मुझे मोशन सिकनैस की तकलीफ है...बचपन से ही है ..लेकिन घर बैठे बैठे ही यह कईं बार हो जाती है जब मैं सोशल मीडिया पर कुछ ज्ञानी लोगों के महान् ज्ञान आवंटन को देखता हूं...
सब से पहले आप यह गीत तो सुनिए...कहीं भूल गया तो पोस्ट का ज़ायका ही जाता रहेगा...
हां, तो मैं बात कर रहा था...डबल स्टैंडर्ड्स की, मल्टी स्टैंडर्डस की....सच में यह हो रहा है..लेिकन मुझे समझ में नहीं आता कि यह सब हम आखिर करते क्यों हैं! किस की नज़र में उठना चाहते हैं, और आखिर क्यों!
यही सोच कर मुझे लगता है कि सभी सोशल मीडिया खाते बंद करूं और इत्मीनान से रहूं...कुछ ऐसे लोगों का ज्ञान जब दिख जाता है ना तो सिर चकरा जाता है ..कुछ लोग जो अपनी दसों अंगुलियों में दस तरह की अंगूठियां पहने रहते हैं...कमरे में दुनिया भर के लगभग सभी धर्मों की तस्वीरें टांगने से नहीं चूकते... यानि अपनी धार्मिक छवि बिना ब्रासो के ही चमका के रखते हैं...लेिकन हर तरह के गोरखधंधों में लिप्त .... लेिकन सोचने वाली बात यही है कि आखिर इस से होगा क्या... कुछ भी तो नहीं... किसी को इंप्रेस क्यों करना, जैसे हैं कम से कम वैसे तो बने रहें....
हां, मैं दसों अंगुलियों में दस मुंदरियों की बात कर रहा था, गले में तरह तरह के धार्मिक चिन्हों की बात कर रहा था और दफ्तर में आठ दस देवी देवतों और धर्म-गुरूओं की तस्वीरों की बात कर रहा था...लेिकन फिर भी इन में से कुछ लोग आम आदमी पर इतना ज़ुल्म ढहा रहे होते हैं कि क्या कहें! इन्होंने किसी कोने को भी बिना निचोड़े छोड़ा नहीं होता...सब कुछ समेट कर, बेकार में फिर ये लोग फिज़ूल का ज्ञान बांटने कूद पड़ते हैं....और मेरे जैसों की तबीयत बिगाड़ देते हैं...
मुझे कईं बार यही लगता है कि हमारी समस्याओं की जड़ ही यही है ...हम सोचते कुछ हैं, करते कुछ अलग हैं और दिखाते कुछ अलग है .....बस, बेकार में इसी छवि चमकने-चमकाने की जद्दोजहद में ही लाइफ का कबाड़ा कर लेते हैं...मैं भी ऐसा ही हूं ...बस न तो अंगूठियां पहनता हूं, न ही देवी देवताओं की तस्वीरों की नुमाइश करता हूं और न ही किसी पर ज़ुल्म करता हूं .... लेकिन मनसा, वाचा, कर्मा एक रखने वाली बात हो नहीं पाती....शायद यह हो भी न पाए, पता नहीं कभी हो पाएगा भी या नहीं! लेकिन इतनी भी जल्दी नहीं है!!
वैसे तो हमें सत्संग में महात्मा लोग यही समझाते हैं कि आईने में अपनी ही तस्वीर देखनी चाहिए....लेिकन पता नहीं क्यों यह कभी कभी दूसरों की तरफ़ मुड़ जाता है अपने आप... जैसे की अभी मेरा कुछ भी लिखने का मन नहीं था, लेकिन जैसे ही कुछ दिन पहले ज्ञान बांटने वालों की शक्ल दिख गई तो मोशल सिकनेस होने लगी हो जैसे बैठे बैठे ....उन की अंगुठियां, उन के दिखावे, उन के आडंबर, और उन की लूट याद आ गई ......लेकिन इतना सा लिख कर मन कुछ हल्का तो हुआ ही।
Be yourself!
सब से पहले आप यह गीत तो सुनिए...कहीं भूल गया तो पोस्ट का ज़ायका ही जाता रहेगा...
हां, तो मैं बात कर रहा था...डबल स्टैंडर्ड्स की, मल्टी स्टैंडर्डस की....सच में यह हो रहा है..लेिकन मुझे समझ में नहीं आता कि यह सब हम आखिर करते क्यों हैं! किस की नज़र में उठना चाहते हैं, और आखिर क्यों!
यही सोच कर मुझे लगता है कि सभी सोशल मीडिया खाते बंद करूं और इत्मीनान से रहूं...कुछ ऐसे लोगों का ज्ञान जब दिख जाता है ना तो सिर चकरा जाता है ..कुछ लोग जो अपनी दसों अंगुलियों में दस तरह की अंगूठियां पहने रहते हैं...कमरे में दुनिया भर के लगभग सभी धर्मों की तस्वीरें टांगने से नहीं चूकते... यानि अपनी धार्मिक छवि बिना ब्रासो के ही चमका के रखते हैं...लेिकन हर तरह के गोरखधंधों में लिप्त .... लेिकन सोचने वाली बात यही है कि आखिर इस से होगा क्या... कुछ भी तो नहीं... किसी को इंप्रेस क्यों करना, जैसे हैं कम से कम वैसे तो बने रहें....
हां, मैं दसों अंगुलियों में दस मुंदरियों की बात कर रहा था, गले में तरह तरह के धार्मिक चिन्हों की बात कर रहा था और दफ्तर में आठ दस देवी देवतों और धर्म-गुरूओं की तस्वीरों की बात कर रहा था...लेिकन फिर भी इन में से कुछ लोग आम आदमी पर इतना ज़ुल्म ढहा रहे होते हैं कि क्या कहें! इन्होंने किसी कोने को भी बिना निचोड़े छोड़ा नहीं होता...सब कुछ समेट कर, बेकार में फिर ये लोग फिज़ूल का ज्ञान बांटने कूद पड़ते हैं....और मेरे जैसों की तबीयत बिगाड़ देते हैं...
मुझे कईं बार यही लगता है कि हमारी समस्याओं की जड़ ही यही है ...हम सोचते कुछ हैं, करते कुछ अलग हैं और दिखाते कुछ अलग है .....बस, बेकार में इसी छवि चमकने-चमकाने की जद्दोजहद में ही लाइफ का कबाड़ा कर लेते हैं...मैं भी ऐसा ही हूं ...बस न तो अंगूठियां पहनता हूं, न ही देवी देवताओं की तस्वीरों की नुमाइश करता हूं और न ही किसी पर ज़ुल्म करता हूं .... लेकिन मनसा, वाचा, कर्मा एक रखने वाली बात हो नहीं पाती....शायद यह हो भी न पाए, पता नहीं कभी हो पाएगा भी या नहीं! लेकिन इतनी भी जल्दी नहीं है!!
वैसे तो हमें सत्संग में महात्मा लोग यही समझाते हैं कि आईने में अपनी ही तस्वीर देखनी चाहिए....लेिकन पता नहीं क्यों यह कभी कभी दूसरों की तरफ़ मुड़ जाता है अपने आप... जैसे की अभी मेरा कुछ भी लिखने का मन नहीं था, लेकिन जैसे ही कुछ दिन पहले ज्ञान बांटने वालों की शक्ल दिख गई तो मोशल सिकनेस होने लगी हो जैसे बैठे बैठे ....उन की अंगुठियां, उन के दिखावे, उन के आडंबर, और उन की लूट याद आ गई ......लेकिन इतना सा लिख कर मन कुछ हल्का तो हुआ ही।
Be yourself!