अभी एक महीना ही तो हुआ है ...जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया और राजनीतिकों की तस्वीरें सरकारी विज्ञापनों पर दिखाने पर रोक लगा दी...अब सरकारी विज्ञापनों में नहीं दिखा करेंगे राजनीतिक..
अब तो इन विज्ञापनों में अकसर प्रधानमंत्री मोदी की सुंदर सुंदर नये नये कपड़ों में तस्वीरें दिखती हैं अकसर...ठीक है, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन हो रहा है।
ये पत्रकार लोगों की भी निगाहें बड़ी पैनी होती हैं....कल रात मैं किसी चेनल पर देख रहा था कि दिल्ली के एक मेट्रो स्टेशन के बाहर यूपी के मुख्यमंत्री की तस्वीर यूपी सरकार के किसी विज्ञापन पर चस्पा थी...बस, पत्रकार क्लास ले रहे थे कि दिल्ली क्षेत्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तो विज्ञापनों से अपनी सारी तस्वीरें हटा ली हैं, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश की तस्वीर.....ऐसे और वैसे ...and all that!
कल दोपहर मैं टीवी पर ऐसे ही चैनल बदल बदल कर अपने मतलब का कुछ ढूंढ रहा था..अचानक एक जगह पर बिल्कुल घर घर की कहानी जैसा कुछ स्टफ सा दिखा.....यकीन मानिए, मुझे लगा कि यह कोई नया ड्रामा शुरू होने वाला होगा उस चैनल पर ..उस की झलक दिखा रहे होंगे...लेिकन कुछ समय बाद पता चला कि यह तो दिल्ली सरकार का विज्ञापन है..
आज भी दोपहर में वही विज्ञापन फिर दिख गया...बड़ा अनयुजुएल सा विज्ञापन है...emotional cords को कहानीनुमा अंदाज़ में टच करने वाला...जर्नलिस्टिक भाषा में हम इसे Slice of life! का नाम देते हैं..
मुद्दा यहां यह नहीं है कि विज्ञापन कितना बढ़िया था या नहीं था, बात केवल इतनी सी है कि इस तरह के विज्ञापनों को भी इन चैनलों पर चलाने में भी तो सरकारी खजाने से पैसा जाता ही होगा....इस विज्ञापन को देख कर यही लगता है जैसे यह अरविंद का ही विज्ञापन है... एक गृहिणी का यह कहना ...हे भगवान, हमारे अरविंद को सलामत रखना... हास्यास्पद सा ही लगा मुझे तो कम से कम।
लखनऊ में भी रेडियो सुनते सुनते अचानक विज्ञापन बजने लगते हैं... जिस में कईं बार उद्घोषिका कहती हैं...धन्यवाद है मुख्यमंत्री जी। अखिलेश जी ने यह किया, वह किया.....सरकारी विज्ञापनों में उन की तारीफ़ें.....बहुत अच्छा है, अखिलेश अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इन में इस्तेमाल होने वाले भाषा बिल्कुल भी जर्नलिस्टिक नहीं होती, न ही हो सकती है, क्योंकि ये विज्ञापन होते हैं....पत्रकार कभी भी किसी की साइड नहीं लेता।
हमारे अरविंद सलामत रहें वाला विज्ञापन तो मैंने अभी यू-ट्यूब पर देखा ....अभी अभी किसी ने अपलोड किया था..आप भी देखिए और अपनी राय से अवगत करवाईएगा मुझे...संवाद तो तभी ठीक रहता है जब मैं कोई बात करूं तो उस पर आप की टिप्पणी भी तो मुझ तक पहुंचे......ऐसे ही मैं अपने ही राग कितने समय तक अलापता रहूंगा...
और बच्चे को भी पता चल जाता है कि कौन कितना खरा है ...एक पत्रकार है ...विनोद शर्मा....अकसर टीवी पर होने वाली चर्चाओं में दिखते हैं......दो दिन पहले ललित मोदी पर हो रहे रवीश के प्रोग्राम में एक चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेस और बीजेपी वाले दोनों चाहते हैं कि ललित मोदी वहीं रहे जहां वह अभी है क्योंकि ........। वह मुझे याद नहीं कि क्या कहा...शायद यही कहा कि इन दोनों ने अपने अपने पाले को बचाना है!!
विनोद शर्मा की बात में हमेशा दम रहता है..
सरकारी विज्ञापनों में राजनीतिकों की तस्वीरों पर तो रोक लग गई...अब देखते हैं अगली जनहित याचिका क्या इस बात पर भी कभी होगी कि सरकारों को इतने महंगे महंगे विज्ञापन देने से परहेज करना चाहिए...after all it is tax payer's money!
इतनी भारी भरकम बातें जब मैं करने लगता हूं न तो मैं पाठकों की क्या कहूं, मैं खुद ही उकता जाता हूं.....इसलिए जाते जाते सुबह रेडियो पर सुना एक गीत ...शायद मैंने बहुत बरसों बाद सुना था...आप के लिए बजा रहा हूं...सुनिए..सुबह तो रेडियो पर सुना था, अभी अभी वीडियो देखा है....आप भी देखिए.... कैसे करूं प्रेम की मैं बात, ना बाबा ना बाबा....पिछवाड़े बुड्ढा खांसता....(फिल्म अनिता).....lovely music!!
अब तो इन विज्ञापनों में अकसर प्रधानमंत्री मोदी की सुंदर सुंदर नये नये कपड़ों में तस्वीरें दिखती हैं अकसर...ठीक है, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन हो रहा है।
ये पत्रकार लोगों की भी निगाहें बड़ी पैनी होती हैं....कल रात मैं किसी चेनल पर देख रहा था कि दिल्ली के एक मेट्रो स्टेशन के बाहर यूपी के मुख्यमंत्री की तस्वीर यूपी सरकार के किसी विज्ञापन पर चस्पा थी...बस, पत्रकार क्लास ले रहे थे कि दिल्ली क्षेत्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तो विज्ञापनों से अपनी सारी तस्वीरें हटा ली हैं, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश की तस्वीर.....ऐसे और वैसे ...and all that!
कल दोपहर मैं टीवी पर ऐसे ही चैनल बदल बदल कर अपने मतलब का कुछ ढूंढ रहा था..अचानक एक जगह पर बिल्कुल घर घर की कहानी जैसा कुछ स्टफ सा दिखा.....यकीन मानिए, मुझे लगा कि यह कोई नया ड्रामा शुरू होने वाला होगा उस चैनल पर ..उस की झलक दिखा रहे होंगे...लेिकन कुछ समय बाद पता चला कि यह तो दिल्ली सरकार का विज्ञापन है..
आज भी दोपहर में वही विज्ञापन फिर दिख गया...बड़ा अनयुजुएल सा विज्ञापन है...emotional cords को कहानीनुमा अंदाज़ में टच करने वाला...जर्नलिस्टिक भाषा में हम इसे Slice of life! का नाम देते हैं..
मुद्दा यहां यह नहीं है कि विज्ञापन कितना बढ़िया था या नहीं था, बात केवल इतनी सी है कि इस तरह के विज्ञापनों को भी इन चैनलों पर चलाने में भी तो सरकारी खजाने से पैसा जाता ही होगा....इस विज्ञापन को देख कर यही लगता है जैसे यह अरविंद का ही विज्ञापन है... एक गृहिणी का यह कहना ...हे भगवान, हमारे अरविंद को सलामत रखना... हास्यास्पद सा ही लगा मुझे तो कम से कम।
लखनऊ में भी रेडियो सुनते सुनते अचानक विज्ञापन बजने लगते हैं... जिस में कईं बार उद्घोषिका कहती हैं...धन्यवाद है मुख्यमंत्री जी। अखिलेश जी ने यह किया, वह किया.....सरकारी विज्ञापनों में उन की तारीफ़ें.....बहुत अच्छा है, अखिलेश अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इन में इस्तेमाल होने वाले भाषा बिल्कुल भी जर्नलिस्टिक नहीं होती, न ही हो सकती है, क्योंकि ये विज्ञापन होते हैं....पत्रकार कभी भी किसी की साइड नहीं लेता।
हमारे अरविंद सलामत रहें वाला विज्ञापन तो मैंने अभी यू-ट्यूब पर देखा ....अभी अभी किसी ने अपलोड किया था..आप भी देखिए और अपनी राय से अवगत करवाईएगा मुझे...संवाद तो तभी ठीक रहता है जब मैं कोई बात करूं तो उस पर आप की टिप्पणी भी तो मुझ तक पहुंचे......ऐसे ही मैं अपने ही राग कितने समय तक अलापता रहूंगा...
और बच्चे को भी पता चल जाता है कि कौन कितना खरा है ...एक पत्रकार है ...विनोद शर्मा....अकसर टीवी पर होने वाली चर्चाओं में दिखते हैं......दो दिन पहले ललित मोदी पर हो रहे रवीश के प्रोग्राम में एक चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेस और बीजेपी वाले दोनों चाहते हैं कि ललित मोदी वहीं रहे जहां वह अभी है क्योंकि ........। वह मुझे याद नहीं कि क्या कहा...शायद यही कहा कि इन दोनों ने अपने अपने पाले को बचाना है!!
विनोद शर्मा की बात में हमेशा दम रहता है..
सरकारी विज्ञापनों में राजनीतिकों की तस्वीरों पर तो रोक लग गई...अब देखते हैं अगली जनहित याचिका क्या इस बात पर भी कभी होगी कि सरकारों को इतने महंगे महंगे विज्ञापन देने से परहेज करना चाहिए...after all it is tax payer's money!
इतनी भारी भरकम बातें जब मैं करने लगता हूं न तो मैं पाठकों की क्या कहूं, मैं खुद ही उकता जाता हूं.....इसलिए जाते जाते सुबह रेडियो पर सुना एक गीत ...शायद मैंने बहुत बरसों बाद सुना था...आप के लिए बजा रहा हूं...सुनिए..सुबह तो रेडियो पर सुना था, अभी अभी वीडियो देखा है....आप भी देखिए.... कैसे करूं प्रेम की मैं बात, ना बाबा ना बाबा....पिछवाड़े बुड्ढा खांसता....(फिल्म अनिता).....lovely music!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...