अचानक मुझे ध्यान आया है कि आज मैं अपने कालेज के दिनों की नोटबुक अपनी पोस्ट पर डालूं….यह नोटबुक 1978 की है जैसा कि आप इस में लिखी तारीख से जान ही गये होंगे। तब मैं डीएवी कालेज अमृतसर में प्री-यूनिवर्सिटी (मैडीकल) का विद्यार्थी था। बस कालेज के दिनों की एक अदद यही याद बची हुई है। लेकिन ऐसी नोटबुक मैं हर विषय की बनाया करता था…..हर विषय(फिजिक्स , कैमिस्ट्री, बायोलाजी, इंगलिश) की बनाया करता था। हर विषय की कईं कईं नोटबुक्स तैयार हो जाया करती थी।
आज सोच रहा हूं कि हम दिल से पढ़ते थे…जिस का परिणाम इस कालेज के मैगजीन की इस फोटो में आप देख रहे हैं.।कालेज से आते ही बस यही जल्दबाजी होती थी कि आज के नोट्स आज ही बनाने हैं…सो, बस खाना खाने के बाद रेडियो लगा कर लग जाता था काम करने…ताकि शाम के समय खेलने का समय भी मिल सके। बड़े अच्छे दिन थे…..पर पता नहीं इतने जल्दी बीत गये हैं।
हर विषय के नोट्स बनाने का फायदा यह होता था कि रोज़ का काम एक तो रोज़ ही रीवाइज़ हो जाता था और ऊपर से लिखने की प्रैक्टिस हो जाया करती थी। इन नोट्स को बनाने में मैं अपने कालेज के प्रोफैसरर्ज़ के क्लास नोट्स और किसी एक-दो किताबों की मदद भी ले लिया करता था। बस, यह नोट्स फाइनल ही हुया करते थे….पेपर के दिनों में इधर उधर कहीं भी माथा-पच्ची करने की कोई ज़रूरत ही नहीं होती थी। बस इन्हें अच्छी तरह से रिवाइज़ करना ही काफी होता था।
लेकिन आज कल के बच्चों का रूझान कभी भी नोट्स बनाने की तरफ दिखा नहीं ….ऐसा है ना टाइम तो फिक्स ही है, या तो बीसियों चैनलों की सर्फिंग कर लें, दो-तीन ट्यूशनों से जब तक हो कर आते हैं थक कर टूट चुके होते हैं। यह मेरा बहुत ही पक्का विश्वास है कि इन टयूशनों ने तो हमारी शिक्षा-प्रणाली का बेड़ा ही गर्क कर लिया है। लिखने की तो इन को प्रैक्टिस रही नहीं है।
अच्छा , मुझे पता एक-दो दिन से ये नये ऩये आइडियाज़ कहां से आ रहे हैं…मुझे लगता है यह मैडीटेशन का करिश्मा है जिसे मैंने पुनः नियमति तौर पर रोज़ाना करना शुरू कर दिया है। अब मन की स्लेट रोजाना साफ होगी तो ही मैं अपनी इस स्लेट पर कुछ नया लिखने में कामयाब होऊंगा……आशीर्वाद दें कि यह सिलसिला इस तरह ही चलता रहे।
कृपया नोट करें कि मैं अभी ये फोटो-वोटो अप-लोड करने में अनाडी हूं...फोटो तो और भी बहुत डालने वाली हैं ,कुछ ज़रूरी टिप्स बतलायेंगे तो मैं आभारी हूंगा।