कच्चे खाने ( raw food) पर लिखी गई एक बहुत ही बढ़िया इंगलिश की किताब मैंने पढ़ी थी – Raw Energy –अभी भी मेरे पास पड़ी होगी कहीं किताबों के ढेर में । मैं इस में लिखी बातों से बहुत प्रभावित भी हुआ और उन से इत्तफाक भी रखता हूं।
इस किताब में कच्चे खाने की सिफारिश करते हुये बार बार यह कहा गया है कि धीरे धीरे हमें अपने खाने में कच्चे खाने को अधिक से अधिक जगह देना चाहिये। उन दिनों मैं बंबई में सिद्ध समाधि योग (turning point in my life !!) के प्रोग्रामों में भी जाया करता था –इसलिये इस किताब में लिखी बातों ने मेरे ऊपर बहुत असर किया।
दरअसल पका हुया खाने के चक्कर में हम लोग पहले तो बेशकीमती विटामिन और खनिज तत्व गंवा बैठते हैं और फिर बाद में विटामिनों की गोलियां निगल कर इन की भरपाई करने का विफल प्रयास करते रहते हैं।
हम अकसर थोड़ा बहुत सलाद खा कर ही इत्मीनान कर लेते हैं -- मुझे याद है हम लोग जिस योग-क्लास में जाया करते थे वहां पर Raw food तैयार करवा कर हमें खिलाया जाता था। हमें बार बार यह भी कहा जाता था कि जब आप कच्चा खाना खा रहें हैं तो आप को इस बात का ज़्यादा ध्यान रखने की ज़रूरत नहीं होती कि कहीं आप ओव्हर-ईटींग तो नहीं कर रहे, और आप जितना चाहे खा लें, ज़्यादा कैलोरी की चिंता करने की भी आफ़त नहीं।
चलिये, आज के विषय पर लौटते हैं – अंकुरित दालें ---इन की जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम होगी। मैं जिस किताब की बात कर रहा हूं उस में इन अंकुरित दालों एवं अनाजों को पावर-डायनैमो ( sprouts are compared to power dynamos). आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कितनी अथाह शक्ति का स्रोत होंगे।
मैं जितनी बार भी अपने किसी मरीज़ को अंकुरित दालें आदि खाने की सलाह देता हूं तो मुझे यही जवाब मिलता है कि हां, हां, कभी कभी खाते हैं। लेकिन आगे पूछने पर पता चलता है कि वे इन अंकुरित दालों को भी पका कर ही कभी कभी खाते हैं। यह पूछने पर कि क्या इन अंकुरित दालों को बस ऐसे ही बिना पकाये खाया है, तो लगभग हमेशा यही जवाब मिला है कि यह तो हम से नहीं हो पाता।
क्या आपने कभी अंकुरित दालें आदि बिना पकाये खाई हैं ? मैंने पिछले 15 सालों में खूब खाई हैं। कैसे ? --- लगभग आधी कटोरी अगर आप ले कर उस में थोड़ा सा नींबू डाल लें तो आराम से खाया जाता है। और फिर सेहत के लिये थोड़ा स्वाद का ध्यान तो छोड़ना ही होगा। वैसे, अगर आप को इन्हें खाने में दिक्तत सी आये तो आप इन के दो-चार चम्मच लेने से शूरूआत कर सकते हैं।
स्वाद के लिये जहां तक इन में नमक डालने की बात है, किसी भी उम्र के लिये उस की सिफारिश नहीं की जा सकती क्योंकि इस से यू ही उच्च रक्तचाप होने की संभावना बढ़ती है----इसलिये जितना नमक कम लिया जाये उतना ही बेहतर है। अकसर बच्चों के भी बचपन में ही स्वाद डिवैल्प होते हैं इसलिये उन्हें भी बचपन से ही जितना हो सके किसी तरह कम नमक-मिर्ची वगैरह की ही आदत डाली जाये तो उम्र भर सेहतमंद रहेंगे।
वैसे मुझे याद हैं जब मैंने 1994 में अंकुरित दालों आदि को खाना शूरू किया तो मेरे को भी थोड़ी कठिनाई तो होती थी ---- लेकिन हमारे उस बंबई वाले ग्रुप में जब सभी खाते थे तो फिर आराम से यह सब हो जाता था और जब हमें वीकएंड-रिट्रीट के लिये बंबई के पास मुरबाड आश्रम ले कर जाया जाता था तो वहां तो हमें पूरा कच्चा खाना ( raw food) ही दिया जाता था।
और मैंने जिन अंकुरित दालों आदि को खूब खाया है और आज कल भी अकसर खाता ही हूं वे हैं साबुत मूंग की दाल ( हरी, छिलके वाली दाल), मसर की दाल आदि, मेथी दाना भी अकुरित कर के कईं बार खाया है। वैसे कहते तो हमें कईं तरह के अनाज को अंकुरित कर के खाने को भी थे लेकिन वह पता नहीं कभी हो नहीं पाया।
अनुभव के आधार पर भी कह सकता हूं कि ये अंकुरित दालें आदि तो पावर-डायनैमो ही हैं। इन का नियमित सेवन बेइंतहा फायदेमंद है ----इन के क्या क्या गुण गिणायें ? अगर आप ने अभी तक ट्राई नहीं किया तो अभी शूरू करिये। अगर शूरू शूरू में दिक्तत लगे तो आप इन्हें दाल-रोटी के साथ उस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं जिस तरह कभी कभी सेव, भुजिया आदि को लेते हैं।
और जो लोग अकेले रहते हैं, होस्टल में रहते हैं या जिन्होंने टिफिन लगा रखा है उन्हें भी ये अंकुरित बहुत रास आयेंगे। इन्हें तैयार करने में कोई विशेष ताम-झाम की भी ज़रूरत नहीं होती। आसानी से सब हो जाता है। बस इन का सेवन करने की इच्छा होनी चाहिये।
मुझे ध्यान आ रहा है कि हमें उस योग क्लास में कभी कभी इन अंकुरित दालों को पानी में भिगाये हुये पोहे में डाल कर भी दिया जाता था जिन में कच्ची गाजर आदि को भी कद्दूकश कर के डाला होता था और थोड़ा गुड़ भी ----सचमुच वे दिन भी क्या दिन क्या थे !!
और हां, इसे पढ़ने के बाद आप अंकुरित अनाज के अपने अनुभव बांटिये जिन के इस्तेमाल का मुंझे कोई खास अनुभव नहीं है।
हमेशा के समान एक बहु उपयोगी आलेख.
जवाब देंहटाएंमैं तो काफी समय से अंकुरित मूंग का प्रेमी हुँ
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
bahब्त अच्uछी जानकारी है धन्यवाद
जवाब देंहटाएंएक उम्दा पोस्ट. हरी मूंग और चना तो हम नियमित अंकुरित बिना पकाये खाते हैं सुबह नाश्ते में.
जवाब देंहटाएंमुझे भी बहुत पसंद है अंकुरित दालें..सही कहा आपने की यह सेहत के लिए बहुत अच्छी है शुक्रिया
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज तक तो चने, मूंग, लोबिया, उड़द और मूंगफली आदि को अंकुरित कर खाया करते थे/ हैं, पर दालें भी अकुंरित हो जाती है यह पता ना था। उन्हें कैसे अंकुरित किया जाये..?
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बहुत ही उपयोगी जानकारी,,घर में पापाजी पक्के शौकीन थे स्प्राउट्स के .बड़ी स्वादिष्ट भी होती है ये...पर आपकी 'नमक' वाली बात, करनी थोड़ी मुश्किल है, पर बात सोलोहों आना सच है.....शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंये दालें कैसे अंकुरित की जायें कृप्या मार्गदर्शन करें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने, आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी दी है आपने। आभार। इसकी आगे की कडियों की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
मै तो सालाद ओर हरी सबजियां कच्ची ही खा लेता हुं, काले चने भी भीगे हुये, गोभी का फ़ुल, पत्ता गोभी ओर अंकुरित दाल युं खाना तो मुश्किल हे हां उसे सालाद मे डाल कर खीरे , अंगुर अनार के दानो के संग जरुर खा लेते हे, जिस से स्वाद भी आता हे, ओर अंकुरित दाले भी खा ली जाती हे. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमें राजस्थान बीकानेर से हूँ आवर में स्पेशल अंकुरित अनाज ही तैयार करता हूँ और लोगो को प्रेरित भी करा हूँ की आप को इस भाग दौड़ की जिंदगी ने आपको स्वास्त्य रहना ह तो आप अंकुरित ही खाएं क्योंकि में इन्हे बहुत ही अच्छी तरह तैयार करता हूँ जैसे की मुंग ,उर्द चना मेथी लुबिया मूंगफफली कद्दू बीज ,मोठ तुअर और स्पेशल सबको बतात भी हूँ की इससे क्या फायदा यंहा तक की पुरे पोसक तत्व के बारे में तो मेरी सलाह की आपको इस सदी में अच्छी तरह जीना ह तो अंकुरित्य अनाज जरूर खयें दीनदयाल सारस्वत बीकानेर राजस्थान
जवाब देंहटाएंKeyboard in Hindi
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