जब भी कोई त्योहार आता है तो इस तरह की खबरें-वबरें बहुत आनी शुरू हो जाती हैं.....अभी दो दिन पहले ही देखा कि कुकिंग ऑयल में किस हद तक मिलावट की खबरें आ रही हैं।
मुझे याद है कि कुछ वर्ष पहले तक और वैसे तो आज भी इस देश के घरों में सरसों का तेल किसी कोल्हू से लाने का बड़ा रिवाज सा था.....मुझे अभी एक कहावत भी याद आ गई..कोल्हू का बैल...शायद मैंने कभी देखा नहीं कोल्हू में बैल को तेल निकालते हुए या फिर ४० वर्ष पहले कभी देखा होगा ऐसा कुछ अमृतसर में जिस की धुंधली सी याद अभी कायम है। या फिर पता नहीं मैं जिस बैल की बात कर रहा हूं उसे हम लोग गन्ने का रस निकालते ही देखा करते थे.....यह तो बहुत बार देखा अमृतसर में हमारे स्कूल के रास्ते में एक बैल गोल-गोल घूमा करता था और गन्ने का रस निकालने में मालिक की मदद किया करता था।
हां, तो बात चल रही थी, सरसों के तेल की...पंजाबी में एक शब्द है ..कच्ची घानी का तेल.....मतलब मुझे भी नहीं पता लेकिन अकसर जिन दुकानों पर खुला सरसों का तेल बिकता है, वे इसे अपनी यूएसपी बताते हैं कि उन के यहां कच्ची घानी का तेल बिकता है।
कुछ महीने पहले मुझे सरसों का तेल लाने के लिए कहा गया.......मैं एक मशहूर दुकान पर गया...और उस से पूछा कि किस ब्रांड का तेल उस के पास है। उस ने दो -तीन नाम गिना दिए और साथ में अपने यहां निकाले गये तेल (खुले में बिकने वाले) की तारीफ़ करने लगा.....दाम उस के यहां खुले बिकने वाले तेल का ब्रांडेड बिकने वाले तेल से ज़्यादा ही थी, इसलिए मुझे लगा कि यही सब से बढ़िया विक्लप है।
मैं उस के यहां बिकने वाले खुले तेल की बोतल ले आया। लेकिन घर आने पर मेरी श्रीमति ने बताया कि खुला तेल कभी नहीं लाना चाहिए......बात मेरी समझ में तुरंत आ गई। आजकल किस की बात का भरोसा करें किस का न करें, समझ नहीं आता। मिलावट का बाज़ार इतना गर्म है कि लोग अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
ब्रांडेड क्वालिटी में तो इतने तरह के नियम-कायदे मानने पड़ते हैं, फिर भी उन में भी कभी कभी मिलावट की खबरें आ ही जाती हैं। ऐसे में खुले में बिकने वाली किसी चीज़ पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। ब्रांडेड सील बंद बोतल में कम से कम कंपनी की साख तो दाव पर लगी होती है।
चार छः वर्ष पहले की बात है जब से ये देसी घी के मिलावटी होने की खबरें आम हो गई थीं तो मैं सोचता था कि कुछ मिठाईयां तो हमें रिफाईंड घी आदि की तैयार हुई ही खरीद लेनी चाहिए ...कभी कभी अगर खाने की इच्छा हो तो...लेकिन अब वह रिफाईंड की तैयार मिठाईयों, भुजिया-वुजिया से भी डर ही लगता है......पता नहीं खुले में बिकने वाली इन खाध्य पदार्थों में लोभी लोगों ने क्या क्या धकेला होता है। एक बार की बात है हरियाणा की एक मिठाई की दुकान की....हम ने बेसन के लड्डू खरीदे ..लेकिन यकीन मानिए जब उन्हें हाथ लगाया तो वे इतने पिलपिले की मैं बता नहीं सकता.....उन्हें खाना तो क्या था, छूते ही सिर दुखने लगा....पता नहीं उन में कौन सा तेल डाला गया था। कहते ये सारे एक ही बात हैं.....हम तो रिफाईन्ड के अलावा कुछ भी इस्तेमाल नहीं करते।
दो दिन पहले ही की खबर है कि ये जो सॉस--- जी हां, सॉस, एकता कपूर के नाटकों वाली सास नहीं, जगह जगह बाज़ार में बिकती है ..इन में प्रिज़र्वेटिव की मात्रा इतनी ज़्यादा होती है कि इन्हें खाना कैंसर को निमंत्रण देने के बराबर है। और ये सब पदार्थ वे इतनी ज़्यादा मात्रा में इसलिए डाल देते हैं ताकि उन का सामान बहुत दिनों तक खराब न हो। दोनों खबरें टाइम्स ऑफ इंडिया में आई थीं........बाहर बाल्कनी में अखबार पड़ी है, मैं लिंक यहां दे देता लेकिन आज कल हमारे घर में इतने ज़्यादा मच्छर हैं कि हम लोग शाम के वक्त बाल्कनी का दरवाज़ा नहीं खोलते, बाहर से ढ़ेरों मच्छर आ जाते हैं।
इस टमाटर सॉस एवं चिल्ली सॉस वाली खबर में तो यहां तक लिखा था कि इन में से कुछ की तो टैस्टिंग की गई और टमाटर सॉस में टमाटर गायब था और चिल्ली सॉस से चिल्ली नदारद थी.......सब तरह के सस्ते सब्स्टिच्यूट उन में पाए गये थे। इस तरह के प्रमाण एक प्रसिद्ध फूड एंड टॉक्सीकॉलोजी रिसर्च इंस्टीच्यूट के द्वारा दिए गये थे। ये सॉस वो हैं जो बिना किसी ब्रांड के ऐसे ही समोसे-कचौरी, नूडल के खोमचों, चाईनीज़ फूड के आउटलैट्स पर पड़ी रहती हैं।
इतनी मिलावट....इतना लोभ, पब्लिक की सेहत से इतना खिलवाड़..........इन सब के बारे में पढ़ कर सिर तो दुःखता ही है, उलटी होने लगती है।
समाधान क्या है, यही है कि हम लोग इन चीज़ों से दूरी बनाए रखें.......सरकारी तंत्र किन किन चीज़ों की टैस्टिंग करेगा, कब कब करेगा, क्या क्या रिपोर्ट आयेगी.... कब कब किसी को सजा होगी.......इन चक्करों में ना ही पड़ें तो बेहतर होगा............ऐसी सब सस्ती किस्म की बाजार में खुले में बिकने वाली चीज़ों का बहिष्कार तो हम आज ही से कर ही सकते हैं..........यह हमारी आपकी सेहत का मामला है।
मुझे याद है कि कुछ वर्ष पहले तक और वैसे तो आज भी इस देश के घरों में सरसों का तेल किसी कोल्हू से लाने का बड़ा रिवाज सा था.....मुझे अभी एक कहावत भी याद आ गई..कोल्हू का बैल...शायद मैंने कभी देखा नहीं कोल्हू में बैल को तेल निकालते हुए या फिर ४० वर्ष पहले कभी देखा होगा ऐसा कुछ अमृतसर में जिस की धुंधली सी याद अभी कायम है। या फिर पता नहीं मैं जिस बैल की बात कर रहा हूं उसे हम लोग गन्ने का रस निकालते ही देखा करते थे.....यह तो बहुत बार देखा अमृतसर में हमारे स्कूल के रास्ते में एक बैल गोल-गोल घूमा करता था और गन्ने का रस निकालने में मालिक की मदद किया करता था।
हां, तो बात चल रही थी, सरसों के तेल की...पंजाबी में एक शब्द है ..कच्ची घानी का तेल.....मतलब मुझे भी नहीं पता लेकिन अकसर जिन दुकानों पर खुला सरसों का तेल बिकता है, वे इसे अपनी यूएसपी बताते हैं कि उन के यहां कच्ची घानी का तेल बिकता है।
कुछ महीने पहले मुझे सरसों का तेल लाने के लिए कहा गया.......मैं एक मशहूर दुकान पर गया...और उस से पूछा कि किस ब्रांड का तेल उस के पास है। उस ने दो -तीन नाम गिना दिए और साथ में अपने यहां निकाले गये तेल (खुले में बिकने वाले) की तारीफ़ करने लगा.....दाम उस के यहां खुले बिकने वाले तेल का ब्रांडेड बिकने वाले तेल से ज़्यादा ही थी, इसलिए मुझे लगा कि यही सब से बढ़िया विक्लप है।
मैं उस के यहां बिकने वाले खुले तेल की बोतल ले आया। लेकिन घर आने पर मेरी श्रीमति ने बताया कि खुला तेल कभी नहीं लाना चाहिए......बात मेरी समझ में तुरंत आ गई। आजकल किस की बात का भरोसा करें किस का न करें, समझ नहीं आता। मिलावट का बाज़ार इतना गर्म है कि लोग अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
ब्रांडेड क्वालिटी में तो इतने तरह के नियम-कायदे मानने पड़ते हैं, फिर भी उन में भी कभी कभी मिलावट की खबरें आ ही जाती हैं। ऐसे में खुले में बिकने वाली किसी चीज़ पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। ब्रांडेड सील बंद बोतल में कम से कम कंपनी की साख तो दाव पर लगी होती है।
चार छः वर्ष पहले की बात है जब से ये देसी घी के मिलावटी होने की खबरें आम हो गई थीं तो मैं सोचता था कि कुछ मिठाईयां तो हमें रिफाईंड घी आदि की तैयार हुई ही खरीद लेनी चाहिए ...कभी कभी अगर खाने की इच्छा हो तो...लेकिन अब वह रिफाईंड की तैयार मिठाईयों, भुजिया-वुजिया से भी डर ही लगता है......पता नहीं खुले में बिकने वाली इन खाध्य पदार्थों में लोभी लोगों ने क्या क्या धकेला होता है। एक बार की बात है हरियाणा की एक मिठाई की दुकान की....हम ने बेसन के लड्डू खरीदे ..लेकिन यकीन मानिए जब उन्हें हाथ लगाया तो वे इतने पिलपिले की मैं बता नहीं सकता.....उन्हें खाना तो क्या था, छूते ही सिर दुखने लगा....पता नहीं उन में कौन सा तेल डाला गया था। कहते ये सारे एक ही बात हैं.....हम तो रिफाईन्ड के अलावा कुछ भी इस्तेमाल नहीं करते।
दो दिन पहले ही की खबर है कि ये जो सॉस--- जी हां, सॉस, एकता कपूर के नाटकों वाली सास नहीं, जगह जगह बाज़ार में बिकती है ..इन में प्रिज़र्वेटिव की मात्रा इतनी ज़्यादा होती है कि इन्हें खाना कैंसर को निमंत्रण देने के बराबर है। और ये सब पदार्थ वे इतनी ज़्यादा मात्रा में इसलिए डाल देते हैं ताकि उन का सामान बहुत दिनों तक खराब न हो। दोनों खबरें टाइम्स ऑफ इंडिया में आई थीं........बाहर बाल्कनी में अखबार पड़ी है, मैं लिंक यहां दे देता लेकिन आज कल हमारे घर में इतने ज़्यादा मच्छर हैं कि हम लोग शाम के वक्त बाल्कनी का दरवाज़ा नहीं खोलते, बाहर से ढ़ेरों मच्छर आ जाते हैं।
इस टमाटर सॉस एवं चिल्ली सॉस वाली खबर में तो यहां तक लिखा था कि इन में से कुछ की तो टैस्टिंग की गई और टमाटर सॉस में टमाटर गायब था और चिल्ली सॉस से चिल्ली नदारद थी.......सब तरह के सस्ते सब्स्टिच्यूट उन में पाए गये थे। इस तरह के प्रमाण एक प्रसिद्ध फूड एंड टॉक्सीकॉलोजी रिसर्च इंस्टीच्यूट के द्वारा दिए गये थे। ये सॉस वो हैं जो बिना किसी ब्रांड के ऐसे ही समोसे-कचौरी, नूडल के खोमचों, चाईनीज़ फूड के आउटलैट्स पर पड़ी रहती हैं।
इतनी मिलावट....इतना लोभ, पब्लिक की सेहत से इतना खिलवाड़..........इन सब के बारे में पढ़ कर सिर तो दुःखता ही है, उलटी होने लगती है।
समाधान क्या है, यही है कि हम लोग इन चीज़ों से दूरी बनाए रखें.......सरकारी तंत्र किन किन चीज़ों की टैस्टिंग करेगा, कब कब करेगा, क्या क्या रिपोर्ट आयेगी.... कब कब किसी को सजा होगी.......इन चक्करों में ना ही पड़ें तो बेहतर होगा............ऐसी सब सस्ती किस्म की बाजार में खुले में बिकने वाली चीज़ों का बहिष्कार तो हम आज ही से कर ही सकते हैं..........यह हमारी आपकी सेहत का मामला है।
upbhokta kya kare, use to kana hi padega aur khake marna hi padega. jeb bharegi dr. ki aur mal kamaega bechane vala.
जवाब देंहटाएंसही फरमाया आपने...
हटाएं
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ट्विटर और फेसबुक पर चुनावी प्रचार - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंसबसे बड़िया विकल्प ..जितना हो सके इससे दूरी बनाये रखने की कोशिश !
जवाब देंहटाएंआभार !
सही कह रहे हैं, सलूजा जी, आप....... इस के अलावा कोई रास्ता है भी नहीं। यह लोभ-लालच और जल्दी नोट कमा लेने की बीमारी इतनी पुरानी एवं गंभीर हो चुकी है कि अगर उपभोक्ता ही ऐसी वस्तुएं न खरीदें तो ही बात बन सकती है।
जवाब देंहटाएंस्थिति बहुत अफसोसजनक है।
मैं कुछदिन पहले सरसों का ब्राण्डेड तेल लेकर आई । कुछ ही दिनों में देखा कि तेल का आधा नीचे वाला हिस्सा जम गया है । मैंने न केवल तेल वापस किया वरन् दुकानदार को भी चेताया कि ऐसा सामान न रखा करे ।
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