रविवार, 19 जुलाई 2015

गुम होता बचपन...

जब तारक मेहता का उल्टा चश्मा देख रहे होते हैं तो दिन में उस के कईं कईं ऐपीसोड आ जाते हैं ...कुछ तो बरसों पहले के होते हैं जिन में अब जवान हो चुके बच्चे बिल्कुल छोटे छोटे दिखाई पड़ते हैं....बहुत बार ऐसे विचार भी आते हैं कि इन लोगों ने तो अपना बचपन, अपनी मासूमियत ऐसे फिल्मी वातावरण में रह कर खो ही दिया होगा.

टीवी में जब कोई लिटिल मास्टर का प्रोग्राम आता है तो भी यही महसूस होता है कि इतने छोटे छोटे कंधों पर इतना बड़ा बोझ और वह भी किस कीमत पर!

आज से बीस बरस पहले जावेद खान के बूगी-वूगी कंपीटीशन में भी यही कुछ होता था ...छोटे छोटे बच्चे इतनी बड़ी बड़ी प्रतिस्पर्धा करते दिखते थे...इतने दबाव के अंदर कि लगता था कि मां-बाप भी कैसे यह सब बच्चों से इस उम्र में करवाने से सहमत हो जाते होंगे।

फिल्मी बाल कलाकारों के बारे में भी हम लोग सुनते हैं कि किस तरह से वे लोग भी अपना बचपन जी ही नहीं पाते...मुकाबला कड़ा तो होता ही है, पहले इस फिल्मी जगत में घुसने के लिए और फिर टिके रहने के लिए...कल रात बजरंगी भाईजान के निर्देशक कबीर खान का न्यूज़-२४ पर एक इंटरव्यू सुन रहा था कि उस फिल्म में जिस बच्ची ने जो भूमिका करी है, उस किरदार को सिलेक्ट करने के लिए...उन्होंने कम से कम १००० बच्चियों का ऑडीशन किया...विभिन्न शहरों में, अफगानिस्तान तक जा कर बच्चों के ऑडीशन किये गए ...उस के बाद इस बच्ची का सिलेक्शन किया गया।

ये तो हो गये वे लोग जो अपनी मरजी से ...खुशी खुशी यह काम करते हैं...लेिकन एक श्रेणी ऐसी भी है जिन्हें अपने पेट के लिए यह काम करना पड़ता है..उड़ीसा के बुधिया को तो आपने अभी तक याद ही रखा होगा जो ४-५ साल की उम्र में किस तरह से ६० किलोमीटर की दौड़ लगा लिया करता था...फिर मीडिया में खूब हो हल्ला हुआ ...तो जाकर कहीं यह सब प्रैक्टिस बंद हुई....डाक्टर ने कहना शुरू किया कि इस तरह के अभ्यास से उस की हड्डियां पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाएंगी...उन को नुकसान पहुंचेगा।

लेकिन कुछ अभागे लोग ऐसे भी होते हैं जिन तक कोई नहीं पहुंच पाता.......छोटे छोटे बाजीगर बच्चे...दो दिन पहले मैंने इस बच्ची को देखा...मैंने इस का मुश्किल सा करतब रिकार्ड भी किया ....मुझे नहीं पता मुझे यह करना चाहिए था या नहीं....लेिकन इस से ज़ाहिर होता है कि कितने जोखिम भरे काम को यह बच्ची अंजाम दे रही है। सोच रहा हूं कि यह क्या बाल श्रम विरोधी कानून के अधीन नहीं आता..आता भी हो तो क्या फर्क पड़ता है!! वैसे भी ....



सोचने की बात है कि भविष्य कितना अंधकारमय है...मजबूरी है ......ज़्यादा से ज़्यादा आने वाले दिनों में बड़ी होने पर किसी हेमा मालिनी की डुप्लीकेट बन जायेगी किसी फिल्म में........वाहवाही हेमा की और जोखिम इस तरह के करतब करने वालों का .... और अगर कहीं इस तरह के करतब करते हुए कोई डुप्लीकेट आहट हो भी गया तो सब यही कहेंगे कि कसूर उसी का है..वह अपना काम ठीक से नहीं कर पा रही थी...कितना आसान है दोषारोपण कर के मुक्त हो जाना।

हाय ये मजबूरियां...



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