मंगलवार, 18 मार्च 2014

कहानी कहने और दिखाने का फ़न

मुझे याद है कि कुछ वर्ष पहले की बात है कि दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर कईं हफ़्तों तक मुंशी प्रेम चंद की कहानियां दिखाई जाती थीं। मैंने भी उन में से बहुत सी देखी थीं।

पिछली सदी के महान लेखक मुंशी प्रेम चंद के लेखन से मैं रू-ब-रू स्कूल के दिनों से हुआ था। शायद ९ या १०वीं कक्षा में उन का एक नावेल गोदान हमारे सिलेबस में था। और वैसे भी उन की कुछ कहानियां नमक का दारोगा जैसी भी हम ने स्कूल के दिनों में ही पढ़ी थीं।

कुछ दिन पहले मैंने यू-ट्यूब खोला हुआ था.. वहां पर मैंने डी डी नैशनल का ऑफिशियल चैनल खोला तो नज़र पड़ गई ..मुंशी प्रेम चंद की तहरीर पर....उन की विभिन्न कहानियों का फिल्मांकन देखने लायक है, हो भी क्यों नहीं, इन्हें प्रस्तुत वाले भी तो गुलज़ार साब हैं।

तो उस दिन मैंने कफ़न कहानी को देखा.......और आज दोपहर ईदगाह कहानी देखी।

इन कहानियों को देखते हुए मैं यही सोच रहा था कि कहानी कहने की तहज़ीब सीखनी हो तो सदी के महान लेखक प्रेमचंद को पढ़ लिया जाए...अगर हम कहानी लिखना ना भी सीख पाए तो भी और बहुत कुछ तो सीख ही जाएंगे और यह देखने के लिए कि किसी कहानी के फिल्मांकन के दौरान कैसे इंसाफ़ किया जाता है, इस के लिए गुलज़ार साब की कृत्तियों से रू-ब-रू तो होना ही पड़ेगा।

दूरदर्शन के विभिन्न चैनल इतने अच्छे कार्यक्रम दिखाते हैं कि मेरी तो इच्छा होती है कि काश मैं केवल दूरदर्शन के कार्यक्रम ही देखा करूं (समाचारों को छोड़ कर...कारण आप जानते ही होंगे)... राज्यसभा टीवी, लोकसभी टीवी, डीडीभारती, राष्ट्रीय चैनल, डीडीन्यूज़ पर सेहत संबंधी कार्यक्रम ...इन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। यह मेरा व्यक्तिगत विचार है।

आज जो मैंने कहानी देखी ईदगाह उस के वीडियो का लिंक यहां दे रहा हूं...आप भी देख सकते हैं और इन कलाकारों की महानता आप को भी अचंभित कर देगी....... इस लिंक पर क्लिक करिए...

4 टिप्‍पणियां:

  1. होली की शुभकामनायें ..चोपड़ा जी मैंने आज का लिंक सेव करके अपनी प्लेलिस्ट में जोड़ लिया है ..आराम से देखूंगा
    मैंने बचपन में मुंशी जी कोपड़ा है ...जितनी समझ थी उतना समझ कर भीबहुत भावुक हो जाता था ...आज भी उनकी कहानियों के साधारण पात्र दिमाग में जिन्दा हैं ......अच्छे लिंक के लिए शुक्रिया . स्वस्थ रहें !

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    1. डियर सलूजा जी, आप को भी होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.... सही बात है मुंशी प्रेम चंद जी को पढ़ना भी अपने आप में एक बहुत सुखद अहसास है। धन्यवाद जी।

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  2. मुंशी प्रेमचन्द तो बरास्ते उर्दू आये और हिन्दी को धन्य कर गये!

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    1. जी हां, वह तो है.....लेकिन चिंता की बात यह है कि आज की युवा पीढ़ी अपनी धरोहर से अनजान है। ऐसे महान कथाकारों की कहानियां केवल किस्से ही नहीं है, ऐसा लगता है कि वे पढ़ने वाले को झकझोर कर रख देते हैं.. और कहीं न कहीं एक अच्छा मानस बनने की नींव डाल देते हैं। कलम में ऐसा जादू.......ऐसी शख्शियतों को शत्-शत् नमन।

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