आज कल बहुत दिखता है कि पार्टीयों में गैस से भरे गुब्बारे खूब टंगे रहते हैं.....कुछ ही समय में बच्चे उन्हें फोड़ना शुरू करते हैं...होता है ना यह सब आज कल खूब!!
मुझे तो गैस के गुब्बारे देख कर अपने बचपन के दिन याद आ जाते हैं.....गुब्बारे वाले ने अपनी लकड़ी पर दो तरह के गुब्बारे टंगे होते थे.....एक साधारण और दूसरे गैसी गुब्बारे। गैसी गुब्बारे का रेट साधारण गुब्बारे की तुलना भी उस समय के अनुसार काफ़ी हुआ करता था....कभी कभी जब मैं गैस का गुब्बारा खरीदता था तो उस के साथ लंबा सा धागा बांध कर बैठक में छोड़ दिया करता था।
और सुबह उठ कर जितनी शिद्दत से आज के बच्चे व्हास्ट्स-अप और फेसबुक अपडेट्स चैक करते हैं, उस से भी कहीं ज्यादा शिद्दत से मैं बैठक की तरफ़ लपक पड़ता था यह देखने के लिए अपने गैसी गुब्बारे का क्या हाल चाल है?.. अगर वह अभी भी ऊपर छत पर लगा दिखता तो बहुत मज़ा आ जाया करता था। कितनी छोटी छोटी सी बातों में अपुन की खुशियां छुपी हुआ करती थीं!!
पांच सात दिन पहले यहां लखनऊ के पास गैस वाले गुब्बारों से संबंधित एक बड़ा हादसा हो गया..एक सरकारी समारोह में गैस के गुब्बारे छोड़े गये..साथ में कोई बैनर वैनर बंधा हुआ था.. यह गुब्बारे पास ही के किसी गांव में जाकर जब नीचे गिरने लगे तो बच्चों का झुंड आ धमका....और जैसे ही ये गैसी गुब्बारे फूटे, पास ही पड़े सूखे घास में आग लग गई... और लगभग १२-१५ बच्चों आग से बुरी तरह से झुलस गये। बड़ा अफसोसजनक हादसा था यह।
फिर अगले दिन पता चला कि अब इन गैस के गुब्बारों में लोगों ने हीलियम गैस की जगह हाईड्रोजन और एसिटिलिन जैसी गैसें ज्वलनशील गैसें भरनी शुरू कर दी हैं... सब कुछ सस्ते के चक्कर में .....ये लोग अमोनियम नाइट्रेट और कास्टिक जैसे कैमीकल्स को मिला कर हाइड्रोजन जैसी गैस तैयार करते हैं जो कि शीघ्र ही आग पकड़ सकती है।
पड़े हुए हैं सब लोग अब इस बात के पीछे कि दोषियों को पकड़ो....कुछ को पकड़ा भी गया है.....लेकिन लोगों को भी सचेत किये जाने की भी बहुत ज़रूरत है......और वैसे भी गैस से भरे गुब्बारों पर प्रतिबंध की तैयारी हो ही गई है।
सोचने वाली बात है कि पहले ही से कितनी चीज़ें हैं जो प्रतिबंधित हैं और धड़ल्ले से बिक रही है.....गुटखा, पानमसाला एक उदाहरण है।
आप भी सावधान रहिए...बच्चों की पार्टियों आदि में भी ध्यान रखिए.... इन गैसी गुब्बारों-वारों से दूर ही रहने में समझदारी है।
मुझे तो गैस के गुब्बारे देख कर अपने बचपन के दिन याद आ जाते हैं.....गुब्बारे वाले ने अपनी लकड़ी पर दो तरह के गुब्बारे टंगे होते थे.....एक साधारण और दूसरे गैसी गुब्बारे। गैसी गुब्बारे का रेट साधारण गुब्बारे की तुलना भी उस समय के अनुसार काफ़ी हुआ करता था....कभी कभी जब मैं गैस का गुब्बारा खरीदता था तो उस के साथ लंबा सा धागा बांध कर बैठक में छोड़ दिया करता था।
और सुबह उठ कर जितनी शिद्दत से आज के बच्चे व्हास्ट्स-अप और फेसबुक अपडेट्स चैक करते हैं, उस से भी कहीं ज्यादा शिद्दत से मैं बैठक की तरफ़ लपक पड़ता था यह देखने के लिए अपने गैसी गुब्बारे का क्या हाल चाल है?.. अगर वह अभी भी ऊपर छत पर लगा दिखता तो बहुत मज़ा आ जाया करता था। कितनी छोटी छोटी सी बातों में अपुन की खुशियां छुपी हुआ करती थीं!!
पांच सात दिन पहले यहां लखनऊ के पास गैस वाले गुब्बारों से संबंधित एक बड़ा हादसा हो गया..एक सरकारी समारोह में गैस के गुब्बारे छोड़े गये..साथ में कोई बैनर वैनर बंधा हुआ था.. यह गुब्बारे पास ही के किसी गांव में जाकर जब नीचे गिरने लगे तो बच्चों का झुंड आ धमका....और जैसे ही ये गैसी गुब्बारे फूटे, पास ही पड़े सूखे घास में आग लग गई... और लगभग १२-१५ बच्चों आग से बुरी तरह से झुलस गये। बड़ा अफसोसजनक हादसा था यह।
फिर अगले दिन पता चला कि अब इन गैस के गुब्बारों में लोगों ने हीलियम गैस की जगह हाईड्रोजन और एसिटिलिन जैसी गैसें ज्वलनशील गैसें भरनी शुरू कर दी हैं... सब कुछ सस्ते के चक्कर में .....ये लोग अमोनियम नाइट्रेट और कास्टिक जैसे कैमीकल्स को मिला कर हाइड्रोजन जैसी गैस तैयार करते हैं जो कि शीघ्र ही आग पकड़ सकती है।
पड़े हुए हैं सब लोग अब इस बात के पीछे कि दोषियों को पकड़ो....कुछ को पकड़ा भी गया है.....लेकिन लोगों को भी सचेत किये जाने की भी बहुत ज़रूरत है......और वैसे भी गैस से भरे गुब्बारों पर प्रतिबंध की तैयारी हो ही गई है।
सोचने वाली बात है कि पहले ही से कितनी चीज़ें हैं जो प्रतिबंधित हैं और धड़ल्ले से बिक रही है.....गुटखा, पानमसाला एक उदाहरण है।
१४ नवंबर २०१४ के हिन्दुस्तान लखनऊ संस्करण में छपी खबर |
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