सुबह उठा..सिर थोड़ा भारी ...ए सी की वजह से अकसर होता है, क्या करें, मजबूरी है, वरना नींद ही नहीं आती..भयंकर उमस की वजह से ...लेकिन ए सी में सोने से मुझे बहुत नफरत है...वैसे तो मैं सिर पर परना (यहां इसे अंगोछा कहते हैं) बांध कर सोता हूं ..लेकिन जब भी यह भूल जाता हूं तो सुबह तो बस सिर की वॉट लग जाती है..
लेकिन उस का एक बढ़िया समाधान है ...तुरंत अगर टहलने निकल जाऊं तो चंद मिनटों में तबीयत टनाटन हो जाती है ..जैसे आज हुआ..
आज भी ऐसा ही हुआ...पुराने साथियों को वाट्सएप पर सुबह सुबह दुआ-सलाम हुई तो बताया कि सिर भारी है ...एक साथी ने कहा तो फिर जा, जा के पसीना निकाल के आ...
तुरंत निकला...आज इच्छा हुई लखनऊ के बॉटेनिकल गार्डन के तरफ़ जाने की ...घर से लगभग १० किलोमीटर है...बीच रास्ते में ही मन बदल गया...सोचा क्या करूंगा इतनी दूर जाकर ...स्कूटर पर था...पास ही के एक बाग का रूख कर लिया....राजकीय उद्यान के नाम से जाना जाता है इसे।
रास्ते में एक बहुत सुंदर घर दिख गया...यह पेड़ इस घर की सुंदरता को चार चांद लगा रहा है ...मुझे ऐसे घर बहुत अच्छे लगते हैं...
अंदर जाते ही एक पोस्टर थमा दिया गया...किसी सैलून मैट्रिक-यूनीसेक्स का....मैंने उस बंदे को हंसते हुए कहा कि यार, हम तो हजामत वाले ज़माने से हैं...हमें तो बार बार घर वाले यही याद दिलाया करते थे कि जा, हजामत करवा के आ....और बहुत बार तो हजामत के ह को हम लोग खा जाते थे...और मेरी नानी तो दाढ़ी बनाने को भी जामत बनाना ही कहती थीं... Good old days!
थोड़ा आगे गया तो अपने कुछ कर्मचारी और कुछ मरीज़ दिख गये....देख कर हंसने लगे कि डाक्टर साहब, इतनी दूर से यहां आ गये....एक मरीज़ ने कहा ..हां, ये कभी कभी इधर आते हैं! उन्हें सुबह सुबह अपनी सेहत का ध्यान करते हुए देख कर अच्छा लगा...तब तक मेरी तबीयत भी बिल्कुल ठीक हो चुकी थी...
टहलते हुए बाग में एक विशेष जगह दिखी जिस का गेट बंद था...वहां मूडे पड़े हुए थे...साहिब लोग यहां आराम फरमाते होंगे...
इस बाग के बारे में मैंने पहले भी एक बार एक पोस्ट लिखी थी जिसमें मैंने कटहल के बारे में एक प्रश्न किया था... यहां यह बंदा सुबह सुबह कटहल सेवा करता दिखा....अच्छा लगा...खूब लोग उस से खरीददारी कर रहे थे...इस बाग में कटहल भी लगे हुए हैं....मैं एक पेड़ के पास गया ..वहां दो चार बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे...उस के नीचे, मैंने पूछा कि यार, अगर यह कटहल नीचे गिर जाए तो....उसने मेरा प्रश्न ठीक से समझा नहीं ..कहा, उस में क्या है, आप भी जो चाहें उतार लीजिए, और बोल दीजिए, नीचे गिरा हुआ मिला.....
लेकिन मेरी ऐसा करने की कोई मंशा नहीं थी...
ध्यान दीजिए इस बाग में टहलने के लिए पक्का रास्ता नहीं है...इस तरह के रास्ते पर सुबह टहलने से बहुत मज़ा आता है...
यह पेड़ दिख गया फिर से....मैंने फिर से फोटो खींच ली....अपनी आदत से मजबूर मैं....मुझे पेड़ों की तस्वीरें खींचना बहुत भाता है ....थोड़ा सा हट के देखा तो इस की महानता समझ में आ गई...सब मजबूत जड़ों का ही खेल है...
इस पेड़ की तरफ़ ध्यान गया तो यहां भी जड़ों का ही खेल समझ में आया....
बाग से बाहर िनकलते हुए ध्यान इन की तरफ़ गया तो ऐसा लगा कि ये तंदूर यहां कैसे पड़े हैं...कटहल बेचने वाले के साथ बैठे एक बंदे ने बताया कि ये गमले हैं ...एक साल से आए हुए हैं...इन में बड़े पेड़ लगेंगे... चलिए, बहुत अच्छी बात है ...लेकिन तब तक मुझे तंदूर के दिनों की बातें याद आने लगीं...सांझे चुल्हे की बातें...एक बार मैंने इस पर एक लेख भी लिखा था..आज ढूंढूंगा ....
मैंने भी पिछले दस सालों में इस ब्लॉग पर बहुत ही वेलापंती की है ..क्या करूं, और कुछ करना आता ही नहीं! जब सांझे चूल्हे की बात होती है तो मुझे सुरों की देवी रेशमा का वह गीत याद आ जाता है ...कितनी गहराई, कितनी कशिश थी, कितनी जादुई आवाज़ थी इस देवी की.... सुनिएगा इस देवी को कभी ... I am a big fan of Reshma ji..
लौटते हुए एक सुनसान सड़क पर तेज़ी तेज़ी से एक पंडित जी जा रहे थे....मुझे लगा कि जल्दी में हैं...मैंने पूछा कि चलेंगे?...कहने लगे कि पास ही की एक कालोनी के मंदिर में मैं पंडित हूं....सात बजे ड्यूटी शुरू हो जाती है ..मैंने कहा कि उसमें क्या है, आप को मंदिर तक छोड़ के आते हैं....पंडित जी बहुत खुश हुए...
उधर से मैंने गन्ना संस्थान के रास्ते से वापिस आने का मन बना लिया..दोस्तो, आप को यहा यह बताना चाहूंगा कि यहां लखनऊ में एक राष्ट्रीय स्तर का गन्ना रिसर्च सेंटर है ....कितना विशाल कैंपस होगा?...शायद देश की किसी भी बड़ी यूनिवर्सिटी के बराबर का तो होगा....कम से कम!..मुझे कभी कभी इधर से गुज़रना अच्छा लगता है ...हर तरफ़ गन्ने के पेड़....यहां पर गन्ने का रस भी बिकता है ...और गुड़ भी .... एक दम खालिस....गन्ने का रस तो मैंने एक बार पिया था...गुड़ का पता नहीं, कभी मौका नहीं मिला ....देखते हैं फिर कभी!
घर लौट कर जब मैं यह पोस्ट लिखने लगा तो मेरे कमरे में सूर्य देवता ने अपना आशीर्वाद इस तरह से भेजा...मैंने एक बार तो पर्दा आगे किया ..फिर से पीछे हटा दिया....यह सोच कर कि These are Nature's blessings....we should relish them and be thankful to this omnipotent and omniscient God! ....और हम लोग बरसात आने पर भीगने की बजाए सब से पहले छातों का जुगाड़ करते हैं और सुबह की गुलाबी धूप से बचने के िलए परदे तान देते हैं....हम भी कितने नाशुक्रे हैं ना.... है कि नहीं!
आज कल हम लोगों की स्कूल कालेज के दिनों के ग्रुप पर खूब बातें होती हैं...हम वहां १२-१५ साले के ही बन जाते हैं...कभी कभी कोई किसी को "जी" लिखता है तो बड़ा कष्ट होता है...कोई न कोई मास्टरों के हाथों नियमित कुटापे के दिनों की याद दिला ही देता है ...बाकायदा मास्टर के नाम के साथ....ऐसे में उसी दौर के फिल्मी गीत याद कर के हम लोग अपने मूड को दुरूस्त कर लेते हैं ....आप भी सुनेंगे ?
लेकिन उस का एक बढ़िया समाधान है ...तुरंत अगर टहलने निकल जाऊं तो चंद मिनटों में तबीयत टनाटन हो जाती है ..जैसे आज हुआ..
आज भी ऐसा ही हुआ...पुराने साथियों को वाट्सएप पर सुबह सुबह दुआ-सलाम हुई तो बताया कि सिर भारी है ...एक साथी ने कहा तो फिर जा, जा के पसीना निकाल के आ...
तुरंत निकला...आज इच्छा हुई लखनऊ के बॉटेनिकल गार्डन के तरफ़ जाने की ...घर से लगभग १० किलोमीटर है...बीच रास्ते में ही मन बदल गया...सोचा क्या करूंगा इतनी दूर जाकर ...स्कूटर पर था...पास ही के एक बाग का रूख कर लिया....राजकीय उद्यान के नाम से जाना जाता है इसे।
रास्ते में एक बहुत सुंदर घर दिख गया...यह पेड़ इस घर की सुंदरता को चार चांद लगा रहा है ...मुझे ऐसे घर बहुत अच्छे लगते हैं...
अंदर जाते ही एक पोस्टर थमा दिया गया...किसी सैलून मैट्रिक-यूनीसेक्स का....मैंने उस बंदे को हंसते हुए कहा कि यार, हम तो हजामत वाले ज़माने से हैं...हमें तो बार बार घर वाले यही याद दिलाया करते थे कि जा, हजामत करवा के आ....और बहुत बार तो हजामत के ह को हम लोग खा जाते थे...और मेरी नानी तो दाढ़ी बनाने को भी जामत बनाना ही कहती थीं... Good old days!
थोड़ा आगे गया तो अपने कुछ कर्मचारी और कुछ मरीज़ दिख गये....देख कर हंसने लगे कि डाक्टर साहब, इतनी दूर से यहां आ गये....एक मरीज़ ने कहा ..हां, ये कभी कभी इधर आते हैं! उन्हें सुबह सुबह अपनी सेहत का ध्यान करते हुए देख कर अच्छा लगा...तब तक मेरी तबीयत भी बिल्कुल ठीक हो चुकी थी...
टहलते हुए बाग में एक विशेष जगह दिखी जिस का गेट बंद था...वहां मूडे पड़े हुए थे...साहिब लोग यहां आराम फरमाते होंगे...
इस बाग के बारे में मैंने पहले भी एक बार एक पोस्ट लिखी थी जिसमें मैंने कटहल के बारे में एक प्रश्न किया था... यहां यह बंदा सुबह सुबह कटहल सेवा करता दिखा....अच्छा लगा...खूब लोग उस से खरीददारी कर रहे थे...इस बाग में कटहल भी लगे हुए हैं....मैं एक पेड़ के पास गया ..वहां दो चार बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे...उस के नीचे, मैंने पूछा कि यार, अगर यह कटहल नीचे गिर जाए तो....उसने मेरा प्रश्न ठीक से समझा नहीं ..कहा, उस में क्या है, आप भी जो चाहें उतार लीजिए, और बोल दीजिए, नीचे गिरा हुआ मिला.....
कटहल पेड़ों पर उगता है ...मैंने कुछ दिन पहले ही यह जाना |
लेकिन मेरी ऐसा करने की कोई मंशा नहीं थी...
ध्यान दीजिए इस बाग में टहलने के लिए पक्का रास्ता नहीं है...इस तरह के रास्ते पर सुबह टहलने से बहुत मज़ा आता है...
यह पेड़ दिख गया फिर से....मैंने फिर से फोटो खींच ली....अपनी आदत से मजबूर मैं....मुझे पेड़ों की तस्वीरें खींचना बहुत भाता है ....थोड़ा सा हट के देखा तो इस की महानता समझ में आ गई...सब मजबूत जड़ों का ही खेल है...
इस पेड़ की तरफ़ ध्यान गया तो यहां भी जड़ों का ही खेल समझ में आया....
बाग से बाहर िनकलते हुए ध्यान इन की तरफ़ गया तो ऐसा लगा कि ये तंदूर यहां कैसे पड़े हैं...कटहल बेचने वाले के साथ बैठे एक बंदे ने बताया कि ये गमले हैं ...एक साल से आए हुए हैं...इन में बड़े पेड़ लगेंगे... चलिए, बहुत अच्छी बात है ...लेकिन तब तक मुझे तंदूर के दिनों की बातें याद आने लगीं...सांझे चुल्हे की बातें...एक बार मैंने इस पर एक लेख भी लिखा था..आज ढूंढूंगा ....
मैंने भी पिछले दस सालों में इस ब्लॉग पर बहुत ही वेलापंती की है ..क्या करूं, और कुछ करना आता ही नहीं! जब सांझे चूल्हे की बात होती है तो मुझे सुरों की देवी रेशमा का वह गीत याद आ जाता है ...कितनी गहराई, कितनी कशिश थी, कितनी जादुई आवाज़ थी इस देवी की.... सुनिएगा इस देवी को कभी ... I am a big fan of Reshma ji..
लौटते हुए एक सुनसान सड़क पर तेज़ी तेज़ी से एक पंडित जी जा रहे थे....मुझे लगा कि जल्दी में हैं...मैंने पूछा कि चलेंगे?...कहने लगे कि पास ही की एक कालोनी के मंदिर में मैं पंडित हूं....सात बजे ड्यूटी शुरू हो जाती है ..मैंने कहा कि उसमें क्या है, आप को मंदिर तक छोड़ के आते हैं....पंडित जी बहुत खुश हुए...
उधर से मैंने गन्ना संस्थान के रास्ते से वापिस आने का मन बना लिया..दोस्तो, आप को यहा यह बताना चाहूंगा कि यहां लखनऊ में एक राष्ट्रीय स्तर का गन्ना रिसर्च सेंटर है ....कितना विशाल कैंपस होगा?...शायद देश की किसी भी बड़ी यूनिवर्सिटी के बराबर का तो होगा....कम से कम!..मुझे कभी कभी इधर से गुज़रना अच्छा लगता है ...हर तरफ़ गन्ने के पेड़....यहां पर गन्ने का रस भी बिकता है ...और गुड़ भी .... एक दम खालिस....गन्ने का रस तो मैंने एक बार पिया था...गुड़ का पता नहीं, कभी मौका नहीं मिला ....देखते हैं फिर कभी!
घर लौट कर जब मैं यह पोस्ट लिखने लगा तो मेरे कमरे में सूर्य देवता ने अपना आशीर्वाद इस तरह से भेजा...मैंने एक बार तो पर्दा आगे किया ..फिर से पीछे हटा दिया....यह सोच कर कि These are Nature's blessings....we should relish them and be thankful to this omnipotent and omniscient God! ....और हम लोग बरसात आने पर भीगने की बजाए सब से पहले छातों का जुगाड़ करते हैं और सुबह की गुलाबी धूप से बचने के िलए परदे तान देते हैं....हम भी कितने नाशुक्रे हैं ना.... है कि नहीं!
And I started feeling on the top of the world again! |
You r so creative
जवाब देंहटाएंYou r so creative
जवाब देंहटाएंThanks for your encouraging words...feeling humbled!
हटाएंThanks for your encouraging words...feeling humbled!
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आशाओं के रथ पर दो वर्ष की यात्रा - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सेंगर साहिब
हटाएंधन्यवाद सेंगर साहिब
हटाएंU r really good.
जवाब देंहटाएंthanks for your kind words!
हटाएंUr wlcme sir:)
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