यह टापिक मैंने आज इसलिये चुना है क्योंकि आज मेरे पास एक लगभग 18-20 वर्ष की युवती आई मुंह की किसी तकलीफ़ के कारण ----अभी मैं उस को एक्ज़ामिन कर ही रहा था तो उस का पिता बीच में ही बोल पड़ा---इन को मैंने बहुत बार मना किया है कि घर में एक दूसरे का ब्रुश न इस्तेमाल किया करो। मेरा माथा ठनका---क्योंकि ऐसी बात मैं कैरियर में पहली बार सुन रहा था।
इस से पहले कईं साल पहले मुझे मेरे ही एक मरीज़ ने बताया था कि उस के घर के सारे सदस्य एक ही ब्रुश का इस्तेमाल करते हैं---उस बात से भी मुझे शॉक लगा था।
यह जो आज युवती से बात पता चली कि वे घर में एक दूसरे का टुथब्रुश इस्तेमाल करने से हिचकते नहीं हैं- जो भी जल्दी जल्दी में हाथ लगता है, उसी से ही दांत मांज लेते हैं। वह युवती बतला रही थी कि यह सब कॉलेज जाने की जल्दबाजी में होता है और इस के लिये वह सारा दोष अपने भाई के सिर पर मढ़ रही थी।
खैर, इन दोनों केसों के बारे में आप को बतलाना ज़रूरी समझा इसलिये बतला दिया। लेकिन यह जो बात युवती ने बताई, क्या आप को नहीं लगता कि यह बात तो हमारे घर में भी कभी कभार हो चुकी है---जब हमें किसी बच्चे से पता चलता है कि आज तो उस ने बड़े भैया का ब्रुश इस्तेमाल कर लिया।
अच्छा तो क्या करें ? ---इस तरह के बिहेवियर के लिये कौन दोषी है? ---मुझे लगता है कि इस के लिये सब से ज़्यादा दोषी है ---लोगों की इस के बारे में अज्ञानता कि टुथब्रुश के ऊपर जो कीटाणु होते हैं वे एक दूसरे का ब्रुश इस्तेमाल करने से एक से दूसरे में ट्रांसफर हो जाते हैं-----ठीक है, बहुत से लोग अभी भी टुथब्रुश को शू-ब्रुश जैसे ही इस्तेमाल करते हैं लेकिन इस से टुथब्रुश शू-ब्रुश तो नहीं बन गया !!
अच्छा आप एक बात की तरफ़ ध्यान दें----अधिकांश लोगों के पास छोटे छोटे से गुसलखाने ( नाम ही कितना हिंदोस्तानी और ग्रैंड लगता है--- नाम सुनते ही नहाने की इच्छा एक बार फिर से हो जाये) होते हैं ---पांच-सात मैंबर तो हर घर में होते ही हैं ---अब एक प्लास्टिक के किसी डिब्बे जैसे जुगाड़ में सात ब्रुश पड़े हुये हैं और जो तीन-चार ज़्यादा ही हैल्थ-कांशियस टाइप के बशिंदे हैं उन की जुबान साफ़ करने वाली पत्तियां भी उसी में पड़ी हुई हैं तो भला कभी कभार गलती लगनी क्या बहुत बड़ी बात है ? --- हमारे ज़माने में तो किसी रिश्तेदार के यहां जाने पर या किसी ब्याह-शादी में जाने पर अपना( ( ब्रुश, अपनी शेविंग किट भी मेजबान के गुसलखाने में ही टिका दी जाती थी। हां, तो मैं बार बार गुसलखाना इसलिये लिख रहा हूं कि पहले गुसलखाने ही हुआ करते थे और इन्हें बुलाया भी इसी नाम से ही जाता था और अच्छा भी यही नाम लगता था ----शायद नाम में कुछ इस तरह की बात है कि लगता है कि जैसे किसी बादशाह के नहाने का स्थान है...गुसल..खाना !! लेकिन होता तो अकसर यह बिलकुल बुनियादी किस्म का एक जुगाड़ ही था---एक टब, एक लोहे की प्राचीन बाल्टी और एक एल्यूमीनियम का बिना हैंडल वाली डिब्बा----और साथ में एक बहुत हवादार खिड़की ----हां, तो खिड़की में एक सरसों के तेल की शीशी ज़रूर पड़ी रहती थी और फर्श पर एक टूटी हुई एतिहासिक साबुनदानी में एक देसी साबुन की और एक अंग्रेज़ी साबुन की चाकी भी ज़रूर हुआ करती थी ( पंजाबी में साबुन की टिकिया को चाकी कहते हैं) -----लेकिन पता नहीं कब ये गुसलखाने बाथ-रूम में बदल गये ----हर बशिंदे के कमरे के साथ ही सटक गये.....साथ ही क्या, उस के अंदर ही सटक गये और साथ में ले आये ---तरह के शैंपू की शीशियां, पाउच, पीठ साफ करने वाला जुगाड़, एडी साफ करने वाला कुछ खास जुगाड़ और ......सारी, मैं अपने टापिक से भटक गया था।
हां, तो बात हो रही थी कि आज कल के छोटे-छोटे बाथरूमों की ---एक दूसरे का ब्रुश इस्तेमाल करने की इस तरह की गल्तियां यदा कदा होनी स्वाभाविक ही हैं । डैंटिस्ट हूं ----इसलिये इस विषय पर बहुत सोच विचार के इसी निष्कर्ष पर ही पुहंचा हूं कि इस से बचने का केवल एक ही उपाय है कि हम लोग अपने टुथब्रुश को और अपनी जीभी (जुबान साफ़ करने वाली पत्ती ) को एक बिल्कुल छोटे से गिलास में अलग से ही रखें। और जहां तक कोशिश हो, अगर बाथ-रूम छोटा है तो इस गिलास को उधर न ही छोड़े। इस के पीछे की एक वजह मैं अभी थोड़े समय में आप को सुनाऊंगा।
अतिथि देवो भवः -----मेहमान भगवान का रूप होता है लेकिन अगर यही भगवान आप से टावल, कंघी, या रेज़र की मांग कर बैठता है तो इतनी कोफ्त आती है कि क्या करें, पायजामे का जिक्र जानबूझ कर नहीं किया क्योंकि आज कल मेजबान से इसे मांगने का पता नहीं इतना रिवाज रहा नहीं है। एक बिलकुल सच्चा किस्सा सुना रहा हूं कि एक बंदे के यहां कईं बार मेहमान आ कर टुथब्रुश की मांग कर बैठते थे ----उस ने एक युक्ति लगाई ---उस ने एक टुथब्रुश खरीद लिया और उस के कवर को भी संभाल कर रख लिया ---जो भी मेहमान आये वह वही ब्रुश उस के आगे कर देता था ----मेहमान खुश हो जाता था --- और इस महानुभाव ने उस ब्रुश का नाम ही पंचायती ब्रुश डाल दिया । किस्सा तो यह बिल्कुल सच्चा है लेकिन मैं विभिन्न कारणों की वजह से इस की बेहद निंदा करता हूं।
हां, तो बात हो रही थी अपने टुथब्रुश एवं रेज़र आदि को अलग से ही रखने की। एक और किस्सा सुनाता हूं ---10-12 साल पुरानी बात है –एक लेडी ऑफीसर के कमरे में जाने का मौका मिला---वह अपने बंगला-चपरासी को फटकार लगा रही थी कि उस ने ही उस के मिस्टर की शेविंग किट यूज़ की है----पता नहीं उन का क्या फैसला हुआ लेकिन पता नहीं मेरे सबकोंशियस में एक बात ज़रूर बैठ गई और पता नहीं कब मैंने अपने टुथब्रुश और शेविंग किट को बाथरूम से बाहर किसी सेफ़ सी जगह रखना शुरू कर दिया---मेरे विचार में इस तरह इन को अलग रखने के कुछ फायदे तो हैं ही ----बाथरूम में किसी को गलती लगने का कोई स्कोप ही नहीं, और आप को किसी पर शक करने की कोई ज़रूरत ही नहीं कि उस ने कहीं आप की किट विट इस्तेमाल न कर ली हो, बात तो चाहे छोटी सी लगती है लेकिन इस से सुकून बहुत ज़्यादा मिलता है।
मेरे पास कईं मरीज़ आते हैं जब मैं उन से पूछता है कि आप लोग अपने अपने टंग-क्लीनर का कैसे ख्याल रखते हो----तो मुझे इस का कुछ संतोषजनक जवाब मिलता नहीं। कुछ लोग कह तो देते हैं कि हम लोग ब्रुश और टंग-क्लीनर को बांध कर ऱखते हैं लेकिन मुझे यकीन है कि यह कोई प्रैक्टीकल हल नहीं है। तो, मेरे विचार में तो एक छोटे से गिलास में अपनी यह एसैसरीज़ अलग ही रखने की आदत डाल लेनी चाहिये।
बस, दो बातें टुथब्रुश के बारे में कर के पोस्ट खत्म करता हूं । एक तो यह कि एक दूसरे का ब्रुश इस्तेमाल करने से कुछ तरह की इंफैक्शनज़ ट्रांसमिट होने का डर बना रहता है। विकसित देशों में तो इस बात की बहुत चर्चा है कि ब्रुश करने से पहले फलां सोल्यूशन में और फलां लिक्विड में भिगो लिया जाये---कीटाणुरहित किया जाये ----चूंकि ये चौंचलेबाजीयां हम लोगों ने ही आज तक नहीं कीं, इसलिये किसी को भी इन की सिफारिश भी नहीं की -----अपने यहां तो ब्रुश करने के लिये साफ पानी मिल जाये उसे ही एक वरदान समझ लेना काफ़ी है---- इसलिये ब्रुश को एंटीसैप्टिक से वॉश करने वाली बात हमारे लिये तो एक शोशा ही है -----शोशा इसलिये कह रहा हूं कि वैज्ञानिक होते हुये भी हम लोगों के लिये प्रैक्टीकल बिलकुल नहीं है।
जाते जाते नन्हे-मुन्नों के लिये जो ब्रुश इस्तेमाल किया जा रहा है उस के बारे में एक बात कर के की-पैड से अगुंलियां उठाता हूं । बात यह है कि जिस बेबी ब्रुश से मातायें अपने नन्हे-मुन्नों के दांत साफ करती हैं....वह झट से उन्हें छीन लेता है और हफ्ते दस दिन में ही चबा चबा कर उस ब्रुश का हाल बेहाल कर देता है ---उस का हल यही है कि आप दो ब्रुश रखें----एक से तो उस के दांत साफ कर के सुरक्षित रख दें और जब वह उसे छीनने की कोशिश करे तो उसे दूसरे वाला ब्रुश पकड़ा दें---जिस से साथ वह दो-मिनट खेल कर वापिस लौटा देगा-------वह भी खुश और आप भी !!
सोच रहा हूं कि आज सुबह उस युवती की बात ने भी मुझे क्या क्या लिखने के लिये उकसा दिया ----यकीनन हमारे मरीज़ ही हमें कुछ लिखने के लिये, अपने पुराने से पुराने अनुभव बांटने के लिये उकसाते हैं।
मैं तो इस तरह की घटना के बारे में पहली बार ही सुन रही हूं। टूथब्रश की बात क्या करें , आजकल तो लोग अपने साबुन , तौलिए , कंघे ,शेविंग ब्रश जैसे सामान भी अलग अलग रखते हैं , ताकि किसी एक को कोई बीमारी हो , तो सबपर प्रभाव न पडे।
जवाब देंहटाएं" good and useful artical on the toothbrush issue, it is uually a common problem faced by many o us in our daily rourine....thanks for sharing your experienec with solution"
जवाब देंहटाएंRegards
bahut hi bahdiya jankari rahi
जवाब देंहटाएंआप की नसीहत अच्छी है। मगर किसी के मुख में गई और वापस निकली कोई भी वस्तु दूसरे के मुहँ में न जाए यह तो शायद सदियों पुराना उसूल है।
जवाब देंहटाएंअगर ऎसा होता है तो क्यो न लोग अपने अपने टूथब्रश का रंग अलग अलग रखे, लेकिन हमे अपनी हर चीज जेसे टूथब्रश, तोलिये बगेरा अलग अलग रखन चाहिये, आप का धन्यवद एक अच्छी जानकारी देने के लिये
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