कुछ साल पहले की बात है कि हमारी एक आंटी जी हमारे पास कुछ दिनों के लिए आईं थीं.. वह मधुमेह से पीड़ित थीं, स्वभाव की बहुत अच्छी, हंसमुख तबीयत की. अपनी बीमारी के बारे में कुछ ज़्यादा सोचती नहीं थीं। मस्त रहती थीं, उन के गुज़रे भी बहुत वर्ष बीत गये हैं।
मुझे याद है जब उन्हें दिन में कईं कईं बार इंसुलिन के टीके अपनी जांघ के पट्ठों पर लगाने पड़ते थे, सुन कर ही बहुत कठिनाई होती थी। जांघ पर ही नहीं, शरीर की अन्य जगहों पर भी बाजु, पेट (एबडॉमन)आदि पर वह टीके लगा लेती थीं इंसुलिन के। वैसे तो वह स्वयं भी लगा लिया करती थीं लेकिन बहुत बार उन की बहू उन की इस काम में मदद किया करती थीं।
मुझे अभी भी याद है वह २०-२५ वर्ष पुरानी बात जब एक बार वह टीका लगा रही थीं तो किस बेबसी के भाव से उन्होंने कहा कि क्या करूं, जिधर चमड़ी थोड़ी ठीक लगती है, उधर ही लगा लेती हूं इंजैक्शन....सारे शरीर को तो टीके लगा लगा छील दिया है !!
आज जब इस खबर पर ध्यान गया कि अब सूंघने वाली इंसुलिन को भी अमेरिकी एफडीआई की एप्रूवल मिल गई है .. तो यह जान कर प्रसन्नता हुई। चाहे बाद में लिखा गया है कि यह सूंघने वाली इंसुलिन लॉंग-एक्टिंग इंसुलिन का विकल्प नहीं है। इसे तो उस लॉंग-एक्टिंग इंसुलिन के साथ (ज़ाहिर सी बात है टीके से लगने वाली इंसुलिन).. ही लेना पड़ेगा।
इतना पढ़ कर भी ठीक ही लगा कि चलो, बीमारी से पहले से ही परेशान मधुमेह रोगी कम से कम कुछ टीकों से तो बच ही जाएंगे।
जाते जाते एक बात लिखने को मन हो रहा है ..जितनी बुरी मैनेजमैंट मैंने मधुमेह के रोगियों की देखी है, शायद ही कोई ऐसी बीमारी हो जिस का यह हाल हो। मरीज़ नियमति ब्लड-शुगर की जांच करवाते नहीं या करवा नहीं पाते, और भी आंख की या अन्य रक्त की जांच न होने की वजह से अन्य अंगों में जटिलताएं उत्पन्न तो होती ही हैं, साथ ही साथ, मधुमेह में ली जाने वाली दवाईयों को भी ठीक से एडजस्ट नहीं करवा पाते..... सही तरह से फॉलो-अप का अभाव, विशेषज्ञ चिकित्सकों तक न पहुंच पाना, नीम हकीमों के झांसे, देसी दवाईयां, पुडियां....एक ही समय में कईं कईं इलाज एक ही तकलीफ़ के करने की कोशिश.............. देश में हर बंदे -- ९९ प्रतिशत लोगों की बड़ी जटिल समस्याएं हैं। इन के सब्र से डर लगता है--- रात को बत्ती नहीं, पानी की समस्या, सूखा, महंगाई और ऊपर से बीमारी।
ईश्वर सब को सेहतमंद रखे। खुश रखे। काश, सब के अच्छे दिन एक नारा ही न जाए, सब के दिन पलट जाएं।
Authority.. Inhaled insulin approved by FDA
मुझे याद है जब उन्हें दिन में कईं कईं बार इंसुलिन के टीके अपनी जांघ के पट्ठों पर लगाने पड़ते थे, सुन कर ही बहुत कठिनाई होती थी। जांघ पर ही नहीं, शरीर की अन्य जगहों पर भी बाजु, पेट (एबडॉमन)आदि पर वह टीके लगा लेती थीं इंसुलिन के। वैसे तो वह स्वयं भी लगा लिया करती थीं लेकिन बहुत बार उन की बहू उन की इस काम में मदद किया करती थीं।
मुझे अभी भी याद है वह २०-२५ वर्ष पुरानी बात जब एक बार वह टीका लगा रही थीं तो किस बेबसी के भाव से उन्होंने कहा कि क्या करूं, जिधर चमड़ी थोड़ी ठीक लगती है, उधर ही लगा लेती हूं इंजैक्शन....सारे शरीर को तो टीके लगा लगा छील दिया है !!
आज जब इस खबर पर ध्यान गया कि अब सूंघने वाली इंसुलिन को भी अमेरिकी एफडीआई की एप्रूवल मिल गई है .. तो यह जान कर प्रसन्नता हुई। चाहे बाद में लिखा गया है कि यह सूंघने वाली इंसुलिन लॉंग-एक्टिंग इंसुलिन का विकल्प नहीं है। इसे तो उस लॉंग-एक्टिंग इंसुलिन के साथ (ज़ाहिर सी बात है टीके से लगने वाली इंसुलिन).. ही लेना पड़ेगा।
इतना पढ़ कर भी ठीक ही लगा कि चलो, बीमारी से पहले से ही परेशान मधुमेह रोगी कम से कम कुछ टीकों से तो बच ही जाएंगे।
जाते जाते एक बात लिखने को मन हो रहा है ..जितनी बुरी मैनेजमैंट मैंने मधुमेह के रोगियों की देखी है, शायद ही कोई ऐसी बीमारी हो जिस का यह हाल हो। मरीज़ नियमति ब्लड-शुगर की जांच करवाते नहीं या करवा नहीं पाते, और भी आंख की या अन्य रक्त की जांच न होने की वजह से अन्य अंगों में जटिलताएं उत्पन्न तो होती ही हैं, साथ ही साथ, मधुमेह में ली जाने वाली दवाईयों को भी ठीक से एडजस्ट नहीं करवा पाते..... सही तरह से फॉलो-अप का अभाव, विशेषज्ञ चिकित्सकों तक न पहुंच पाना, नीम हकीमों के झांसे, देसी दवाईयां, पुडियां....एक ही समय में कईं कईं इलाज एक ही तकलीफ़ के करने की कोशिश.............. देश में हर बंदे -- ९९ प्रतिशत लोगों की बड़ी जटिल समस्याएं हैं। इन के सब्र से डर लगता है--- रात को बत्ती नहीं, पानी की समस्या, सूखा, महंगाई और ऊपर से बीमारी।
ईश्वर सब को सेहतमंद रखे। खुश रखे। काश, सब के अच्छे दिन एक नारा ही न जाए, सब के दिन पलट जाएं।
Authority.. Inhaled insulin approved by FDA
मधुमेह में ली जाने वाली दवाईयों को भी ठीक से एडजस्ट नहीं करवा पाते..... सही तरह से फॉलो-अप का अभाव, विशेषज्ञ चिकित्सकों तक न पहुंच पाना, नीम हकीमों के झांसे, देसी दवाईयां, पुडियां, यही दुश्वारियाँ है, मधुमेह के मरीज के सामने, जिनके चलते सहज ही काल का ग्रास बन जाता है।
जवाब देंहटाएंललित जी, सच कह रहा हूं कि अब तो हर समय हर शख्स के लिए सेहतमंद रहने की दुआएँ ही करनी बनती हैं। आम आदमी के लिए परेशानियां सब से ज़्यादा हैं।
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