दो अढ़ाई साल पहले एक अधेड़ महिला मेरे पास मुंह में एक घाव के साथ आई...परेशान सी...उस का बेटा साथ में था।
मुझे देखने में कैंसर जैसे लक्षण दिखे..
वे बताने लगे कि दो बार बाहर से आप्रेशन करवा चुके हैं ..लेकिन फिर से यह ज़ख्म बन जाता है ...
मैंने कहा कि आप कागज़ ले कर आइए...ले आए वे अगले ही दिन..किसी सामान्य से प्राइवेट अस्पताल में किसी सर्जन ने उन की सर्जरी की हुई थी...लेकिन कुछ सिस्टेमिक सा नहीं लगा ...न ही तो इसे नियमित जांच के लिए बुलाया जाता था .. न ही कोई इस की रेडियोथैरेपी ही हुई थी (सिकाई)...रुपया-पैसा ये लोग बहुत लगा चुके थे ..दो लाख के करीब...बार बार रोेए जा रही थी वह औरत कि हम बच तो जाएंगे न!
मैंने इन दोनों को समझाया कि आप लोगों के लिए बेहतर यही होगा कि आप बंबई के टाटा कैंसर अस्पताल में चले जाइए...सब से बढ़िया आप का इलाज वही हो पाएगा..वे तुरंत मान गये..उस मरीज़ को वहां रेफर कर दिया गया..
दो तीन महीने बाद वह महिला दिखाने आई..बहुत खुश ...टाटा अस्पताल वालों ने अच्छे से आप्रेशन कर दिया था...और बाद में सिकाई (रेडियोथैरेपी) भी कर दी थी...वह बहुत खुश थी..अपने साथ बर्फी का डिब्बा भी लेकर आई...मैंने मना किया कि हम मिठाई नहीं खाते तो रोने लग पड़ी...अब पहले से परेशान महिला जो इतना भुगत चुकी थी उसे रुला कैसे सकते थे!
और उस के बाद वह नियमित तीन तीन महीने के बाद जांच के लिए टाटा में जाती रही ...वहां पर दो तीन दिन रहना पड़ता...वे लोग कुछ एक्सरे करते ...रक्त की जांचें करते ...और मुंह का निरीक्षण करते ...सब कुछ दुरुस्त है के आश्वासन पर मरीज़ को अगली तारीख देकर भेज दिया जाता...
मुझे नहीं पता कि अब उस ने कब टाटा में चैक-अप के लिए जाना है ...वैसे ही मुझे ध्यान आया कि उस के बेटे से बात करते हैं...अब वे लोग अपने गांव जा कर बस गये हैं...उस के बेटे को फोन लगाया अभी दस मिनट पहले, वह समझदार है...जिन मरीज़ों को मैं टाटा भेजता हूं उसे इस लड़के का और कुछ दूसरे लोगों का नंबर (जो वहां इलाज करवा चुके हैं!) दे देता हूं कि वहां जाने से पहले अगर मन में कुछ प्रश्न हों तो इन लोगों से बात कर लीजिए...यह लड़का सब को अच्छे से समझा देता है और बीमारी और नई जगह के बारे में उन के मन में उपजे डर का कुछ तो निवारण कर ही देता था...
मुझे आज उस से बात कर के बड़ा दुःख हुआ...बताने लगा कि मुंह आदि तो सब ठीक है ..लेकिन मां बरसात में गिर गई हैं..रीड़ की हड्डी टूट गई है ...बिस्तर पर पड़ी हुई हैं.....किस्मत के खेल!!
एक और वाकया आप से शेयर करना चाहता हूं... सात आठ साल पहले की बात है पीटर आया था मुंह में एक घाव के साथ... देखने में कैंसर सा ही लग रहा था..उस की तंबाकू खाने-चबाने की आदतें भी ऐसा ही शक पैदा कर रही थीं.. उसे बड़े सरकारी अस्पताल में भेजा गया ... बस, उस के बाद वह कभी दिखा ही नहीं ...बहुत महीने बीत जाने के बाद एक दिन किसी और काम से आया तो उस से पूछा कि हां, कैसा रहा इलाज...
बस, हो गया, सब ठीक है ...शुक्रिया आप का आपने बिल्कुल समय रहते वहां भिजवा दिया...
बातों बातों मे ंउसने बताया कि वहां पर इलाज के लिए बहुत लंबी लाइन थी...अभी एक महीना और नंबर नहीं आता ...मुझे तो वहां के एक डाक्टर अपने गांव के ही मिल गये ...उन्होंने मेरा इलाज एक नर्सिंग होम में जा कर कर दिया....जितने पैसे दूसरों से लेते थे, गांववाले होने के नाते मुझ से १०-१५ हज़ार कम ही लिए थे...
मैंने पूछा कि आप्रेशन के बाद कुछ सिकाई-विकाई हुई थी...नहीं, नहीं, कुछ नहीं...सब ठीक है ...मैंने उस से कहा था कि अपने कागज लेकर आना, देख लेंगे....लेकिन उस की बेपरवाही और मेरी बात को हल्के से लेना उस के लहजे से ही पता चल रहा था और वह लौट कर नहीं आया...
यह जो दूसरे मरीज़ की बात मैं शेयर कर रहा हूं ..वह इसलिए है क्योंकि ये बातें भी अब कड़वे सच की तरह हो गई हैं....बड़े बड़े संस्थानों में लंबी वेटिंग लिस्ट होती हैं ...ऐसे में इन मरीज़ों को लगता है कि इतने दिन भी क्यों इस रोग को पाला जाए, पैसा खर्च के इस से तुरंत निपट लेते हैं...
टाटा अस्पताल, पीजीआई संस्थान, मैडीकल कालेज, क्षेत्रीय कैंसर संस्थान .....ये सब ऐसी संस्थाएं हैं जहां पर कैंसर का इलाज करने के लिए एक टीम होती है ...मरीज़ की मैनेजमैंट से संबंधित कोई भी निर्णय एक टीम अनुभवी टीम द्वारा लिया जाता है ...एक बिल्कुल सटीक प्रोटोकॉल होता है जिसे वे लोग अच्छे से फालो भी करते हैं ...(मैं जितने भी मुंह के कैंसर के मरीज़ टाटा अस्पताल भेजता हूं...वहां से लौटने के बाद उन की पेशेंट केयर और सुव्यवस्था की प्रशंसा करते नहीं थकते!)...लेकिन इन संस्थाओं की भी अपनी क्षमता है, वे भी मरीज़ों का लोड एक सीमा तक ही उठा सकते हैं ....इसलिए किन मरीज़ों को उन की केयर चाहिए और किन का इलाज उन मरीज़ों के गृह-नगर के आस पास ही किया जा सकता है, वे यह भी निर्णय करते हैं ....और अभी वे लोग सर्जरी तो कर देते हैं लेकिन सिकाई आदि के लिए मरीज़ के गृह-नगर के मैडीकल विभाग के मैडीकल कालेज के नाम एक अच्छा सा विस्तृत नोट मरीज को दे देते हैं जिस में लिखा रहता है कि उन्होंने क्या किया है, और आगे इस का क्या किया जाना है ..और सिकाई की डोज़ तक वे लोग अपनी उस चिट्ठी में लिख देते हैं...
हां, तो मैं उस मरीज़ की बात कर रहा था जिस ने बाहर से आप्रेशन करवा लिया था...आप्रेशन ऐसे बाहर करवाने में कोई बुराई नहीं है...मैं जानता हूं कि जो लोग इस तरह के जटिल आप्रेशन करते होंगे वे एस प्रशिक्षित सर्जन तो होते ही हैं....लेेकिन मेरा ऐसा मानना है कि कहीं न कहीं कुछ कमी तो रह ही जाती है इस तरह की जल्दबाजी में ....
अब मैंने तो अभी तक शायद ही कोई मरीज़ देखा हो (मुझे इस समय याद नहीं आ रहा) जिस के मुंह की कैंसर की सर्जरी हुई हो और बाद में उसे रेडियोथैरेपी न दी गई हो....और इस तरह के निर्णय बड़े सरकारी अस्पतालों एवं संस्थानों में एक पूरी टीम किया करती है ....और जब एक ही डाक्टर किसी निजी अस्पताल में इस तरह का इलाज कर रहा है तो जाने अनजाने कुछ न कुछ तो छूटने की गुंजाईश तो रह ही जाती होगी...इस के कारणों की तरफ़ अगर आप देखेंगे तो आप भी समझ सकते हैं...
मरीज़ को यह पता नहीं होता अकसर किसी भी कैंसर का इलाज बस उस की सर्जरी ही नहीं होता ....उस के बाद उस की बॉयोप्सी रिपोर्ट आने के बाद आगे की रणनीति तय करना ..सिकाई के बारे में, रेगुलर फॉलो-अप के बारे में ...उस के जो अंग विकृत हुए हैं ...उन की पुर्नवास के बारे में ..इसके अलावा भी बहुत सी बातें होती हैं जिन्हें एक अनुभवी टीम के सदस्य देखते रहते हैं...
अच्छा, एक बात और भी है अब इस पर लोग चर्चा करने लगे हैं कि निजी कारपोरेट अस्पताल मरीज़ों और उन के तीमारदारों को इस के बारे में अंधकार में ही रखते हैं कि कौन से कैंसर का इलाज कितना कारगर है...और उस तरह के इलाज के बाद मरीज़ की लाइफ-एक्सपेंटेंसी कितनी है ..अब लोग यह आवाज़ उठाने लगे हैं कि अगर सारे इलाज के बाद भी मरीज़ ने कुछ सप्ताह ही जीना था, तो इस के बारे में परिवारीजनों को कुछ तो संकेत दिया होता ....लाखों रूपयों खर्च होने के बाद भी आदमी तो बच नहीं सका....दर दर के कर्ज़दार अलग से हो गये...यह सब समस्याएं तो हैं ही ...और कुछ तो बदलने-वदलने वाला है नहीं, यह पक्की गारंटी हैं....लॉबी बड़ी शक्तिशाली है, अगर जनमानस ही सचेत हो जाए तो कुछ बात बन सकती है ...
और बात तो बाद की बात है ...सब से पहले चलिए आज से किसी भी रूप में तंबाकू के इस्तेमाल से तौबा कर लीजिए....आप बहुत सी बीमारियों से बचे रहेंगें...
बस, आज सुबह ये सब बातें शेयर करने की इच्छा हुई ....आज लगभग ६ महीने के बाद अपनी स्टडी-रूम में बैठ कर यह पोस्ट लिख रहा हूं ...वरना दूसरी जगहों पर बैठ कर लिखना मुश्किल ही होता है....आज बिल्कुल भी उमस न होने की वजह से महीनों बाद यहां बैठ कर इसलिए लिख पा रहा हूं क्योंकि स्टडी-रूम में एसी नहीं है..किराए का आशियाना है, तोड़-फोड़ मना है, बस, इसीलिए..लेेकिन टेबल पर बैठ कर लिखना बहुत सुविधाजनक है ...
मैं जो संदेश इस पोस्ट के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहता था, आशा है एक फीका सा आइडिया तो हो ही गया होगा.... Wish you all pink of health ...Stay healthy...stay blessed always...take care!
जनाब राहत इंदौरी साहब की इस बात से मैं पूरी इत्तेफाक रखता हूं...आप का इस के बारे में क्या ख्याल है ...
मुझे देखने में कैंसर जैसे लक्षण दिखे..
वे बताने लगे कि दो बार बाहर से आप्रेशन करवा चुके हैं ..लेकिन फिर से यह ज़ख्म बन जाता है ...
मैंने कहा कि आप कागज़ ले कर आइए...ले आए वे अगले ही दिन..किसी सामान्य से प्राइवेट अस्पताल में किसी सर्जन ने उन की सर्जरी की हुई थी...लेकिन कुछ सिस्टेमिक सा नहीं लगा ...न ही तो इसे नियमित जांच के लिए बुलाया जाता था .. न ही कोई इस की रेडियोथैरेपी ही हुई थी (सिकाई)...रुपया-पैसा ये लोग बहुत लगा चुके थे ..दो लाख के करीब...बार बार रोेए जा रही थी वह औरत कि हम बच तो जाएंगे न!
मैंने इन दोनों को समझाया कि आप लोगों के लिए बेहतर यही होगा कि आप बंबई के टाटा कैंसर अस्पताल में चले जाइए...सब से बढ़िया आप का इलाज वही हो पाएगा..वे तुरंत मान गये..उस मरीज़ को वहां रेफर कर दिया गया..
दो तीन महीने बाद वह महिला दिखाने आई..बहुत खुश ...टाटा अस्पताल वालों ने अच्छे से आप्रेशन कर दिया था...और बाद में सिकाई (रेडियोथैरेपी) भी कर दी थी...वह बहुत खुश थी..अपने साथ बर्फी का डिब्बा भी लेकर आई...मैंने मना किया कि हम मिठाई नहीं खाते तो रोने लग पड़ी...अब पहले से परेशान महिला जो इतना भुगत चुकी थी उसे रुला कैसे सकते थे!
और उस के बाद वह नियमित तीन तीन महीने के बाद जांच के लिए टाटा में जाती रही ...वहां पर दो तीन दिन रहना पड़ता...वे लोग कुछ एक्सरे करते ...रक्त की जांचें करते ...और मुंह का निरीक्षण करते ...सब कुछ दुरुस्त है के आश्वासन पर मरीज़ को अगली तारीख देकर भेज दिया जाता...
मुझे नहीं पता कि अब उस ने कब टाटा में चैक-अप के लिए जाना है ...वैसे ही मुझे ध्यान आया कि उस के बेटे से बात करते हैं...अब वे लोग अपने गांव जा कर बस गये हैं...उस के बेटे को फोन लगाया अभी दस मिनट पहले, वह समझदार है...जिन मरीज़ों को मैं टाटा भेजता हूं उसे इस लड़के का और कुछ दूसरे लोगों का नंबर (जो वहां इलाज करवा चुके हैं!) दे देता हूं कि वहां जाने से पहले अगर मन में कुछ प्रश्न हों तो इन लोगों से बात कर लीजिए...यह लड़का सब को अच्छे से समझा देता है और बीमारी और नई जगह के बारे में उन के मन में उपजे डर का कुछ तो निवारण कर ही देता था...
मुझे आज उस से बात कर के बड़ा दुःख हुआ...बताने लगा कि मुंह आदि तो सब ठीक है ..लेकिन मां बरसात में गिर गई हैं..रीड़ की हड्डी टूट गई है ...बिस्तर पर पड़ी हुई हैं.....किस्मत के खेल!!
एक और वाकया आप से शेयर करना चाहता हूं... सात आठ साल पहले की बात है पीटर आया था मुंह में एक घाव के साथ... देखने में कैंसर सा ही लग रहा था..उस की तंबाकू खाने-चबाने की आदतें भी ऐसा ही शक पैदा कर रही थीं.. उसे बड़े सरकारी अस्पताल में भेजा गया ... बस, उस के बाद वह कभी दिखा ही नहीं ...बहुत महीने बीत जाने के बाद एक दिन किसी और काम से आया तो उस से पूछा कि हां, कैसा रहा इलाज...
बस, हो गया, सब ठीक है ...शुक्रिया आप का आपने बिल्कुल समय रहते वहां भिजवा दिया...
बातों बातों मे ंउसने बताया कि वहां पर इलाज के लिए बहुत लंबी लाइन थी...अभी एक महीना और नंबर नहीं आता ...मुझे तो वहां के एक डाक्टर अपने गांव के ही मिल गये ...उन्होंने मेरा इलाज एक नर्सिंग होम में जा कर कर दिया....जितने पैसे दूसरों से लेते थे, गांववाले होने के नाते मुझ से १०-१५ हज़ार कम ही लिए थे...
मैंने पूछा कि आप्रेशन के बाद कुछ सिकाई-विकाई हुई थी...नहीं, नहीं, कुछ नहीं...सब ठीक है ...मैंने उस से कहा था कि अपने कागज लेकर आना, देख लेंगे....लेकिन उस की बेपरवाही और मेरी बात को हल्के से लेना उस के लहजे से ही पता चल रहा था और वह लौट कर नहीं आया...
यह जो दूसरे मरीज़ की बात मैं शेयर कर रहा हूं ..वह इसलिए है क्योंकि ये बातें भी अब कड़वे सच की तरह हो गई हैं....बड़े बड़े संस्थानों में लंबी वेटिंग लिस्ट होती हैं ...ऐसे में इन मरीज़ों को लगता है कि इतने दिन भी क्यों इस रोग को पाला जाए, पैसा खर्च के इस से तुरंत निपट लेते हैं...
टाटा अस्पताल, पीजीआई संस्थान, मैडीकल कालेज, क्षेत्रीय कैंसर संस्थान .....ये सब ऐसी संस्थाएं हैं जहां पर कैंसर का इलाज करने के लिए एक टीम होती है ...मरीज़ की मैनेजमैंट से संबंधित कोई भी निर्णय एक टीम अनुभवी टीम द्वारा लिया जाता है ...एक बिल्कुल सटीक प्रोटोकॉल होता है जिसे वे लोग अच्छे से फालो भी करते हैं ...(मैं जितने भी मुंह के कैंसर के मरीज़ टाटा अस्पताल भेजता हूं...वहां से लौटने के बाद उन की पेशेंट केयर और सुव्यवस्था की प्रशंसा करते नहीं थकते!)...लेकिन इन संस्थाओं की भी अपनी क्षमता है, वे भी मरीज़ों का लोड एक सीमा तक ही उठा सकते हैं ....इसलिए किन मरीज़ों को उन की केयर चाहिए और किन का इलाज उन मरीज़ों के गृह-नगर के आस पास ही किया जा सकता है, वे यह भी निर्णय करते हैं ....और अभी वे लोग सर्जरी तो कर देते हैं लेकिन सिकाई आदि के लिए मरीज़ के गृह-नगर के मैडीकल विभाग के मैडीकल कालेज के नाम एक अच्छा सा विस्तृत नोट मरीज को दे देते हैं जिस में लिखा रहता है कि उन्होंने क्या किया है, और आगे इस का क्या किया जाना है ..और सिकाई की डोज़ तक वे लोग अपनी उस चिट्ठी में लिख देते हैं...
हां, तो मैं उस मरीज़ की बात कर रहा था जिस ने बाहर से आप्रेशन करवा लिया था...आप्रेशन ऐसे बाहर करवाने में कोई बुराई नहीं है...मैं जानता हूं कि जो लोग इस तरह के जटिल आप्रेशन करते होंगे वे एस प्रशिक्षित सर्जन तो होते ही हैं....लेेकिन मेरा ऐसा मानना है कि कहीं न कहीं कुछ कमी तो रह ही जाती है इस तरह की जल्दबाजी में ....
अब मैंने तो अभी तक शायद ही कोई मरीज़ देखा हो (मुझे इस समय याद नहीं आ रहा) जिस के मुंह की कैंसर की सर्जरी हुई हो और बाद में उसे रेडियोथैरेपी न दी गई हो....और इस तरह के निर्णय बड़े सरकारी अस्पतालों एवं संस्थानों में एक पूरी टीम किया करती है ....और जब एक ही डाक्टर किसी निजी अस्पताल में इस तरह का इलाज कर रहा है तो जाने अनजाने कुछ न कुछ तो छूटने की गुंजाईश तो रह ही जाती होगी...इस के कारणों की तरफ़ अगर आप देखेंगे तो आप भी समझ सकते हैं...
मरीज़ को यह पता नहीं होता अकसर किसी भी कैंसर का इलाज बस उस की सर्जरी ही नहीं होता ....उस के बाद उस की बॉयोप्सी रिपोर्ट आने के बाद आगे की रणनीति तय करना ..सिकाई के बारे में, रेगुलर फॉलो-अप के बारे में ...उस के जो अंग विकृत हुए हैं ...उन की पुर्नवास के बारे में ..इसके अलावा भी बहुत सी बातें होती हैं जिन्हें एक अनुभवी टीम के सदस्य देखते रहते हैं...
अच्छा, एक बात और भी है अब इस पर लोग चर्चा करने लगे हैं कि निजी कारपोरेट अस्पताल मरीज़ों और उन के तीमारदारों को इस के बारे में अंधकार में ही रखते हैं कि कौन से कैंसर का इलाज कितना कारगर है...और उस तरह के इलाज के बाद मरीज़ की लाइफ-एक्सपेंटेंसी कितनी है ..अब लोग यह आवाज़ उठाने लगे हैं कि अगर सारे इलाज के बाद भी मरीज़ ने कुछ सप्ताह ही जीना था, तो इस के बारे में परिवारीजनों को कुछ तो संकेत दिया होता ....लाखों रूपयों खर्च होने के बाद भी आदमी तो बच नहीं सका....दर दर के कर्ज़दार अलग से हो गये...यह सब समस्याएं तो हैं ही ...और कुछ तो बदलने-वदलने वाला है नहीं, यह पक्की गारंटी हैं....लॉबी बड़ी शक्तिशाली है, अगर जनमानस ही सचेत हो जाए तो कुछ बात बन सकती है ...
और बात तो बाद की बात है ...सब से पहले चलिए आज से किसी भी रूप में तंबाकू के इस्तेमाल से तौबा कर लीजिए....आप बहुत सी बीमारियों से बचे रहेंगें...
बस, आज सुबह ये सब बातें शेयर करने की इच्छा हुई ....आज लगभग ६ महीने के बाद अपनी स्टडी-रूम में बैठ कर यह पोस्ट लिख रहा हूं ...वरना दूसरी जगहों पर बैठ कर लिखना मुश्किल ही होता है....आज बिल्कुल भी उमस न होने की वजह से महीनों बाद यहां बैठ कर इसलिए लिख पा रहा हूं क्योंकि स्टडी-रूम में एसी नहीं है..किराए का आशियाना है, तोड़-फोड़ मना है, बस, इसीलिए..लेेकिन टेबल पर बैठ कर लिखना बहुत सुविधाजनक है ...
मैं जो संदेश इस पोस्ट के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहता था, आशा है एक फीका सा आइडिया तो हो ही गया होगा.... Wish you all pink of health ...Stay healthy...stay blessed always...take care!
जनाब राहत इंदौरी साहब की इस बात से मैं पूरी इत्तेफाक रखता हूं...आप का इस के बारे में क्या ख्याल है ...
मेरे रेडवे पे इस समय जो गीत बज रहा है उस में दिलों का हाल चाल कुछ इस तरह से लिया-दिया जा रहा है .....आप भी सुनिए...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...