आज जब मैं विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट देख रहा था तो पता चला कि 28जुलाई 2011 विश्व हैपेटाइटिस दिवस है। साथ में हैपेटाइटिस सी के बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध करवाई गई थी।
अकसर ऐसे ही सुनी सुनाई बात को ध्यान में रखते हुये किसी से भी कोई पूछे कि हैपेटाइटिस सी किस रूट से फैलता है तो यकायक किसी भी पढ़े लिखे इंसान का यही जवाब होगा जिस रूट से हैपेटाइटिस बी फैलता है उसी रूट से ही यह भी फैलता है –देखा जाए तो कुछ हद तक ठीक भी है लेकिन जब कोई बात विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर है तो उस की विश्वसनीयता तो एकदम पक्की है ही।
WHO की साइट पर यह लिखा है ... It is less commonly transmitted through sex with an infected person and sharing of personal items contaminated with infectious blood. अर्थात् यह रोग हैपेटाइटिस सी यौन संबंधों के द्वारा इतना ज़्यादा नहीं फैलता।
लेकिन फिर भी हैपेटाइटिस सी अन्य देशों की तरह हमारे लिये भी एक बडा मसला बनता जा रहा है।
जब से यह रक्त चढ़ाने से पहले इस की हैपेटाइटिस सी के लिये भी जांच होती है तब से इस रूट से तो हैपेटाइटिस सी के किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के चांस कम ही हैं। लेकिन गंदी, संक्रमित सिरिंज सूईंयों के द्वारा यह रोग संचारित होता रहता है।
इस तरह की सूईंयों का इस्तेमाल ये नीम हकीम और गांव-कसबों में बैठे झोलाछाप चिकित्सक लोग करते आ रहे हैं ... ये कुछ भी तो नहीं समझते कि ये पब्लिक को कितनी बड़ी बीमारी दिये जा रहे हैं... अकसर मैं सोचता हूं कि इस तरह की बीमारियां इन लोगों के द्वारा जो किसी को दे दी जाती हैं क्या ये मर्डर नहीं है। लेकिन इन तक कभी कोई पहुंचता ही नहीं पाता क्योंकि सिद्ध कौन करे कि फलां फलां को उस ने यह टीका लगाया था, इसलिये उस की मौत हो गई।
और दूसरे यह जो नशे लेते हैं ये एक दूसरी की इस्तेमाल की गई सिरिंजो, सूईंयों का इस्तेमाल करते हैं और हैपेटाइटिस सी, बी और एचआईव्ही जैसे रोगों को मोल ले लेते हैं।
कईं बार मैंने मेलों में देखा है ये जो टैटू आदि लोग गुदवा लेते हैं इन मशीनों के द्वारा भी यह रोग फैलता है। और आज के युवाओं को तो तरह तरह की पियरसिंग (body piercing) करवाने का खूब क्रेज़ है, इसलिये कौन देखता है कैसी मशीन इस्तेमाल की जा रही है. और तो और एक्यूपैंचर के इलाज के दौरान भी अगर अगर ठीक सूईंयां इस्तेमाल नहीं की जातीं, तो भी यह रोग फैल सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट में लिखा हुआ है कि जिन लोगों में यह इंफैक्शन हो जाती है उन में से 60से 70 प्रतिशत लोगों में यह क्रॉनिक (chronic) रूप ले लेती है अर्थात् उन का लिवर एक लंबी चलने वाली बीमारी का शिकार हो जाता है ... 5 से 20 प्रतिशत मरीज़ों में लिवर-सिरहोसिस (liver cirrhosis) हो जाता है .. अर्थात् लिवर सिकुड़ जाता है, उस में गांठे पड़ जाती हैं, और यूं कह लें वह फेल हो जाता है और अन्ततः 1 से 5 प्रतिशत लोगों की लिवर सिरहोसिस अथवा लिवर के कैंसर से मौत हो जाती है।
लेकिन आज चिकित्सा विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि हैपेटाइटिस सी का इलाज भी संभव है ---नये नयी नयी ऐंटी-वॉयरल दवाईयां आ चुकी हैं लेकिन इस के लिये मरीज़ को टैस्ट तो करवाना होगा, जल्द इलाज भी तो शुरू करवाना ही होगा.......लेकिन ये सारी की सारी बातें मुझे तो किताबी लगती हैं ....न तो अधिकतर लोग टैस्ट करवा ही पाते हैं, और अगर करवा भी लेते हैं तो महंगा इलाज कौन करवाये ---क्या नशे की सूईंयां आपस में शेयर करने वाले ये सब कर पाने में समर्थ होते होंगे, क्या गांव के मेलों में ज़मीन पर बैठ कर टैटू गुदवाने वाले ये सब काम कर पाते होंगे................आंकड़े कुछ भी मुंह फाड़ फाड़ कर बोलें, लेकिन वास्तविकता किसी से भी छुपी नहीं है।
मैं सोचता हूं क्यों इन नीमहकीमों को जो इस तरह के धंधे करते हैं, संक्रमित सूईंयों से भोली भाली जनता को बीमारी ठोकते रहते हैं, जो मेलों में ये टैटू वैटू का धंधा करते हैं इन पर क्यों शिकंजा नहीं कसा जाता....हम गन्ने का गंदा रस बेचने वाले का तो ठेला बंद करवा देते हैं लेकिन ये यमदूत के एजेंट खुले आम अपना गोरखधंधा जमाये रखते हैं।
अब आता हूं इस पोस्ट के शीर्षक की तरफ़ कि हैपेटाइटिस सी का इलाज तो है लेकिन कितने लोग इस सुविधा का लाभ उठा पाते होंगे --- क्या आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं जो यह इलाज करवा पाया ?....कहने का मतलब है कि अधिकतर लोग जो इन रोगों से संक्रमित होते हैं वैसे ही अभाव की ज़िंदगी जी रहे होते हैं, उन की अनेकों दैनिक मुश्किलों की तरह से यह भी एक अन्य मुश्किल है... न कभी टैस्ट न कभी इलाज....जब लिवर बिल्कुल जवाब दे देता है, बेचारे मर जाते हैं ....लेकिन कसूर किसी का कोई नहीं कहता ....सब कहते हैं बस पीलिया हुआ था, मर गया .....बहुत तकलीफ़ में था, बस मुक्ति मिल गई ....।
Further Reading
Hepatitis C -- WHO site
अकसर ऐसे ही सुनी सुनाई बात को ध्यान में रखते हुये किसी से भी कोई पूछे कि हैपेटाइटिस सी किस रूट से फैलता है तो यकायक किसी भी पढ़े लिखे इंसान का यही जवाब होगा जिस रूट से हैपेटाइटिस बी फैलता है उसी रूट से ही यह भी फैलता है –देखा जाए तो कुछ हद तक ठीक भी है लेकिन जब कोई बात विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर है तो उस की विश्वसनीयता तो एकदम पक्की है ही।
WHO की साइट पर यह लिखा है ... It is less commonly transmitted through sex with an infected person and sharing of personal items contaminated with infectious blood. अर्थात् यह रोग हैपेटाइटिस सी यौन संबंधों के द्वारा इतना ज़्यादा नहीं फैलता।
लेकिन फिर भी हैपेटाइटिस सी अन्य देशों की तरह हमारे लिये भी एक बडा मसला बनता जा रहा है।
जब से यह रक्त चढ़ाने से पहले इस की हैपेटाइटिस सी के लिये भी जांच होती है तब से इस रूट से तो हैपेटाइटिस सी के किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के चांस कम ही हैं। लेकिन गंदी, संक्रमित सिरिंज सूईंयों के द्वारा यह रोग संचारित होता रहता है।
इस तरह की सूईंयों का इस्तेमाल ये नीम हकीम और गांव-कसबों में बैठे झोलाछाप चिकित्सक लोग करते आ रहे हैं ... ये कुछ भी तो नहीं समझते कि ये पब्लिक को कितनी बड़ी बीमारी दिये जा रहे हैं... अकसर मैं सोचता हूं कि इस तरह की बीमारियां इन लोगों के द्वारा जो किसी को दे दी जाती हैं क्या ये मर्डर नहीं है। लेकिन इन तक कभी कोई पहुंचता ही नहीं पाता क्योंकि सिद्ध कौन करे कि फलां फलां को उस ने यह टीका लगाया था, इसलिये उस की मौत हो गई।
और दूसरे यह जो नशे लेते हैं ये एक दूसरी की इस्तेमाल की गई सिरिंजो, सूईंयों का इस्तेमाल करते हैं और हैपेटाइटिस सी, बी और एचआईव्ही जैसे रोगों को मोल ले लेते हैं।
कईं बार मैंने मेलों में देखा है ये जो टैटू आदि लोग गुदवा लेते हैं इन मशीनों के द्वारा भी यह रोग फैलता है। और आज के युवाओं को तो तरह तरह की पियरसिंग (body piercing) करवाने का खूब क्रेज़ है, इसलिये कौन देखता है कैसी मशीन इस्तेमाल की जा रही है. और तो और एक्यूपैंचर के इलाज के दौरान भी अगर अगर ठीक सूईंयां इस्तेमाल नहीं की जातीं, तो भी यह रोग फैल सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट में लिखा हुआ है कि जिन लोगों में यह इंफैक्शन हो जाती है उन में से 60से 70 प्रतिशत लोगों में यह क्रॉनिक (chronic) रूप ले लेती है अर्थात् उन का लिवर एक लंबी चलने वाली बीमारी का शिकार हो जाता है ... 5 से 20 प्रतिशत मरीज़ों में लिवर-सिरहोसिस (liver cirrhosis) हो जाता है .. अर्थात् लिवर सिकुड़ जाता है, उस में गांठे पड़ जाती हैं, और यूं कह लें वह फेल हो जाता है और अन्ततः 1 से 5 प्रतिशत लोगों की लिवर सिरहोसिस अथवा लिवर के कैंसर से मौत हो जाती है।
लेकिन आज चिकित्सा विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि हैपेटाइटिस सी का इलाज भी संभव है ---नये नयी नयी ऐंटी-वॉयरल दवाईयां आ चुकी हैं लेकिन इस के लिये मरीज़ को टैस्ट तो करवाना होगा, जल्द इलाज भी तो शुरू करवाना ही होगा.......लेकिन ये सारी की सारी बातें मुझे तो किताबी लगती हैं ....न तो अधिकतर लोग टैस्ट करवा ही पाते हैं, और अगर करवा भी लेते हैं तो महंगा इलाज कौन करवाये ---क्या नशे की सूईंयां आपस में शेयर करने वाले ये सब कर पाने में समर्थ होते होंगे, क्या गांव के मेलों में ज़मीन पर बैठ कर टैटू गुदवाने वाले ये सब काम कर पाते होंगे................आंकड़े कुछ भी मुंह फाड़ फाड़ कर बोलें, लेकिन वास्तविकता किसी से भी छुपी नहीं है।
मैं सोचता हूं क्यों इन नीमहकीमों को जो इस तरह के धंधे करते हैं, संक्रमित सूईंयों से भोली भाली जनता को बीमारी ठोकते रहते हैं, जो मेलों में ये टैटू वैटू का धंधा करते हैं इन पर क्यों शिकंजा नहीं कसा जाता....हम गन्ने का गंदा रस बेचने वाले का तो ठेला बंद करवा देते हैं लेकिन ये यमदूत के एजेंट खुले आम अपना गोरखधंधा जमाये रखते हैं।
अब आता हूं इस पोस्ट के शीर्षक की तरफ़ कि हैपेटाइटिस सी का इलाज तो है लेकिन कितने लोग इस सुविधा का लाभ उठा पाते होंगे --- क्या आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं जो यह इलाज करवा पाया ?....कहने का मतलब है कि अधिकतर लोग जो इन रोगों से संक्रमित होते हैं वैसे ही अभाव की ज़िंदगी जी रहे होते हैं, उन की अनेकों दैनिक मुश्किलों की तरह से यह भी एक अन्य मुश्किल है... न कभी टैस्ट न कभी इलाज....जब लिवर बिल्कुल जवाब दे देता है, बेचारे मर जाते हैं ....लेकिन कसूर किसी का कोई नहीं कहता ....सब कहते हैं बस पीलिया हुआ था, मर गया .....बहुत तकलीफ़ में था, बस मुक्ति मिल गई ....।
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Hepatitis C -- WHO site