इस सुपर-डुपर पंजाबी गीत....बैठ के त्रिंजनां च सोहनीये...........पंजाबी मुंडा अपनी सोहनी से पूछ रहा है कि तुम त्रिंजनां( जब मुटियारां इक्ट्ठी हो कर बैठती हैं तो उसे त्रिंजन कहते हैं) ...में बैठ कर जब चादर पर कढ़ाई कर के फूल निकाल रही होती हो तो किस को याद कर के अपने लाल-लाल होंठों को दुपट्टे में छिपा कर हंसती रहती हो। यह भी बताओ कि वह कौन है जिस के लिये तुम इतना श्रृंगार करती हो !...यह भी बताओ कि तुम अंधेरी बन कर किस गबरू के ऊपर फिदा हो गई हो। वह कौन है जिस के लिये तुम अपनी उंगलियों में छल्ले डालने लग गई हो और अमावस्या के मेले पर भी आने लग पड़ी हो।
मुझे तो यह पंजाबी गीत बेहद पसंद है ...आप भी सुनिये।
भाई चोपड़ा जी
जवाब देंहटाएंजब भी पंजाबी गीत सुनने का जी करता है, आपकी गली में आ निकलता हूं और वापिस जाने का दिल नहीं करता, मैं पचास बरस से ज्यादा हो गये, मैं लोवर के जी में था और स्कूल जा रहा था, रास्ते में किसी खिड़की में से जिसं पंजाबी गाने की आवाज आयी थी वो था- लट्ठे दी चादर उत्त्ते स्लेटी रंग माइया . . आज भी ये गीत हांट करता है.
सूरज प्रकाश
चोपडा जी आज पहली बार आया हा तुहाडी इस गली विच, बहुत बहुत धन्यवाद, ओर बधाई इस ब्लोग दी
जवाब देंहटाएंमजा आ गया डाक्टर साहब..
जवाब देंहटाएंवैसे तो हमारा पानीपत भी पंजाबी बाहुल्य है परन्तु ८१-८२ के पटियाला प्रवास को हरा कर दिया इस पोस्ट ने.