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गुरुवार, 23 जनवरी 2014

सरकारी मीडिया पर सेहत संबंधी जानकारी ..२

इस श्रृंखला की पहली कड़ी में मैंने कल ऑल इंडिया रेडियो विविध भारती पर प्रसारित होने वाले सेहत संबंधी कार्यक्रमों की समीक्षा की थी। आज ज़रा देखते हैं कि दूरदर्शन जैसे सरकारी चैनल पर सेहत संबंधी जानकारी किस तरह से उपलब्ध करवाई जा रही है।

डी डी न्यूज़ पर टोटल हैल्थ -- 
यह कार्यक्रम डी डी न्यूज़ चैनल पर हर रविवार की सुबह साढ़े आठ बजे से साढ़े नौ बजे तक प्रसारित किया जाता है।
इस कार्यक्रम की जितनी प्रशंसा की जाए कम है .. और मैं यह सिफ़ारिश करता हूं कि इसे हर व्यक्ति को रविवार सुबह देखना चाहिए। आप इस के हर एपीसोड से कुछ न कुछ नया सीखेंगे, इस की गारंटी मैं लेता हूं।

किसी एक मैडीकल अवस्था से संबंधित इस कार्यक्रम में तीन-चार चोटी के विशेषज्ञ आमंत्रित किये जाते हैं। इस प्रोग्राम का सिलसिला पिछले कईं वर्षों से चल रहा है। यह लाइव कार्यक्रम है।

इस कार्यक्रम के फार्मेट की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। सब से पहले इसे प्रस्तुत करने वाले उस मैडीकल अवस्था की संक्षिप्त जानकारी देंगे ..और बहुत बार तो यह ऑडियो-विजुअल भी होती है। विशेषज्ञों का परिचय करवाया जाता है और इस बात के लिए डी डी न्यूज़ चैनल बधाई का पात्र है कि ये विशेषज्ञ बेहद अनुभवी बुलाते हैं...जैसा कि मैं अकसर कहता हूं कि जिन का एक एक शब्द अनुभव की कसौटी पर परखा हुआ होता है। बिल्कुल आम भाषा में बिना किसी तकनीकी मकड़जाल (technical jargon) के अपनी बात देश के सामने रख पाने में भी जैसे इन सब विशेषज्ञों ने  महारत हासिल की हो।

जिस शारीरिक अथवा मानसिक तकलीफ़ के ये विशेषज्ञ होते हैं उस के बारे में प्रोग्राम के प्रिज़ेटर चर्चा शुरू करते हैं.. उन की बातचीत से ही पता चल जाता है कि वे भी विषय के बारे में पूरी रिसर्च कर के आये हैं। बीच बीच में दर्शक फोन के द्वारा अपनी समस्याएं उन विशेषज्ञों को बताते हैं और वे उन का समुचित मार्गदर्शन (जितना वे दूर बैठे कर सकते हैं) करते हैं।

मैं प्रिज़ेंटर्ज़ की रिसर्च के बारे में कह रहा था ...उन दोनों ने उस विषय के बारे में इतनी अच्छी रिसर्च कर रखी होती है जैसे कि आम आदमी की उस विषय से सभी संभावित जिज्ञासाओं को उन्होंने भांप लिया हो। अच्छा लगता है सरकारी चैनल पर इतना उत्कृष्ठ सेहत संबंधी कार्यक्रम देख कर।

एक बात और यह भी है कि आप इस कार्यक्रम में अपनी समस्या के समाधान के लिए इन्हें ई-मेल भी भेज सकते हैं ...यहां तक कि इस लाइव कार्यक्रम के दौरान भी आप इन्हें ई-मेल भेज सकते हैं जिन्हें अकसर ये उस कार्यक्रम के दौरान ही विशेषज्ञों के समक्ष रख कर आप की सहायता करते हैं।

लाइव कार्यक्रम के दौरान फोन करने के लिए लैंडलाइन फोन के साथ साथ इन्होंने एक टोल-फ्री नंबर भी दिया होता है।
मैं अकसर इस कार्यक्रम को देखता हूं --इस बार रविवार २६जनवरी को गणतंत्र दिवस की वजह से प्रसारित नहीं किया जायेगा। इस प्रोग्राम के हर एपीसोड से आप कुछ न कुछ ऐसा सीख सकते हैं जो आप को पहले से न पता हो......और यह बात थ्यूरी जैसी कोई बात नहीं होगी, आप उन सीखी हुई बातों को अपनी सेहत की रक्षा एवं सुधार करने के लिए सहजता से अपने जीवन में उतार भी सकते हैं।

मैंने तो एक बार इस कार्यक्रम में यह ई-मेल भेजी कि आप का कार्यक्रम जनता जनार्दन के लिए तो सर्वश्रेष्ठ हैल्थ कार्यक्रम है ही, यह ऐसा प्रोग्राम है जहां से डाक्टर लोग भी कुछ न कुछ नया सीख सकते हैं क्योंकि इन के विशेषज्ञ बेहद अनुभवी, सुलझे हुए और देश के प्रिमियर चिकित्सा संस्थानों से आए होते हैं जिन का अनुभव बोल रहा होता है और वे अपना २५-३० वर्ष या इस से भी ज़्यादा अनुभव आप के सामने खोल कर रख देते हैं.......और यह सब कुछ जब बिल्कुल किसी कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट (conflict of interest) की बदबू के बिना होता है तो इस की महक ही अलग होती है। मैंने कभी भी इस प्रोग्राम को देखते यह महसूस नहीं हुआ कि इस में बुलाए गये किसी भी विशेषज्ञ का किसी भी तरह का कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट हो, ऐसा ही नहीं सकता कि इस कार्यक्रम के विशेषज्ञों का चयन ही ऐसा होता है, ये सब इस तरह के मुद्दों के बारे में बेहद सचेत जान पड़ते हैं। अच्छी बात है।

कार्यक्रम के दौरान बीच बीच में ऑडियो-विजुएल से जटिल बातों को बिल्कुल साधारण शैली से समझा भी दिया जाता है। और एक बात, चूंकि अकसर ये बड़े बड़े विशेषज्ञ सरकारी संस्थानों से होते हैं ये कईं बार किसी किसी परेशान मरीज़ को अपनी ओपीडी के दिन भी बता देते हैं कि वे फलां फलां दिन आ कर उन से परामर्श कर सकते हैं।

मैं यह पोस्ट बेहद संजीदगी और पूरी जिम्मेदारी से लिख रहा हूं क्योंकि मुझे पता है कि सेहत से संबंधी किसी भी कार्यक्रम की सिफ़ारिश करने का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। मैं इस कार्यक्रम की गुणवत्ता पर शत-प्रतिशत सहमत हूं, इसलिए इसे नियमित देखने की सिफ़ारिश कर रहा हूं।

जिस समय यह कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है ..रविवार सुबह .. उसी समय ये भी सूचना साथ में टीवी स्क्रीन पर कईं बार दिखती है कि यह कार्यक्रम कब पुनः प्रसारित किया जायेगा ...पहले यह उसी दिन --रविवार की शाम को ही डी डी न्यूज़ पर ही प्रसारित किया जाता था ...सुबह वाले लाइव कार्यक्रम की रिकार्डिंग का रिपीट टैलीकास्ट। लेकिन अब शायद इसे अगले दिन अर्थात् सोमवार को दोपहर १२ बजे और शाम ७.३० बजे डी डी इंडिया पर पेश किया जाता है। कृपया आप इस रिपीट प्रसारण के चैनल के बारे में लाइव कार्यक्रम के दौरान जान लें क्योंकि मुझे अच्छे से इस के बारे में याद नहीं है।

और एक बात जो बहुत ठीक लगी इस के बारे में कि ये एक सप्ताह पहले अपने अगले प्रोग्राम के विषय की घोषणा कर देते हैं......चाहे तो आप इन्हें पत्र लिख कर या ई-मेल कर के पहले से ही अपनी बात रख सकते हैं, प्रतिक्रिया दे सकते हैं।  बात रखने तक तो बात ठीक है लेकिन अगर प्रतिक्रिया भेज रहे हैं तो इन से किसी जवाबी मेल या ई-मेल की अपेक्षा न करें क्योंकि यह इन का एक कमज़ोर पक्ष है। शायद इन्हें इस तरफ़ भी सोचने की ज़रूरत है।

एक बहुत उपयोगी बात यह भी है कि वैसे तो नेट पर सेहत संबंधी बातों की भरमार है लेकिन अगर इस तरह का कार्यक्रम आप को इंटरनेट पर किसी भी समय देखने को मिले जिस में आप की ही अपनी भाषा में सीधे-सादे अंदाज़ में विशेषज्ञों ने आपके परिवेश की उदाहरणें लेकर ही अपनी बात रखी हो तो आप को कैसा लगेगा? ...यह भी कोई पूछने की बात है, अच्छा ही लगेगा, बहुत अच्छा लगेगा।

तो फिर एक खुशखबरी यह भी है कि इस कार्यक्रम के कुछ अंश डीडीन्यूज़ के ऑफिशियल यू-ट्यूब चैनल पर भी अपलोड कर दिये जाते हैं...जिन्हें आप उस यू-ट्यूब पर जा कर खंगाल सकते हैं। वैसे एक नमूने के तौर पर मैं इसी प्रोग्राम का एक अंश यहां एम्बैड किये दे रहा हूं......इसे देखियेगा लेकिन अगली २ फरवरी रविवार को सुबह ८.३० बजे डी डी न्यूज़ पर इसे देखना मत भूलियेगा। आप को भी यह कार्यक्रम पसंद आयेगा। वैसे मैं तो डीडीन्यूज़ चैनल को लिखने वाला हूं कि इस कार्यक्रम के सभी एपीसोड (फुल लैंथ) अपने यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड कर दें क्योंकि हर एपीसोड देश के नेट-यूज़र्ज के लिए बेशकीमती है.........such vital information just a click away......



बुधवार, 22 जनवरी 2014

सरकारी मीडिया पर सेहत संबंधी जानकारी ..१

मुझे याद है...मैं १७ -१८ वर्ष का था, अमृतसर के डैंटल कॉलेज में बीडीएस में मेरा दाखिला हुआ था और तब हमें टीवी खरीदे भी कुछ हफ़्ते ही हुए थे....डैंटल कॉलेज में दाखिल होते ही वे लोग दांतों की सफ़ाई की बातें नहीं करने लगते..सिलेबस के अनुसार बीडीएस कोर्स के तीसरे वर्ष के दौरान हमें टुथब्रुश-टुथपेस्ट के सही इस्तेमाल के बारे में बताया जाता है। लेकिन मैं यहां बात करना चाह रहा हूं एक जालंधर दूरदर्शन के एक टीवी प्रोग्राम की ...मुझे अच्छे से याद है उस सेहत संबंधी कार्यक्रम में एक दंत चिकित्सक टुथब्रुश की सही तकनीक एक माडल पर बता रहे थे।

उन्होंने इतने अच्छे से माडल के ऊपर टुथब्रुश करना बताया कि मैंने उसी दिन से अपना ब्रुश करने का ढंग सही कर लिया...इससे पहले मैं गलत ढंग से ही ब्रुश किया करता था। दंत चिकित्सक के पास हम लोग कभी गये ही नहीं थे, हम क्या हमारी पुश्तें कभी दांत उखड़वाने के अलावा कभी न गई होंगी ...हम यही समझा करते थे कि दंत चिकित्सक के पास दांत में दर्द होने पर ही जाते हैं।

बहरहाल, मैं प्रशंसा कर रहा हूं उस दंत चिकित्सक की जिन्होंने मुझे उस टीवी प्रोग्राम के दौरान सही ब्रुश करना सिखा दिया। समय चलता गया... कुछ वर्षों बाद मुझे भी आल इंडिया रेडियो एवं दूरदर्शन पर आमंत्रित किया जाने लगा। मुझे याद है कि मैं दूरदर्शन पर जब भी गया तो ब्रुश के सही इस्तेमाल को दिखाने के लिए माडल और ब्रुश ज़रूर लेकर जाया करता था।

यह जो मैं बता रहा हूं कि मैं बहुत बार टीवी और रेडियो के कार्यक्रमों में गया....ऐसा नहीं था कि मैं बहुत काबिल रहा होऊंगा उस दौर में, इसलिए मुझे बुलाया गया। मेरे से सीनियर विशेषज्ञ भी होते थे लेकिन कईं बार मुझे ही बुलाया जाता था। इस का केवल यही कारण था कि रेडियो से या टीवी में काम करता कोई कर्मचारी या अधिकारी आप के पास अपने इलाज के लिए आया, उसे लगा कि अगली बार आप को बुलाया जाए तो बुला लिया गया। बस, इतनी सी बात। इस में अपनी कोई विशेष काबलियत न रही होगी, ऐसा मैं सोचता हूं।

बहुत बार तो जब हमारे वरिष्ठ प्रोफैसरों की ही इन कार्यक्रमों में बुलाया जाता था तो मन में एक प्रश्न सा तो आता ही था कि यार, इन लोगों ने अपना जुगाड़ फिट कर रखा है ... इन्हें ही आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर जाने के इतने अवसर मिलते हैं।

लेकिन आज जब मेरे बाल पकने लगे हैं तो मुझे लगने लगा है कि इस सरकारी मीडिया का विशेषज्ञों की चयन बिल्कुल परफैक्ट है......ये जिन भी विशेषज्ञों को बुलाते हैं वे अपने काम से साथ पूरा न्याय कर के जाते हैं।

क्या करें, चंद शब्दों में अपनी बात कहना सीख ही नहीं पाए, अब अगर किसी विषय की भूमिका ही इतनी लंबी-चौड़ी हो जायेगी तो पोस्ट को उबाऊ होने से कौन रोक पाएगा। चलिए, मैं सीधा अपनी बात पर आता हूं और सरकारी मीडिया पर सेहत संबंधी जानकारी के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूं।

विविध भारती -- विविध भारती के नाम से तो आप सब परिचित ही हैं। यह हम लोग बचपन से ही सुन रहे हैं। पहले इसे सुनने के लिए अपने ट्रांसिस्टर को कईं बार थपथपाना पड़ता था या फिर छत पर जा कर एरियर की तार को हिलाना-ढुलाना पड़ता था...लेकिन अब यह आसानी से कहीं भी कैच हो जाता है.....एफ.एम तकनीक ने हमारे मनोरंजन के मायने ही बदल दिये हैं जैसे।

विविध भारती में बाद दोपहर के समय शाम ४ से ५ बजे सप्ताह में एक दिन कार्यक्रम आता है सेहतनामा। मैंने इस की प्रशंसा अपने बहुत से लेखों में की है, इस से बढ़िया सेहत से संबंधी कार्यक्रम मैंने रेडियो पर नहीं सुना।

यह एक घंटे का कार्यक्रम होता है जिस में किसी बीमारी के विशेषज्ञ को बुलाया जाता है... यह विशेषज्ञ अपने फील्ड का अच्छा मंजा कलाकार होता है.. परिचय तो वे करवाते ही हैं लेकिन उन की बातों का ढंग ही उन का परिचय दे देता है। जो विशेषज्ञ बुलाये जाते हैं वे या तो किसी मैडीकल कॉलेज के प्रोफैसर होते हैं या फिर कोई ख्याति-प्राप्त विशेषज्ञ जो किसी प्राईव्हेट अस्पताल में काम कर रहे होते हैं।

यह एक फोन-इन तरह का कार्यक्रम है जिस के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से लोग उस विशेषज्ञ से जुड़ी अपनी शारीरिक-मानसिक समस्याओं को बता कर सलाह पाते हैं।

यह कार्यक्रम जिस ढंग से प्रस्तुत किया जाता है उस के लिए मैं दस में से दस अंक इन्हें देता हूं ...मैं पिछले लगभग सात वर्षों से इसे सुनता ही हूं ..जब भी मुझे याद रहता है.....लेकिन जितनी बार भी सुनता हूं उतनी ही बात कहीं न कहीं किसी फोरम पर इस की प्रशंसा के पुल अवश्य बांध देता हूं।

सब से बड़ी बात इन कार्यक्रमों में यह रहती है कि जो विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों में आते हैं उन का कोई कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरैस्ट (conflict of interest) नहीं होना चाहिए.....और इस के बारे में मुझे लगता है कि ये कार्यक्रम वाले बहुत अलर्ट हैं....मुझे कभी भी इस तरह की कोई शिकायत इस कार्यक्रम में महसूस नहीं हुई। न ही तो ये विशेषज्ञ किसी निजी अस्पताल का नाम लेते हैं न ही किसी दवाई के ब्रांड का नाम लेते हैं .. यूं कहें कि ये लोग १००प्रतिशत सच्चाई,  ईमानदारी एवं बेहद अपनेपन से अपना जीवन भर का ज्ञान आपके सामने उस एक घंटे में रख कर चले जाते हैं।

मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं है कि जिस स्तर के अनुभवी विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों में बुलाये जाते हैं उन का एक एक शब्द ध्यान से सुनने लायक होता है...सुनने लायक ही नहीं, माननीय भी होता है।

कोई भी बात इन विशेषज्ञों से कभी इतनी मुश्किल नहीं सुनी कि जिसे आम आदमी भी सुन कर समझ न पाए। बिल्कुल बोलचाल की भाषा में ये इतनी इतनी बड़ी जटिल बातें बेहद सहजता से समझा कर चले जाते हैं कि आश्चर्य होता है।

विविध भारती के अलावा भी --- विविध भारती के अलावा भी देश के विभिन्न रेडियो स्टेशन..रोहतक, चंडीगढ़, जालंधर .....कोई भी रेडियो स्टेशन...ये भी अपने क्षेत्र से विभिन्न विशेषज्ञ बुला कर सेहत संबंधी कार्यक्रम पेश करते रहते हैं।  इन की प्रस्तुति भी प्रशंसनीय रहती है ... ये भी विभिन्न मैडीकल कालेजों या पीजीआई जैसे संस्थानों से विशेषज्ञ बुलाते हैं।

मुझे लगता है कि पिछले कुछ वर्षों से इन कार्यक्रमों का फारमेट बदल गया है......मुझे याद है मैं केवल एक ही बात रेडियो पर फोन-इन कार्यक्रम में बुलाया गया था........लेकिन अधिकतर बार मुझे किसी बस दस-पंद्रह मिनट के लिए मुंह से संबंधी रोगों के बचाव, निदान एवं उपचार के बारे में बोलना होता था, मैं एक लिखित स्क्रिप्ट के साथ जाता, वहां उसे थोड़ा देखा जाता कि कहीं कोई दवाई-वाई का नाम तो नहीं लिखा गया, किसी पेस्ट-मंजन का नाम तो नहीं है, बस इतना चेक करने के बाद मैं उसे दस-पंद्रह मिनट बोल कर लौट आता...फिर कुछ दिन बाद रेडियो पर उसे प्रसारित कर दिया जाता।

लेकिन आजकल यह फारमेट बहुत इंट्रएक्टिव है... प्रश्न -उत्तर के फार्मेट में और साथ में श्रोतागण अपनी समस्याओं से संबंधित फोन कर रहे हैं उसी समय ...इस से बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता। आप को क्या लगता है?

 पोस्ट बहुत लंबी हो गई दिखती है ...एक ब्रेक लेते हैं और अगली कड़ी के साथ जल्दी हाज़िर होता हूं....
एक बात और...विविध भारती पर प्रसारित होने वाले सेहतनामा कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञ के पसंदीदा गीत भी बजाये जाते हैं.........इतना सब कुछ, इतनी सच्चाई, इतनी सहजता...मनोरंजन की चाशनी में भिगो कर.............और ? ....क्या जान लोगो ?

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

एनडीटीवी इंडिया ने खोल दी मीठे ज़हर की पोल

आजकल मैं एनडीटीवी इंडिया खूब देखता हूं ---मेरे लड़के ने मुझे हिदायत दी हुई है कि हिंदी में खबरें सुननी हैं तो एनडीटीवी इंडिया देखा करो। कल रात एनडीटीवी पर एक बहुत बढ़िया कार्यक्रम देखने का अवसर मिला जिस में उन्होंने आज कल मिठाईयों के रूप में बिक रहे मीठे ज़हर की अच्छी तरह पोल खोली। कार्यक्रम की प्रस्तुति भी बहुत प्रभावपूर्ण थी।
Mithai ke dukaanअकसर ऐसे कार्यक्रम देख कर लगने लगता है कि ये जो हिंदी के न्यूज़-मीडिया चैनल हैं ये भी आम आदमी की आंखे और कान ही हैं। इन के संवाददाता इतनी मेहनत कर के, अपने आप को जोखिम में डाल के ऐसी ऐसी बातें जनता के सामने लाते हैं जिन के बारे में वैसे तो उसे कभी पता चल ही नहीं सकता।
लेकिन सोचने की बात यह भी है कि जागरूकता से भरपूर इतने बढ़िया बढ़िया कार्यक्रम देखने के बाद क्या पब्लिक सब तरह का कचरा खाने से गुरेज़ करनी लगती है--जिस तरह से बाज़ार में मिठाईयों आदि की दुकानों पर भीड़ टूट रही होती है उसे से मुझे तो ऐसा नहीं लगता। लेकिन लोगों के मन में आज के आधुनिक मीडिया द्वारा इस तरह की बातें डालना भी एक बहुत अच्छा प्रयास है ----ठीक है जब किसी को ज़रूरत महसूस होगी वह उस ज्ञान को इस्तेमाल कर ही लेगा (इतनी जल्दी भी क्या है यारो, जब जीना है बरसों !!!)..
असर होता है---डाक्टर हूं, सब देखता, पढ़ता-सुनता रहता हूं ----अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब टीवी पर पाव रोटी या पांव रोटी का कार्यक्रम आ रहा था ---- उस दिन के बाद डबलरोटी खाने की इच्छा ही नहीं हुई। और अब घर में जब कभी ब्रैड आती है तो केवल एक ही बढ़िया ब्रांड की ही आती है ---- लोकल ब्रांड तो बच्चे अपने डॉगी को भी नहीं डालते ----कहते हैं कि जो हम नहीं खाते इस छोटू को भी नहीं देंगे।
जिस तरह से कल एनडीटीवी ने दिखाया कि किस तरह से सिंथैटिक दूध बनता है ---जिस में दूध तो होती ही नहीं, केवल कैमीकलों की ही मिश्रण होता है जो कि बीसियों भयंकर बीमारियों की खान होते हैं। मिलावटी मावे में क्या क्या होता है इसे देख कर तो लगता नहीं कि कोई मावे के पास भी फटक जाए।
देसी घी की पोल भी अच्छी तरह से खोली गई कि उस में कितनी तरह के ज़हरीले पदार्थ डाले जाते हैं। कल का कार्यक्रम देख कर छोटे बच्चे भी कहने लगे कि लगता है अब तो केवल दाल-रोटी पर ही टिक के रहना चाहिये।
dabba mithai kaमिठाईयां किसे अच्छी नहीं लगतीं----मुझे भी बेसन के लड्डू, पतीसा और बर्फी बहुत अच्छी लगती है लेकिन महंगी से महंगी दुकान की भी खरीदी इन मिठाईयों पर मेरा तो भई बिल्कुल भी भरोसा नहीं रहा। इसलिये मैं कभी गलती से एक आधा टुकड़ा खा लूं तो भी मैं अपराधबोध का शिकार ही हुआ रहता हूं कि सब कुछ पता होते हुये भी .....।
हां तो बताया यह भी जा रहा है कि अगर हम इस तरह की मिलावटों से बचना चाहते हैं तो किसी मशहूर दुकान से ही खरीदी मिठाई खाएं अथवा स्वयं मिलावट की जांच कर लें। लेकिन मैं इस से इत्तफाक नहीं रखता ----किसी दुकान में बढ़़िया कांच लगवा लेने से ,एक-दो स्पलिट एसी फिट करवा लेने से क्या क्वालिटी की भी गारंटी हो जाती है। और जहां तक मिलावट को खुद जांचने की बात है अभी तक तो चांद को मांगने जैसी बात लगती है। लेकिन भवि्ष्य में इस के बारे में कुछ हो तो बहुत बढ़िया रहेगा।
मैं कईं बार सोचता हूं लोग ठीक ही कहते हैं ---हमारे यहां शायद जानें बहुत सस्ती हैं। मिलावट के बारे में टीवी चैनल इतनी जागरूकता फैला रहे हैं लेकिन फिर भी यह गोरख-धंधा फल-फूल ही रहा है। दो दिन पहले कहीं पढ़ रहा था कि अमेरिका में एशियाई मुल्कों से आयात किये हुी सूखे आलूबुखारे बिक रहे थे ----जब वहां की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने उन की जांच की तो उन में ---- Lead (शीशा) की मात्रा बहुत अधिक पाई गई । तुरंत वहां पर उस एजेंसी ने लोगों को हिदायत दे दी कि इन सूखे आलुबुखारों से बच के रहो और यहां तक कि वहां की सरकार ने इस तरह के प्रोडक्ट्स की फोटो कंपनियों के नाम के साथ वेबसाईट पर भी डाल दी।
और एक हम हैं कि दीवाली आ रही है और शुद्ध मिठाई के लिये तरसे जा रहे हैं। मैं आज सुबह ही किसी के साथ हंसी मज़ाक कर रहा था कि देखना, खन्ना साहब, वही दिन वापिस आ जायेंगे जब हम लोगों को चीनी के खिलौनों एवं कुरमुरे से ही दीवीली मनानी पड़ा करेगी।
जावेद अख्तर ने लिखा है कि पंछी नदियां पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके, सोचा तूमने और मैंने क्या पाया इंसा होके -------उसी तरह हम लोगों ने इतनी ज़्यादा तरक्की कर ली कि हम लोग मिठाई के लिये ही तरस गये ---- बचपन में अमृतसर में खाई बर्फी का स्वाद अभी में मुंह में वैसे का वैसा ही है-------तब हमारे जैसे ही सिरफिरे हलवाई हुआ करते थे जो घंटों एक कड़ाई में पक रही दूध की रबड़ी में घंटों कड़छे मार मार के थकते नहीं थे -------लेकिन अब कहीं भी न तो ऐसे सिरफिरे हलवाई ही दिखते है और न ही वैसी छोटी छोटी हलवाईयों की दुकानें जिन की खुशबू दूर से ही आ जाया करती थी और हम बच्चों का नाटक शूरू हो जाया करता था।
PS....Please let me know some good on-line tutorials for knowing the proper placement of pictures in a blog post. And also for putting some text-boxes, full-quotes etc. Thanks.