शनिवार, 5 अप्रैल 2008

जब पटना यूनिवर्सिटी में कोई सवाल ऑउट-ऑफ सिलेबस पूछा जाता है !


अरे, यार, यह क्या कर रहे हो !! -- सिलेबस से बाहर सवाल पूछने पर इतना आक्रोश ठीक नहीं लगता। सब्र रखो..क्या पता सब को ग्रेस-मार्क्स ही मिल जायें। लेकिन ऐसा ना हो कि यह तस्वीर देख कर पेपर-सैटर सिलेबस के बाहर से तो क्या सिलेबस के अंदर से भी प्रश्न पूछना भूल जाये। वैसे, एक बात तो बताओ......कहीं हल्लाबोल फिल्म कल ही तो नहीं देखी ?......जोश ही दिखाना है तो कलम से दिखाओ....आ जाओ हिंदी बलागिंग में.......बीएससी के छात्र हो तो क्या है, वह कहावत तो पढ़ी ही होगी.....Pen is mightier than the sword !!

2 टिप्‍पणियां:

  1. अगर कुछ छात्र ऐसा न करें भारत का भविष्य अंधकार मय हो जाएगा, डॉक्टर साहब। फिर देश चलाने को नेता कहाँ से लाएंगे?

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  2. कभी इलेक्‍शन विलेक्‍शन जीत गये तो ये कौशल विधानसभा, संसद में काम तो आएगा। आखिर इस कौशल की भी तो पढ़ाई और परीक्षा होनी चाहिए।

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