दायित्व निभा रही है और न्यायपालिका के कहने ही क्या....मैं कईं बार सोचता हूं कि अगर देश में न्यायपालिका ढीली होती तो क्या हाल होता...
पेड़ों की हिफ़ाज़त के मामले में भी अब हाईकोर्ट को इस तरह के सख्त आदेश देने पड़ रहे हैं...
पेड़ों की बात करें तो अच्छे हम सब को लगते हैं...लेकिन हम इन का खडा़ करने और इन की देखभाल के लिए कुछ ज़्यादा करना नहीं चाहते हैं...जहां मैं इस समय बैठा हूं, मेरे कमरे से बाहर का यह नज़ारा दिख रहा है ....ठंडी छाया ... और घर के सभी कमरों से ऐसा ही नज़ारा नज़र आ रहा है ..
मुझे पेड़ों से बहुत लगाव है ....शायद हज़ारों तस्वीरें पेड़ों की मैंने अपने मोबाइलों से ले डाली हैं ... मुझे हर नये पेड़ से मिलना किसी नये शख्स के मुखातिब होने जैसा लगता है ....मुझे यह रोमांचित करता है ...
पेड़ों की जान अगर तरह तरह के धार्मिक विश्वासों की वजह से भी बच जाती है तो भी मुझे अच्छा लगता है ... लेकिन लोग पता नहीं पेड़ की जड़ों के आसपास इस तरह से सीमेंट क्यों पैक कर देते हैं...उन्हें भी फैलने का मौका दीजिए... बहुत बार इस तरह के पेड़ों दिख जाते हैं जिन का दम घुटता दिखता है ...
अब तो रेडियो-टैगिंग की बात हो रही है ...बचपन में लगभग ४० साल पहले की बात है ... हमारी कॉलोनी में पेड़ों पर नंबर लिख कर गये थे ..उस का क्या हुआ, क्या नहीं, कुछ ध्य़ान नहीं....लेकिन पेड़ों को बचाने के लिए तो जितने भी प्रयास किये जाएं कम हैं... फैलने दीजिए, उन्हें भी जैसा उन का मन चाहे, वे आप की जान नहीं लेंगे ..निश्चिंत रहिए..
मुझे ऐसे लोगों से बेहद नफ़रत है...घिन्न आती है मुझे ऐसे लोगों से जो अपने स्वार्थ के लिए पेड़ों पर कुल्हाड़ी चला देते हैं..
लेकिन आज जैसे ही अखबार उठाया तो पहले ही पन्ने पर एक खबर दिख गई ....शिमला में हाई-कोर्टों के आदेश पर अब वहां के पेड़ों की RFIT Radio-frequency Identification Tagging .. होगी ... सरकारी जगहों पर लगे पेड़ों की टैगिंग का खर्च सरकार को उठाने को कहा गया है और प्राईव्हेट जगहों पर इस खर्च का वहन इस जगह के मालिक द्वारा किया जायेगा..
जब मैंने खबर पूरी पढ़ी तो मुझे इतनी हैरानी हुई कि किस तरह से लालची-शातिर लोग पेड़ों की जड़ों में पहले तो तेजाब डाल कर उन्हें सुखा देते हैं..फिर पेड़ जब सूख जाता है ..तो अपने आप गिर जाता है या फिर कानून को तोड़-मरोड़ कर उसे वहां से निकलवा दिया जाता है ....और यह सब सिर्फ़ लकड़ी हासिल करने के लिए ही नहीं हो रहा, इस में भू-माफिया का पूरा हाथ है ....ताकि पेड़ों को हटाकर वहां पर कंकरीट के जंगलों का निर्माण किया जा सके...
मुझे इस देश के तीसरे और चौथे खंभे ...न्यायपालिका एवं पत्रकारिता पर भी बहुत भरोसा है... पत्रकारिता देश में अपना सामाजिक दायित्व निभा रही है और न्यायपालिका के कहने ही क्या....मैं कईं बार सोचता हूं कि अगर देश में न्यायपालिका ढीली होती तो क्या हाल होता...
पेड़ों की हिफ़ाज़त के मामले में भी अब हाईकोर्ट को इस तरह के सख्त आदेश देने पड़ रहे हैं...
पेड़ों की बात करें तो अच्छे हम सब को लगते हैं...लेकिन हम इन का खडा़ करने और इन की देखभाल के लिए कुछ ज़्यादा करना नहीं चाहते हैं...जहां मैं इस समय बैठा हूं, मेरे कमरे से बाहर का यह नज़ारा दिख रहा है ....ठंडी छाया ... और घर के सभी कमरों से ऐसा ही नज़ारा नज़र आ रहा है ..
मुझे पेड़ों से बहुत लगाव है ....शायद हज़ारों तस्वीरें पेड़ों की मैंने अपने मोबाइलों से ले डाली हैं ... मुझे हर नये पेड़ से मिलना किसी नये शख्स के मुखातिब होने जैसा लगता है ....मुझे यह रोमांचित करता है ...
पेड़ों की जान अगर तरह तरह के धार्मिक विश्वासों की वजह से भी बच जाती है तो भी मुझे अच्छा लगता है ... लेकिन लोग पता नहीं पेड़ की जड़ों के आसपास इस तरह से सीमेंट क्यों पैक कर देते हैं...उन्हें भी फैलने का मौका दीजिए... बहुत बार इस तरह के पेड़ों दिख जाते हैं जिन का दम घुटता दिखता है ...
अब तो रेडियो-टैगिंग की बात हो रही है ...बचपन में लगभग ४० साल पहले की बात है ... हमारी कॉलोनी में पेड़ों पर नंबर लिख कर गये थे ..उस का क्या हुआ, क्या नहीं, कुछ ध्य़ान नहीं....लेकिन पेड़ों को बचाने के लिए तो जितने भी प्रयास किये जाएं कम हैं... फैलने दीजिए, उन्हें भी जैसा उन का मन चाहे, वे आप की जान नहीं लेंगे ..निश्चिंत रहिए..
मुझे ऐसे लोगों से बेहद नफ़रत है...घिन्न आती है मुझे ऐसे लोगों से जो अपने स्वार्थ के लिए पेड़ों पर कुल्हाड़ी चला देते हैं..
Hi, Really great effort. Everyone must read this article. Thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंTrue . I hate people who don't care about trees. I get into depression if i live away from trees . That is why mostly i remain in depression . Because not many trees around . Thanks for the post .
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