दो चार दिन पहले की ही तो बात है....लखनऊ जंक्शन के पास ही एक बड़ा व्यस्त एरिया है...नाका हिंडोला... मैं उस के आस पास ही एक एफ.एम रेडियो को तलाश रहा था। अचानक मेरी नज़र एक संत जैसे दिखने वाले इंसान पर पड़ी ..जो कि एक हरे रंग के साईकिल पर जा रहा था...जिस पर पेड़ की फोटो भी बनी हुई थी..मुझे ऐसे लगा कि जैसे कोई दरवेश उस रास्ते से गुज़र रहा हो। अच्छा और भी लगा जब उस के साईकिल के कैरियर पर टिके हुए पीपे पर लिखा हुआ था..पेड़ वाला बाबा।
इच्छा हुई कि शायद यह रूक जाएं तो इन से चंद बातें ही कर ली जाएं। लेकिन वह बाबा तो अपनी मस्ती में मस्त ही चला जा रहा था.....मैं भी उसी जगह खड़ा उसे देखता रहा ... मैंने सोचा कि बाज़ार में काफी भीड़ है, शायद यह दरवेश आगे चल कर कहीं रूक जाए, इसी उम्मीद के साथ मैं उन के रूकने की इंतज़ार कर ही रहा था कि मुझे लगा कि वह हरे रंग का साईकिल कुछ दूर जा के रूक गया है।
मैं तेज़ी से चल कर झट उन के पास पहुंच गया। वे एक डिब्बे में पानी भर के गमले में लगे कुछ पौधों को पानी देने की तैयारी कर रहे थे। मुझे यह मंजर देख कर मज़ा आ गया। मैंने उन के पास जा कर कहा कि मुझे आप का काम देख कर बहुत अच्छा लगा....इसलिए मैं दूर से आप का पीछा करते करते यहां तक पहुंच गया। वे बहुत खुश हुए।
अच्छा पहले तो इन का इंट्रो करवा दूं.....जैसे कि इन के साईकिल पर ही लिखा गया है ...ये हैं श्रीमान मनीष तिवारी जी जिन्हें लोग पेड़ बाबा के नाम से जानते हैं....फिर मैं उन के साथ पांच दस मिनट तक बतियाता रहा, वह हंसी हंसी मेरी बच्चों जैसी सभी जिज्ञासाएं शांत किए जा रहे थे।
चलिए, आप से भी यह शेयर करता हूं....वे पिछले बीस वर्षों से यह सेवा कर रहे हैं। उन्हें इस काम को करने में परम आनंद की अनुभूति होती है। जगह जगह पेड़ लगाना और फिर उन की देखभाल करना यह उन्हें भाता है। अपने लगाए हुए पौधों को रोज़ाना पानी देने पहुंच जाते हैं।
रोज़ाना पानी देने की बात से मेरे को ध्यान आया.. नाका हिंडोला एरिया से चंद कदमों की दूरी पर कुछ हाटेल हैं जिन के बाहर मैंने अकसर बीसियों ज़रूरतमंदों (भूखो) को किसी दानवीर की प्रतीक्षा करते देखा है। उन की आंखें हर राहगीर में एक दानवीर को टटोलती नज़र आती हैं। जैसे ही वह पेड़ बाबा पेड़ों को पानी दे रहा था तो मुझे यही अहसास हुआ कि जैसे सारा दिन इस संसार को तपिश को सहने वाले पेड़ भी इस दरवेश की इंतज़ार ही कर रहे थे कि वह आकर उन की भी प्यास बुझाएगा। फिर ध्यान आया कि मैंने अपने फ्लैट की बालकनी में लगे पौधों को कब पानी दिया था, पानी देना तो दूर मैंने उन्हें पिछली बार देखा था, मुझे तो यह भी याद नहीं....और बातें मैं कितनी बड़ी बड़ी करता हूं कि मैं वनस्पति प्रेमी हूं.....यह हूं, वह हूं।
बहरहाल, अब कुछ समय के लिए अपनी बातें हांकना बंद करता हूं...उस दरवेश की बातें करते हैं...... सच में वह पेड़ बाबा ही थे, जिस तरह के आस पास से गुज़रने वाले लोग उन के पांव छू कर उन का आशीर्वाद लेकर आगे चल रहे थे, यही लग रहा था कि किसी भी नेक काम में हाथ डालने की देरी होती है, अपने अाप कारवां बनता जाता है।
मनीष तिवारी ने बताया कि यह जो आप जगह देख रहे हैं, क्या आप पहले इस तरफ़ से कभी गुज़रे हैं... मैंने कहा...हां, यहां तो बहुत गंदगी और बदबू हुआ करती थी। कहने लगे कि यहां कूड़े-कर्कट के ढेर और लोगों ने मूत्रालय बना रखा था, वे नहीं देखते थे कि माताएं-बहनें भी उसी राह से गुज़र रही हैं।
कुछ महीने पहले इन्होंने इस एरिया की स्वयं सफाई की.....जो कुछ भी नीचे बह रहे गंदे नाले में डालने लायक था, इन्होंने फावड़े की मदद से नीचे गिरा दिया... फिर गमलों में पौधे लगाए...एरिया एक दम साफ़-सुथरा दिखने लगा है.... और बेकार पड़ी पाइपों पर सुंदर सुंदर कथन भी लिखवा दिए .. जैसा कि आप इन चित्रों में देख सकते हैं।
ऐसे लोग जब निष्काम भाव से अपना काम करते हैं तो आस पास के लोग अपने आप जुडऩे लगते हैं.....मैंने देखा कि उन्हें देखते ही आस पास के युवक उन के लिए डिब्बे में पानी भर भर कर लाने लगे ....पौधों की प्यास बुझाने के लिए।
बात कर रहे थे .. उन्हें सुनना अच्छा लगता था....कहने लगे कि गंदगी के साथ साथ यह जगह जगह पेशाब करने की आदत भी बुरी है... जहां कुछ नहीं लिखा रहता और किसी पेशाब करने वाले को टोक दो तो वह तपाक से कह देता है कि कहां लिखा है यहां पेशाब करना मना है ....और जहां लिखा रहता है और अगर वहां किसी को टोक दो तो वह कह देता है .. कि यह तो सब ऐसे ही लिख देते हैं।
मुझे उन की बातें सुन कर यही लग रहा था कि यार, संत केवल क्या बड़े बड़े मठों में ही होते हैं...या फिर यह भी चलते फिरते संत ही हैं.....जिन के मन में मानवता के लिए इतना प्रेम भरा हुआ है। किसी चीज़ की कोई इच्छा नहीं, अपेक्षा नहीं, बस अपनी धुन में निरंतर लगे रहने की तमन्ना, जोश, मिशन.......। संसार का आज बीते हुए कल से बेहतर बनाने का जज्बा।
मैंने उन का फोन नंबर लिया... अपना उन्हें दिया.....और जब बताया कि मैं भी पास के एक अस्पताल में चिकित्सक हूं तो बहुत खुश हुए... कहने लगे कि आप की संवेदनशीलता देख कर बहुत अच्छा लगा और वह तब और भी खुश हुए जब मैंने उन्हें बताया कि आज ही दोपहर में मेरी श्रीमति जी ने माली को बुला कर बालकनी में रखे गमले में बढ़ रहे पेड़ों को अपनी बिल्डिंग के नीचे छोटे से पार्क में शिफ्ट करवा दिया। बहुत खुश हुए कि यह हुई न बात.... ज़मीन के पेड़ को ज़मीन की गोद तक पहुंचा दिया, बहुत अच्छा किया।
फिर उन्होंने बोनसाई के ऊपर अपने विचार रखे....कहने लगे कि यह भी कोई बात हुई कि आज का मानव पेड़ों की नसबंदी कर के, उसे काट काट के इतना छोटा करने की धुन में उन्हें बोनसाई बना कर अपने ड्राईंग रूम में सजाने के चक्कर में पड़ा हुआ है। जो मज़ा, आनंद खुले में हरे भरे पेड़ों को देखने में, उन्हें निहारने में, उन के नीचे खड़े हो कर उन्हें बनाने वाले चित्रकार, शिल्पकार के बारे में सोचने में है, वह घर के अंदर कमरों में मुरझाए हुए पत्तों वाले पेड़ों को देखने से कहां मिल सकता है।
इ्च्छा हो रही थी कि इन से बातें करता जाऊं......लेिकन दुकानें बंद होने का समय हो रहा था, इस लिए इन से इजाजत लेकर मैं वापिस मार्कीट की तरफ़ चल पड़ा।
हां, एक बात तो शेयर करना भूल ही गया.. मेरे यह पूछने पर कि क्या आप की कोई संस्था है तो उन्होंने बताया...नहीं, नहीं, मैं तो बस अकेला ही इस काम में लगा हूं...क्योंकि मुझे अपार खुशी मिलती है। और मैं इस बात को प्रमाणित करता हूं कि जो हज़ारों वॉट की मुस्कान मैंने इन के चेहरे पर देखी वह शायद करोड़पति पूंजीपतियों के यहां कभी नहीं दिखती। मैंने झिझकते हुए कहा कि आप जीविकोपार्जन के लिए क्या करते हैं......बताने लगे कि कुछ नहीं, घर से अनाज, दालें... सब कुछ आ ही जाता है, बाकी वही काफ़ी होता है, बाकी समय इन्हीं पेड़ों को समर्पित है।
शहर की कईं जगहों पर इन्होंने पेड़ लगाए हैं....और कुछ एरिया के नाम तो ले रहे थे लेकिन लखनऊ की जगहों से मैं इतना अच्छा से वाकिफ़ नहीं हूं, इसलिए कुछ याद नहीं रहा।
इस पेड़ बाबा को मिलने के अगले दिन लखनऊ के बंगला बाज़ार एरिया में मैं अपने स्कूटर पर जा रहा था तो मुझे एक मोटरसाईकिल पर कुछ लिखा नज़र आया......अनाथ बच्चों और पेड़ पौधों को लगाने में समर्पित .....एक आदमी मोटरसाईकिल पर जा रहा था......मैंने फोटो तो खींच ली......उस पर उस ने मोबाईल भी लिखा हुआ था... आगे चल कर वह एक फ्रूट की रेहड़ी पर रूक भी गया......लेकिन मैंने उस से बात करने की हिम्मत न की........ शायद ज़रूरत ही न समझी....क्योंकि मैं एक दरवेश से पहले मिल चुका था जिस के आचरण में मुझे त्याग, प्रेम, करूणा, वात्सल्य की कहीं ज़्यादा खुशबू आई थी। देखिए, मैं इस दूसरे समर्पित इंसान से मिला तक नहीं लेकिन उस के बारे में एक ओपिनियन कैसे पहले ही से बना लिया.........मेरे जैसे लोग पता नहीं कब इन हरकतों से बाज़ आएंगे...शायद कभी नहीं, यह कहीं फितरत ही तो नहीं बन चुकी।
पेड़ बाबा को समर्पित यह गीत....
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