मंगलवार, 23 सितंबर 2014

जब कोई अस्पताल कहता है......सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः



कल मैंने अपनी एक मरीज़ के हाथ में जो इलाज की डॉयरी देखी उस पर लिखा था......सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः। अच्छा लगा यह पढ़ कर कि मरीज को दी जाने डायरी पर कितनी अच्छी बात लिखी है.....सब सुखी रहें, निरोगी रहें ..सब का क्लयाण हो, कोई दुःखी न रहे।

यही लगा कि सरकारी अस्पताल ही इस तरह की सुंदर पहल कर सकते हैं....यह छोटी बात नहीं है, एक मरीज़ ही जान सकता है कि उसे डाक्टर से मिलने से पहले ही इस तरह की बात कितना सुकून दे सकती है.....जैसे कि सब उस की अच्छी सेहत के लिए दुआ कर रहे हों।

बात एक बार मैंने एक सत्संग में भी सुनी थी कि किसी भी सरकार की सफ़लता का आंकलन इस बात से भी होना चाहिए कि उस के कार्यकल में कितने अस्पताल बंद किए गये......बात को पचाना तो मुश्किल है, लेकिन सतसंग की वैसे कहां हम सारी बातें पचा ही लेते हैं ....इसे भी ऐसे ही निगल लें.........महात्मा के कहने का आशय यही था कि लोग इतने निरोगी, सेहतमंद और खुशहाल हो जाएं कि उन्हें किसी अस्पताल में जाने की आवश्यकता ही न रहे, और सरकारों को धीरे धीरे अस्पताल ही बंद करने पड़ जाएं। बात पचाने लायक है या नहीं, लेकिन आमीन कहते हुए तो हमें कुछ खर्च नहीं ना करना पड़ता। तो चलिए मिल कर कहे देते हैं......आमीन!!

हां, तो मैं उस महिला की डॉयरी की बात कर रहा था......उस के अगले कवर को तो मैंने आप को दिखा दिया, उस पर लिखे को आप से शेयर कर दिया......उस डॉयरी के पिछले कवर पर भी कुछ उपयोगी जानकारियां मिलीं....बहुत ही बढ़िया..अब लोग कहां से टीकाकरण के शैड्यूल को याद कर पाएं, उन की सुविधा के लिए इस जानकारी को भी पिछले कवर पर छपवाया गया है, और साथ में नीचे स्वच्छता का संदेश कितना सुंदर है..........मुझे भी कल ही Cleanliness is next to Godliness का सही तर्जुमा पता चला........मैंने इस वाक्य का अनुवाद बहुत बार करता था, लेकिन ठीक नहीं लगा मुझे अपने आप को भी......लेकिन कल पता चला .........ईश्वर-परायणता के पश्चात स्वच्छता का ही स्थान है। ....वाह जी वाह....कितनी सुंदर बात है।

कुछ अस्पतालों में इस तरह की डॉयरी इश्यू नहीं की जाती.....वहां पर मरीज़ अपनी अपनी डॉयरी या कोई कापी बाज़ार से खरीद लेते हैं...और हर बार वही लेकर आते हैं..कईं बार मरीज बहुत बड़ी बड़ी भारी भरकम डॉयरी खरीद लेते हैं तो मैंने उसे कहता हूं कि यार, आप लोगों ने बीमार ही थोड़े पड़े रहना है, बिल्कुल पांच-दस रूपये में बिकने वाली छोटी डायरी इस काम के लिए खरीदा करो। बात सुन कर वे बहुत खुश हो जाते हैं।

हां, तो डॉयरी के ऊपर कुछ सुंदर से संदेश देख कर अच्छा लगता है.......कितनी ही उपयोगी जानकारियां और भी हैं, जच्चा बच्चा से संबंधित, टीबी के इलाज से संबंधित, खानपान के बारे में टिप्स, स्वच्छ पानी के बारे में कुछ संदेश.....कुछ भी इन दो तीन पन्नों में डाला जा सकता है.....इस से मरीज़ों के बारे में कईं तरह के भ्रम गायब हो सकते हैं......मिसिज़ एक सरकारी अस्पताल में एक सामान्य चिकित्सक हैं, आज एक मधुमेह का मरीज उन से कहने लगा कि क्या करवाएं बार बार जाकर रक्त की जांच.....खाने से पहले और बाद में जो रक्त इतना ज़्यादा निकाल लेते हैं वे तो उसे भी बेच देते हैं। कितनी अज्ञानता व्याप्त है और यह मैं एक महानगर के लोगों की बात कर रहा हूं।

परसों एक बुज़ुर्ग मिला... कहने लगा कि मुझे दूसरे शहर में भेजा गया था दिल की बीमारी के इलाज के लिए...वहां से मुझे किसी दूसरे प्राईव्हेट अस्पताल में भेजा जा रहा था (मरीज़ को वहां पैसा नहीं भरना होता, सरकारी विभाग के द्वारा भेजे गये मरीज़ों का कुछ अस्पतालों में बिलिंग प्रणाली से इलाज किया जाता है..मरीज से कुछ नहीं लिया जाता, बिल उस के विभाग को भुगतान के लिए भेज दिया जाता है)...तो मैंने तो मना कर दिया....मैंने डाक्टर को कहा कि पहले तो आप मेरे को यह बताओ कि जो मेरे हार्ट का ईको-टैस्ट आपने किया है, उस में खराबी है कहां.........पता नहीं वह किस पूर्वाग्रह की वजह से ऐसी बातें कर रहा था कि उसने तो उस प्राईव्हेट अस्पताल में जाने से साफ़ मना कर दिया......तीन चार लाख बिल विभाग भरता है और सब लोगों की कुछ न कुछ सैटिंग तो ज़रूर होती होगी........उसे शक था कि बिना वजह कहीं उस का आप्रेशन न कर दिया जाए।

अब आप देखिए कि एक आमजन अगर डाक्टर को इस तरह की बात कर के एक तरह से चुनौती दे कि मुझे यह बताओ की दिल की ईको में खराबी है कहां, यह बात आप अपने दो टके के पुराने ट्रांजिस्टर को ठीक करवाने जाते हैं तो वहां पर उस मैकेनिक से ऐसी बात नहीं कर सकते.....नहीं ना करते?..........अकसर मरीज़ों की बातें सुन कर यही लगता है कि अभी भी कम्यूनिकेशन की बहुत ही कमी है। कईं तरह की बातों की वजह से लोग पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो जाते हैं.....इसी बुज़ुर्ग की बीवी ने तुरंत कहा कि इन के चाचा के बेटे जो केवल ६० वर्ष के ही थे और जिन के दो दिल के आप्रेशन हुए लेकिन वे बच नहीं सके.........शायद यही बात उन के मन में अटक गई थी।

सोचने की बात यह है कि अब इस तरह के भ्रम दूर करने की जिम्मेदारी चिकित्सक की नहीं तो किस की है ?

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