कल मैं लखनऊ के अलीगंज के एक शो रूम में जाने लगा तो देखा कि उस से सटे एक एटीएम के बाहर उस का सिक्योरिटी गार्ड ऊपर के होठों के बीच कुछ रख रहा था...लेकिन उसे रखने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी..मेरे से ऐसे में रहा नहीं जाता, मैं अपनी डाक्टरी झाड़े बिना रह नहीं सकता....जब उसने मुंह के अंदर उसे टिका लिया तो मैं उस के पास गया.....और उसे बड़े आराम से कहा कि यार, क्यों यह सब करते हो, बहुत नुकसान करती हैं ये चीज़ें। उसे बिल्कुल ब्रीफ सी अपनी पहचान भी बताई.....ताकि उसे पता रहे कि मेरे पास इस तरह की बक-बक करने का लाईसेंस है।
उस ने बताया कि क्या करें, यह सब छूटने का नाम नहीं लेता। मैंने फिर कहा कि छोटी छोटी उम्र में अब हम लोग बहुत से मुंह के कैंसर के रोगी देखने लगे हैं।
फिर उसने बताया कि दरअसल पहले वह मसाला (पानमसाला) चबाया करता था ...उस से उस का मुंह जकड़ा गया....अब उस का मुंह पूरा नहीं खुलता, उस ने झट से अपने मुंह में दो अंगुली डाल कर मेरे को दिखाना चाहा...लेकिन वे भी अंदर नहीं जा रही थीं। वह कहता है कि इसी चक्कर में मैंने पानमसाला तो छोड़ दिया है, अब मैं इसे रख लेता हूं।
मैंने पूछा कि यह क्या है, गुटखा?.....उसने बताया कि यह तंबाकू है।
मैंने फिर उसे समझाया ...हमेशा की तरह उम्मीद लगी कि मान जायेगा। मैंने यह भी कहा कि यह जो मुंह नहीं खुल रहा, इस का भी इलाज करवाओ... बताने लगा ... करवा रहा है। उस की बातचीत से पता चला कि दंत-रोग विशेषज्ञ या किसी डैंटल कालेज से यह इलाज करवाने की बजाए किसी ऐसे ही नीम हकीम के चक्कर में पड़ा हुआ है या कभी कभी कैमिस्ट के पास जा खड़ा होता है, जो उस से चालीस-पचास रूपये ऐंठ लेता है।
मैंने बताया कि अच्छे से इस का इलाज करवाओ......लेकिन बाद में मैंने सोचा कि क्या मेरे कहने से ही वह इलाज करवा पाएगा। गैर-संगठित काम करने वाले लोगों को मिलता ही क्या है?... चार पांच हज़ार रूपये महीना...इतने में अपने परिवार की रोटी चलाए या अपनी दवा। बहुत दुःख होता है जब कभी यह सब देखने को मिलता है।
हमारे अस्पताल में सब सरकारी मरीज़ आते हैं...सरकारी कर्मचारी और उन के आश्रित... इस तरह की तकलीफ़ के लिए हज़ार-डेढ़ हज़ार रूपये महीने का खर्च आता है ...और खाने पीने का विशेष ध्यान... और ये दवाईयां हम लोग इन्हें बाज़ार से खरीद कर देते हैं... और वे भी तीन चार महीने बाद दवाईयां खाने से और लगाने से परेशान हो जाते हैं...मुंह में टीके भी लगाए जाते हैं। लेिकन शर्त पहली यही होती है कि पानमसाला-गुटखा को हमेशा के लिए लात मारनी होगी।
एक बार इस तरह की तकलीफ लग जाती है तो सब के लिए इस का इलाज करवाना भी संभव नहीं होता, मुझे ई-मेल से भी इतने युवा इस के बारे में पूछते हैं ...लेकिन कोई क्विक-फिक्स तरीका भी तो नहीं है इसे दुरूस्त करने का।
कभी कभी बीड़ी...
मैं जब किसी मरीज़ के मुंह में झांक कर यह पूछता हूं कि क्या आप गुटखा-पानमसाला खाते हैं तो वे तुरंत उत्तर देते हैं ...ना जी, ना......बस बीड़ी की लत है। वे बीड़ी को बुरा नहीं समझते ...और पानमसाला, गुटखा वाले उसे बुरा नहीं समझते।
एक भ्रांति बहुत बड़ी यह भी है कि चबाने वाला तंबाकू-गुटखा इतना खराब नहीं है.....लेिकन ध्यान रहे कि यह मुंह के कैंसर का सब से अहम् कारण तो है ही ...और इस से जो निकोटीन और अन्य हानिकारक तत्व रिलीज़ होते हैं वे भी हमारे शरीर के अंदर जा कर बिल्कुल वैसे ही कहर बरपाते हैं जिस तरह से बीडी-सिगरेट-हुक्का-चिलम।
तंबाकू की लत से जुड़े कुछ मिथक (इस लेख को पढ़ने के िलए इस पर क्लिक करिए)
रोज रोज तंबाकू के बारे में लिख लिख कर ऊबने लगा हूं लेकिन क्या करें, लोग कहां हमारी सुनते हैं.....सुनें तो हम भी विषय बदल लें। अभी तो मेरे विचार में यही सब से बड़ा मुद्दा है ...कि कैसे कोई तंबाकू के सभी रूपों से बचा रह सके। मुंह के कैंसर से ही नहीं, शरीर के लगभग हर अंग को तबाह कर के यह रोज़ाना हज़ारों-लाखों ज़िंदगीयां लील रहा है।
जिस दिन किसी परिवार को पता चले कि उस का कोई सदस्य तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन कर रहा है ...या तो उस परिवार को उसी दिन उस बंदे को उस से छुटकारा दिलाने का उपाय कर लेना चाहिए, नहीं तो सारे परिवारजनों को उस दिन अपनी सिर पीट लेना चाहिए.......मातम मना लेना चाहिए।
एक दो महीने पहले एक प्राईव्हेट सफाई कर्मी मिला.....मुंह में एडवांस कैंसर बना हुआ...वही गुटखा-पानमसाला की आदत थी....अब छोड़ दिया है..एक तो मुझे हर ऐसे मरीज़ से यह सुन कर बहुत ही ज़्यादा बुरा लगता है कि अब कुछ िदनों से छोड़ दिया है, भई अब छोड़ने का क्या फायदा....बात बात पे कह रहा था कि बहुत डर लगता है, अभी उस की छोटी सी उम्र थी...अभी कुंवारी बेटियां हैं...मैंने इलाज का कहा तो कहने लगा कि सरकारी अस्पताल में पता किया था ..दस हज़ार का खर्च आता है...और वैसे भी मैं जिस दिन इलाज के लिए जाऊंगा ... उस दिन छुट्टी हो जायेगी..प्राईव्हेट नौकरी है ...दूसरा उसे यह भी डर था कि एक बार अगर इस को छेड़ दिया तो यह बहुत तेज़ी से फैल जायेगा...ऐसा मैंने सुना है... और एक बात और भी वह जाते जाते कह गया कि अब अगर मैंने इस का इलाज करवा लिया ...उन्होंने मुंह के साथ कांट-छांट कर दी तो मुझे लोग कहां नौकरी पर रखेंगे.......मेरे से घृणा करने लगेंगे.....दरअसल यह एक साल पहले भी इलाज के लिए गया था, लेकिन जब उन्होंने आप्रेशन करने की कही तो फिर वापिस गया नहीं।
आप भी देख रहे हैं कि इस तरह की तकलीफ़ों का इलाज कितना मुश्किल है, महंगा है और ......और भी बहुत कुछ ...क्या क्या लिखें........बस, इतना तो करना ही होगा कि जहां भी किसी बीड़ी-सिगरेट-गटुखा-तंबाकू का सेवन होता देखें उसे थोड़ा समझाने की कोशिश तो करिए.......देखिए अगर हो सके...
उस ने बताया कि क्या करें, यह सब छूटने का नाम नहीं लेता। मैंने फिर कहा कि छोटी छोटी उम्र में अब हम लोग बहुत से मुंह के कैंसर के रोगी देखने लगे हैं।
फिर उसने बताया कि दरअसल पहले वह मसाला (पानमसाला) चबाया करता था ...उस से उस का मुंह जकड़ा गया....अब उस का मुंह पूरा नहीं खुलता, उस ने झट से अपने मुंह में दो अंगुली डाल कर मेरे को दिखाना चाहा...लेकिन वे भी अंदर नहीं जा रही थीं। वह कहता है कि इसी चक्कर में मैंने पानमसाला तो छोड़ दिया है, अब मैं इसे रख लेता हूं।
मैंने पूछा कि यह क्या है, गुटखा?.....उसने बताया कि यह तंबाकू है।
मैंने फिर उसे समझाया ...हमेशा की तरह उम्मीद लगी कि मान जायेगा। मैंने यह भी कहा कि यह जो मुंह नहीं खुल रहा, इस का भी इलाज करवाओ... बताने लगा ... करवा रहा है। उस की बातचीत से पता चला कि दंत-रोग विशेषज्ञ या किसी डैंटल कालेज से यह इलाज करवाने की बजाए किसी ऐसे ही नीम हकीम के चक्कर में पड़ा हुआ है या कभी कभी कैमिस्ट के पास जा खड़ा होता है, जो उस से चालीस-पचास रूपये ऐंठ लेता है।
मैंने बताया कि अच्छे से इस का इलाज करवाओ......लेकिन बाद में मैंने सोचा कि क्या मेरे कहने से ही वह इलाज करवा पाएगा। गैर-संगठित काम करने वाले लोगों को मिलता ही क्या है?... चार पांच हज़ार रूपये महीना...इतने में अपने परिवार की रोटी चलाए या अपनी दवा। बहुत दुःख होता है जब कभी यह सब देखने को मिलता है।
हमारे अस्पताल में सब सरकारी मरीज़ आते हैं...सरकारी कर्मचारी और उन के आश्रित... इस तरह की तकलीफ़ के लिए हज़ार-डेढ़ हज़ार रूपये महीने का खर्च आता है ...और खाने पीने का विशेष ध्यान... और ये दवाईयां हम लोग इन्हें बाज़ार से खरीद कर देते हैं... और वे भी तीन चार महीने बाद दवाईयां खाने से और लगाने से परेशान हो जाते हैं...मुंह में टीके भी लगाए जाते हैं। लेिकन शर्त पहली यही होती है कि पानमसाला-गुटखा को हमेशा के लिए लात मारनी होगी।
एक बार इस तरह की तकलीफ लग जाती है तो सब के लिए इस का इलाज करवाना भी संभव नहीं होता, मुझे ई-मेल से भी इतने युवा इस के बारे में पूछते हैं ...लेकिन कोई क्विक-फिक्स तरीका भी तो नहीं है इसे दुरूस्त करने का।
कभी कभी बीड़ी...
मैं जब किसी मरीज़ के मुंह में झांक कर यह पूछता हूं कि क्या आप गुटखा-पानमसाला खाते हैं तो वे तुरंत उत्तर देते हैं ...ना जी, ना......बस बीड़ी की लत है। वे बीड़ी को बुरा नहीं समझते ...और पानमसाला, गुटखा वाले उसे बुरा नहीं समझते।
एक भ्रांति बहुत बड़ी यह भी है कि चबाने वाला तंबाकू-गुटखा इतना खराब नहीं है.....लेिकन ध्यान रहे कि यह मुंह के कैंसर का सब से अहम् कारण तो है ही ...और इस से जो निकोटीन और अन्य हानिकारक तत्व रिलीज़ होते हैं वे भी हमारे शरीर के अंदर जा कर बिल्कुल वैसे ही कहर बरपाते हैं जिस तरह से बीडी-सिगरेट-हुक्का-चिलम।
तंबाकू की लत से जुड़े कुछ मिथक (इस लेख को पढ़ने के िलए इस पर क्लिक करिए)
रोज रोज तंबाकू के बारे में लिख लिख कर ऊबने लगा हूं लेकिन क्या करें, लोग कहां हमारी सुनते हैं.....सुनें तो हम भी विषय बदल लें। अभी तो मेरे विचार में यही सब से बड़ा मुद्दा है ...कि कैसे कोई तंबाकू के सभी रूपों से बचा रह सके। मुंह के कैंसर से ही नहीं, शरीर के लगभग हर अंग को तबाह कर के यह रोज़ाना हज़ारों-लाखों ज़िंदगीयां लील रहा है।
जिस दिन किसी परिवार को पता चले कि उस का कोई सदस्य तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन कर रहा है ...या तो उस परिवार को उसी दिन उस बंदे को उस से छुटकारा दिलाने का उपाय कर लेना चाहिए, नहीं तो सारे परिवारजनों को उस दिन अपनी सिर पीट लेना चाहिए.......मातम मना लेना चाहिए।
एक दो महीने पहले एक प्राईव्हेट सफाई कर्मी मिला.....मुंह में एडवांस कैंसर बना हुआ...वही गुटखा-पानमसाला की आदत थी....अब छोड़ दिया है..एक तो मुझे हर ऐसे मरीज़ से यह सुन कर बहुत ही ज़्यादा बुरा लगता है कि अब कुछ िदनों से छोड़ दिया है, भई अब छोड़ने का क्या फायदा....बात बात पे कह रहा था कि बहुत डर लगता है, अभी उस की छोटी सी उम्र थी...अभी कुंवारी बेटियां हैं...मैंने इलाज का कहा तो कहने लगा कि सरकारी अस्पताल में पता किया था ..दस हज़ार का खर्च आता है...और वैसे भी मैं जिस दिन इलाज के लिए जाऊंगा ... उस दिन छुट्टी हो जायेगी..प्राईव्हेट नौकरी है ...दूसरा उसे यह भी डर था कि एक बार अगर इस को छेड़ दिया तो यह बहुत तेज़ी से फैल जायेगा...ऐसा मैंने सुना है... और एक बात और भी वह जाते जाते कह गया कि अब अगर मैंने इस का इलाज करवा लिया ...उन्होंने मुंह के साथ कांट-छांट कर दी तो मुझे लोग कहां नौकरी पर रखेंगे.......मेरे से घृणा करने लगेंगे.....दरअसल यह एक साल पहले भी इलाज के लिए गया था, लेकिन जब उन्होंने आप्रेशन करने की कही तो फिर वापिस गया नहीं।
आप भी देख रहे हैं कि इस तरह की तकलीफ़ों का इलाज कितना मुश्किल है, महंगा है और ......और भी बहुत कुछ ...क्या क्या लिखें........बस, इतना तो करना ही होगा कि जहां भी किसी बीड़ी-सिगरेट-गटुखा-तंबाकू का सेवन होता देखें उसे थोड़ा समझाने की कोशिश तो करिए.......देखिए अगर हो सके...
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