शनिवार, 8 मार्च 2008

दिल को देखो...चेहरा न देखो...चेहरों ने लाखों को लूटा !!

इस समय मैं अपने लैप-टाप पर सच्चा-झूठा का वह वाला गाना सुन रहा हूं..... दिल को देखो, चेहरा न देखो, दिल सच्चा और चेहरा झूठा....यह गाना मुझे इतना पसंद है कि मैं इसे एक ही स्ट्रैच में सैंकड़ों बार सुन सकता हूं। बिल्कुल रोटी फिल्म के उस गाने की तरह....यह पब्लिक है सब जानती है......अभी तक यह समझ नहीं आया कि आखिर इन हिंदी फिल्मों के गीतों में इतनी क्या कशिश है कि आदमी इन्हें सुनते ही झट से कईं साल पहले वाले ज़माने में पहुंच जाता है।
आज जब सुबह हास्पीटल में बैठा हुया था तो कहीं से रेडियो पर बज रहे रोटी कपड़ा और मकान के उस बेहतरीन फिल्म के गीत की आवाज़ सुनाई देरही थी....मैं न भूलूंगा....मैं न भूलूंगी...बस, 70 के दशक के तो फिल्मी गानों की क्या बात करूं.......मन करता है लिखता ही जाऊँ... लगभग ऐसे ही सैंकड़ों गीत होंगे जिन के साथ बचपनी की यादें जुड़ी हुई हैं और जब भी ये रेडियो पर, टीवी पर या लैपटाप पर बजते हैं तो बंदा अपने पिछले दिनों की याद में डुबकियां लगाना शुरू कर देता है। ये वो फिल्में हैं जो मैंने अपने पांचवी-छठी कक्षा के दौरान देखी हुई हैं। तो आप भी मेरी यादों के इन झरोखों में से अपना भी कहीं पीछे छूटा अतीत देखने की एक कोशिश तो कीजिये।

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