गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

दमे के ५०प्रतिशत रोगियों को दमा होता ही नहीं है...

Times of India 7.4.16 (Click to read) 
अभी आज की टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर देख कर चिंता हुई..इस अखबार में किसी खबर का पहले पन्ने पर छपना और और वह भी फोल्ड के ऊपर वाले हिस्से में इस के महत्व को दर्शाता है।

पहले तो शीर्षक देख कर कुछ ऐसा लगा जैसे कोई उपभोक्ता संरक्षण कानून से संबंधित कुछ खुलासा होगा...

पूरी खबर पढ़ी तो समझ में आया कि किस तरह से प्राईमरी हेल्थ सेट-अप में दमे की बीमारी का सटीक निदान किए बिना ही एन्हेलेर एवं अन्य स्टीरायड दवाईयां शुरू कर दी जाती हैं।

एक सात साल के बालक के बारे में लिखा था कि वह चंड़ीगढ़ में पिछले तीन वर्ष तक दमा की स्टीरायड जैसी दवाईयां लेता रहा....बाद में पता चला कि उसे दमा (अस्थमा) तो था ही नहीं, उस की सांस की नली में एक मूंगफली का दाना अटका पड़ा था।

इस अहम् रिपोर्ट में यह बताया गया है कि लगभग ५० प्रतिशत दमा के मरीज़ों में जिन की दवाईयां चल रही होती हैं उन में दमा होता ही नहीं है.. एक तरह का ओव्हरडॉयग्नोसिस कह लें या जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि वास्तविक कारण होता है ..किसी तरह की वॉयरल इंफेक्शन, एलर्जी या कोई ट्यूमर...

मुझे लगता है कि इसे पढ़ कर लोग वॉयरल इंफैक्शन, एलर्जी के कारणों को नहीं देखेंगे, बस किसी ट्यूमर की चिंता ही करने लगेंगे...लेकिन सांस की तकलीफ़ के लिए यह बहुत रेयर कारण होता होगा...अब विशेषज्ञों ने लिखा है तो होगा ही।

पिछले कुछ वर्षों से बिना दमे की बीमारी की पुष्टि के इंहेलर्स का इस्तेमाल न करने की सलाह तो दी ही जा रही है...लेकिन अनुभवी लोगों की सुनता कौन है!..शक्तिशाली मार्कीट शक्तियों का जाल बिछा हुआ है...और फिर कुछ छोटी जगहों पर कम अनुभव वाले चिकित्सक जो प्राईमरी यूनिटों पर काम करते हैं...शायद जाने अनजाने वे भी ये सब लिखने लगते हैं...जल्दबाजी में ही। एक बड़ा मुद्दा यह भी है कि इन इन्हेलर्स का इस्तेमाल करना तक बहुत से मरीज़ों को नहीं आता...बेकार में बहुत सी दवाई बेकार हो जाती है।

लेकिन इस के लिए ये क्वालीफाईड चिकित्सक ही नहीं, बहुत से नीम हकीम, झोला छाप डाक्टर ... कोई भी इन्हेलर्स के इस्तेमाल की सलाह दे देता है .. और एक बार शुरू हो जाए तो फिर वर्षों बस वही दवा चलती रहती है.. यही नहीं, मरीज़ खुद भी कैमिस्ट से खरीद लेते हैं ...एक तो आजकर नेट से आधी-अधूरी अधकचरी जानकारी लोगों के लिए आफत बनी हुई है... प्रेग्नेंसी टेंट तक खुद घर पर कर लेते हैं तो क्या मैडीकल तकलीफ़ों का भी पता खुद ही कर लेंगे...असंभव...A little knowledge is a dangerous thing!... और यहां भी यही बात है।


इस तरह से दमे के इलाज के लिए इंहेलर्स का ही अंधाधुंध इस्तेमाल नहीं हो रहा... सब से भयंकर तो ऐंटीबॉयोटिक दवाईयों का गलत इस्तेमाल हो रहा है...छोटी मोटी वॉयरल और अपने आप ठीक हो जाने वाली तकलीफ़ों के लिए भी लोग अपने आप ही कैमिस्ट से कुछ भी स्ट्रांग सा ऐंटिबॉयोटिक उठा लाते हैं....जिस तरह से देश में तंबाकू का इस्तेमाल करना नामुमकिन है, मुझे लगता है कि दवाईयों का irrational use और इन का misuse रोक पाना भी बहुत टेढ़ी खीर है...शायद लोगों की जागरूकता के बाद कुछ हो पाए...

अब हम सब लोगों को कम से यह तो याद रखना चाहिए कि हर सांस की तकलीफ़ दमा (अस्थमा) नहीं होती, किसी विशेष तरह की दवाई खाने के लिए या सूंघने के लिए जिद्द न करिए....अनुभवी डाक्टरों को सब कुछ पता रहते हैं...वे एक मिनट में ही आप की सेहत की जन्मपत्री जान लेते हैं..


वैसे भी प्रदूषण इतना ज़्यादा है हर तरफ़ ...यह भी सांस की तकलीफ़ों एवं एलर्जी की जड़ हो सकता है....इस तरफ़ भी पेरेन्ट्स को देखना चाहिए... बहुत ज़रूरी है यह भी ..हो सके तो बच्चों में हेल्थी जीवन शैली के बीज रोपने की शुरूआत बचपन से ही करिए....संतुलित पौष्टिक आहार, दैनिक शारीरिक परिश्रम, जंक फूड से दूरी... और जितना जल्दी हो सके कि योग एवं प्राणायाम् करने की शुरूआत की जाए...


लिखना का या किसी को प्रवचन देने का एक फायदा तो है, और कुछ हो न हो, अपने आप को वही बातें बार बार सुनानी पड़ती हैं तो असर हो ही जाता है ...धीरे धीरे... जैसा कि मुझे कुछ दिनों से थोड़ा थकावट सी महसूस होने लगी है...शाम के समय...और सोच रहा हूं ..आज से मैं प्राणायाम् किया करूंगा....मैंने इस का पूरा प्रशिक्षण लिया हुआ है...लेकिन आलस की बीमारी का क्या करूं... काश कोई इलाज होता इसका भी! कुछ न कुछ असर तो होता ही है, मैंने पिछले दिनों सुबह उठ कर पानी पीने की बात खूब शेयर करी... अब मैं भी अकसर उठते ही पानी पीता हूं...वैसे आज नहीं पिया...


हो गई बातें खूब..सुबह सुबह...सांसों की बातें हुईं तो ध्यान आ गया ...

चलती है लहरा के पवन के सांस सभी की चलती रहे....जी हां, सब का स्वास्थ्य अच्छा हो, सब मस्त रहें, व्यस्त रहें, खुश रहें......यही कामना करते हुए इस गीत में डूब जाइए... one of my favourites again!!...😎😎😎