न्यायपालिका की तरफ़ ध्यान बहुत बार जाता है ... अखबार पढ़ते हुए भी, खबरें सुनते देखते हुए..आज भी जब यह खबर दिखी कि सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच ने यह पूछा कि धूम्रपान से कैंसर होता है इस का क्या प्रूफ है?...उत्सुकता हुई खबर पूरी पढ़ने की .. जजों ने आगे कहा कि कुछ लोग धूम्रपान नहीं करते और उन्हें कैंसर अपनी चपेट में ले लेता है..और कुछ सिगरेट-बीड़ी पीने वाले जीवन पर्यंत हट्टे-कट्टे रहते हैं।
इस बात को इधर ही छोड़ते हैं...इसे इतना तूल देना ठीक है...सच्चाई हम सब जानते हैं।
न्यायपालिका की याद पिछले दिनों भी याद आई जब कन्हैया को कुछ वकीलों ने कोर्ट में ही दबोच लिया... बड़ा अजीब लगा..अजीब ही नहीं, इस बात की जितनी निंदा की जाए कम है।
और याद है जिस दिन कन्हैया को घसीटने-धकेलने की वारदात हुई उसी दिन या अगले दिन ही एक बेवकूफ का प्राणी किसी चैनल पर बार बार यही कह रहा था कि जब कन्हैया को वकीलों ने पकड़ा हुआ था, तो वह बड़ा विवश, डरा-सहमा लग रहा था, उस बंदे की बेवकूफी पर मैं आहत हुआ...भई, अगर तेरे को इतने लोग पकड़ लेंगे तो पट्ठे तेरा भी यही हाल होगा!
उन्हीं दिनों काजल कुमार जी के कार्टून भी कुछ इसी अंदाज़ में दिखे ...
कोर्ट-कचहरी की महानता का ध्यान अकसर रोज़ उस समय भी आता है जब अखबार के हर पन्ने से नेताओं के फोटो गायब दिखते हैं...सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले से सब कुछ कितना सहज हो गया है...केवल प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति और एक दो अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की ही फोटो सरकारी विज्ञापनों में छप पाएगी। बहुत ही बढ़िया निर्णय है ...
बस करता हूं ..बोर हो जाएंगे आप या हो चुके होंगे... याद मुझे न्यायपालिका की तब भी आती है जब बीच बाज़ार किसी रिक्शेवाले या आटोवाले को पिटता देखता हूं...कारण कुछ भी हो, जब कानून है तो कानून को अपना काम करने दो..
कल भी बाद दोपहर मैं विधानसभा के पास ही गुज़र रहा था ... अचानक देखा कि कुछ लोग इक्ट्ठे हए हैं..और एक २०-२२ वर्ष के युवक पर अपना गुस्सा निकाल चुके थे... यह जनाक्रोश है, भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, जिस का मन चाहे आ कर दो हाथ जमा जाए...यह निंदनीय है ...ज़ुर्म कुछ भी हो, पुलिस है, कानून है ...और वैसे भी इतना पीट कर कौन सा उस बंदे को आप छोड़ने वाले हैं, उसे फिर भी पुिलस के हवाले तो कर ही देते हैं....है कि नहीं, तो फिर बिना वजह इतनी भड़ास क्यों....
क्या लिखूं, थोड़ी जल्दी है, आज गूगल ने यहां ताज होटल में एक सेमीनार में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है, वहां के लिए निकल रहा हूं...आप से शेयर करूंगा वहां जो भी सीखने को मिला... लेकिन यह जो अकेले को देख कर भीड़ का उस पर टूट पड़ना मुझे बहुत दुःखी करता है.....और जब तक कानून अपना काम नहीं कर लेता, मैं हर बार अपने आप को तराजू के हल्के पलड़े वाले की तरफ़ ही अपने आप को खड़ा पाता हूं.....पराजित, उपेक्षित, शोषित, बिना आवाज़ वाले किसी भी बंदे के साथ...इस का परिणाम कुछ भी होता हो, परवाह नहीं!
वैसे भी जब भी मैं इस तरह की बेकाबू भीड़ देखता हूं, तब तब मुझे गुजरात के दंगों के एक शिकार की याद आ जाती है..अभी भी मैंने gujarat riots photo victim लिख कर गूगल किया तो यह तस्वीर तुरंत सामने आ गई... इस तस्वीर ने बहुत तहलका मचाया था। आप इस का नाम जानना चाहते हैं?..क्यों भई क्यों?.... इक इंसान है, क्या इतना काफी नहीं है!
एक बात अपने आप को भी निरंतर याद दिलाता रहता हूं एक गाना सुन के और आप सब को याद दिला लेना चाहता हूं कि कभी भी किसी भीड़ का हिस्सा बनने को मन करे तो इस बात का ध्यान ज़रूर कर लीजिएगा...आप भी मेरी तरह चुपचाप वहां से निकल लेंगे... इसे सुनिएगा ज़रूर....नसीहत पर भी ध्यान दीजिएगा।
इस बात को इधर ही छोड़ते हैं...इसे इतना तूल देना ठीक है...सच्चाई हम सब जानते हैं।
न्यायपालिका की याद पिछले दिनों भी याद आई जब कन्हैया को कुछ वकीलों ने कोर्ट में ही दबोच लिया... बड़ा अजीब लगा..अजीब ही नहीं, इस बात की जितनी निंदा की जाए कम है।
और याद है जिस दिन कन्हैया को घसीटने-धकेलने की वारदात हुई उसी दिन या अगले दिन ही एक बेवकूफ का प्राणी किसी चैनल पर बार बार यही कह रहा था कि जब कन्हैया को वकीलों ने पकड़ा हुआ था, तो वह बड़ा विवश, डरा-सहमा लग रहा था, उस बंदे की बेवकूफी पर मैं आहत हुआ...भई, अगर तेरे को इतने लोग पकड़ लेंगे तो पट्ठे तेरा भी यही हाल होगा!
उन्हीं दिनों काजल कुमार जी के कार्टून भी कुछ इसी अंदाज़ में दिखे ...
कोर्ट-कचहरी की महानता का ध्यान अकसर रोज़ उस समय भी आता है जब अखबार के हर पन्ने से नेताओं के फोटो गायब दिखते हैं...सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले से सब कुछ कितना सहज हो गया है...केवल प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति और एक दो अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की ही फोटो सरकारी विज्ञापनों में छप पाएगी। बहुत ही बढ़िया निर्णय है ...
बस करता हूं ..बोर हो जाएंगे आप या हो चुके होंगे... याद मुझे न्यायपालिका की तब भी आती है जब बीच बाज़ार किसी रिक्शेवाले या आटोवाले को पिटता देखता हूं...कारण कुछ भी हो, जब कानून है तो कानून को अपना काम करने दो..
कल भी बाद दोपहर मैं विधानसभा के पास ही गुज़र रहा था ... अचानक देखा कि कुछ लोग इक्ट्ठे हए हैं..और एक २०-२२ वर्ष के युवक पर अपना गुस्सा निकाल चुके थे... यह जनाक्रोश है, भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, जिस का मन चाहे आ कर दो हाथ जमा जाए...यह निंदनीय है ...ज़ुर्म कुछ भी हो, पुलिस है, कानून है ...और वैसे भी इतना पीट कर कौन सा उस बंदे को आप छोड़ने वाले हैं, उसे फिर भी पुिलस के हवाले तो कर ही देते हैं....है कि नहीं, तो फिर बिना वजह इतनी भड़ास क्यों....
क्या लिखूं, थोड़ी जल्दी है, आज गूगल ने यहां ताज होटल में एक सेमीनार में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है, वहां के लिए निकल रहा हूं...आप से शेयर करूंगा वहां जो भी सीखने को मिला... लेकिन यह जो अकेले को देख कर भीड़ का उस पर टूट पड़ना मुझे बहुत दुःखी करता है.....और जब तक कानून अपना काम नहीं कर लेता, मैं हर बार अपने आप को तराजू के हल्के पलड़े वाले की तरफ़ ही अपने आप को खड़ा पाता हूं.....पराजित, उपेक्षित, शोषित, बिना आवाज़ वाले किसी भी बंदे के साथ...इस का परिणाम कुछ भी होता हो, परवाह नहीं!
गुज़रात दंगों की एक तस्वीर |
एक बात अपने आप को भी निरंतर याद दिलाता रहता हूं एक गाना सुन के और आप सब को याद दिला लेना चाहता हूं कि कभी भी किसी भीड़ का हिस्सा बनने को मन करे तो इस बात का ध्यान ज़रूर कर लीजिएगा...आप भी मेरी तरह चुपचाप वहां से निकल लेंगे... इसे सुनिएगा ज़रूर....नसीहत पर भी ध्यान दीजिएगा।
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