हिन्दुस्तान अखबार में छपी यह खबर ... (इस खबर को पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए) |
अमूल के नाम की ही धाक है..पूरी साख है....हम लोग भी पिछले दो तीन सालों से अमूल दूध ही ले रहे हैं...यहां पर तीन चार ब्रांड बिकते हैं....अमूल के पीछे हमारा दीवानापन देखिए जब अमूल नहीं मिलता तो भी किसी दूसरे ब्रांड का दूध नहीं लेते।
अमूल ने यह नाम जल्दी ही तो नहीं कमा लिया...इन की बड़ी अच्छी परंपराएं हैं, गुणवत्ता नियंत्रण भी अच्छा है, ऐसा बताया जाता है।
कुछ महीने पहले मैंने बाज़ार में कुछ बच्चों को पांच या सात रूपये में एक बिल्कुल छोटा दूध का पाउच खरीदते देखा तो मुझे पता चला कि अमूल आज कल इस तरह के छोटे छोटे पाउच भी बेचने लगा है। अच्छा यह लगा कि कम से कम कोई चाय तो ढंग का दूध इस्तेमाल कर के पी सकता है।
आज यह जो खबर आई कि अमूल के दूध में न्यूट्रिलाइज़र का इस्तेमाल पाया गया ताकि इसे फटने से बचाया जा सके..आप ऊपर लगाई हुई खबर देख सकते हैं...वैसे अभी मैं गूगल सर्च कर रहा था तो मुझे यह भी दिख गई...आप आसानी से इस लिंक पर भी इसे देख सकते हैं...यू पी में मैगी के बाद अमूल में मिला घातक न्यूट्रिलाइज़र
कुछ सर्च और की तो पाया कि न्यूट्रिलाइज़र के तौर पर बेकिंग सोड़ा का इस्तेमाल अकसर किया जाता है...मैं अमूल की बात नहीं ...जर्नल बात कर रहा हूं ..देखने में लगता है कि बेकिंग सोडा ही तो है..मुझे याद है अकसर बचपन में कभी जब ज़्यादा खा लिया करते थे तो थोड़ा सा मीठा सोडा पानी के साथ ले लेते थे...मेरी नानी तो यह बहुत बार करती थीं।
लेिकन इस का नुकसान तो है ही, अब हम जानते हैं.....इस में मौजूद सोडियम की वजह से यह ब्लड-प्रेशर के लिए तो खराब ही है...आप सोच रहे होंगे कि कितनी जगहों पर यह इस्तेमाल होता है, होता है...लेकिन इस का नुकसान तो है ही...न्यूट्रिलाइज़र के तौर पर कुछ और भी केमीकल्स के इस्तेमाल होने की बात कही गई है।
अमूल के दूध की बात तो यहीं छोड़ते हैं...अब इस के आगे भी परीक्षण होंगे तो दूध का दूध, पानी का पानी हो ही जाएगा..
लेिकन आज जब मैं गूगल सर्च कर रहा था तो एक लेख दिख गया...जानकारी से भरा लगा, पूरा पढ़ा तो आंखें खुलीं...आखिरी लाइन में पढ़ा कि लेखक ने दूध को घर से बाहर ही कर दिया है... उत्सुकता हुई कि लेखक कौन है, पता चला कि इसे मेनका गांधी ने लिखा है..क्या यह बात इतनी व्यवहारिक है कि हम लोग दूध ही इस्तेमाल करना बंद कर दें, शायद मेनका गांधी जैसे परिवारों के लिए यह संभव हो पाता होगा क्योंकि उन के पास खाने-पीने के कईं बेहतर और महंगे विकल्प रहते होंगे.....लेकिन एक औसत भारतीय को यह सुझाव देना कुछ जमा नहीं......औरों की क्या बात है, हमारे यहां भी कल अमूल का ही दूध आएगा.......क्या करें, और कौन सा विकल्प है?.....अमूल का नाम लेते ही उस कुरियन नाम के मसीहे की याद जो आ जाती है...जिसने यह पौधा लगाया था।
लेकिन सोचने वाली बात है कि अगर हम इस तरह के कैमीकल नित्य प्रतिदिन खाये जा रहे हैं ....हमें पता ही नहीं है कि क्या क्या खाए जा रहे हैं, और कितनी मात्रा में यह सब खाए जा रहे हैं...डाक्टर लोग अपना फ़र्ज बखूबी निभा रहे हैं....हमें समय समय पर चेता कर के इस तरह के दूध से गुर्दे और लिवर फेल हो सकता है, दिल की बीमारियों को न्यौता है इस तरह का दूध..
वैसे जो भी मैंने मेनका गांधी के जिस लेख की बात लिखी है, वह पढ़ कर आप दूध के इस लफड़े के बारे में अपने ज्ञान में इज़ाफ़ा तो कर ही सकते हैं.... इस का लिंक यह रहा ....The Milky Way चूंकि यह लेख The Hindu की साइट पर है, इस के तथ्यों के बारे में आप पूरी तरह से आश्वस्त रहिए।
दोस्तो, मुझे पता है ...इस तरह के विषय पर लिखना कितना मुश्किल है....लिखते लिखते ही सिर भारी होने लगा है...और इस तरह का दूध रोज़ाना शरीर में पहुंच कर क्या गुल खिलाता होगा, यह एक दो चार दिन में पता नहीं चल सकता..लंबे समय तक इस्तेमाल करने के बाद तो शरीर में इस के बुरे प्रभाव दिखने तो तय ही होते हैं..
एक बात और भी है कि जिस तरह से आज कल दूध की मिलावट हो रही है, जिस तरह से सिंथेटिक दूध भी पब्लिक को पेला जा रहा है, इस काम के लिए इस्तेमाल की जाने वाले कैमिक्लस की लिस्ट देख कर ही किसी का भी सिर चकरा जाए.......इन कैमीकल्स की टेस्टिंग की तो बात ही क्या करें...टेस्टिंग के बारे में ऊपर वाले लेख में पढ़ कर ऐसे लगा कि जैसे मैं बीएससी के सिलेबस की कोई किताब पढ़ रहा था.....क्या यह सब टेस्ट अपने स्तर पर कर पाने संभव भी हैं....मुझे तो कभी नहीं लगा, मेैंने इस विषय़ पर इस ब्लॉग में दर्जनों बार लिखा है...
कल परसों अखबार में एक खबर दिखी की अब यूपी सरकार नागरिकों को किसी भी खाद्य पदार्थ की टेस्टिंग की सुविधा प्रदान करेगी जिस का खर्च एक हज़ार होगा.....चौंकिए मत, जी, एक हज़ार ही लिखा था, मैंने ठीक लिखा है और आपने सही पढ़ा है। अब, कौन करवाएगा यह टेस्ट.......अगर करवा भी ले, कुछ आ भी जाए टेस्ट में तो आगे क्या! हां, एक बात तो है कि कम से कम टेस्ट करवाने वाला तो उस मिलावटी या घटिया किस्म की चीज़ को त्याग देगा....लेकिन तब तक यह जो अखबारों में रोज़ आ रहा है......इन पर ही नज़र रखी जाए और इन खबरों पर भरोसा कर के अपने खाने पीने की आदतों में ज़रूरी बदलाव करते जाईए।
फ़र्क तो पड़ता है दोस्तो, अगर कोई जानकारी हम तक पहुंचती है...फायदा तो होता ही है, पिछले सालों में कोल्ड-ड्रिंक्स के बारे में कितना आता रहा है....शायद इसी का ही असर होगा कि अब कोल्ड-ड्रिंक्स की तरफ़ देखने तक की इच्छा नहीं होती, कईं बार मजबूरी में पीनी पड़ती है, इस सारे गर्मी के मौसम में शायद कुछ तीन या चार बार कोल्ड-ड्रिंक्स ली होगी।
छाछ वाछ ले लेते हैं....हां, छाछ के बारे में मैं एक प्रश्न आप के लिए छोड़ कर यहीं विराम लेता हूं....अमूल की छाछ अब मिलने लगी है....पीने में ठीक ठाक लगी तो मंगवाने लगे.....मिसिज़ इस से परहेज़ करती हैं....आप भी मानते होंगे कि गृहिणियों की आब्ज़र्वेशन पुरूषों से कहीं ज्यादा होती है.....उन्होंने मुझे दो िदन पहले कहा कि ऐसा क्यों होता है कि हम लोग जो छाछ घर में बनाते हैं ...उसे चंद मिनटों के लिए भी छोड़ें तो पानी ऊपर आ जाता है और दूसरा कंटेंट नीचे बैठ जाता है.....होता है ना ऐसा ही होता है, लेकिन यह जो अमूल की छाछ हम लाते हैं...इसे कितने समय भी पड़ा रहने दें, यह हमेशा इसी तरह की ही दिखती है.....मिसिज़ को यह संदेह है कि कुछ न कुछ तो इस में डाला ही जाता होगा जो यह ऐसी ही दिखती है .......मैंने अभी अभी अमूल की छाछ की यह तस्वीर ली है.....यह प्रश्न मैं आप के लिए छोड़ रहा हूं........इसे हल्के में मत लीजिएगा और अगली बार अमूल की या कोई भी बाजार में मिलनी वाली छाछ पीते समय इस प्रश्न को याद रखिएगा....
अमूल छाछ से भरा गिलास |
Beware! The milk you buy may not be safe enough