रविवार, 16 दिसंबर 2007

अंग्रेज़ी अखबार के ये हैल्थ-कैप्सूल.........आखिर किस के लिए ..

अंग्रेजी का एक समाचार-पत्र जो काफी लोकप्रिय है उस में नियमित तौर पर एक छोटा-सा हैल्थ-कैप्सूल छपता है। उस में किसी भी स्वास्थ्य विषय के ऊपर एक संक्षिप्त एवं सटीक सी जानकारी दी जाती है। कई बार तो बात समझ में आ जाती है। लेकिन कईं बार यही नहीं पता चल पाता कि आखिर ये किस श्रेणी के पाठक के लिए लिखे जा रहे हैं-क्योंकि डाक्टर होते हुए भी उस में लिखी वस्तुओं( साग-सब्जियों आदि) का नाम भी मैं पहली बार ही देख रहा होता हूं। और भी रोचक बात यह है कि कई बार तो मैं उन का नाम डिक्शनरी में भी नहीं ढूंढ पाता। एक बात जो और बहुत अखरती है वह यह है कि इन हैल्थ-कैप्सूलों में हैल्थ के प्रति एक बड़ी फ्रैगमैंटिड सी एपरोच सी दी जाती है। पता नहीं मुझे कभी होलिस्टिक एपरोच की महक उस में नहीं आई- प्रोस्टेट कैंसर से बचने के लिए कुछ खाने को कहा जाता है और स्तन कैंसर से बचने को कुछ और खाने को कहा जाता है। यह तो एक उदाहरण मात्र थी। वैसे भी उस कैप्सूल में दिए गए आंकड़े विदेशी अध्यय़नों के ही होते है-- अपने देशी आंकड़े तो कभी मुझे दिखे नहीं। क्या समाचार -पत्र वाले इस तरफ ध्यान देने का कष्ट करेंगे ?

जाते जाते एक शेयर ध्यान में आ रहा है....
हीरे की शफक है तो अंधेरे में चमक,
धूप में आ के तो शीशे भी चमक जाते है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. अपने यहां के आंकड़े आपको इसलिए नहीं दिखते क्‍योंकि यहां वैसे शोध नहीं होते. ईमानदारी से सोचें होते हैं क्‍या? या जो थोड़ा बहुत काम होता है तो हमारे शोधार्थियों को उसे सही तरीके से मीडिया तक पहुंचाने में रुचि नहीं होती. सो अखबारों को जो जानकारी मिलती है वो छापते हैं. दूसरी बात बीमारी का इंसानों के बारे में शोध करने के लिए देसी या विदेशी जैसा कोई पैमाना तो मेरे ख्‍याल से नहीं होता, अपवाद को छोड़ कर. हर बात की आलोचना करना तो हम भारतीयों की आदत में शुमार है. आपने किसी और की कर दी, मैं आपकी करने आ गया....

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  2. सब्जियों आदि के नाम के बारे में आप ठीक कह रहे होंगे , परन्तु यह भी सच है कि हमारे डॉक्टर खान पान यानि न्युट्रिशन के बारे में बहुत कम जानते हैं । वैसे बहुत सी सब्जियों के हिन्दी नाम आपको न्युट्रिशन की पुस्तकों में मिल जाएँगे ।

    घुघूती बासूती

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  3. aapki baat bilkul sahi hai...akhbaar walo ki hi galti nahi hai...kher aapne aacha dhyan diya...naya akhbar nikalne jaa raha hu ....dhyaan rakhunga...

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  4. kuch docotor hai jo hamesha dawali hi nahi likhte....kuch samjhate bhi hai....deshi tarki ka ilaaj...per logo ko lagta hai ki agar dawai nahi likhi to doctor kia.....hia ki nahi....

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