जितना सब्र मैंने जनरल डिब्बे में सफ़र करने वाले लोगों में देखा है ...कहीं नहीं देखा ..बंदे के ऊपर बंदे चढ़े हुए, बाहर तक लटके हुए लोग कंधे से भारी भरकम झोला लटकाए हुए....अकसर ऐसे मंजर देख कर इन सब की सलामती की दुआ ज़रूरत मांग लिया करता हूं ...मुझे तो यही सोच कर डर लगता है कि यार, ये लोग एन नंबर या दो नंबर के लिए कैसे रास्ता बनाते होंगे ...लेकिन यकीनन कुछ तो करते ही होंगे...क्योंकि कभी की पतलून गीली होती भी नहीं और इन डिब्बों की आबो-हवा भी बदलती नहीं दिखी...
मैं कैसे कह सकता हूं इतने यकीन से?...ज़िंदगी में कभी न कभी कुछ बार तो ऐसे हालात में सफ़र किया ही हुआ है ....
जन साधारण में इतना सब्र कि जनरल डिब्बे में ऊपर वाली बर्थ पर चार छः लोग बैठे हुए किसी की पसीने से लथपथ कमीज़, अत्याचार करने जैसे बदबूदार जुराबों, बिना रुमाल रखे की गई खांसी, छींके, डकारें, गैसी गुब्बारे, जुकाम, बीड़ी-सिगरेट का निरंतर निकलता धुआं....ये सब बिना किसी चूं-चां के सहते चले जाते हैं...
पता नही मैं यह लिख कर कहीं आम आदमी की हर जगह बस सब कुछ सहने की इस मजबूरी को ग्लोरीफॉई तो नहीं कर रहा हूं..लेकिन यह सच भी तो है ...
असल में हिंदोस्तान के जनमानस की कभी हमें तो समझ आई ही नहीं... समझदार ये इतने हैं कि जब चाहें किसी भी सरकार को बदल देते हैं या आगे पांच साल के लिए बढ़ा देते हैं ...और नासमझ ऐसे कि हर किसी की बातों में आ जाते हैं....उस दिन मैं एक जगह टहल रहा था तो मैं एक सत्संग के स्टाल्स की तरफ़ निकल गया ...पास में ही था....मुझे देख कर इतनी हैरानी हुई कि साधारण महिलाएं जो अपनी सेहत के लिए बीस रूपये भी खर्च करना एक बहुत बड़ी फिज़ूलखर्ची समझती हैं, वहां कुछ यंंत्रों-तंत्रों, मंत्रो, चोलों, आसन आदि के लिए ६०० रूपये ..१२०० रूपये खुशी खुशी अपने छोटे पर्स से तुंरत निकाल कर अपने परिवार के लिए सुनहरे सपने खरीद रही थीं....
मैं तो वहां दस मिनट भी रूक नहीं सका....मेरा दिमाग बगावत करने लगता है ऐसे मंजर देख कर ..
हां, खबर पर आते हैं... रेल बर्थ वाली नईं खबर पर ....तो जनाब, खबर यह है कि अब ट्रेन छूटने से चार घंटे पहले ही यात्रियों को उन के डिब्बे और बर्थ का नंबर पता चलेगा....रेलवे यह शुरूआत राजधानी गाडियों से कर रही है और फिर धीरे धीरे इन्हें अन्य गाड़ियों पर भी लागू कर दिया जायेगा ...
खबर पढ़ने से एक बार तो ऐसे लगा कि यह क्या हुआ, चार घंटे पहले तक इतना सुस्पैंस क्यों?
लेकिन जब खबर पूरी पढ़ी तो पता चला कि यह कितना सराहनीय प्रयास है ....दरअसल होता क्या है कि गाड़ियों में नीचे वाली बर्थ के चाहवान अधिकतर होते हैं ...ऐसे में जो लोग बहुत पहले से टिकट बुक करवा लेते हैं, उन्हें तो नीचे वाली बर्थें मिल जाती हैं...चाहे वे नौजवान ही होते हों.....और बाद में जैसे जैसे सीटें बची खुची रह जाती हैं...वे सब की सब ऊपर वाली रह जाती हैं... और ऐसे में बुज़ुर्ग और महिलाओं को खासी दिक्कत हो जाती है....
इस खबर को आप पूरा यहां पढ़ सकते हैं... रेलवे का बड़ा फैसला
महिलाओं और बुज़ुर्गों को इस से कितनी ज़्यादा तकलीफ़ होती है, इस के हम सब साक्षी हैं और भुक्तभोगी भी रहे हैं..जब हमारे साथ बुज़ुर्ग चल रहे होते हैं ..
दरअसल रेलवे ने कोई बढ़िया सा साफ्टवेयर इस्तेमाल कर के यह व्यवस्था शुरू करने की सोची होगी ...इस की जितनी प्रशंसा की जाए कम है ...
बात खत्म करने से पहले ...मैं एसी डिब्बों में सफर करने वाले कुछ लोगों के कम सब्र की भी तो बात कर लें.....पहले होता था कि पहले दर्जे या एसी दर्जे में सुबह कुछ सात से रात नौ दस बजे तक उस की बैकरेस्ट को ऊपर ही रखना होता था...और लोग अकसर ऐसा ही करते थे .. ताकि ऊपर की सीट वाले को नीचे बैठने में दिक्कत न हो ...जब वह ऊपर चढ़ जाता तो नीचे की बर्थ वाला भी अपनी बेकरेस्ट नीचे कर लेता .. और बिछौना बिछा लेता ...
लेकिन अब तो ऐसा होने लगा कि आप किसी एसी डिब्बे में घुसें और अगर आप की ऊपर वाली सीट है तो नीचे वाले बंदे ने पहले ही चंदर कंबल बिछा रखा होता है ..समझ ही नहीं आता कि बूट कहां बैठ कर उतारें, खाना कहां बैठ कर खाएं....यह आप सब के साथ भी होता ही होगा... हर बंदे की अपनी अपनी संवेदनशीलता है ... क्या कहें! जगह जगह पर उलझने से भी कुछ हासिल नहीं होता !
मैं कैसे कह सकता हूं इतने यकीन से?...ज़िंदगी में कभी न कभी कुछ बार तो ऐसे हालात में सफ़र किया ही हुआ है ....
जन साधारण में इतना सब्र कि जनरल डिब्बे में ऊपर वाली बर्थ पर चार छः लोग बैठे हुए किसी की पसीने से लथपथ कमीज़, अत्याचार करने जैसे बदबूदार जुराबों, बिना रुमाल रखे की गई खांसी, छींके, डकारें, गैसी गुब्बारे, जुकाम, बीड़ी-सिगरेट का निरंतर निकलता धुआं....ये सब बिना किसी चूं-चां के सहते चले जाते हैं...
पता नही मैं यह लिख कर कहीं आम आदमी की हर जगह बस सब कुछ सहने की इस मजबूरी को ग्लोरीफॉई तो नहीं कर रहा हूं..लेकिन यह सच भी तो है ...
असल में हिंदोस्तान के जनमानस की कभी हमें तो समझ आई ही नहीं... समझदार ये इतने हैं कि जब चाहें किसी भी सरकार को बदल देते हैं या आगे पांच साल के लिए बढ़ा देते हैं ...और नासमझ ऐसे कि हर किसी की बातों में आ जाते हैं....उस दिन मैं एक जगह टहल रहा था तो मैं एक सत्संग के स्टाल्स की तरफ़ निकल गया ...पास में ही था....मुझे देख कर इतनी हैरानी हुई कि साधारण महिलाएं जो अपनी सेहत के लिए बीस रूपये भी खर्च करना एक बहुत बड़ी फिज़ूलखर्ची समझती हैं, वहां कुछ यंंत्रों-तंत्रों, मंत्रो, चोलों, आसन आदि के लिए ६०० रूपये ..१२०० रूपये खुशी खुशी अपने छोटे पर्स से तुंरत निकाल कर अपने परिवार के लिए सुनहरे सपने खरीद रही थीं....
मैं तो वहां दस मिनट भी रूक नहीं सका....मेरा दिमाग बगावत करने लगता है ऐसे मंजर देख कर ..
हां, खबर पर आते हैं... रेल बर्थ वाली नईं खबर पर ....तो जनाब, खबर यह है कि अब ट्रेन छूटने से चार घंटे पहले ही यात्रियों को उन के डिब्बे और बर्थ का नंबर पता चलेगा....रेलवे यह शुरूआत राजधानी गाडियों से कर रही है और फिर धीरे धीरे इन्हें अन्य गाड़ियों पर भी लागू कर दिया जायेगा ...
खबर पढ़ने से एक बार तो ऐसे लगा कि यह क्या हुआ, चार घंटे पहले तक इतना सुस्पैंस क्यों?
लेकिन जब खबर पूरी पढ़ी तो पता चला कि यह कितना सराहनीय प्रयास है ....दरअसल होता क्या है कि गाड़ियों में नीचे वाली बर्थ के चाहवान अधिकतर होते हैं ...ऐसे में जो लोग बहुत पहले से टिकट बुक करवा लेते हैं, उन्हें तो नीचे वाली बर्थें मिल जाती हैं...चाहे वे नौजवान ही होते हों.....और बाद में जैसे जैसे सीटें बची खुची रह जाती हैं...वे सब की सब ऊपर वाली रह जाती हैं... और ऐसे में बुज़ुर्ग और महिलाओं को खासी दिक्कत हो जाती है....
इस खबर को आप पूरा यहां पढ़ सकते हैं... रेलवे का बड़ा फैसला
महिलाओं और बुज़ुर्गों को इस से कितनी ज़्यादा तकलीफ़ होती है, इस के हम सब साक्षी हैं और भुक्तभोगी भी रहे हैं..जब हमारे साथ बुज़ुर्ग चल रहे होते हैं ..
दरअसल रेलवे ने कोई बढ़िया सा साफ्टवेयर इस्तेमाल कर के यह व्यवस्था शुरू करने की सोची होगी ...इस की जितनी प्रशंसा की जाए कम है ...
बात खत्म करने से पहले ...मैं एसी डिब्बों में सफर करने वाले कुछ लोगों के कम सब्र की भी तो बात कर लें.....पहले होता था कि पहले दर्जे या एसी दर्जे में सुबह कुछ सात से रात नौ दस बजे तक उस की बैकरेस्ट को ऊपर ही रखना होता था...और लोग अकसर ऐसा ही करते थे .. ताकि ऊपर की सीट वाले को नीचे बैठने में दिक्कत न हो ...जब वह ऊपर चढ़ जाता तो नीचे की बर्थ वाला भी अपनी बेकरेस्ट नीचे कर लेता .. और बिछौना बिछा लेता ...
लेकिन अब तो ऐसा होने लगा कि आप किसी एसी डिब्बे में घुसें और अगर आप की ऊपर वाली सीट है तो नीचे वाले बंदे ने पहले ही चंदर कंबल बिछा रखा होता है ..समझ ही नहीं आता कि बूट कहां बैठ कर उतारें, खाना कहां बैठ कर खाएं....यह आप सब के साथ भी होता ही होगा... हर बंदे की अपनी अपनी संवेदनशीलता है ... क्या कहें! जगह जगह पर उलझने से भी कुछ हासिल नहीं होता !
टॉपिक को थोड़ा खुशनुमा बनाते है ं...अभी १०४ एफ एम पर पिक्चर पांडेय नाम से एक प्रोग्राम चल रहा है ...बॉबी फिल्म के इस गाने की बातें चल रही हैं और यह लो, अब यह बज भी रहा है ....लेकिन इस गीत मेरे लिए सब से स्पेशल इसलिए है क्योंकि इस की शुरुआती ट्यून मुझे जबरदस्त पसंद है ..यह मुझे मेरे आठवीं कक्षा के दिनों को याद दिलाती है .. ४०-४२ साल हो गये ...इस की ट्यून अभी भी उतनी ही फेवरेट है...