कल जनेश्वर मिश्र पार्क जाने का मन हुआ....ये भव्य पार्क गोमती नगर एक्सटेंशन में है...लगभग ४०० एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है...पार्क के आसपास की ही यह तस्वीर है...इन बिल्डिंगों को देख कर अकसर लगता है कि यह लखनऊ नहीं दिल्ली बंबई जैसा कोई महानगर ही है।
जनेश्वर मिश्र पार्क मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव का एक ड्रीम प्रोजैक्ट है...इस में तेज़ी से काम चल रहा है...क्या आप को पता है कि मुलायम सिंह यादव स्कूल कालेज के दिनों में कुश्ती के चेंपियन रहे हैं....अखिलेश भी फिटनेस पर बहुत ध्यान देते हैं...अपनी भी और शहर की भी ...शहर में साईकिल ट्रेक तैयार हो रहे हैं। वैसे मेरा राजनीति में घुसने का कोई विचार नहीं है, बस जो सच्चाई है ..जो अच्छा लगा उसे ही ब्यां कर रहा हूं....और कुछ नहीं।
यह पार्क इतना बड़ा है कि हम लोग लगभग डेढ़ घंटे तक वहां घूमते रहे ...लेिकन तब भी पता नहीं चला कि यह कहां से कहां तक फैला हुआ है..एक बेहतरीन अनुभव रहा....इतना बढ़िया पार्क मैंने पहले कभी नहीं देखा....और इतना भव्य और शानदार पार्क....हम लोग पार्क से दिखने वाले घरों की तरफ़ हसरत भरी निगाहों से इसलिए देख रहे थे कि ये लोग बड़े मुकद्दरवाले हैं ...जब चाहा पार्क में घूमने चले आए!
दोस्तो, पहली बार कल देखा कि इस पार्क में जगह जगह फिटनेस के यंत्र भी लगे हुए हैं....और अच्छी क्वालिटी के ...काफी लोग उस पर कसरत करते दिखे...इस तस्वीर में तो नहीं, लेकिन दूसरी तस्वीरों में आप उन्हें भी देख सकते हैं।
विश्राम करने के लिए भी इस तरह की जगहें बनी हुई हैं....एक दम साफ़सुथरी और चमकती हुईं।
यह बच्चों की मस्ती करने के लिए कोना बना है....
हज़ारों पेड़ लगे हुए हैं....उन की सही देखभाल हो रही है...अभी छोटे हैं....
जैसे ही हम बाग में पहुंचे हमें यह लाल रंग की बजरी जैसी दिखने वाली सड़क देख कर अच्छा लगा...ऐसा लगा जैसे रेड-कॉरपेट वेलकम किया जा रहा हो....दूर से तो मुझे लगा कि यह डेकोरेशन के लिए है...लेकिन जब उस पर चल कर देखा तो मज़ा आ गया...जूता उस के अंदर धंस रहा था ....बाद में माली से पता चला कि यह दौड़ने के लिए जॉगिंग ट्रैक तैयार हो रहा है।
इस तरह की लाल चटाई बिछाने का काम देखने में बड़ा जटिल और महंगा लगा....भारी यंत्रों की मदद से यह तैयार होता दिखा...
मैं पहली बार इस तरह के ट्रेक पर खड़े होने का आनंद ले रहा था।
वहां पर जितने भी पेड़ दिखे...ऐसे लगा कि इन्हें लगाने वालों ने इन के सांस लेने का भी ध्यान रखा हो...आप देखिए कि किस तरह से हर पेड़ के आसपास केचमेंट एरिया छोड़ा हुआ है। इस तरह की प्लॉनिंग करने वाले लोग साधुवाद के पात्र हैं।
यह तस्वीर भी इस पार्क के पास की ही है....खूब बहुमंज़िला इमारते गोमती नगर एक्सटेंशन में तैयार हो रही हैं।
यह पार्क हमारे घर से लगभग १५ किलोमीटर की दूरी पर है...चारबाग रेलवे स्टेशन से १० किलोमीटर के करीब होगा। मेरे विचार में आप अगली बार जब भी लखनऊ आइए तो इस बाग में ज़रूर हो कर जाइए। जिस रास्ते से हम लोग पार्क में जा रहे थे ...रास्ते में इस पुल से गोमती नदी का नज़ारा देखने को मिला....अभी तो लगभग सूखी ही चल रही है।
बेटे को इस तरह की पेड-पत्तों की तस्वीरें खींचने का बहुत शौक है...मैंने तो उसे कहा है कि फोटोग्राफी कर लो...
यह तस्वीर भी पार्क के अंदर की है ....इतना फैला हुआ है यह पार्क कि एक माली कहने लगा कि पैदल आप इसे पूरा नहीं घूम सकते...मैंने देखा कुछ लोग अंदर साईकिल चला रहे थे...इस पार्क के अंदर साईक्लिंग ट्रैक भी बन रहा है, गोल्फ कोर्स भी....
थक गए यार....थोड़ा सुस्ता लें! |
मैंने भी सोचा एक फिटनेस मशीन पर चढ़ कर देख लिया जाए |
अच्छा लगा था इसे भी इस्तेमाल करना... |
शेल्फी टाइम... |
यह सब कुछ इस पार्क के अंदर ही है... |
यह तस्वीर मुझे हमेशा इस बात की याद दिलाएगी कि जोश में होश भी कायम रखना ज़रूरी है...पार्क के एक लॉन में इस तरह के आशियाने चींटियों ने बना रखे थे...बहुत से...हम अनुमान लगा सकते हैं कि इन्हें खड़ा करने में इन्होंने कितनी मेहनत की होगी....अचानक मेरे बेटे ने मुझे बताया कि मेरी ठोकर से एक ऐसा आशियाना ढह गया...मुझे बहुत बुरा लगा...हम लोग जोश में नीचे देखते ही कहां हैं!...संसार में भी तो यही कुछ हो रहा है!!
लगभग एक घंटा चलने के बाद हम लोग इस पार्क के इस गेट पर पहुंचे जहां इस के खुलने के समय के बारे में सूचना लगी हुई थी। इसे मैं आप के लिए यहां लगा रहा हूं कि आप भी नोट कर लें...अगली बार जब लखनऊ आएं तो कुछ समय इस पार्क के लिए ज़रूर रखिएगा।
एक जगह पर तरह तरह के बोर्ड पड़े हुए थे...आप इस से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह पार्क किस स्तर का होगा!
पार्क में सब के आराम करने के लिए जगह थी....गीली मिट्टी में ये प्राणी भी थोड़ा आराम फरमा रहे थे...बेटे ने कहा भी इन की फोटो मत खींचो, ये डिस्टर्ब हो जाएंगे...उठ जाएंगे...
जगह जगह पर रखे बेहतरीन आकर्षक डस्टबिन |
सुबह सुबह ही पार्क के कुछ एरिया में काम ज़ोरों-शोरों से चल रहा था...
ये तो वास्तव में लाजवाब है
जवाब देंहटाएंअच्छा
जवाब देंहटाएंदो बार कमेंट लिखा परन्तु publish नहीं हुआ।फिर से कोशिश करता हूं।लखनऊ तो पार्को का शहर है।हमारे बैकं का ट्रेनिंग कालेज इन्दिरा नगर सीतापुर रोड पर है ।वहां साल में एक ट्रेनिंग हो ही जाती थी ।उसी के बगल में एक अच्छा पार्क था।मै प्रशिक्षण के दौरान रोज सुवह पार्क में जाता था।वाकिंग स्ट्रिप पर वाक करना बहुत मजेदार था।पार्क में अन्य गतिविधियां चलती रहती थी।मेरे मन में बिचार आता था कि काश मेरा घर भी यहीं पास में होता।मेरे शहर इलाहाबाद में तो पार्कों का अभाव सा है परन्तु वाक के लिये रास्ता तो निकल ही आता है जहां चाह वहां
जवाब देंहटाएंराह।
बहुत अच्छा लगा जानकर। अब तो हम भी देखना चाहेंगे।
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लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!
पार्क के नयभिराम फोटो डाले हैं ।
जवाब देंहटाएंअच्छा। मैं तो लखनऊ को कांक्रीट का जंगल भर समझता था...
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