आर ओ के पानी के बारे में यहां वहां कुछ पढ़ते तो रहते हैं ...कि इसे पीने से यह गड़बड़ है ...कुछ ज़रूरी तत्व भी यह निकाल देता है ...लेकिन कभी गहनता से इस का ज़्यादा अध्ययन करने की ज़रूरत समझी नहीं...
क्या करेंगे समझ कर भी?...कोई विकल्प भी तो हो! ....वरना यहां वहां हर जगह बस सनसनी फैलाते जाएं, यह तो कोई बात न हुई...
जन साधारण तो कईं बार मार्कीट शक्तियों का खेल समझ ही नहीं पाता ....ये शक्तियां इतनी प्रबल हैं कि किसी चीज़ को भी बिकवा दें और किसी को भी बिल्कुल कंडम करवा दें...बहुत बड़ा खेल है...
आर ओ के बारे में दो दिन पहले भी वाट्सएप पर पढ़ा कि इस पानी को पीने से मिनरल्ज़ की कमी हो जाती है ...दरअसल वाट्सएप की किसी भी बात पर मुझे यकीं नहीं होता जब तक कि मैं स्वयं उस बात की पुष्टि न कर लूं...
इसीलिए मैंने गूगल सर्च किया ... तो रिज़ल्ट देख कर यही पता चला जिसे आप भी पढ़ सकते हैं...
खासा लंबा चौड़ा लेख है ...मैंने पूरा नहीं पढ़ा, आप चाहें तो पढ़ें लेकिन बातें वही कही गई हैं जो अकसर इस तरह के पानी के बारे में कही जाती हैं...
मैं सोच रहा था कि आज कल तो आर ओ का पानी इतना फैशन में है कि पानी के बताशे वाला भी अपनी दुकान पर बोर्ड टांग कर रखता है कि यहां बताशे के पानी के लिए आर ओ का पानी ही इस्तेमाल होता है ...
मैं कईं बार सोचता हूं कि पब्लिक सच में बड़ी कंफ्यूज़ हो जाती होगी कि किस की बात मानें ..अपने मन की मानें या हेमा मालिनी की बात मानें?
हमारे यहां भी पानी में कुछ गड़बड़ तो है ही ....पानी के जग, पानी की बोतलों में सफेदी जम जाती है ...स्टील की पानी वाली टंकी में भी सफेद सफेद लेयर जम जाती है जिस में एक्वागार्ड से छना हुआ पानी स्टोर किया जाता है ... इस बार एक्वागार्ड की सर्विस करने वाला आया था तो कह रहा था कि अगर आप चाहें तो कोई यंत्र फिट कर देगा उसी मशीन में जिस से पानी की हार्डनेस कम हो जायेगी ...लेकिन फिर वही बात, इस से कुछ ज़रूरी trace elements भी तो निकल जाते हैं...यह तो तय ही है...
हम लोगों को भी इतने इतने साल हो गये मैडीकल फील़्ड में...हमें ही कोई पूछ ले कि क्या ठीक है, कौन सी मशीन ठीक है...हम भी क्या जवाब दें?... बड़ी कंफ्यूज़न है सच में ....
पानी में तो वैसे इतनी गड़बड़ होने लगी है कि सब को ही अपने पीने वाले पानी के बारे में कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रख लेना चाहिए...लखनऊ के पास एक जगह है ...नाम याद नहीं आ रहा, डेढ़ दो घंटे का रास्ता है ...एक बहुत बुज़ुर्ग इंसान है ..मेरा मरीज़ रहा है...कुछ अरसा पहले सारे दांत उखड़वाये थे मेरे से ...अब जब भी अस्पताल आता है तो ज़रूर मिल कर जाता है ...और पूछता है कि कुछ लाऊं, पेप्सी लेकर आऊं?....मैं हर बार हंस कर टाल देता हूं और हाथ जोड़ देता हूं...कल भी मिलने आया था..उस की बीवी हमारे अस्पताल में दाखिल थी, पेचिश और उल्टियों की वजह से...अब ठीक है ...खुश थे दोनों मियां-बीवी ...मैंने पूछा कि घर में पानी उबाल कर पीना....मेरी तरफ़ बड़ी हैरानी से देखने लगे ...मुझे पता है वे यह सब कभी नहीं करेंगे ....चलिए, मैं तो इन की सेहत की दुआ मांग ही सकता हूं...
हम लोगों की इस देश में समस्याएं बेहद विषम हैं....दो गुणा दो चार नहीं है यार यहां...सेहत से जुड़े भी फैसले लोगों को अपनी ही समझ के अनुसार - ठीक या गलत मैं नहीं कह रहा -- अपने आप ही करने पड़ते हैं...
दरअसल हम ने प्रकृति का इतना ज़्यादा दोहन कर लिया है और जल प्रदूषण का स्तर ऐसा कर दिया है कि मेरी एक तमन्ना है कि कुछ ऐसा हो जाए कि ये सब पालीथीन की थैलियां बंद हो जाएं...प्रतिबंध लगने से क्या फर्क पड़ा है, हम देख ही रहे हैं...कुछ ऐसी मुहिम चले कि कहीं भी ये प्लास्टिक की थैलियां नज़र ही न आएं...वही ४०-५० साल पुराने दिन लौट आएं जब हम लोग कभी बर्फ लेने जाते थे और थैला नहीं लेकर जाते थे तो उसे हाथ में ही उठा कर लाना होता था ...
देखो भई, अपनी सेहत के फैसले स्वयं लेने की आदत डालो, तथ्यों के आधार पर ...कौन सी मशीन ठीक है कौन सी नहीं है, नेट पर पढ़ा करो ...लेकिन कम ही ...ज़्यादा पढ़ने से भी आदमी और कंफ्यूज़ हो जाता है मेरी तरह ... मुझे पूरा यकीन है कि अगर हम आर ओ पानी के फायदे लिख कर सर्च करेंगे तो भी बीसियों रिज़ल्ट आ जायेंगे....
मैंने भी कुछ तो नहीं कहा इस पोस्ट में ...बस अपने मन की दो बातें कर के इसे बंद कर रहा हूं...जाते जाते एक गीत सुन कर अपनी कंफ्यूज़न को थोड़ा भूलने की कोशिश तो करिए...मैं भी उतना ही कंफ्यूज़ हूं जितने आप हैं... चलिए, इसे सुनते हैं...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन माखन लाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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