शनिवार, 16 मई 2015

हम तो राह बैठे हैं लेकर चिंगारी ...

आज मैं साईकिल पर घूमने निकला तो पास ही के गांव की तरफ़ निकल गया....देखते देखते ही मौसम बहुत सुहावना हो गया....तेज़ हवाएं चलने लगीं...बादल छाने लगे....मैंने देखा कि बहुत से रूई जैसी दिखने वाली चीज़ें हवा में लहराते हुए तेज़ी से उड़ रही थीं...

समझते देर नहीं लगी कि ये पेड़ों के बीज हैं जिन्होंने अपने आप को हवा के रूख के हवाले कर दिया है...जहां चाहे हवाएं ले जाएं...वही पर बस जाएंगे।

मुझे मुनव्वर राणा साहब की वे पंक्तियां याद आ गईं....

"हम फ़कीरों से जो चाहे वो दुआ ले जाए,
खुदा जाने कब हम को हवा ले जाए, 
हम तो राह बैठे हैं लेकर चिंगारी, 
जिस का दिल चाहे चिरागों को जला ले जाए।।"

और एक हम हैं कि हर बात की परफैक्ट प्लॉनिंग करते हैं...हर छोटी से छोटी बात की ..और अगर प्लॉनिंग के अनुसार सब कुछ हो जाए तो खुश और अगर न हो तो बस, लगते हैं कोसने अपने हालात को। काश!हम लोग मां प्रकृति से ही कुछ सीख पाएं...हर पल सारी सृष्टि हमें कुछ सिखा रही है। बस हम समर्पण नहीं कर पाते!

मुनव्वर राणा साहब की बात चली तो उन की सेहत के बारे में दो चार दिन पहले जान कर चिंता की ...उन की सेहत के लिए दुआ की....मुनव्वर राणा साहब को चार पांच बार देखने-सुनने का मौका मिला है...सारा हाल जैसे मंत्रमुग्ध कर देते हैं अपनी शायरी से....ईश्वर इन को उम्रदराज करे। अगले दिन वैसे अखबार से पता चल गया था कि उन के मुंह का आप्रेशन बिल्कुल ठीक ठाक हो गया है.....मेरी यह भी दुआ है कि वह पहले की तरह शेरों की तरह अपनी शायरी को अपने चाहने वालों तक पहुंचाते रहें। आमीन!

वैसे एक और खबर जब मुझे दो दिन पहले अखबार में दिखी तो यही लगा कि यार यह भी कोई लड़ने झगड़ने की बात हुई...आज निर्णय किया है कि तंबाकू-गुटखे के ऊपर एक किताब भी छपवा ही ली जाए...आज यह एक ख्याली पुलाव जैसा कुछ पका है, देखते हैं कब इसे अमली जामा पहनाया जाएगा।

बिन ताड़ी चले न गाड़ी (Courtesy: Google Images)
लेकिन मैं आज क्यों सुबह सुबह लड़ने झगड़ने की बातें करने लगा....कुछ नई बात करते हैं। हां, तो जब मैं साईकिल पर घूमते हुए लौट रहा था तो देखा कि थोड़ी थोड़ी दूर पर लोग इस तरह का शर्बत जैसा कुछ बेच रहे हैं.... पूछने पर पता चला कि यह ताड़ी है...बंदे ने बताया कि हमारे १०-११ पेड़ हैं, हमारे काम करने वाले बर्तन पेड़ से बांध देते हैं ...बूंद बूंद करके ताड़ी उस में गिरती रहती है...एक डिब्बा बीस रूपये में और मिट्टी का पूरा बर्तन अस्सी रूपये में बेचते हैं। पूरा बर्तन पीने पर आप को एक बीयर का नशा हो जाता है, ऐसा उसने बताया। पता चला कि यह दो महीने का ही धंधा है .. आते जाते लोग खूब पीते हैं...मैंने भी देखा कि लोग अपने वाहन रोक कर इस ताड़ी का आनंद ले रहे थे।

उस ताड़ी वाले ने मुझे दूर से ही एक ताड़ी का पेड़ दिखाया ...बताने लगा कि यह नारियल जैसा दिखता है..लेिकन यह ताड़ी का पेड़ है।

बस, आज के लिए इतना ही ... ड्यूटी पर निकलना है, यही अपनी बात को विराम देता हूं।

हां, अभी रेडियो पर एक बहुत सुंदर गीत बज रहा था ... मैंने पता नहीं कितने सालों बाद सुना था....आज यह गीत मुनव्वर राणा साहब के नाम....ईश्वर उन्हें लंबी उम्र दे ...सेहतमंद रखे...

राही ओ राही....ओ राही, तेरे सर पे दुआओं के साए रहें....तू निराशा में आशा के दीप जलाए..हो हिमालय से ऊंचा तेरा हौसला....

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