मैंने जब तीन चार साल पहले नेट पर गुप्त रोगों के लिए बिकने वाली दवाईयों का ज़िक्र किया तो मुझे लगा कि इस से आगे लोगों को क्या उखाड़ लेते होंगे इस तरह के लोग, लेकिन ऐसा नहीं है, ये किसी भी हद तक जा सकते हैं।
कल मुझे एक मित्र की ई-मेल आई..हम दोनों ने इंटरनेट लेखन का कोर्स इक्ट्ठा किया था...एक अजीब सी पंक्ति लिखी हुई थी और साथ में लिंक था कि पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक कर क्लिक करिए।
ज़ाहिर सी बात है कि जब आप को किसी परिचित से कोई मेल आती है तो आप कुछ सोचते नहीं...मैंने उस लिंक पर क्लिक किया और एक पेज आया जिस पर मुझ से पासवर्ड पूछा गया.....मैंने नहीं दिया......वापिस उस लिंक पर क्लिक किया तो बीबीसी का एक पेज खुल गया....यह पेज बीबीसी हेल्थ का था.....और किसी पतले होने के लिए बिकने वाले प्रोडक्ट के बारे में जानकारी दी गई थी।
उस पेज को देखते ही मुझे लगा कि उस बंदे को पता है कि मैं सेहत संबंधी विषयों पर बक-बक करता रहता हूं तो उसे रिपोर्ट रोचक लगी हो और मेरी जानकारी के लिए इस का लिंक भेज दिया हो...शायद।
मैंने उस पेज को पढ़ने से पहले ही उन्हें शुक्रिया करते हुए एक ई-मेल दाग दी..और एम.जे.अकबर के साथ जो फोटू उन्होंने मेरी खींची थी, उसे भिजवाने के लिए उन्हें कह दिया।
जी हां, अब उस पेज को पढ़ना शुरू किया... तो वह इतना अच्छा लगा कि यकीन नहीं हो रहा था कि यह बात सच हो सकती है। फिर भी अगर बीबीसी न्यूज़ के पन्ने पर यह सब कुछ छपा है तो इस पर शक कौन कर सकता है!
इस लेख में मोटापा कम करने की बात कही गई थी..और उन के प्रोडक्ट के एक महीने के इस्तेमाल से २३ पांड मोटापा कम करने की बात....बार बार शक होता कि यार, अगर ऐसा कोई प्रोडक्ट, इतना विश्वसनीय आ चुका है तो हमारी नज़र से कैसे बचा रहा।
बहरहाल, उस पेज पर बताया गया था कि इस पतले करने वाले प्राकृतिक उत्पाद को बीबीसी की हेल्थ राइटर ने अपने ऊपर आजमाया और हर सप्ताह के अपने अनुभव उस में साझा किए हैं......बहुत ही ज़्यादा अजीब सी बात लगी कि इस तरह के टुच्चे काम बीबीसी न्यूज़ जैसी संस्था कब से करने लगी!
पेज थोड़ा लंबा था, पूरा पढ़ा नहीं, बीच बीच में देखा......लेकिन इमानदारी से शेयर करूं तो एक बार तो लगा कि यार, इसे तो मैं भी एक महीने इस्तेमाल कर ही लूं, एक दम नेचुरल प्रोडक्ट है, मेरी भी तो तोंद निकलने लगी है...(खुशफहमी की इंतहा.... अभी भी सोच रहा हूं ...निकलने लगी है!!....निकली ही हुई है, दोस्तो...) ... आठ-दस किलो मुझे भी तो कम करने की बहुत ज़रूरत है, पैंट टिकती नहीं अपनी जगह! और जैसे कि मैं पहले लिख चुका हूं कि किसी तरह के संदेह की कोई गुंजाईश तो थी नहीं क्योंकि बीबीसी न्यूज़ का हेल्थ पेज यह सब जानकारी शेयर कर रहा था।
मैंने जस्ट तफरीह के लिए एक लिंक पर क्लिक किया जिस पर लिखा था कि आप को दवाई भेजने के लिए शिपिंग चार्जेज नहीं लिए जाएंगे, लेकिन फिर वहां जा कर पता चला कि वही दो हज़ार दो, तीन हज़ार रूपये दो.....अलग अलग साइज के डिब्बों के लिए.....बात कुछ हज़म हुई नहीं, इसलिए मुझे लगा कि छोड़ो यार, इन के चक्कर में क्या पड़ना, बीबीसी न्यूज़ का पेज कुछ कह रहा है तो क्या अपने दिमाग को ताला लगा दें!
इसी लिए मैंने उस पेज को बंद करने की कोशिश की तो मुझे स्क्रीन पर एक मेसेज आया कि क्या आप सच में यह पेज बंद करना चाहते हैं...देख लिजिए, प्रोडक्ट की बहुत कम मात्रा बची है, अगर आप अभी आर्डर नहीं करेंगे तो बाद में आप हाथ मलते रह सकते हैं।
यह पढ़ कर मेरा माथा ठनका कि यह कुछ तो लफड़ा है, बीबीसी नहीं इस तरह के बिक्री वाले लफड़ों में पड़ने वाली ... अचानक ऊपर एड्रेस बार में साइट का यू-आर-एल देखा तो पाया कि यह बीबीसी की साइट तो है ही नहीं, फिर भी पेज की ले-आउट देख कर अभी भी लगा कि चलिए इस लेख के शीर्षक को बीबीसी न्यूज़ की साइट के सर्च-बॉक्स में डाल कर देखते हैं.....वही किया, लेकिन कोई रिज़ल्ट नहीं आया।
एक तरह से पक्का हो गया कि यह बस फांदेबाजी है, और कुछ नहीं, और जो मुझे मेल मिला वह भी स्पेम मेल था।
आज कर सभी बच्चे अपने मां-बाप के गुरू हैं, मैंने अपने स्कूल जाने वाले बेटे से बात की....उसने बात थोड़ी-सुनी-थोड़ी अनसुनी कर दी। लैपटाप पर ये सब टैब तो खुले ही हुए थे।
रात को सोते समय मुझे अचानक बेटा कहने लगा कि आप जिस साइट की बात कर रहे थे वह फेक है ... स्पेम मेल आई थी आपको। पूछने लगा कि आपने कहीं अपना जी-मेल पासवर्ड तो नहीं भरा ..मैंने नहीं भरा था, फिर भी मैंने हैकिंग के अंदेशे से तुरंत अपना जी-मेल का पासवर्ड चेंज कर दिया।
बेटे ने बताया किस उस ने उस पेज की रिपोर्ट का कैप्शन जब गूगल सर्च किया तो जो सर्च रिजल्ट आए ..उस के पहले ही सर्च रिजल्ट पर जब क्लिक किया तो इस फेक पेज के बारे में ही उस में लिखा हुआ था कि किस तरह के स्पेम भेज कर ..और करिश्माई दवाओं की तारीफों के पुल बांध कर लोगों को जाल में फंसाया जाता है... इस तरह की जालसाजी से बचने के लिए जो साइट थी उस का लिंक यहां लगा रहा हूं ..देख लीजिएगा...
अब बात यह उठती है कि मेरे दोस्त ने मुझे वह ई-मेल क्यों भेजी, पूरी संभावना है कि वह स्पेम लिंक वाली मेल मुझे उस की जानकारी के बिना आई हो...और इस के पीछे कारण वही हो कि उसने अपने जी-मेल खाते का पासवर्ड कहीं डाल दिया हो।
चाहे मैंने अपना जी-मेल पासवर्ड तो किसी ऐसी वैसी शुशपिसियस जगह पर नहीं डाला था, मुझे भी लगा कि कहीं मेरी तरफ़ से भी यह मेल आगे मेरे मित्रों तक न चला गया हो, इसलिए जी-मेल में जाकर Sent फोल्डर में देखा कि ऐसा कुछ नहीं है तो इत्मीनान हुआ।
लिखते लिखते समय का पता ही नहीं चला......पोस्ट की रोचकता हमारे समय में एक रूपये में बिकने वाले मस्त राम के नावल जैसी ......वह अलग बात है उस का कंटैंट और हुआ करता था......याद आ रहा कि दसवीं कक्षा के दौरान हमारी क्लास का एक लड़का अकसर इस तरह की किताबें लेकर आता था......दूसरों की पढ़ाई में खलल डालने के लिए...अपनी पढ़ाई वह अच्छे से कर लिया करता था.....कुछ छात्र उस से वह छोटी छोटी मस्त राम की किताबें छीन छीन कर आधी छुट्टी के वक्त जल्दी जल्दी पढ़ा करते थे...दो दो तीन तीन लड़के किसी किताब के पन्ने को पढ़ते पहले बार देखे थे.....ज्ञान अर्जित करने की इतनी व्याकुलता..... कौन सा धर्मात्मा था मैं भी , दो तीन पन्ने तो पढ़े ही होंगे, लेकिन मुझे लगा था कि यह ठीक नहीं है, हम लोग तो घर से पढ़ने आते हैं। वह लड़का अपनी पढ़ाई में अच्छा था, चला गया है विदेश.........अब कभी उसे संदेश भेजो तो कभी भी जवाब नहीं देता, मुझे आज भी उस बंदे से चिढ़ है ...क्योंकि उस ने हमारी क्लास के कुछ छात्रों को कभी गलत राह दिखाई थी। उस उम्र में हमारा मन भी कच्ची मिट्टी के समान होता है.... चलिए, उसे माफ़ कर देते हैं और इस बात पर यहीं मिट्टी डालते हैं।
और यह फांदेबाजी की कोशिश देखिए आज कल किस तरह से बीबीसी न्यूज़ का फेक पन्ना तैयार कर के की जा रही है, मुझे कल आभास हुआ कि नेट पर किसी को भी उल्लू बनाना कितना आसान है, क्यों बैंकों वाले नेटबैंकिंग फ्रॉड से बचने के लिए बार बार विज्ञापनों के माध्यम से आगाह करते रहते हैं...यह हम लोग अब जानते हैं, लेकिन फिर भी इस तरह के संदेहस्पद प्रोड्क्ट्स बेचने वाले कितने लोगों को रोज़ाना अपना शिकार तो बना ही लेते होंगे..
तो दोस्तो इस कहानी से हम सब ने (मैंने भी) यही शिक्षा ली कि अगर नेट पर कुछ ज़रूरत से ज़्यादा मीठा या अच्छा दिखे तो अगला कदम रखने से पहले उस की थोड़ी जांच-पड़ताल कर लीजिए.......बनारस का ठग तो एक था, लेकिन नेट पर तो हर कदम पर बहुरूपिए, ठग, जालसाज़ अपने स्टाल सजाए बैठे हैं, बच के निकलिएगा...
१. उस फेक पेज के स्क्रीन शॉट तो लगा दिए हैं, लेकिन उस का लिंक मैंने इस लेख में कहीं नहीं लगाया....जान बूझ कर कि कहीं यह कोई वॉयरस आदि ही न लिए हो। वैसे जिस साइट ने उस पेज की पोल खोली है, उस का लिंक तो ऊपर लगा ही दिया है, उस में भी उस फेक पेज के बारे में बहुत कुछ लिखा है।
२. कहने की भी बात नहीं है कि अगर इस तरह के प्रोडक्टस कहीं से मुफ्त भी मिलें तो नहीं लेने चाहिए, पता ही नहीं क्या है क्या नहीं!!
अभी कुछ पतला करने वाले हर्बल जुगाड़ों का ध्यान आ गया कि वे भी क्या क्या गुल खिला रहे हैं!
२. मैने कभी भी पाठकों से नहीं कहा कि मेरी किसी भी बक-बक को शेयर करें, लेकिन इस पोस्ट के लिए विशेष रूप से कह रहा हूं ताकि भूल से भी कोई इस तरह के जालसाज़ों के झांसे में न जाए। इसे जितना शेयर कर सकते हैं, करिएगा। नेट पर शातिर लोग ताक लगाए बैठे हैं।
ओह माई गॉड, इतनी मगजमारी के बाद, सुबह सुबह कोई एक ठीक ठाक गीत सुनना-सुनाना तो बनता है, बेशक......इस समय यह गीत ध्यान में आ गया.....चिट्ठिए नी...दर्द फिराक वालिए ... (हिना फिल्म का यह बेहतरीन गीत)..
कल मुझे एक मित्र की ई-मेल आई..हम दोनों ने इंटरनेट लेखन का कोर्स इक्ट्ठा किया था...एक अजीब सी पंक्ति लिखी हुई थी और साथ में लिंक था कि पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक कर क्लिक करिए।
ज़ाहिर सी बात है कि जब आप को किसी परिचित से कोई मेल आती है तो आप कुछ सोचते नहीं...मैंने उस लिंक पर क्लिक किया और एक पेज आया जिस पर मुझ से पासवर्ड पूछा गया.....मैंने नहीं दिया......वापिस उस लिंक पर क्लिक किया तो बीबीसी का एक पेज खुल गया....यह पेज बीबीसी हेल्थ का था.....और किसी पतले होने के लिए बिकने वाले प्रोडक्ट के बारे में जानकारी दी गई थी।
उस पेज को देखते ही मुझे लगा कि उस बंदे को पता है कि मैं सेहत संबंधी विषयों पर बक-बक करता रहता हूं तो उसे रिपोर्ट रोचक लगी हो और मेरी जानकारी के लिए इस का लिंक भेज दिया हो...शायद।
मैंने उस पेज को पढ़ने से पहले ही उन्हें शुक्रिया करते हुए एक ई-मेल दाग दी..और एम.जे.अकबर के साथ जो फोटू उन्होंने मेरी खींची थी, उसे भिजवाने के लिए उन्हें कह दिया।
जी हां, अब उस पेज को पढ़ना शुरू किया... तो वह इतना अच्छा लगा कि यकीन नहीं हो रहा था कि यह बात सच हो सकती है। फिर भी अगर बीबीसी न्यूज़ के पन्ने पर यह सब कुछ छपा है तो इस पर शक कौन कर सकता है!
इस लेख में मोटापा कम करने की बात कही गई थी..और उन के प्रोडक्ट के एक महीने के इस्तेमाल से २३ पांड मोटापा कम करने की बात....बार बार शक होता कि यार, अगर ऐसा कोई प्रोडक्ट, इतना विश्वसनीय आ चुका है तो हमारी नज़र से कैसे बचा रहा।
बहरहाल, उस पेज पर बताया गया था कि इस पतले करने वाले प्राकृतिक उत्पाद को बीबीसी की हेल्थ राइटर ने अपने ऊपर आजमाया और हर सप्ताह के अपने अनुभव उस में साझा किए हैं......बहुत ही ज़्यादा अजीब सी बात लगी कि इस तरह के टुच्चे काम बीबीसी न्यूज़ जैसी संस्था कब से करने लगी!
पेज थोड़ा लंबा था, पूरा पढ़ा नहीं, बीच बीच में देखा......लेकिन इमानदारी से शेयर करूं तो एक बार तो लगा कि यार, इसे तो मैं भी एक महीने इस्तेमाल कर ही लूं, एक दम नेचुरल प्रोडक्ट है, मेरी भी तो तोंद निकलने लगी है...(खुशफहमी की इंतहा.... अभी भी सोच रहा हूं ...निकलने लगी है!!....निकली ही हुई है, दोस्तो...) ... आठ-दस किलो मुझे भी तो कम करने की बहुत ज़रूरत है, पैंट टिकती नहीं अपनी जगह! और जैसे कि मैं पहले लिख चुका हूं कि किसी तरह के संदेह की कोई गुंजाईश तो थी नहीं क्योंकि बीबीसी न्यूज़ का हेल्थ पेज यह सब जानकारी शेयर कर रहा था।
मैंने जस्ट तफरीह के लिए एक लिंक पर क्लिक किया जिस पर लिखा था कि आप को दवाई भेजने के लिए शिपिंग चार्जेज नहीं लिए जाएंगे, लेकिन फिर वहां जा कर पता चला कि वही दो हज़ार दो, तीन हज़ार रूपये दो.....अलग अलग साइज के डिब्बों के लिए.....बात कुछ हज़म हुई नहीं, इसलिए मुझे लगा कि छोड़ो यार, इन के चक्कर में क्या पड़ना, बीबीसी न्यूज़ का पेज कुछ कह रहा है तो क्या अपने दिमाग को ताला लगा दें!
इसी लिए मैंने उस पेज को बंद करने की कोशिश की तो मुझे स्क्रीन पर एक मेसेज आया कि क्या आप सच में यह पेज बंद करना चाहते हैं...देख लिजिए, प्रोडक्ट की बहुत कम मात्रा बची है, अगर आप अभी आर्डर नहीं करेंगे तो बाद में आप हाथ मलते रह सकते हैं।
यह पढ़ कर मेरा माथा ठनका कि यह कुछ तो लफड़ा है, बीबीसी नहीं इस तरह के बिक्री वाले लफड़ों में पड़ने वाली ... अचानक ऊपर एड्रेस बार में साइट का यू-आर-एल देखा तो पाया कि यह बीबीसी की साइट तो है ही नहीं, फिर भी पेज की ले-आउट देख कर अभी भी लगा कि चलिए इस लेख के शीर्षक को बीबीसी न्यूज़ की साइट के सर्च-बॉक्स में डाल कर देखते हैं.....वही किया, लेकिन कोई रिज़ल्ट नहीं आया।
एक तरह से पक्का हो गया कि यह बस फांदेबाजी है, और कुछ नहीं, और जो मुझे मेल मिला वह भी स्पेम मेल था।
आज कर सभी बच्चे अपने मां-बाप के गुरू हैं, मैंने अपने स्कूल जाने वाले बेटे से बात की....उसने बात थोड़ी-सुनी-थोड़ी अनसुनी कर दी। लैपटाप पर ये सब टैब तो खुले ही हुए थे।
रात को सोते समय मुझे अचानक बेटा कहने लगा कि आप जिस साइट की बात कर रहे थे वह फेक है ... स्पेम मेल आई थी आपको। पूछने लगा कि आपने कहीं अपना जी-मेल पासवर्ड तो नहीं भरा ..मैंने नहीं भरा था, फिर भी मैंने हैकिंग के अंदेशे से तुरंत अपना जी-मेल का पासवर्ड चेंज कर दिया।
बेटे ने बताया किस उस ने उस पेज की रिपोर्ट का कैप्शन जब गूगल सर्च किया तो जो सर्च रिजल्ट आए ..उस के पहले ही सर्च रिजल्ट पर जब क्लिक किया तो इस फेक पेज के बारे में ही उस में लिखा हुआ था कि किस तरह के स्पेम भेज कर ..और करिश्माई दवाओं की तारीफों के पुल बांध कर लोगों को जाल में फंसाया जाता है... इस तरह की जालसाजी से बचने के लिए जो साइट थी उस का लिंक यहां लगा रहा हूं ..देख लीजिएगा...
इस को पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करिए |
अब बात यह उठती है कि मेरे दोस्त ने मुझे वह ई-मेल क्यों भेजी, पूरी संभावना है कि वह स्पेम लिंक वाली मेल मुझे उस की जानकारी के बिना आई हो...और इस के पीछे कारण वही हो कि उसने अपने जी-मेल खाते का पासवर्ड कहीं डाल दिया हो।
चाहे मैंने अपना जी-मेल पासवर्ड तो किसी ऐसी वैसी शुशपिसियस जगह पर नहीं डाला था, मुझे भी लगा कि कहीं मेरी तरफ़ से भी यह मेल आगे मेरे मित्रों तक न चला गया हो, इसलिए जी-मेल में जाकर Sent फोल्डर में देखा कि ऐसा कुछ नहीं है तो इत्मीनान हुआ।
लिखते लिखते समय का पता ही नहीं चला......पोस्ट की रोचकता हमारे समय में एक रूपये में बिकने वाले मस्त राम के नावल जैसी ......वह अलग बात है उस का कंटैंट और हुआ करता था......याद आ रहा कि दसवीं कक्षा के दौरान हमारी क्लास का एक लड़का अकसर इस तरह की किताबें लेकर आता था......दूसरों की पढ़ाई में खलल डालने के लिए...अपनी पढ़ाई वह अच्छे से कर लिया करता था.....कुछ छात्र उस से वह छोटी छोटी मस्त राम की किताबें छीन छीन कर आधी छुट्टी के वक्त जल्दी जल्दी पढ़ा करते थे...दो दो तीन तीन लड़के किसी किताब के पन्ने को पढ़ते पहले बार देखे थे.....ज्ञान अर्जित करने की इतनी व्याकुलता..... कौन सा धर्मात्मा था मैं भी , दो तीन पन्ने तो पढ़े ही होंगे, लेकिन मुझे लगा था कि यह ठीक नहीं है, हम लोग तो घर से पढ़ने आते हैं। वह लड़का अपनी पढ़ाई में अच्छा था, चला गया है विदेश.........अब कभी उसे संदेश भेजो तो कभी भी जवाब नहीं देता, मुझे आज भी उस बंदे से चिढ़ है ...क्योंकि उस ने हमारी क्लास के कुछ छात्रों को कभी गलत राह दिखाई थी। उस उम्र में हमारा मन भी कच्ची मिट्टी के समान होता है.... चलिए, उसे माफ़ कर देते हैं और इस बात पर यहीं मिट्टी डालते हैं।
और यह फांदेबाजी की कोशिश देखिए आज कल किस तरह से बीबीसी न्यूज़ का फेक पन्ना तैयार कर के की जा रही है, मुझे कल आभास हुआ कि नेट पर किसी को भी उल्लू बनाना कितना आसान है, क्यों बैंकों वाले नेटबैंकिंग फ्रॉड से बचने के लिए बार बार विज्ञापनों के माध्यम से आगाह करते रहते हैं...यह हम लोग अब जानते हैं, लेकिन फिर भी इस तरह के संदेहस्पद प्रोड्क्ट्स बेचने वाले कितने लोगों को रोज़ाना अपना शिकार तो बना ही लेते होंगे..
तो दोस्तो इस कहानी से हम सब ने (मैंने भी) यही शिक्षा ली कि अगर नेट पर कुछ ज़रूरत से ज़्यादा मीठा या अच्छा दिखे तो अगला कदम रखने से पहले उस की थोड़ी जांच-पड़ताल कर लीजिए.......बनारस का ठग तो एक था, लेकिन नेट पर तो हर कदम पर बहुरूपिए, ठग, जालसाज़ अपने स्टाल सजाए बैठे हैं, बच के निकलिएगा...
नोट
२. कहने की भी बात नहीं है कि अगर इस तरह के प्रोडक्टस कहीं से मुफ्त भी मिलें तो नहीं लेने चाहिए, पता ही नहीं क्या है क्या नहीं!!
अभी कुछ पतला करने वाले हर्बल जुगाड़ों का ध्यान आ गया कि वे भी क्या क्या गुल खिला रहे हैं!
२. मैने कभी भी पाठकों से नहीं कहा कि मेरी किसी भी बक-बक को शेयर करें, लेकिन इस पोस्ट के लिए विशेष रूप से कह रहा हूं ताकि भूल से भी कोई इस तरह के जालसाज़ों के झांसे में न जाए। इसे जितना शेयर कर सकते हैं, करिएगा। नेट पर शातिर लोग ताक लगाए बैठे हैं।
ओह माई गॉड, इतनी मगजमारी के बाद, सुबह सुबह कोई एक ठीक ठाक गीत सुनना-सुनाना तो बनता है, बेशक......इस समय यह गीत ध्यान में आ गया.....चिट्ठिए नी...दर्द फिराक वालिए ... (हिना फिल्म का यह बेहतरीन गीत)..