मैंने कुछ महीने पहले भी ब्लड-प्रैशर के इस हौवे के बारे में कुछ लिखा था जो यहां पड़ा हुया है, आज सुबह जब अपना रूटीन ब्लड-प्रैशर चैक करवाया तो अचानक उस के आगे फिर से कुछ लिखने की इच्छा हो गई। तो उस के आगे शुरू करता हूं।
आज मैंने जब ऑटोमैटिक मशीन से अपना ब्लड-प्रैशर चैक करवाया तो एक बाजू में 142/92 तथा दूसरी बाजू में 142/94 आया। यह ऑटोमैटिक मशीन वही वाली जिस के कफ को बाजू पर बांधने के बाद एक बटन दबा देने से कफ में अपने आप ही हवा भरनी शुरू हो जाती है और कुछ समय बाद ब्लड-प्रैशर की रीडिंग आ जाती है।
चूंकि पास में ही ब्लड-प्रैशर चैक करने की वह कन्वैंशनल मशीन ( स्फिगमोमैनोमीटर) पड़ी थी....तो विचार आया कि इस से भी बी.पी चैक करवा ही लिया जाये। उसी समय उस मशीन से चैक करवाया तो एक बाजू में 110/80 और दूसरी में 110/88 की रीडिंग थी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन दोनों मशीनों की रीडिंग्ज़ में दो-चार मिनट का ही अंतर था।
जब मैंने अपने फिजिशियन से पूछा कि आप रीडिंग पर विश्वास करेंगे तो उन्होंने कहा कि वह तो बरसों से चल रही कन्वैंशनल स्फिगमोमैनोमीटर की रीडिंग्ज़ पर ज़्यादा भरोसा करेंगे।
यह आज सुबह वाला किस्सा मैंने केवल इसलिये सुनाना ज़रूरी समझा ताकि मैं इस बार को रेखांकित कर सकूं कि आज के दौर में अगर हम डाक्टर लोग अपने आप को किसी मरीज़ के शूज़ में खड़े होकर देखते हैं तो हमें इस बात का आभास होता है कि आज के दौर में जब इस तरह की मशीनें घर-घर में आ चुकी हैं तो मरीजों का कंफ्यूज़ होना कितना स्वाभाविक सा है। रीडिंग्ज़ में अंतर तो आपने देख ही लिया है।
मैं इस समय किसी ना तो किसी मशीन की पैरवी कर रहा हूं और ना ही किसी के खिलाफ़ ही कुछ कह रहा हूं – केवल अपना अनुभव आप के सामने रख रहा हूं ताकि इस मुद्दे पर हम लोग कुछ चर्चा कर सकें।
सचमुच बी.पी का तो एक हौआ ही बना हुआ है- मैंने अपने उस पहली पोस्ट में शायद बहुत कुछ इस के बारे में लिखा था।
आज भी ब्लड-प्रैशर चैक करवाना हम में से कुछ लोगों के लिये एक हौआ ही है। खैर आप तो जानते ही होंगे कि मैडीकल साईंस में एक ऐँटिटि होती है ....वाईट-कोट हाइपर-टैंशन ..अर्थात् कुछ मरीज़ों में ऐसा देखा गया है कि जैसे ही वे किसी सफेद-कोट पहने डाक्टर को अपना बी.पी चैक करते देखते हैं तो उन का बी.पी अचानक शूट कर जाता है।
यह तो हम मानते ही हैं कि विभिन्न मशीनों में थोड़ी बहुत वेरिएशन तो होती ही है......इसलिये बार बार यही सलाह दी जाती है कि बी.पी के बारे में इतना ज़्यादा मत सोचा करें। यह जीवन-शैली से संबंधित है और जीवन-शैली में छोटे छोटे परिवर्तन लाने निहायत ही ज़रूरी हैं।
यह पोस्ट लिखने का एक मकसद यह भी है कि अगर आप अपने घर ही में हमेशा ऐसी ही किसी ऑटोमैटिक मशीन से अपना बी.पी चैक करते रहते हैं तो यह भी ज़रूरी है कि कभी कभी किसी फ्रैंडली फैमिली डाक्टर से भी अपना बी.पी अवश्य दिखवा लिया करें।
फ्रैंडली फैमिली डाक्टर से ध्यान आया कि यह भी देखा गया है कि अकसर कुछ केसों में जब किसी मरीज़ का बी.पी किसी फ्रैंडली नर्सिंग स्टाफ द्वारा लिया जाता है तो रीडिंग कम आती है।
एक बात और भी यहां कहना चाहूंगा कि ये जो कन्वैनश्नल बी.पी अपरेट्स ( स्फिगमोमैनोमीटर) भी होते हैं, किसी भी हास्पीटल में अगर कुछ अपरेट्स हैं तो थोड़ा बहुत फर्क तो इन की रीडिंग्ज़ में ही होता है लेकिन मुझे याद है कि बंबई में जिस हास्पीटल में काम करते थे वहां पर दो मशीनें ऐसी थीं जिन में यह वेरीएशन काफी ज़्यादा हुआ करती थी।
इतना लिखने के बाद मेरा यह प्रश्न बना हुया है....
क्या हर मरीज़ के बीपी की जांच इस तरह से कर पाना संभव है कि पहले एक मशीन से की जाए और फिर दूसरी से। ऐसे में कईं बार मरीज़ कहीं बिना-वजह दवाईयों के चक्कर में पड़ कर परेशान तो ना होते होंगे या फिर दवाई की ज़रूरत होने पर भी बिना दवाई के ही तो ना चलते रहते होंगे। यह सवाल मेरे मन में बरसों से है और पता नहीं कितने सालों तक चलता रहेगा।
इसीलिये जब डाक्टर मरीज के पास जाता है और उस की बी पी बड़ा हुआ होता है तो तुरंत ही उस की दवा शुरू नहीं कर दी जाती......उस का बीपी बार कुछ समय के बाद, कुछ दिनों के अंतराल के बाद चैक करने के बाद ही कोई दवा शुरू करने या ना करने का फैसला किया जाता है। जिस समय मरीज डाक्टर के पास आया है उस समय उस की क्या मनोस्थिति है इस बात का भी आप सब को पता है कि उस की बीपी की रीडिंग पर असर पड़ता है।
तो, सीधी सी बात है कि मामला शायद कुछ ज़्यादा ही पेचीदा है.....बिलकुल एक हौए जैसा लेकिन पूरी कोशिश करें कि इसे हौआ कभी बनने न दें। मस्त रहने की पूरी कोशिश करें........क्योंकि जहां मस्ती है, खुशी है, ज़िंदादिली है, हंसी-मज़ाक है वहां यह हौआ टिक नहीं पाता है। पिछले 25 सालों से ज़िंदगी की किताब से जो सीखा है, जो अनुभव किया है, आप के सामने रख दिया है।
आप के बी.पी के सदैव नियंत्रण में रहने के लिये ढ़ेरों शुभकामनायें।
इस सिन्ड्रोम से मैं भी जूझता रहा हूँ-डॉक्टर के नापते ही मेरा बी पी एकदम से शूट कर जाता है १५०/१००. खुद नापता हूँ तो नीचे आ जाता है..न जाने परेशान कर दिया है. हालांकि पिल्स तो चालू है.
जवाब देंहटाएंBhai humare sath to kal bilkul ulta hua . Ghar wali Dr More Pen ki machine 112/78 bata rahi thi wahin doctor sahab ko dikhaya to unhone 110/90 naap diya.
जवाब देंहटाएंdawa se to khair na nukoor karte karte ek saal bachta raha phir jab doctors ne bahut daraya to khani shuru ki aur usi waqt machine bhi lee. Par mera anubhav yahi raha hai ki automatic machine se humesha kam reading aati hai in comparision to hospital ki std machine ke.
सच में बीपी नपवाने का तो एक फितूर सा हो जाता है। उसक बजाय व्यायाम कर लें या नमक कम कर दें तो बेहतर रहे!
जवाब देंहटाएंअजी हम कभी पंगा ही नही लेते इसे नापने का, क्यो कि हमे अपना बी पी पता होता हे जब भी गये ड्रा० के पास उस के नापने से पहले ही बता देता हु १२०/७० बस वही निकलता हे, आप की बात सही हे मस्त रहो, बाकी रब राखा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद