जिन स्कूटरों को किक की ज़रूरत नहीं होती...शेल्फ-स्टार्ट वाले स्कूटर ... मेरे विचार में तो ये भी इस सदी की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
शायद आज की युवा पीढ़ी को लगे कि इस में कौन सी बड़ी बात है, लेिकन यह सच में कितनी बड़ी बात है यह मेरी उम्र के लोग ही बता पाएंगे।
सच में जब याद आता है कि किस तरह से १९८० के दशक में मैं अपनी येज्दी मोटरसाईकिल को किक पे किक मार कर स्टार्ट किया करता था। बहुत अच्छी हालत में थी...लेिकन सुबह सुबह खास कर सर्दी के दिनों में तो किक मार मार के नानी याद आ जाया करती थी।
मैकेनिक तो कह दिया करता था कि सुबह सुबह चोक लगा लिया करो, लेकिन चोक भी कुछ न करती थी उन ठंड के दिनों में।
कहावत है ना ..कंगाली में आटा गीला....बिल्कुल उसी तरह एक तो जेब में यही सो पचास रूपये हुआ करते थे और ऊपर से इसी खौफ़ के साये में ही वह सड़क पर दौड़ा करती थी कि क्या पता चलते चलते कब हड़ताल कर दे और इसे मैकेनिक को दिखाने की नौबत आ जाए.....फिर बीस तीस रूपये का फटका......जी हां, होता भी कुछ यूं था....हमारे घर और कालेज के रास्ते में एक पुल आता था.....जब कभी पुल चढ़ते हुए थोडी सी अलग तरह की आवाज़ निकालने लगती तो दिल ऐसे डूबने लगता जैसे किसी मां का बच्चा बीमार पड़ गया हो।
पुल के ऊपर पहुंचते ही...और फिर कालेज पहुंच कर बांछे खिल जातीं.....फिर लगता, चलो अभी तो पहुंच गए ..वापिसी के समय देखेंगे.
मैकेनिक कभी कुछ कहता कि इस का तेल निकल रहा है, इस का प्लग ऐसा है, शार्ट हो गया है, टैंकी में कचरा है...जिसे सुन कर मेरा भी बहुत कुछ शार्ट होने लगता....सब कुछ गिना देता लेकिन दो ही मिनट में चला देता.
फिर १९९० में एलएमएल ली ......बहुत अच्छा लगा इस की सवारी करना......बस, सुबह सुबह सर्दी के मौसम में थोड़ी दिक्कत हुआ करती थी, समय समय पर सर्विस करवा लिया करते थे....कोई खास दिक्कत हुई नहीं कभी इस के साथ।
कुछ ही समय बाद मिसिज़ ने वह स्कूटर खरीदा जिस में शेल्फ-स्टार्ट था.....हां, हां, काईनेटिक...आप किक भी इस्तेमाल कर सकते थे....लेिकन शेल्फ-स्टार्ट का फीचर मन को इतना भा गया कि बस, हर समय उस ही निकालने की इच्छा हो....उस को हम ने बहुत यूज़ किया... अब तक तो मोटरसाईकिल भी शेल्फ-स्टार्ट आ चुकी थीं.....देख कर बहुत ताजुब्ब होता था, कईं बार चलाया भी।
लगभग तभी हमने एक एक्टिवा खरीद ली......सब लोग उस की प्रशंसा किए करते थे......अभी उसे खरीदा नहीं था, एक दिन एक समझदार सा बिजनेस मैन कहीं मिल गया.....कोई बात छिड़ी तो उसने कहा ... अब आप देखें यह एक्टिवा स्कूटर बिक रही है इतनी .....लेकिन इस में है क्या, सारे का सारा प्लास्टिक लगा हुआ है।
उस की बात सुन कर यही लगा कि यह तो बेवकूफी वाली बात है.......यार, तुमने कबाड़ थोड़ा ही न बेचना है......इतनी बड़ी कंपनी है, प्लास्टिक या लोहा लगाने का निर्णय इन के हाथ में थोड़ा होता होगा।
जितनी बड़ी संख्या में यह एक्टिवा नाम की स्कूटर बाज़ार में दौड़ती है मुझे कईं बार लगता है कि इस की कंपनी इस सफलता की हकदार है। कोई परेशानी नहीं होती इसे चलाने में ......युवा से लेकर बुज़ुर्ग भी इसे सहजता से चला रहे होते हैं, महिलाएं भी आसानी से इसे कंट्रोल कर लेती हैं।
बस अगर समय समय पर इस की सर्विस करवा ली जाए.. तो इस को स्टार्ट करने में दिक्कत आती नहीं....बस, सुबह पहली बार इसे स्टार्ट करते समय किक का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। लेिकन मैं इसे जब भी चलाता हूं मैंने शायद इसे स्टार्ट करने के लिए किक का इस्तेमाल ही नहीं किया था।
यह पोस्ट मैंने यह बताने के लिए लिखी कि इस तरह के स्कूटर में मेरे जैसे लोग भूल ही जाते हैं कि किक भी है.......पिछले महीने की बात है, बाज़ार में मैंने कहीं खड़ी की, फिर से स्टार्ट करने लगा तो स्टार्ट ही न हो, ऐसे में मैंने बड़ी कोशिश की, चोक भी लगाई.........हार कर मैं इसे एक मैकेनिक के पास ले गया, उसे तकलीफ़ बताई। उसने कहा ...बाऊ जी, किक से भी नहीं हो रही क्या?......मैं उस की तरफ़ ऐसे देखने लगा जैसे चोरी की स्कूटर हो, उसने एक ही किक लगाई और स्कूटर स्टार्ट............सच में मुझे यह अहसास ही नहीं था कि इस स्कूटर में किक भी होती है, क्योंकि मैंने कभी भी इस किक को इस्तेमाल ही नहीं किया था।
तो फिर दोस्तो हुई कि नहीं, शेल्फ-स्टार्ट स्कूटरों वाली इक्कीसवीं सदी की एक बड़ी उपलब्धि।
नोट.......पोस्ट का कंटैंट ऐसा है कि लग सकता है कि जैसे यह पोस्ट स्पांसर्ड हो, नहीं, बिल्कुल नहीं.....मैं कभी भी प्रायोजित लेखन में विश्वास नहीं रखता, सारे ब्लॉग में एक भी पोस्ट प्रायोजित नहीं है, और शायद न ही कभी होगी। लेकिन कभी कभी किसी चीज़ की कार्यप्रणाली से आप इतने प्रभावित हो जाते हैं कि आप उस की दिल खोल कर तारीफ़ किए बिना रह नहीं सकते।
शायद आज की युवा पीढ़ी को लगे कि इस में कौन सी बड़ी बात है, लेिकन यह सच में कितनी बड़ी बात है यह मेरी उम्र के लोग ही बता पाएंगे।
सच में जब याद आता है कि किस तरह से १९८० के दशक में मैं अपनी येज्दी मोटरसाईकिल को किक पे किक मार कर स्टार्ट किया करता था। बहुत अच्छी हालत में थी...लेिकन सुबह सुबह खास कर सर्दी के दिनों में तो किक मार मार के नानी याद आ जाया करती थी।
मैकेनिक तो कह दिया करता था कि सुबह सुबह चोक लगा लिया करो, लेकिन चोक भी कुछ न करती थी उन ठंड के दिनों में।
कहावत है ना ..कंगाली में आटा गीला....बिल्कुल उसी तरह एक तो जेब में यही सो पचास रूपये हुआ करते थे और ऊपर से इसी खौफ़ के साये में ही वह सड़क पर दौड़ा करती थी कि क्या पता चलते चलते कब हड़ताल कर दे और इसे मैकेनिक को दिखाने की नौबत आ जाए.....फिर बीस तीस रूपये का फटका......जी हां, होता भी कुछ यूं था....हमारे घर और कालेज के रास्ते में एक पुल आता था.....जब कभी पुल चढ़ते हुए थोडी सी अलग तरह की आवाज़ निकालने लगती तो दिल ऐसे डूबने लगता जैसे किसी मां का बच्चा बीमार पड़ गया हो।
पुल के ऊपर पहुंचते ही...और फिर कालेज पहुंच कर बांछे खिल जातीं.....फिर लगता, चलो अभी तो पहुंच गए ..वापिसी के समय देखेंगे.
मैकेनिक कभी कुछ कहता कि इस का तेल निकल रहा है, इस का प्लग ऐसा है, शार्ट हो गया है, टैंकी में कचरा है...जिसे सुन कर मेरा भी बहुत कुछ शार्ट होने लगता....सब कुछ गिना देता लेकिन दो ही मिनट में चला देता.
फिर १९९० में एलएमएल ली ......बहुत अच्छा लगा इस की सवारी करना......बस, सुबह सुबह सर्दी के मौसम में थोड़ी दिक्कत हुआ करती थी, समय समय पर सर्विस करवा लिया करते थे....कोई खास दिक्कत हुई नहीं कभी इस के साथ।
कुछ ही समय बाद मिसिज़ ने वह स्कूटर खरीदा जिस में शेल्फ-स्टार्ट था.....हां, हां, काईनेटिक...आप किक भी इस्तेमाल कर सकते थे....लेिकन शेल्फ-स्टार्ट का फीचर मन को इतना भा गया कि बस, हर समय उस ही निकालने की इच्छा हो....उस को हम ने बहुत यूज़ किया... अब तक तो मोटरसाईकिल भी शेल्फ-स्टार्ट आ चुकी थीं.....देख कर बहुत ताजुब्ब होता था, कईं बार चलाया भी।
लगभग तभी हमने एक एक्टिवा खरीद ली......सब लोग उस की प्रशंसा किए करते थे......अभी उसे खरीदा नहीं था, एक दिन एक समझदार सा बिजनेस मैन कहीं मिल गया.....कोई बात छिड़ी तो उसने कहा ... अब आप देखें यह एक्टिवा स्कूटर बिक रही है इतनी .....लेकिन इस में है क्या, सारे का सारा प्लास्टिक लगा हुआ है।
उस की बात सुन कर यही लगा कि यह तो बेवकूफी वाली बात है.......यार, तुमने कबाड़ थोड़ा ही न बेचना है......इतनी बड़ी कंपनी है, प्लास्टिक या लोहा लगाने का निर्णय इन के हाथ में थोड़ा होता होगा।
जितनी बड़ी संख्या में यह एक्टिवा नाम की स्कूटर बाज़ार में दौड़ती है मुझे कईं बार लगता है कि इस की कंपनी इस सफलता की हकदार है। कोई परेशानी नहीं होती इसे चलाने में ......युवा से लेकर बुज़ुर्ग भी इसे सहजता से चला रहे होते हैं, महिलाएं भी आसानी से इसे कंट्रोल कर लेती हैं।
बस अगर समय समय पर इस की सर्विस करवा ली जाए.. तो इस को स्टार्ट करने में दिक्कत आती नहीं....बस, सुबह पहली बार इसे स्टार्ट करते समय किक का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। लेिकन मैं इसे जब भी चलाता हूं मैंने शायद इसे स्टार्ट करने के लिए किक का इस्तेमाल ही नहीं किया था।
यह पोस्ट मैंने यह बताने के लिए लिखी कि इस तरह के स्कूटर में मेरे जैसे लोग भूल ही जाते हैं कि किक भी है.......पिछले महीने की बात है, बाज़ार में मैंने कहीं खड़ी की, फिर से स्टार्ट करने लगा तो स्टार्ट ही न हो, ऐसे में मैंने बड़ी कोशिश की, चोक भी लगाई.........हार कर मैं इसे एक मैकेनिक के पास ले गया, उसे तकलीफ़ बताई। उसने कहा ...बाऊ जी, किक से भी नहीं हो रही क्या?......मैं उस की तरफ़ ऐसे देखने लगा जैसे चोरी की स्कूटर हो, उसने एक ही किक लगाई और स्कूटर स्टार्ट............सच में मुझे यह अहसास ही नहीं था कि इस स्कूटर में किक भी होती है, क्योंकि मैंने कभी भी इस किक को इस्तेमाल ही नहीं किया था।
तो फिर दोस्तो हुई कि नहीं, शेल्फ-स्टार्ट स्कूटरों वाली इक्कीसवीं सदी की एक बड़ी उपलब्धि।
नोट.......पोस्ट का कंटैंट ऐसा है कि लग सकता है कि जैसे यह पोस्ट स्पांसर्ड हो, नहीं, बिल्कुल नहीं.....मैं कभी भी प्रायोजित लेखन में विश्वास नहीं रखता, सारे ब्लॉग में एक भी पोस्ट प्रायोजित नहीं है, और शायद न ही कभी होगी। लेकिन कभी कभी किसी चीज़ की कार्यप्रणाली से आप इतने प्रभावित हो जाते हैं कि आप उस की दिल खोल कर तारीफ़ किए बिना रह नहीं सकते।
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