आज सुबह ही खबर आई है कि चीन में मिल्क-पावडर बनाने वाली एक कंपनी पकड़ में आई है जो कि इस मिल्क-पावडर में मैलामाइन ( melamine) की मिलावट किया करती थी। आप भी सोच रहे होंगे कि कहां मिल्क-पावडर और कहां मैलामाइन।
आप का सोचना जायज़ है- मैलामाइन एक इंडस्ट्रीयल कैमीकल है जिसे कपड़ा उद्योग, पलास्टिक बनाने में एवं गौंद( gum) बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन आप शायद सोच रहे होंगे कि यह मैलामाइन नाम का कैमीकल मिल्क-पावडर में क्या कर रहा है ?
ध्यान देने योग्य बात यही है कि मैलामाइन देखने में बिल्कुल मिल्क-पावडर जैसा ही सफेद एवं पावडर जैसा ही दिखता है- इसलिये इसे खाद्य पदार्थों की मिलावट के लिये धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इस से नकली तौर पर उन खाद्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।
मैलामाइन की मिलावट से किसी खाद्य पदार्थ का प्रोटीन कंटैंट कैसे बढ़ सकता है ?.....जी हां, बढ़ता वढ़ता कुछ नहीं है, लेकिन जब उस मिलावटी पावडर में पानी डाल कर उस के प्रोटीन कंटैंट को टैस्ट किया जाता है तो उस की रीडिंग बढ़ जाती है । इस का कारण यह है कि मैलामाइन में नाइट्रोजन की मात्रा बहुत अधिक होती है और किसी भी खाद्य पदार्थ में प्रोटीन की मात्रा का आकलन करने के लिये उस में नाइट्रोजन की मात्रा का ही आकलन कर लिया जाता है।
चीन में तो इस तरह के मिल्क-पावडर का इस्तेमाल करने वाले दो शिशुओं की तो मौत ही हो गई और 1253 बच्चे बुरी तरह से बीमार हो गये .....जिन में से बहुत से बच्चों के गुर्दों में पत्थरी बन गई।
पिछले साल मार्च 2007 में भी चीन में तैयार कुछ पालतू जानवरों के लिये खाद्य पदार्थों की वजह से अमेरिका में कुछ कुत्तों एवं बिल्लीयों की जब मौत हो गई थी तो बहुत हंगामा हुआ था।
कुछ महीने पहले मुझे ध्यान है अमेरिकी एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने चीन में तैयार कुछ टुथपेस्टों के बारे में भी चेतावनी इश्यू की थी....इन में भी कुछ लफड़ा था।
वैसे आप ने भी नोटिस किया होगा कि आज कल बहुत से स्टोरज़ में कुछ इस तरह के विदेशी खाद्य पदार्थ अथवा पेय पदार्थ बिकते हैं जिन की भाषा हमें बिल्कुल समझ नहीं आती....लेकिन अकसर हम देखते हैं कि लोग ऐसी वस्तुओं को खरीदते समय भी ज़रा भी संकोच नहीं करते। बस सेल्स-मैन विभिन्न कारणों की वजह से इन की थोड़ी बहुत तारीफ़ कर देते हैं। इन प्रोडक्ट्स का कुछ पता नहीं कि ये कब तैयार हुये हैं, कब इन की एक्सपॉयरी है, क्या इनग्रिडिऐंट्स हैं......कुछ पता नहीं .....क्योंकि सब कुछ या तो उर्दू में या फिर ऐसी किसी दूसरी भाषा में लिखा होता है कि हमें इस के का कुछ पता ही नहीं चल पाता।
अकसर आप देखेंगे कि तरह तरह की चाकलेट्स में, तरह के आकर्षक वेफर्स में, जूसों में यह सब गोरख-धंधा खूब चलता है। मैं सोचता हूं कि हम लोग जब तक इन की गुणवत्ता के बारे में आश्वस्त ना हो जायें, हमें इन से तो बच कर ही रहना चाहिये, वरना चीन में मिलने वाले मिल्क-पावडर के बारे में तो आप ने सुन ही लिया।
किसी भी वस्तु पर किसी विदेश का ठप्पा का क्या श्रेष्ट हो गया कि हम लोग उस आइट्म के बारे में बेसिक से प्रश्न पूछने ही भूल गये। और तो और, अकसर आपस में भी लोग इस तरह की चाकलेट्स गिफ्ट वगैरा में देने लगे हैं.......पैकिंग बड़ी कैची होती है, देखने में इन की शेप-वेप बड़ी हाई-फाई होती है, इसलिये अकसर बच्चों को इन से दूर रख पाना अच्छा खासा दिक्कत वाला काम हो जाता है।
चीन के मिल्क-पावडर से ध्यान आ रहा है कि वहां तो ये मामले पकड़ में आ गये लेकिन हम लोगों का यहां क्या पता है कि हम लोग क्या क्या खाये जा रहे हैं, पिये जा रहे हैं.........आप सब यह तो जानते ही हैं ना कि हमारे यहां भी सिंथैटिक मिल्क बनाने के लिये मिल्क-पावडर का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। लेकिन मैं तो इतने लोगों से पूछ चुका हूं कि दूध में कैमिकल्स की मिलावट है या नहीं ( नहीं, नहीं, पानी की नहीं.....वह तो अब हम लोग स्वीकार कर ही चुके हैं !!)….. उस को जानने का कोई घरेलू जुगाड़ तो होगा..............लेकिन मुझे कोई संतोषजनक जवाब अभी तक मिला नहीं।
बाप रे; यह तो हॉरर स्टोरी है डाक्टर साहब।
जवाब देंहटाएंभयावह।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढकर एक शेर याद आया-
जवाब देंहटाएंमैं खुश्ा हुआ मसिजदें वीरां को देखकर
मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है।।
जी हां, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिंथेटिक दूध और मावे का उत्पादन धडल्ले से होता है। इसमें मिल्क पाउडर के साथ यूरिया, वनस्पति घी या चर्बी और वाशिंग पाउडर जैसी चीजे मिलाईं जाती हैं। चीन में ऐसे मिलावटखोरों और इंसानियत के दुश्मनों का क्या होता है पता नहीं लेकिन हमारे यहां दूसरे तीसरे दिन ऐसे लोगों को जमानत मिल जाती है।
हद है भई॒!!
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे..पता नहीं हम भी क्या क्या खाए जा रहे हैं!
जवाब देंहटाएं