सोमवार, 3 जनवरी 2011

मीडिया समाज का आईना ही तो है !

आज सुबह सवेरे अंग्रेज़ी अखबार में पढ़ी मुझे दो खबरें अभी तक याद है –बाकी तो सब खबरें रोज़ाना एक जैसी ही होती हैं ऐसा मैं सोचता हूं।

एक खबर थी जिस में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर एक महिला को पचास हजार का ईनाम देने की बात थी और साथ ही उस को यह अवार्ड दिये जाने की तस्वीर भी थी। महिला 40 से ऊपर की लग रही थी क्योंकि उस के बेटों की उम्र बताई गई थी जो कि 20 वर्ष के ऊपर के थे। हां तो इस महिला ने क्या किया? –इस महिला ने इतने अदम्य साहस का परिचय दिया कि इसे तो राष्ट्रीय स्तर पर भी पुरस्कृत किया जाना चाहिये। यह महिला एक मल्टीनैशनल बैंक में काम करती हैं, कुछ दिन पहले यह अपने घर की तरफ़ आ रही थी कि मोटर साईकल सवार युवकों ने इन के पास रूक कर कुछ पूछने के बहाने इन की चेन झपट ली.... इन्होंने उस वक्त इतना साहस दिखाया कि इन्होंने मोटर साईकिल के पीछे बैठे हुये लुटेरे का कॉलर पकड़ लिया। उस युवक ने कहा कि मुझे छोड़ दो, वरना मैं तुम्हें गोली मार दूंगा लेकिन यह महिला टस से मस न हुई। इस पर उस युवक ने इन के सिर पर अपनी पिस्टल से वार करना शुरू कर दिया ---लेकिन इन्होंने इस दौरान उस कमबख्त का क़ालर न छोड़ा ....इतने समय में आस पास लोग इक्ट्ठा हो गये और उस लुटेरे को धर दबोचा गया। मुझे यह खबर देख कर बहुत खुशी हुई – आज के वातावरण में जहां जगह जगह छोटी छोटी बच्चियों को जबरन उठा कर उन के सामूहिक उत्पीड़न की खबरें इतनी आम हो गई हैं कि जनआक्रोश का पानी नाक तक आ चुका है। मैं इस महिला को नमन करता हूं जिसने अपनी बहादुरी से एक उदाहरण पेश की है। काश, बलात्कार करने वालों की भी कोई शिकार सामने आए जो इन को कोई ऐसा सबक सिखा दे जिस वजह से ये बेलगाम दरिंदे सारी उम्र किसी लड़की के पास फटकने से डरने लगें। अभी अभी जो नांगलोई में एक लड़की के साथ दरिंदगी हुई , यह कितनी शर्मनाक बात है...... उन रईस दरिंदों का क्या होगा,यह आप सब को अच्छी तरह से पता ही है लेकिन उस बेचारी की तो सारी ज़िंदगी खऱाब हो गई।

हां , तो मैं आज की अखबार की दूसरी खबर की बात कर रहा था... दूसरी खबर थी कि उड़ीसा के मंदिर में दो बंगाली मुसलमान युवक दर्शन पहुंच गये, उन को पुलिस के हवाले कर दिया गया और पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। मुझे ऐसी खबरें पढ़ कर बहुत शर्मिंदगी होती है क्योंकि मैं तो 10 साल बंबई में रहा, बीसियों बार मस्जिदों में गया, मुझे तो किसी ने नहीं रोका........मुझे यह खबर पढ़ कर इतनी घुटन हुई कि मैं ब्यां नहीं कर सकता। मैं यही सोच रहा था कि अगर हम लोगों ने आज भी यह सब करना है तो फिर क्यों हम अपने बच्चों को पढ़ाते हैं कि भगवान, अल्ला, ईश्वर, वाहेगुरू ....सब एक हैं...God is one……..हमारी तकलीफ़ों का कारण भी हम ही हैं, हम दोगले हैं, कहते कुछ हैं, सोचते कुछ हैं और करते कुछ हैं। मैं सोच रहा हूं कि आखिर यह पुरान दकियानूसी नियम कौन बदलेगा कि सभी धार्मिक स्थानों पर हर कोई जा सकता है, ये सब के हैं .......ये सब के साझे हैं।

कईं कईं खबरें सच में हमें झकझोड़ देती हैं और बहुत सोचने पर मजबूर करती हैं।

7 टिप्‍पणियां:

  1. चोपडा जी मै आप की भावनाओ की बहुत इज्जत करता हुं,ओर सभी मुस्लिम भाई एक से नही, ९०% अच्छे हे, लेकिन जो १०% या इस कम के हे यह उन्ही के कारण हो रहा हे, अगर पुलिस या लोग इन्हे ना चेक करे ओर कोई हादसा हो जाये तो भी लोग मंदिर के सदस्यो ओर पुलिस को बुरा कहेगे, इस लिये पुलिस ने अपना फ़र्ज निभाया हे, मेरे साथ मेरे मुस्लिम दोस्त कई बार मंदिर गये कभी किसी ने चेक नही किया, मै भी कई बार मस्जिद मे गया कभी किसी को कोई ऎतराज नही,हां अगर वो अकेला मंदिर जाता, या मै मस्जिद मे जाता तो यह सब हमारे साथ भी हो सकता हे, इस सब की जड हमारे नेताओ ने बो दी हे हम सब के बीच

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  2. हमारी तकलीफ़ों का कारण हम ही हैं क्यों की इस्लाम कुछ और कहता है हम कुछ और कर रहे होते हैं और नतीजे मैं इस्लाम बदनाम होता है. वैसे यह हादसा जो हर मुसलमान को दहशतगर्द समझने का हो रहा है इसके पीछे इस्लाम को बदनाम करने की पश्चिमी देशों की साजिश काम क्र रही है . क्या गाँधी को मुसलमान से मारा, या इंदिरा को या राजीव को? और तलाशी होती है मुसलमान की?

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  3. बहुत बढिया पोस्ट लाये जी आप
    पहली खबर जन-जागरण के लिये प्रेरणा है और ऐसे साहसी लोगों खासकर महिलाओं और औरतों का सम्मान जरुर करना चाहिये। ताकि असामाजिक तत्त्व जो कानून से नहीं डरते हैं, वो आम जनता से ही डरें।

    दूसरी खबर खेदजनक है, राज जी और एस एम मासूम जी ने बहुत सही कहा है।
    सुरक्षा की दृष्टि से भी चैकिंग बाहर होनी चाहिये और सबकी होनी चाहिये। दहशतगर्दों का तो कोई धर्म नहीं होता। किराये के ट्टटू हर कौम में हो सकते हैं।

    प्रणाम

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